शिक्षा व व्यवसाय निर्धारण में ज्योतिष का योगदान
शिक्षा व व्यवसाय निर्धारण में ज्योतिष का योगदान

शिक्षा व व्यवसाय निर्धारण में ज्योतिष का योगदान  

अंजना जोशी
व्यूस : 10167 | जुलाई 2013

वर्तमान युग में शिक्षा व व्यवसाय के क्षेत्रों में विविधता व सीमायें इतनी विस्तृत हैं कि चयन व दिशा निर्धारण एक प्रष्न है। इस कठिन निर्णय में ज्योतिष एक अच्छा मार्ग दर्षक हो सकता है ज्योतिष के माध्यम से कुछ प्रष्नों के उत्तर की दिशा खोजी जा सकती है।

1. बालक के अध्ययन की क्षमतायें क्या है।

2. बालक के लिए किस प्रकार के विषयों का चुनाव हो।

3. क्या जातक को व्यावसायिक क्षेत्र में सफलता मिलेगी।

4. क्या नौकरी से आजीविका प्राप्त होगी।

5. व्यवसाय व नौकरी की प्रकृति कैसी होगी।

इन प्रश्नों पर समय पर किया गया विचार भविष्य की उलझनों से काफी हद तक व्यक्ति को बचा सकता है अथवा कभी परिवर्तनशील स्वभाव के कारण व्यक्ति एक क्षेत्र में स्थिर नहीं हो पाता, सही दिषा निर्देष के बिना भटकाव में रहता है। कभी-कभी अध्ययन के तुरन्त बाद मुख्य ग्रहों की महादशाओं में परिर्वतन के कारण व्यक्ति के कार्य शिक्षा व व्यवसाय निर्धार्रर्ररण में ज्योतिष का योगदान डा. अंजना जोशी, जयपुर की दिषा बदल जाती है। ऐसा भी देखने में आया है कि क्षेत्र विशेष में अच्छी शिक्षा प्राप्त कर भी व्यवसाय का क्षेत्र अलग होता है। जैसे जातक वकालत या इंजीनियरिंग की षिक्षा प्राप्त कर व्यापार करने लग जाता है। षिक्षा में अव्वल व अग्रणी छात्र जीवन की दौड़ में पिछड़ जाता है और सामान्य या औसत छात्र सुस्थापित हो जाता है। आजीविका के सम्बन्ध में शास्त्रीय मानदण्ड स्पष्ट कहे गये हं।

लग्न या चन्द्रमा से दशम स्थान में सूर्य हो तो पिता से, चन्द्रमा तो माता से, मंगल हो ता षत्रु से, बुध हो ता मित्र से, गुरु हो तो भ्राता से षुक हो तो स्त्री से और षनि हो तो दास से धन प्राप्ति होती है

।1 द्रव्यप्राप्तिर्जनकजननीषत्रुमित्रानुजस्त्री भृत्येभ्यः स्यादुदयषषिनोर्मानगैमित्रमुख्यैः। वृतिं खेषस्थलवपवषाल्लग्नचन्द्रारुणेभ्यो ब्रूयातुङे्ग बलिनि तरणावात्मनो विकमात्स्वम्।। (कर्मभावाध्याय ष्लोक-13, जातक भूषणम्-आचार्य मुकुन्द दैवज्ञ पर्वतीय कृत व्याख्याकार डा. सुरेष चन्द्र मिश्र - रंजन पब्लिकेषन, प्रथम संस्करण-1993) यदि लग्न व चन्द्रमा से दषम में कोई ग्रह न हो तो लग्न, सूर्य एवं चन्द्रमा इन तीनों से दषम स्थानों के स्वामियों की वृत्ति व कार्यक्षेत्र के आधार पर जीविका बतानी चाहिये। यदि बलवान सूर्य स्वोच्च में स्थित हो तो व्यक्ति अपने बल व परिश्रम से जीविका चलाता है। लग्न या चन्द्रमा से दषम स्थित सभी ग्रह धनप्रद होते हैं। उनकी दषान्तर्दषा में अवष्य धन लाभ होता है। उदयाच्छषिनो वापि ये ग्रहा दषमस्थिताः। ते सर्वेर्थप्रदाज्ञेयाः स्वदषासु यथोदिताः।। लग्नार्करात्रिनाथेभ्यो दषमाधिपतिग्र्रहः। यस्मिन्नवांषे तत्कालं वर्तते तस्य यः पति।। तद्वृत्या प्रवदेद् वित्त्ं जातस्य बहवो यदा। भवन्ति वित्तदास्तष्ष्पि स्वदषासु विनिष्चितम्।। यह गर्गाचार्य का कथन है। इस सम्बन्ध में षास्त्रीय मानदण्ड बृहत्पाराषर में इस प्रकार कहे गये है। तीनों लग्नों से दषम के नवांषेष सूर्यादि ग्रहों के होने पर बली दषमेष के नवांषेष का फल कहा है। चन्द्र, सूर्य व जन्म लग्नों के 10वें भाव में बैठे या देखने वाले ग्रहों से भी रोजगार व धन लाभ का विचार किया जाना चाहिए। यहां पर सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरू, शुक्र व शनि के दशम में रहने पर क्रमशः पिता, माता, शत्रु, मित्र, भाई, स्त्री और नौकर से धन लाभ कहा है।

2तीनों लग्नों से दशम भाव के नवांशेश सूर्यादि ग्रहों के होने पर शास्त्रीय फल कहे गये हैं। लग्न या चन्द्रमा से दशम का नवांशेश सूर्य हो तो औषध, दवा, ऊनी वस्त्र या ऊन, घास, पानी से उत्पन्न होने वाले धन से सोना, मोती आदि के व्यापार से इधर-उधर दूत का कार्य करने से धन कमाता है।

3 इसी प्रकार चन्द्रमा यदि नवांशेश हो तो मोती, सिंघाड़ा, मछली, आदि के कार्य करने से या व्यापार से द्रव्य कमाता है। ऐसा जातक खेती से मिट्टी के खिलौने आदि वस्तुओं से बाजे आदि विनोद के साधनों से वस्त्र बनाना या व्यापार से या रानी की कृपा से आजीविका चलाता है।

4 मंगल यदि दशम का नवांशेश हो तो संग्राम से, कोयले से, स्वर्ण से, विवाद से, कला व साहस कार्यों तथा चोर वृत्ति से कमाता है।

5 दशम से नवांशेश बुध हो तो शिल्प कार्य से चित्र, पुस्तक आदि के लेखन से, वस्त्र आदि निर्माण से, काव्य से, आगम से, शास्त्र मार्ग से अर्थात् संहितादि शास्त्र ज्ञान से ज्योतिष से पोरोहित्य कर्म से वेद मन्त्रों के जप से और वेदाध्ययन से लाभ होता है।

6 तीनों लग्नों से दशम स्थान का नवांशेश बृहस्पति हो तो देवताओं के और ब्राह्मणों के पूजन से, पढ़ाने से, पुराण शास्त्र आदि से, धर्म उपदेश से और सूद से आजीविका होती है।

7 यदि चन्द्रादि से दशम का नवंाशेश शुक्र हो तो स्वर्ण, मुक्ता, माणिक आदि रत्न के कार्य, गुड़ से, चीनी से, दही से, गायों के व्यापार से लोगों के मनोरंजन के लिए यथा सिनेमा आदि और स्त्रियों के प्रलोभन में आजीविका होती है।

8 यदि शनि दशम के नवंश का स्वामी हो तो कुत्सित मार्ग से, लकड़ी के कार्य की कारीगरी से, वध से दूसरों को पीड़ा पहुँचना से, बोझा ढोने से और लोगों को धोखा देने से तथा परस्पर लड़ाई से धन लाभ होता है।

9 वर्तमान बदली हुई परिस्थितियों से सूर्यादि ग्रहों के कारकत्व में विभिन्नता आई है। सूर्य से दवाई सम्बन्धी काम, जीवन दाता, चन्द्रमा से कृषि मौसम विभाग, जल विभाग, समुद्री विभाग, मंगल से इन्जीनियरी, अंकगणित हिसाब-किताब, शारीरिक शिक्षा, खेल कूद, पुलिस, फौज, चीर-फाड़ का काम व व्यायाम व कम्प्यूटर को देखा जाता है। बुध से पत्रकारिता, बैंकंग, ज्योतिष, वैज्ञानिक व वैज्ञानिक खोज को देखा जाना चाहिए। गुरू से वित्त विभाग, रूपये का लेन-देन, बैंक, बीमा, वाणिज्य और पत्रकारिता, वकालत, व्याकरण शास्त्र को देखा जाता है। शुक्र से रसायन विभाग, कृषि, जीव विज्ञान, संगीत, नाच, गाना तथा संगीत से सम्बन्धी शिक्षा तथा कानून शास्त्र का ज्ञान होता है। शनि से दर्शनशास्त्र, जंगलात विभाग कम्प्यूटर शिक्षा, पहाड़ पर चढ़ाई को देखा जाता है। इन ग्रहों से सम्बन्धी होने पर भी जातक नौकरी करेगा या व्यवसाय यह भी महत्वपूर्ण है साथ ही व्यक्ति से ग्रहों की स्थिति षिक्षा में किस क्षेत्र से आजीविका प्रदान करेगी या जातक व्यवसायी होगा यह भी महत्वपूर्ण है।

नौकरी: 1. षष्ठ भाव-भावेष जन्मांग में लग्न एवं सप्तम भाव-भावेष, से अपेक्षाकृत बली हो तो नौकरी से आजीविका की सम्भावनाऐं प्रबल होती है।

2. लग्न, सप्तम भाव, चन्द्र लग्न व धन कारक गुरू के शुभ ग्रह से सम्बन्ध होने पर नौकरी करने वाला जातक होता है।

3. यदि जातक की युवा अवस्था के दौरान निर्बल योगकारक ग्रह तृतीयेश, षष्ठेश या एकादशेश की दशा आती है तो नौकरी की संभावना प्रबल होती है।

4. यदि अधिकांष ग्रह जीवात्मांष ग्रहों के नक्षत्र में होकर भू एवं जल तत्व राषि में हो तो नौकरी से आजीविका की संभावनाएं अधिक होती हैं।

व्यवसाय: 1. यदि लग्न एवं सप्तम भाव-भावेष, षष्ठ भाव-भावेष से अपेक्षाकृत बली एवं षोभन हो तो व्यवसाय से आजीविका की संभावनाएं प्रबल होती हैं।

2. यदि कुण्डली में युवा अवस्था तक राजयोग कारक ग्रह की दशा प्रभावी हो कुण्डली में व्यवसाय का योग हो तो जातक उच्च स्तर का व्यापार करता है।

3. नवम् व दशम तथा द्वितीय व एकादश भावों का सम्बन्ध हो और सप्तम भाव बली हो तो जातक सफल व्यावसायी होता है। कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों पर विचार अवष्य किया जाना चाहिए। दषम स्थान व दषमेष से सम्बन्धी ग्रह होने पर किस प्रकार के कल की संभावना की जा सकती है। सूर्य यदि दषम स्थान में स्थित हो या दषमेष से संयोग करे तो जातक प्रषासकीय कार्यांे से सम्बद्ध होगा। चन्द्रमा दषम स्थान में हो या दषमेष से सम्बन्ध करे तो व्यक्ति शंगार सम्बन्धी व्यवसाय, बैंकिग कार्य से सम्बद्ध हो सकता है। मंगल दषम भाव सम्बन्धी हो या दषमेष से सम्बन्ध करे तो जातक प्रषासन सम्बन्धी कार्यों व अग्नि सम्बन्धी हो सकता है। बुध दषम भाव सम्बन्धी हो या दषमेष से योग करे तो भौतिक व रसायन विज्ञान के कार्यों, अणु ऊर्जा आदि व्यवसाय कर सकता है। गुरू यदि दषम भाव में हो या दषमेष से सम्बन्ध करे तो षासन, प्रषासकीय व अधिकार, किसी षिक्षण संस्थान का प्रमुख या वेद-वेदान्त सम्बन्धी होगा। षनि दषम भाव या दषमेष सम्बन्धी हो तो, ईंट, पत्थर से निर्माण सम्बन्धी कार्य, लौह व चमड़े से सम्बन्धी वस्तुओं के व्यवसाय से सम्बंधित हो सकता है। राहु दषम में हो या दषम से संयोग करे तो संचार साधनों इलेक्ट्रानिक्स, फोटोग्राफी, कम्प्यूटर से सम्बद्ध हो सकता है।

इन सभी योगों व ज्योतिषीय दिषा निर्देषों को ध्यान में रखकर व्यवसाय निर्धारण किया जाए तो व्यक्ति को जीवन में व्यावसायिक दिषा में मार्गदर्षन प्राप्त हो सकता है। यह मार्गदर्षन जातक के अध्ययन आरम्भ काल में ही प्राप्त किया जाए तो अनेक बार दषाओं के काल में होने वाली अनावष्यक दिषा परिवर्तन से बचा जा सकता है। कुछ महत्वपूर्ण योगों से कार्य की निष्चितता काफी हद तक दिखती है। चतुर्थ स्थान में सूर्य के साथ युति में षुभ बृहस्पति की स्थिति जातक को न्यायाधीष और न्याय करने योग्य बनाती है। चन्द्र और गुरू की चतुर्थ स्थान में स्थिति जातक को वेद वेदाड़्गों में पांरगत व इस क्षेत्र में विषेष सम्मानित बनाती है। मंगल व बुध की युति चतुर्थ से सम्बन्ध जातक को मुद्रण व लेखन सम्बन्धी बनाती है। वह राजदूत व गुप्तचर भी हो सकता है। षिक्षा सम्बन्धी कुछ विषिष्ट योग दिषा निर्धारित करने में सहयोगी हो सकते हंै। क्रूर ग्रह, चतुर्थेष से युति करे तो व्यक्ति का विज्ञान सम्बन्धी ज्ञान व अध्ययन की ओर रूचि होगी।

चतुर्थेष राहु से सम्बन्ध बनाये तो षास्त्र, साहित्यिक विषय व विदेषी भाषा की ओर रूचि होगी। षुभ ग्रहों से चतुर्थेष की युति कला, साहित्य व कलात्मक रूचि देती है। यदि अध्ययन समय राहु महादषा आती है तब अनेक बाधायें या कम से कम एक बार अध्ययन में रूकावट आयेगी। उदाहरण - 1 तृतीयेश व भाग्येश बुध की लग्न में सूर्य के साथ बुधारित्य योग में स्थिति बुद्धि कौशल को दिखाती है। स्व निर्मित व्यक्तित्व ऐसा व्यक्ति होता है साथ द्वितीयेश शनि जो इन्टेलिजैन्स को दिखाता है उसकी उच्च होकर दशम में स्थिति भी बुद्धि ज्ञान की प्रचुरता को इंगित करती है। पंचमेश शुक्र की पंचम पर दृष्टि व्यवहार बुद्धि की प्रचुरता को दर्शाती है।

21 वर्ष की आयु में आरम्भ होने वाली लग्नेश की दशा और उसकी दशम भाव में उच्च स्थिति नौकरी में उच्च स्तरीय सफलता दिखाती है। साथ ही लग्न में सूर्य व उच्च के गुरू की लग्न पर दृष्टि उच्च प्रशासनिक क्षमता को दर्शाती है। यहां सूर्य, चन्द्र व लग्न में लग्न या सूर्य लग्न बली है। यहां से दशम का नवंाश पति मंगल है, शुक्र मंगल की राशि में है। अतः प्रशासन, सेना से आजीविका दर्शाता है। जातक आई.ए.एस. अधिकारी है। गुरू, शुक्र, मंगल जल राशि में और सूर्य व बुध पृथ्वी तत्व राशि में है अतः प्रमुख ग्रहों की जल व पृथ्वी तत्व राशि में उपस्थिति रोजगार (नौकरी) का कारण है।

उदाहरण - 2 प्रस्तुत कुण्डली राहुल बजाज की है जो कि इलैक्ट्रानिक्स एवं विद्युत उपकरणों के उत्पादन में अग्रगण्य हैं। आपकी कुण्डली में चन्द्र लग्न अध् िाक बली है। चन्द्र लग्न से दशम का नवांशेश मंगल अग्नि प्रधान वस्तुओं की सूचना देता है। शनि भाग्येश, दशमेश, होकर एकादश में लौह से लाभ दिखा रहे हंै। एक पीड़ित बुध के सूर्य के साथ केन्द्र स्थित होने के अतिरिक्त कोई राजयोग नहीं है। अतः बली ग्रह से आजीविका प्राप्त की।

उदाहरण - 3 सूर्य लग्नेश है और औषध्का कारक है। केन्द्र त्रिकोण का स्वामी मंगल अपने घर में बैठा है। सूर्य बुध की चतुर्थ में युति अच्छी सम्पत्ति व धन स्थिति दर्शाता है जो दशमेश के साथ है। गुरु की पंचमेश व अष्टमेश होकर मंगल पर दृष्टि है। चन्द्र राहु की युति विष प्रयोग की क्षमता देती है। अतः जातक एम.बी.बी. एस.कर सरकारी डाक्टर है। फुटनोट: 1. जातक परिजात (दैवज्ञ वैद्यनाथ रचित) भाष्यकार, गोपेश कुमार ओझा, द्वितीय भाग अध्याय 15 श्लोक 44 2. वहीं, अध्याय 15 श्लोक 43 3. वहीं, अध्याय 15 श्लोक 44 4. वहीं, अध्याय 15 श्लोक 45 5. वहीं, अध्याय 15 श्लोक 46 6. वहीं, अध्याय 15 श्लोक 47 7. वहीं, अध्याय 15 श्लोक 48 8. वहीं, अध्याय 15 श्लोक 49 9. वहीं, अध्याय 15 श्लोक 50



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