मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताएं तीन हैं- रोटी, कपड़ा और मकान। दो मूलभूत आवश्यकताएं तो कुछ प्रयास से प्राप्त हो जाती हैं, लेकिन तीसरी अर्थात मकान की प्राप्ति सभी को नहीं होती है। जन्म कुंडली में जिन शुभ ग्रह योगों के कारण जातक सरलता से उत्तम आवास का सुख प्राप्त करता है उनका विश्लेषण इस प्रकार है।
- आवास सुख जानने के लिए चतुर्थ भाव, चतुर्थ भाव के स्वामी की स्थिति, उस भाव पर दृष्टि रखने वाले ग्रहों व उसके कारक ग्रहों चंद्रमा, बुध आदि का अध्ययन किया जाता है।
- लग्नेश का संबंध द्वितीय भाव तथा चतुर्थ भाव से हो अर्थात लग्नेश इन भावों पर दृष्टि डाले अथवा दोनों में से किसी में स्थित हो, तो जातक को आवास व संपत्ति सुख मिलता है।
- यदि चतुर्थेश द्वितीय भाव में हो, तो जातक परिवार के साथ पैतृक भवन में रहता है।
- चतुर्थेश केंद्र या त्रिकोण भाव में उच्च राशि में शुभ ग्रहों के प्रभाव में स्थित हो, तो व्यक्ति का आवास सुंदर, सुसज्जित एवं आरामदायक होता है।
- चतुर्थेश के साथ लग्नेश की युति केंद्र, त्रिकोण या धन भाव में हो, तो जातक अपने प्रयासों से अपना मकान बनाता है।
- चतुर्थेश आय भाव में बली स्थिति में हो, तो जातक को मकान से धन प्राप्त होता है।
- यदि षष्ठेश व षष्ठ भाव का संबंध चतुर्थ भाव चतुर्थेश से हो, तो जातक ऋण लेकर घर बनाता या खरीदता है।
- यदि चतुर्थ भाव या चतुर्थेश पर शनि का प्रभाव हो, तो जातक पुराना भवन खरीदता है। और यदि शुभ ग्रहों का प्रभाव हो, तो वह उसे सुंदर व सुसज्जित बना देता है।
गृह बाधा योग:
- यदि सूर्य स्वराशि के अलावा अन्य किसी राशि में चतुर्थ भाव में स्थित हो, तो जातक को उसकी संपŸिा से वंचित कराता है।
- चतुर्थ भाव में नीच राशि का ग्रह स्थित हो तथा चतुर्थेश भी निर्बल स्थिति में हो, तो जातक को संपŸिा से जुड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। यदि वह घर बनवा भी ले, तो उसमें सुखपूर्वक नहीं रह सकता।
- चतुर्थेश एवं चतुर्थ भाव का संबंध द्वादशेश व द्वादश भाव से होने पर व्यक्ति अपने आवासीय भवन पर खर्च करता है।
- षष्ठेश का अशुभ प्रभाव यदि चतुर्थ भाव व चतुर्थेश पर अधिक हो, तो जातक को गृह संपत्ति से संबंधित वाद विवादों का सामना करना पड़ता है।