युग्शेवर महादेव मंदिर ठाकुर जयंत सिंह दलाश नामक गांव ऊंचे पहाड़ों की गोद में, शांति का साम्राज्य लिए, फल-फूल रहा है। दलाश जिला कुल्लू से लगभग 150 किलोमीटर की दूरी पर है तथा अनी घाटी से 22 किलोमीटर की दूरी पर है। इस गांव में युग्शेवर महादेव मंदिर अपने धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से पूरे राज्य में प्रसिद्ध है। यद्यपि इस प्राचीन मंदिर के बारे में कोई अभिलेख, या ग्रंथ नहीं, जो इसके इतिहास की पूर्णरूपेण जानकारी दे सके, फिर भी स्थानीय मंदिर के कर्मचारियों, पुजारियों, कुछ प्राचीन दस्तावेजों और यहां के लोगों से सुने वृत्तांतों और किंवदंतियों के आधार पर इसके संबंध में काफी जानकारी हासिल हुई है। दलाश गांव समुद्र तल से लगभग 6,600 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां गुग्शेवर के 2 प्राचीन मंदिर हैं, जो ऐतिहासिक दृष्टिकोण से एक दूसरे से जुडे़ हुए हैं। ये दोनों मंदिर शिव भगवान के हैं। दलाश गांव का नाम द्वादश लिंग से पड़ा। इस मंदिर में बाहर लिंगों की स्थापना की गयी है। प्रमुख बड़ा शिव लिंग मंदिर के मध्य में स्थापित किया गया है। इसके साथ मसान देवताओं का स्थान है, जो रामपुर बुशहर की देवी भीम काली का पुत्र है। इन्हें युग्शेवर महादेव का वजीर कहा जाता है। इसके अतिरिक्त बाकी 11 शिव लिंग मंदिर के चारों ओर स्थापित किये गये हैं। मंदिर की दीवारों पर प्राचीन भाषा में काफी लिखा गया हैं, परंतु यह लिखावट न तो विद्वान और न ही इतिहासकार पढ़ पाये हैं। इस लिखावट के स्पष्ट होते ही इस मंदिर के संदर्भ में नयी बातें सामने आएंगी, ऐसा मंदिर के कर्मचारियों और यहां के निवासियों का विचार है। युग्शेवर महादेव का दूसरा प्रमुख बड़ा मंदिर लिंग मंदिर से लगभग 20 फुट की दूरी पर है, जिसमें युग्शेवर महादेव की भव्य मूर्ति विद्यमान है। प्राचीन कथा के अनुसार युग्शेवर महादेव की मूर्ति की उत्पत्ति ‘कुटरवुबाल डंकार’ (जो दलाश गांव से 7 किलोमीटर की दूरी पर है) पर्वत से हुई। डंकार पहाड़ी भाषा में उस प्राकृतिक झरने को कहते हैं, जो अत्यंत ऊंचा है और इसपर चढ़ना बहुत कठिन होता है। यह डंकार समुद्र तल से लगभग 8,500 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। युग्शेवर महादेव का स्थान पहले यहां था। किसी समय प्रलय आया और यह डंकार टूट गया तथा मूर्ति बह गयी और बहती हुई गांव राठोह में पहुंची। वहां एक व्यक्ति हल चला रहा था। हल चलाते-चलाते उसके हल की नोक से कोई वस्तु टकरायी और जमीन से आवाज आयी कि हल धीरे चलाओ। उसने हल चलाना बंद कर के अपने हाथों से उस भारी वस्तु को बाहर निकाला, तो देखा कि यह एक सुनहरी रंग की शिव की मूर्ति थी। इसके दाहिने हिस्से पर हल की नोक का निशाल लग गया था, जो इसमें अभी तक वैसा ही दृष्टिगोचर होता है। उसने सोचा कि उसे बहुमूल्य खजाना मिल गया है। उसने अपने भाग्य को सराहा और अपना काम बंद कर के चुपके से मूर्ति को अपने कपड़ों में छिपा लिया। लेकिन यह मूर्ति उस के कपड़ों से निकल कर बाहर आ गयी। उसने इसे डुढ़कू (अनाज रखने का बक्सा) में रखा। लेकिन यह फिर बाहर आ गयी। वह इसे किसी सुरक्षित स्थान पर रखना चाहता था, ताकि समय आने पर वह इसे बेच कर अपना नया जीवन शुरू कर सके। दोबारा उसने मूर्ति को कोड़ली (संदूक) में बंद कर दिया। उसके आश्चर्य की तब सीमा न रही, जब वह मूर्ति संदूक तोड़ कर बाहर आ गयी। अब उसे पूर्णतया विश्वास हो गया कि यह मूर्ति अवश्य ही आसाधारण है। यह सोच कर वह मूर्ति कटुडटिकर (राठोर के समीप) गांव में ले गया। परंतु यह जगह महादेव को न भायी और उन्हीं के आदेश पर वह मूर्ति को खोड़ोग पर्वत (दलाश के समीप) पर ले गया। यहां कुछ दिन रहने के उपरांत, युग्शेवर महादेव के आदेश पर, उन्हें दलाश गांव ले आया। यहां उसे एक रात्रि स्वप्न आया कि दलाश गांव में जहां चीटियों का दल गोल दायरे में घूम रहा होगा, उसके भीतर मेरी स्थापना करो। यही स्वप्न रामपुर बुशहर के राजा खडग सिंह को भी आया और उन्होंने महादेव के आदेशानुसार चीटियों के गोल दायरे में चारदीवारी बनवायी। फिर इसके भीतर मंदिर की स्थापना गांव वालों ने मिलजुल कर की। युग्शेवर मंदिर दोमंजिला है। यह मंदिर हिमाचल के अन्य मंदिरों की भांति इतना भव्य, या सुंदर तो नहीं है, परंतु, ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टिकोण से, लोगों में इसके प्रति असीम श्रद्धा इस बात का प्रतीक है कि इस मंदिर की महत्ता यहां के निवासियों के लिए अत्यधिक है। मंदिर की बाहरी दीवारों पर महादेव की छौटी-छोटी मूर्तियां स्थापित की गयी हैं। मंदिर की छतें उड़ते हुए कौओं की भांति दृष्टिगोचर होती हैं। मंदिर के निचले भाग में युग्शेवर महादेव के साज-बाज हैं, जिनमें नगाड़ा, ढोल भाना (कांसे की बजाने वाली थाली) करनाल, नरसिंगे, काऊड़ी, दमाम (बड़ा ढोल) इत्यादि शामिल हैं। मंदिर की ऊपरी मंजिल में मंदिर के देवता का खान-पान रखा गया है। यहां एक बहुत बड़ा प्राचीन बक्सा है, जिसमें महादेव के आभूषण, वस्त्र इत्यादि रखे गये हैं, जिन्हें विशेष उत्सवों पर निकाला जाता है। मंदिर की ऊपरी मंजिल में युग्शेवर की भव्य मूर्ति विद्यमान है। यहां लकड़ी का बहुत प्राचीन पलंग है, जिसमें महादेव के साथ अन्य देवताओं की भी मूर्तियां हैं। युग्शेवर की मूर्ति अन्य सभी मूर्तियों के मध्य में हैं। बूढ़ा महादेव, युग्शेवर महादेव की पत्नी नागिन और कुछ अन्य देवताओं की मूर्तियां, जिन्हें युग्शेवर की सेना कहा जाता है, भी हैं। इस के अतिरिक्त यहां एक लोहे की छड़ (डाबरी) रखी हुई है। उत्सव के अवसर पर जिस व्यक्ति के शरीर में देवता प्रवेश करता है, वह डाबरी उठा कर देवता की उत्पत्ति की कहानी सुनाता है। युग्शेवर महादेव की मूर्ति देखने में सोने की लगती है, परंतु यह अष्ट धातु की बनी हुई है। इसका रंग कभीकभार कुछ काला हो जाता है, जो मूर्ति को साफ करने के उपरांत भी साफ नहीं होता। कभी-कभी वह अपने आप इतनी भव्य और चमकीली हो जाती है कि कोई मनुष्य उससे आंखे नहीं मिला सकता। यह कटु सत्य है और यहां के निवासियों ने इस करिश्मे को अपनी आखों से देखा है। युग्शेवर मंदिर से बूढ़ी दीवाली, भादों मेला और बस्ती मेला इत्यादि मेले जुड़े हुऐ हैं। इन मेलों में पुरुष और स्त्रियां देवताओं की प्रशंसा में नाटी (नृत्य) करते हैं। इसके अतिरिक्त मंदिर के बाहरी भाग में लकड़ी पर खूबसूरत नक्काशी की गयी है और लकड़ी पर मोर, ऊंट, हनुमान, श्री राम, लक्ष्मण, सीता, घोड़े, हाथी, नाटी करते पुरुष और स्त्रियों को खूबसूरती से लकड़ी पर तराशा गया हैं। ये इस तरह सजीव प्रतीत होते हैं, मानो आने ववाली पीढ़ी को कुछ कहने जा रहे हैं।