काॅलेज स्तर की शिक्षा पूर्ण करने के बाद ही जातक अध्ययन के उस क्षेत्र की ओर कदम बढ़ाता है जिसे वह अपने कार्य क्षेत्र के रूप में अपनाना चाहता है ‘‘अर्थात काॅलेज के बाद प्राप्त की जाने वाली शिक्षा (उच्च शिक्षा) का संबंध जातक के व्यवसाय अर्थात कार्य क्षेत्र में रहता है।’’ अध्ययन क्षेत्र व कर्म क्षेत्र में अंतर
1. पंचम/पंचमेश तथा नवम/ नवमेश का यदि दशम/दशमेश से कैसा भी कोई ज्योतिषीय योग नहीं बन रहा हो तो ‘अध्ययन क्षेत्र’ तथा ‘कर्म क्षेत्र’ अलग हो जाते हैं। यदि किसी कारण से कोई ज्योतिषीय योग इनके मध्य बन भी रहा हो लेकिन पाप ग्रहों का प्रभाव इस योग पर हो तो वह योग फलीभूत नहीं होता है।
2. उच्च शिक्षा के प्रमुख घटकों का वर्णन ऊपर दिया है। इन घटकों पर पड़ने वाले प्रभाव के अनुरूप ही जातक अपने ‘अध्ययन क्षेत्र’ का चुनाव करता है। जैसे कि जन्म कुंडली का छठा भाव ‘औषधि’ तथा ‘कानून’ का कारक भाव है। यदि छठे भाव का संबंध उच्च शिक्षा भाव (पंचम या नवम) से स्थापित हो जाए तो जातक इनमें से किसी एक क्षेत्र में अध्ययन करेगा। लेकिन यदि इसी जन्मकुंडली में छठे भाव का कैसा भी संबंध दशम या दशमेश से न हो तो जातक का कर्म क्षेत्र औषधि या कानून में प्राप्त शिक्षा से अलग ही होगा। निष्कर्ष: जो ग्रह या भाव जातक के ‘‘अध्ययन क्षेत्र’ को निश्चित करने में पूर्णरूप से प्रभावी हो यदि उन ग्रहों/भावों का कैसा भी संबंध ‘कर्म क्षेत्र’ के प्रमुख घटकों (भाव व ग्रहों) के साथ न बन रहा हो तो जातक के ये दोनों क्षेत्र (अध्ययन व कर्म) अलग-अलग होते हैं।
3. इस विषय से संबंधित सूत्रों का विश्लेषण अति सूक्ष्म रूप से करना आवश्यक है क्योंकि ‘कर्म क्षेत्र’ से संबंधित घटकों की संख्या बहुत अधिक है। उदाहरण: अब उपरोक्त सूत्र पर विचार करें- माना ‘अध्ययन क्षेत्र’ को प्रभावित करने वाले छठे भाव का संबंध दशम/दशमेश से नहीं है या हम सामान्य भाषा में कह सकते हैं कि अध्ययन के क्षेत्र को प्रभावित करने वाले ग्रह और भावों का संबंध व्यवसाय क्षेत्र में मुख्य रूप से विचारणीय दशम/दशमेश से बिल्कुल नहीं है। - लेकिन यदि जन्मकुंडली के एकादश भाव (लाभ भाव) से इनका यानी छठे भाव का संबंध स्थापित हो रहा है तब भी जातक के व्यवसाय क्षेत्र पर इनका प्रभाव आ जाएगा अर्थात जातक का अध्ययन क्षेत्र और व्यवसाय क्षेत्र एक ही हो जाएगा।
अतः अति सूक्ष्म विश्लेषण करना आवश्यक है। 1. अध्ययन क्षेत्र से संबंधित घटक ग्रहों व भावों का संबंध निम्न में से किसी भी व्यावसायिक घटक के साथ नहीं होने से जातक का ‘‘कर्म क्षेत्र’’ व अध्ययन क्षेत्र अलग-अलग होते हैं। दशम, दशमेश, लाभेश तथा धनेश (धन व लाभ भाव) - दशमेश का ग्रहकांत राशीश - दशमेश का नवांशपति - दशमेश का नक्षत्र स्वामी - दशमेश से राशि तथा दृष्टि विनिमय करने वाले ग्रह। दशमेश के नक्षत्र स्वामी से स्थिति, दृष्टि, युति संबंध तथा परस्पर राशि या दृष्टि विनिमय करने वाले ग्रह। दशमेश से युति व दृष्टि संबंध बनाने वाले ग्रह। दशम भाव में स्थित ग्रह तथा दशम पर दृष्टि निक्षेप करने वाले ग्रह। - 10 वें भाव का स्वामी तथा 10 वें भाव का नक्षत्र स्वामी। नोट: उपरोक्त विचार तीनों कुंडलियों (जन्म, चंद्र व सूर्य) से विचारणीय है। - जन्म कुंडली के सर्वाधिक बली ग्रह का संबंध यदि दोनों क्षेत्रों (अध्ययन व कर्म) के घटक ग्रहों व भावों से नहीं है।
तब भी जातक का अध्ययन व कर्म क्षेत्र अलग-अलग होने की प्रबल संभावनाएं रहती हैं। - सर्वाधिक बली ग्रह जातक के ‘अध्ययन क्षेत्र’ को प्रभावित करे लेकिन ‘कर्म क्षेत्र’ को प्रभावित न करे। - सर्वाधिक बली ग्रह का संबंध ‘‘कर्म क्षेत्र’ से संबंधित घटक ग्रहों/भावों से हो लेकिन ‘‘अध्ययन-क्षेत्र’’ से संबंधित ग्रहों व भावों से न हो तब भी जातक का ‘‘अध्ययन क्षेत्र’’ व कर्म क्षेत्र अलग-अलग ही रहते हैं। - ज्योतिष शास्त्र का एक विश्वसनीय सूत्र यह भी है कि ग्रह, राशि तथा भावों के मुकाबले में नक्षत्रों का प्रभाव ज्यादा असरदार (प्रभावी) होता है। - इसका यह अर्थ बिल्कुल नहीं है कि ग्रह, भाव तथा राशियों को बिल्कुल ही प्रभावहीन मान लिया जाए और उनके प्रभाव की गणना नहीं की जानी चाहिए, अर्थात‘‘ग्रह, भावों तथा राशियों’’ की उपेक्षा करने का सुझाव यह सूत्र बिल्कुल नहीं दे रहा है। - यह सूत्र, विश्लेषण में, नक्षत्रों को प्राथमिकता प्रदान करने की सिफारिश कर रहा है। ज्योतिषीय योग: यदि दशमेश दशम का विद्या भाव व विद्या (अध्ययन क्षेत्र) से संबंधित ग्रहों से कैसा भी ज्योतिषीय योग नहीं बन रहा है तो यह संभावना उत्पन्न होती है कि जातक का अध्ययन क्षेत्र व कार्यक्षेत्र अलग-अलग है।
लेकिन यदि दशमेश के नक्षत्र स्वामी का संबंध ‘‘अध्ययन क्षेत्र के’’ ग्रहों, भावों, राशियों से स्थापित हो जाए या फिर अध्ययन क्षेत्र से संबंधित ग्रहों के नक्षत्र स्वामी/स्वामियों का संबंध ‘कर्म क्षेत्र’ के प्रमुख घटकों से स्थापित हो जाए तो उपरोक्त संभावना कि दोनों क्षेत्र अलग-अलग होंगे, के फलीभूत होने की संभावनाएं बहुत ही कम रह जाती है। उपरोक्त स्थिति के ठीक विपरीत संभावनाएं भी हो सकती हैं जैसे कि यदि दोनों क्षेत्रों के नक्षत्र स्वामियों में परस्पर युति, दृष्टि, विनिमय योग बन रहे हों लेकिन दोनों क्षेत्रों के घटक ग्रह, भावों व राशियों में कैसा भी पी. ए. सी. संबंध न स्थापित हो रहा हो तब भी संभावनाएं असमंजस में डालने वाली ही होंगी। ऐसी परिस्थितियों में ग्रह दशा का विश्लेषण सटीक फलकथन में सहायक सिद्ध होता है। - 16 से 24 वर्ष की आयु के दौरान ही उच्च शिक्षा ग्रहण की जाती है और इस आयु में जातक अपने ‘कर्म क्षेत्र’ को चुन कर उसमें प्रवेश करता है।
इस दौरान आने वाली महादशा व अंतर्दशा के स्वामी ग्रहों तथा उन ग्रहों के नक्षत्र स्वामियों का विश्लेषण करके यह अनुमान लगाया जा सकता है कि जन्म कंुडली में बनने वाले कौन से योग फलीभूत होंगे और कौन से योग निर्बल सिद्ध होंगे। उदाहरण: माना कि जन्मकुंडली में दशम/दशमेश तथा विद्या (उच्च शिक्षा) से संबंधित ग्रहों में घनिष्ठ स्थिति,दृष्टि, युति संबंध बन रहे हैं जिसके फलस्वरूप जातक का ‘‘अध्ययन क्षेत्र’ और ‘कर्म क्षेत्र’ एक ही होने की पूर्ण संभावनाएं हैं। लेकिन यदि दशा विश्लेषण में यह पाया जाए कि अध्ययन के समय चल रही ग्रह दशा केवल अध्ययन क्षेत्र से ही संबंध रखती है किंतु ‘कर्म क्षेत्र’ से इस चल रही दशा के स्वामियों का कोई संबंध नहीं है तो जातक का ‘कर्म क्षेत्र’ ‘‘अध्ययन क्षेत्र’ से अलग हो जाएगा। इस बात को पूर्ण बल मिल जाता है। - लेकिन यदि उपरोक्त परिथितियों में नक्षत्र स्वामियों पर विचार करें- यदि नक्षत्र स्वामियों अर्थात दशा पतियों के नक्षत्र स्वामियों का संबंध ‘‘कर्म क्षेत्र’’ से स्थापित हो जाए तो जातक का अध्ययन व कर्म क्षेत्र एक ही होने की संभावनाएं उत्पन्न हो जाती हैं। नक्षत्र स्वामियों में परस्पर पी. ए. सी. संबंध हो तो अध्ययन व कर्म क्षेत्र एक ही होते हैं अन्यथा अलग-अलग रहते हैं।
अतः दशमेश का नक्षत्र स्वामी, दसवें भाव का नक्षत्र स्वामी - पंचमेश/नवमेश का नक्षत्र स्वामी - कारक गुरु का नक्षत्र स्वामी - 10वें व 5वें भाव का नक्षत्र स्वामी मुख्य रूप से विचारणीय है । नोट - ग्रह, भाव व राशियों से सृजित योगों की पुनरावृत्ति यदि नक्षत्र स्वामियों द्वारा सृजित योगों से हो रही हो तथा अध्ययन व कर्म (व्यवसाय) की उचित आयु के दौरान चल रही दशा का संबंध भी उपरोक्त योगों के घटक ग्रहों, भावों, राशियों व नक्षत्र स्वामियों से हो रहा हो तो पूर्ण विश्वास के साथ फलकथन किया जा सकता है। अध्ययन व कर्म क्षेत्र के अलग-अलग होने का एक मुख्य कारण है-दशा का सही मिलान न होना 1. कभी-कभी जन्मकुंडली में बनने वाले प्रबल योग भी अपना फल प्रदान करने मंे असफल रह जाते हैं।
2. इसका एक कारण सही समय पर सही ग्रह की दशा का न आना अर्थात योगों का सृजन करने वाले ग्रहों की दशा का सही आयु में न आना होता है।
3. जैसा कि पिछले पेज पर वर्णित है: Û अध्ययन की आयु में अध्ययन क्षेत्र से संबंधित ग्रहों की दशा का होना जातक को जन्मकुंडली के अनुसार निश्चित क्षेत्र में उच्च शिक्षा प्रदान करने में सहायक होता है।
Û इसी प्रकार ‘कर्म क्षेत्र’ को प्रभावित निश्चित करने वाले ग्रहों की दशा यदि सही समय पर आए तो संभावित ‘‘कर्म क्षेत्र’ में जातक संलग्न हो जाता है अन्यथा कर्मक्षेत्र से बिल्कुल भी संबंध न रखने वाले ग्रहों की दशा यदि अध्ययन के तुरंत बाद आए तो जातक की शिक्षा का क्षेत्र तथा ‘कर्म क्षेत्र’ बदल जाता है। अर्थात अलग-अलग होता है।
Û दशाओं का यह मिस मैच भी ‘‘कार्य क्षेत्र’’ और ‘‘अध्ययन क्षेत्र’’ के अलग-अलग होने की संभावनाएं उत्पन्न करता है। दशमेश का नवांशेश भी विचारणीय है यदि जन्मकुंडली में जातक का ‘‘अध्ययन क्षेत्र’’ तथा ‘‘कार्य क्षेत्र’’ अलग-अलग होने के योग हों तो इस योग की पुष्टि के लिए दशमेश के नवांशेश पर विचार करना आवश्यक है।
Û यदि दशम भाव में कोई ग्रह स्थित न हो तथा दशमेश के नवांशेश का ‘‘अध्ययन क्षेत्र’’ के किसी भी भाव, ग्रह, राशि व नक्षत्र से पी. ए. सी. संबंध न हो तो उपरोक्त योग (अध्ययन व कर्म क्षेत्र के अलग-अलग होने) को बल प्राप्त होता है। उदाहरण कुंडली नं. 1 इस जातक ने इंजीनियरिंग के क्षेत्र में उच्च शिक्षा प्राप्त की तथा कुछ समय तक जातक का कर्म क्षेत्र भी इंजीनियरिंग का ही रहा।
गुरु जो कि लग्नेश भी है तथा उच्च शिक्षा भाव नवम का स्वामी सूर्य, इन दोनों की युति लाभ भाव में है तथा लाभस्थ शुक्र (लाभेश) भी इनसे युति बना रहा है। - यह योग स्पष्ट संकेत दे रहा है कि जातक अपनी उच्च शिक्षा को सफलतापूर्वक पूर्ण करेगा तथा इसी ‘अध्ययन क्षेत्र’ को आधार बनाकर धन लाभ भी करेगा। लेकिन जातक का व्यवसाय क्षेत्र बदलेगा इसके योग भी जातक की कुंडली में मौजूद हैं।
- दशमेश की स्थिति व्यय भाव में है। अर्थात जातक के व्यवसाय का व्यय होगा। - हानि भाव में स्थित व्ययेश तथा व्यय भाव में स्थित दशमेश के मध्य परस्पर दृष्टि संबंध बन रहा है।
- नीच राशिस्थ सूर्य और शनि के मध्य में स्थित होकर दशमेश पाप मध्यस्थ है। - अष्टमेश चंद्रमा दशम भाव में स्थित है।
- नैसर्गिक विच्छेदक राहु भी दशम भाव में स्थित है।
- दसवें भाव की स्थिति व्ययेश (मंगल) के नक्षत्र में है। ज्योतिष शास्त्र - धनेश (शनि) लग्नस्थ है तथा दशम भाव पर दृष्टि डाल रहा है।
- नवांश कुंडली में शनि दशम भाव में ‘नीच भंग राज योग’ का सृजन कर रहा है। - दशमेश बुध की स्थिति शनि के नक्षत्र में है। निष्कर्ष: लग्नस्थ शनि तथा दशमेश बुध व धन भाव के संयोगवश जातक ने ज्योतिष शास्त्र को अपने ‘कर्म क्षेत्र’ के रूप में अपनाया। उदाहरण कुंडली नं. 2 इस जातक ने विदेश में रहकर विमान उड़ाने का कोर्स सफलता पूर्वक पूरा किया लेकिन पाइलट की नौकरी जातक को नहीं मिल पाई। - जातक की अंग्रेजी भाषा पर अच्छी पकड़ है। जातक यूरोपियन शैली में धाराप्रवाह तरीके से अंग्रेजी बोलने में दक्ष है। इसी आधार पर जातक उन अप्रवासी भारतीयों से संबंध बनाने का कार्य करता है जो भारत में अपनी जमीन-जायदाद बेचना चाहते हैं। प्राॅपर्टी डीलर की एक संस्था का जातक सदस्य है।
- जातक अपनी भाषा शैली के बल बूते पर विक्रेता से मिलकर खरीद-फरोख्त की डील करवाता है।े ज्योतिषीय विश्लेषण
1. उच्च शिक्षा भाव (नवम) तथा दशम दोनों का स्वामी शनि है।
2. दशम भाव में वायु कारक राशि कुंभ का उदय हो रहा है। यह राशि पायलट का भी कारक है।
3. पायलट का कारक ग्रह राहु दशम भाव में स्थित है।
4. उच्च शिक्षा स्वामी शनि के ऊपर राहु (पायलट) का राशि अधिष्ठित प्रभाव है जिससे जातक ने यह कोर्स किया।
5. राहु का लग्न पर, लग्नेश पर दशम केंद्रीय प्रभाव है। ‘‘उपरोक्त ज्योतिषीय योगों के कारण जातक ने पायलट का कोर्स किया। लेकिन जातक का कर्म क्षेत्र (धन उपार्जन का माध्यम) उपर वर्णित प्राप्त शिक्षा क्षेत्र (अध्ययन क्षेत्र) से अलग है। निम्न ज्योतिषीय योग इस तथ्य को स्पष्ट करने में काफी हद तक सक्षम हैं।
1. दशमेश अष्टमस्थ है।
2. निरयण कुंडली अनुसार व्ययेश भी दशम भावस्थ है।
3. दशमेश वक्री होकर शत्रु क्षेत्रीय है।
4. चंद्र कुंडली में भी व्ययेश दशम भावस्थ है।
5. चंद्र कुंडली में दशमेश और अष्टमेश की युति है। ‘‘उपरोक्त सभी योग जातक के दशम भाव से संबंधित ऊपर वर्णित सभी योगों के फलीभूत होने की संभावनाओं को निर्बल बना रहे हैं। अध्ययन क्षेत्र से अलग कर्म क्षेत्र संबंधित योग
1. जन्मकुंडली में सर्वाधिक बली ग्रह बुध है।
2. बुध पंचमश होने के कारण शुभ है तथा नवांश वर्ग चार्ट में बुध उच्च राशि में स्थित है।
3. लग्न का सबसे बली ग्रह बुध लग्न में है।
4. जन्म के समय जातक की शेष विंशोत्तरी दशा शनि की थी जो कि 5 वर्ष, 7 माह व 21 दिन थी इसके बाद 17 वर्ष के लिए बुध की दशा जातक के जीवन में आई जिसने जातक को पूरी तरह प्रभावित किया।
5. बुध धन भाव का स्वामी होकर लग्न में स्थित लग्नेश तथा लाभेश से युत है। -बुध वाणी का कारक ग्रह है। - बुध भाषा की दक्षता का भी कारक है। - बुद्धि, वाणी, व्यापार आदि का कारक होने के साथ-साथ बुध धनेश/पंचमेश होकर जातक के लिए धन प्रदायक है। विशेष: बुध के साथ-साथ शुक्र तथा गुरु भी लग्नस्थ है। लेकिन बुध इनसे अधिक प्रभावी है क्योंकि - गुरु जातक का अकारक ग्रह है। - शुक्र लग्नेश होने के साथ-साथ षष्ठेश (त्रिकेश) भी है तथा नवांश कुंडली में नीच के व्ययेश से शुक्र की युति है तथा नवांश कुंडली में शनि की शत्रु दृष्टि भी शुक्र पर है।
नवांश कुंडली में अकारक गुरु दशम भावस्थ है। कर्म क्षेत्र का जमीन जायदाद से संबंध नोट: चतुर्थ/चतुर्थेश (जमीन जायदाद) को दर्शाता है तथा मंगल को जमीन जायदाद का कारक माना गया है। बुध का संबंध उपरोक्त घटकों से बन रहा है। - चतुर्थेश का राशि अधिष्ठित प्रभाव बुध से है। मंगल की दृष्टि धन भाव पर है। - मंगल का ग्रहकांत राशीश (गुरु) भी बुध से तथा लग्नेश शुक्र से लग्न में युति बना रहा है। ‘‘उपरोक्त सभी योग जमीन जायदाद से संबंधित ‘‘कर्म क्षेत्र’’ को धन उपार्जन का माध्यम बना रहे हैं।