आज के इस आर्थिक युग में लोगों में सुविधापरस्ती दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। वे कम से कम समय में हर सुविधा हासिल कर लेना चाहते हैं। ऐसे में धनार्जन के प्रति उनकी ललक स्वाभाविक है। यही कारण है कि आज का युवा वर्ग काॅल सेंटर के क्षेत्र में कदम बढ़ा चुका है, जहां संभावनाएं असीम हैं। आइए, ज्योतिषीय विश्लेषण के द्वारा देखें कि इस क्षेत्र के प्रति उनके आकर्षण का कारण क्या है। बुध: वाक शक्ति, भाषा का ज्ञान, आवाज की नकल करने की क्षमता, जवाब देने की क्षमता, तर्कशक्ति, हास्य को समझाकर मधुर भाषा में सही उपयोग करने की निर्णय क्षमता। गुरु: भाषा सीखने, समझने की चेष्टा, संयमित आचरण, इज्जत व तमीज से बात करना, काम के प्रति रुचि, सामने वाले व्यक्ति के विचारों को भांपकर अच्छा आचरण करना। शनि: आवेश पर नियंत्रण और धैर्य रखना।
शुक्र: कंप्यूटर प्रणाली का ज्ञान के साथ सफल प्रयोग। स्वच्छ अति आधुनिक वातावरण में सामूहिक कार्य करना, चतुराई, एक कलाकार की तरह वाणी का प्रयोग एवं मृदुलता। मंगल: साहस, हिम्मत, धैर्य। चंद्र: स्वस्थ शरीर, रात रात भर कार्य करने की क्षमता, युवावस्था, उम्र की दृष्टि से अधिक परिपक्वता, कोमल वचन। ज्योतिष के विभिन्न ग्रंथों के अनुसार ग्रह, कारक व भाव संबंधी तथ्य इस प्रकार हैं: बुध के कारकत्व Û सौंदर्य विद्वत्ता, वाकपटुता, वाणी की चतुराई, विद्या, तर्क शक्ति, बुद्धि, कला कौशल। अतः बुध से विद्या और वाणी से संबंधित कर्म देखते हैं। Û बुध से शुभ व्याख्यान, मृदुवचन, मन पर संयम, भाषा का ज्ञान भी देखते हैं। Û जातक भूषणम के अनुसार बुध वाणी, व्यापार, विद्या, बुद्धि, व्यवहार कुशलता और निर्णय शक्ति का कारक है। Û भाव मंजरी के अनुसार कुछ वाणी, व्यापार, वाक कौशल, विद्या, कर्तव्य-अकर्तव्य के निर्णय की शक्ति, कथा लेखन और मीठे वचन का कारक माना जाता है। बुध का स्वरूप निम्न प्रकार माना जाता है: बुध सुंदर आकर्षक शरीर वाला, गूढ़ अर्थ से युक्त, वाक्य बोलने वाला, हास्य को समझने वाला, मधुर वाणी, स्पष्ट भाषा, आवाज, नकल करने की क्षमता बुध के स्वरूप है।
उक्त सभी तथ्यों पर विचार किया जाए तो यह प्रमाणित होगा कि बुध इस व्यवसाय के लिए प्रमुख कारक ग्रह है। गुरु के कारकत्व ज्ञान, सदगुण, महत्व, आचरण, सिंहनाद या शंखध्वनि के समान आवाज, शब्द, आकाश व वाष्पेंद्रियों का स्वामी गुरु है। कार्य में रुचि, पुष्टि कार्य, तर्क की क्षमता, दूसरों के विचारों को भांप लेने की क्षमता, विशेष ज्ञान, कर्तव्य। भावमंजरी के अनुसार गुरु से भाषणपटुता व बुद्धि देखते हैं। उक्त तथ्यों पर विचार करके कह सकते हैं कि गुरु भी इस व्यवसाय का प्रमुख कारक ग्रह है। शुक्र के कारकत्व शुक्र के अन्य कारकत्वों के अतिरिक्त सारावली के अनुसार सलाहकारी, सचिव, बुद्धि, रमणीय प्रभावशाली वचन आदि शुक्र के कारकत्व हैं।
जातक भूषणम के अनुसार सुंदरता, अभिनय, काव्य लेखन, ऐश्वर्य, बहुत स्त्रियों का समूह, मृदुलता आदि शुक्र के कारकत्व हैं। चंद्र के कारकत्व चंद्र के अन्य कारकत्वों के अतिरिक्त जातक भूषणम के अनुसार युवावस्था, उम्र की दृष्टि से अधिक मानसिक परिपक्वता, कोमल वचन चंद्रमा के कारकत्व हैं। भाव मंजरी के अनुसार शरीर पुष्टि और कार्यसिद्धि चंद्र के कारकत्व हैं। उक्त कारकत्वों के अनुसार चंद्र भी इस व्यवसाय का महत्वपूर्ण कारक ग्रह है। मंगल के कारकत्व मंगल के अन्य कारकत्वों के अतिरिक्त फलदीपिका के अनुसार धैर्य, मन की स्थिरता एवं मनोबल मंगल के कारकत्व हैं। जातक भूषण के अनुसार पराक्रम .का महत्वपूर्ण कारक है।
इस प्रकार मंगल भी इस व्यवसाय का महत्वपूर्ण कारक ग्रह है। काॅल सेंटर व्यवसाय के कारक ग्रह एवं भाव निम्न हैं: नित्य कारक ग्रह: बुध, गुरु, शुक्र अन्य कारक ग्रह: चंद्र, मंगल (केतु), शनि, (राहु) नौकरी में पद प्रतिष्ठा के लिए: सूर्य भाव: इस कार्य के लिए लग्न द्वितीय, तृतीय, दशम भाव। कुंडली जन्मकुंडली नवांश: ग्रहों की स्थिति (बल) के लिए। दशमांश: व्यवसाय संबंधी कारकांश कुंडली जन्म कुंडली: लग्न मौलिक तत्वों और संभावित दिशाओं का बोध कराता है व मौलिक स्वास्थ्य की ओर इंगित करता है। यह इसलिए आवश्यक है कि भारत में यह कार्य रात्रि में होता है, जिसका सीधा असर स्वास्थ्य व मस्तिष्क पर पड़ता है। अतः मौलिक रुचि, अभिरुचि का ज्ञान काॅल सेंटर से संबंधित नित्य कारक ग्रहों का संबंध होने पर व्यक्ति का इस क्षेत्र से संबंध हो सकता है।
द्वितीय भाव फलदीपिका के अनुसार Û द्वितीयेश का संबंध शनि से हो तो जातक अल्प शिक्षित होता है। Û द्वितीयेश का संबंध राहु से हो तो शिक्षा अर्जन में अड़चन आती है। Û द्वितीयेश का संबंध केतु से हो तो जातक झूठा, वचन से फिरने वाला होता है। Û द्वितीयेश का संबंध मंगल से हो तो जातक चतुर, चालाक, चुगलखोर होता है। Û द्वितीयेश का संबंध गुरु से हो तो जातक धर्मशास्त्र का ज्ञाता होता है। Û द्वितीयेश का संबंध बुध से हो तो जातक अर्थशास्त्र का ज्ञाता होता है। Û द्वितीयेश का संबंध शुक्र से हो तो जातक शृंगारप्रिय व मीठे वचनों के गुणों से विभूषित होता है। Û द्वितीयेश का संबंध चंद्र से हो तो जातक निश्चित रूप से थोड़ा बहुत कलाकार होता है।
उत्तरकालामृत के अनुसार द्वितीय भाव से वाणी, जिह्वा, मृदु वचन, स्पष्ट व्याख्यान क्षमता, विद्या, मन की स्थिरता व आय की विधि का ज्ञान होता है। जातक तत्वम के अनुसार द्वितीय भाव वाणी स्थान भी है। बुध व गुरु के विशेष विचार से व्यक्ति की वाणी का सौंदर्य जाना जा सकता है। अगर द्वितीयेश बुध व गुरु निर्बल हों तो वाणी दोष होता है। विद्या व वाणी हीन योग Û अगर पंचमेश छठे, आठवें या 12वें भाव में हो तो जातक की वाणी कटु होती है और वह विद्याहीन होता है। Û अगर पंचमेश बुध व गुरु से युक्त होकर छठे, आठवें या 12वें भाव में हो तो जातक वाणी, विद्या, साहित्यिक रचनात्मकता से रहित होता है। जातक सारदीप के अनुसार धन स्थान में बुध हो तो जातक बुद्धि से धन कमाने वाला, सुंदर वचन बोलने वाला व नीतिवान होता है।
जातक भूषणम के अनुसार द्वितीय भाव वाणी प्रयोग, मुख, विद्या का द्योतक है। उक्त सभी तथ्यों के विवेचन से हम कह सकते हैं कि द्वितीय भाव इस व्यवसाय के लिए अति महत्वपूर्ण है। तृतीय भाव: आवाज पंचम भाव: शिक्षा दशम भाव: राज्य कर्म/व्यवसाय एकादश भाव: आय ये भाव भी व्यवसाय निर्धारण के लिए महत्वपूर्ण हंै। फलदीपिका, जातक भूषणम, जातक सारदीप, सारावली एवं महर्षि गार्गी के अनुसार सूर्य, लग्न, चंद्र तीनों से दशमेशों के नवांशेशों से व्यापार की प्रकृति का विचार करना चाहिए। यहां उक्त तथ्यों के प्रमाण के रूप में काॅल सेंटर में कार्यरत युवाओं की कुंडलियां प्रस्तुत हैं:
1. 06.2.1983, 9.58, दिल्ली, महिला सूर्य चंद्र मंगल बुध गुरु शुक्र शनि राहु केतु 23ध्12 8ध्15 21ध्54 27ध्39 13ध्40 15ध्40 10ध्47 9ध्44 9ध्44 आत्मकारक बुध, अमात्यकारक सूर्य, जन्म नक्षत्र-अनुराधा निष्कर्ष: जन्मकुंडली में कारक भावों 1, 2, 3, 10, 11 का संबंध कारक ग्रहों बुध, गुरु, मंगल, शुक्र व शनि से आ रहा है। दशमांश कुंडली में कारक भावों 1,2,3,10,11 का संबंध कारक ग्रहों बुध, गुरु, शुक्र, चंद्र व शनि से है। जैमिनी दृष्टि से दशमांश में सभी कारक ग्रहों का संबंध है। 2. 4.5.1979, 00.20, श्री गंगानगर (राजस्थान) महिला लग्न सूर्य चंद्र मंगल बुध गुरु शुक्र शनि राहु केतु 29 19ध्10 14ध्48 27ध्02 25ध्07 07ध्42 19ध्13 13ध्32 22ध्12 22ध्12 आत्मकारक मंगल, अमात्यकारक बुध, नक्षत्र पुष्य जन्म कुंडली के कारक भावों 1, 2, 3, 10, 11 का संबंध कारक ग्रहों मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि से है। क्9 में लग्न व मंगल वर्गोत्तम हैं तथा इन्हें बल मिलता है।
क्10 में कारक भावों 1, 2, 3, 10, 11 का संबंध कारक ग्रह मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, सूर्य व शनि से है। जैमिनि दृष्टि से भी कारक ग्रहों का प्रभाव परस्पर दृष्टि से है। आत्मकारक मंगल की दृष्टि 3 भाव पर है व अमात्यकारक बुध स्वयं दशमेश है और एकादश भाव में विराजित है जहां चंद्र भी साथ में है। 3. 14.05.1980, 08.55, दिल्ली लग्न सूर्य चंद्र मंगल बुध गुरु शुक्र शनि राहु केतु 18ध्45 29ध्53 24ध्51 09ध्31 00ध्47 07ध्08 06ध्54 26ध्04 01ध्23 01ध्23 आत्मकारक मंगल, अमात्यकारक बुध, नक्षत्र पुष्य जन्म कुंडली के कारक भावों 1, 2, 3, 10, 11 का संबंध कारक ग्रहों बुध, गुरु, शुक्र, मंगल, चंद्र, शनि, सूर्य से है। क्9 में ग्रहों की स्थिति कमजोर हुई है व चंद्र नीच का है
अतः जातका कार्य क्षेत्र में परेशानी महसूस करती है। इस तरह ऊपर वर्णित तथ्यों के विश्लेषण से निष्कर्ष निकलता है कि युवाओं का काॅल सेंटर के प्रति आकर्षण स्वाभाविक है।