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फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 5163 | जून 2017

भारत के प्रमुख तीर्थ 51 शक्ति पीठ, 12 ज्योतिर्लिंग, 7 सप्तपुरी और 4 धाम हमारे देश भारत में यूँ तो अनेक तीर्थ हैं पर इनमें जो सबसे प्रमुख माने जाते हैं वो हैं इक्यावन शक्ति पीठ, बारह ज्योतिर्लिंग, सात सप्तपुरी और चार धाम। इन्हीं 12 ज्योतिर्लिंग वाले स्थानों पर भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए।

1. सोमनाथ यह शिवलिंग गुजरात के सौराष्ट्र में स्थापित है।

2. श्री शैल मल्लिकार्जुन मद्रास में कृष्णा नदी के किनारे पर्वत पर स्थापित है श्री शैल मल्लिकार्जुन शिवलिंग।

3. महाकाल उज्जैन में स्थापित महाकालेश्वर शिवलिंग, जहां शिवजी ने दैत्यों का नाश किया था।

4. ओंकारेश्वर ममलेश्वर मध्यप्रदेश के धार्मिक स्थल ओंकारेश्वर में नर्मदा तट पर पर्वतराज विंध्य की कठोर तपस्या से खुश होकर वरदान देने यहां प्रकट हुए थे शिवजी जिसके बाद यहां ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित हो गया।

5. नागेश्वर गुजरात के दारूका वन के निकट स्थापित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग।

6. बैद्यनाथ झारखंड के देवघर में बैद्यनाथ धाम में स्थापित शिवलिंग।

7. भीमाशंकर महाराष्ट्र की भीमा नदी के किनारे स्थापित भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग।

8. त्रययम्बकेश्वर नासिक (महाराष्ट्र) से 25 किलोमीटर दूर त्रयम्बकेश्वर में स्थापित ज्योतिर्लिंग।

9. घृष्णेश्वर महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में एलोरा गुफा के समीप वेसल गांव में स्थापित घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग।

10. केदारनाथ हिमालय का दुर्गम केदारनाथ ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड में स्थित है।

11. विश्वनाथ बनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थापित विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग।

12. रामेश्वरम् त्रिचनापल्ली (मद्रास) समुद्र तट पर भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग।

7 सप्तपुरी सनातन धर्म सात नगरों को बहुत पवित्र मान्यता है जिन्हें सप्तपुरी कहा जाता है। 1. अयोध्या, 2. मथुरा, 3. हरिद्वार, 4. काशी, 5. कांची, 6. उज्जैन 7. द्वारका चार धाम चार धाम की स्थापना आद्य शंकराचार्य ने की। उद्देश्य था उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम चार दिशाओं में स्थित इन धामों की यात्रा कर मनुष्य भारत की सांस्कृतिक विरासत को जाने-समझे।

1. बद्रीनाथ धाम कहां है- उत्तर दिशा में हिमालय पर अलकनंदा नदी के पास प्रतिमा- विष्णु जी की शालिग्राम शिला से बनी चतुर्भुज मूर्ति। इसके आसपास बाईं ओर उद्धवजी तथा दाईं ओर कुबेर की प्रतिमा।

2. द्वारका धाम कहां है- पश्चिम दिशा में गुजरात के जामनगर के पास समुद्र तट पर। प्रतिमा- भगवान श्रीकृष्ण।

3. रामेश्वरम् कहां है- दक्षिण दिशा में तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में समुद्र के बीच रामेश्वर द्वीप। प्रतिमा- शिवलिंग

4. जगन्नाथपुरी कहां है- पूर्व दिशा में उड़ीसा राज्य के पुरी में। प्रतिमा- विष्णु की नीलमाधव प्रतिमा जो जगन्नाथ कहलाती है। सुभद्रा और बलभद्र की प्रतिमाएं भी।

51 शक्तिपीठ ये देश भर में स्थित देवी के वो मंदिर हैं जहाँ देवी के शरीर के अंग या आभूषण गिरे थे। सबसे ज्यादा शक्तिपीठ बंगाल में हंै।

बंगाल के शक्तिपीठ

1. काली मंदिर - कोलकाता

2. युगाद्या- वर्धमान (बर्दमान)

3. त्रिस्त्रोता- जलपाइगुड़ी

4. बहुला- केतुग्राम

5. वक्तेश्वर- दुब्राजपुर

6. नलहटी- नलहटी

7. नन्दीपुर- नन्दीपुर

8. अट्टहास- लाबपुर

9. किरीट- बड़नगर

10. विभाष- मिदनापुर

11. भैरव पर्वत- गिरनार मध्यप्रदेश के शक्तिपीठ

12. हरसिद्धि- उज्जैन

13. शारदा मंदिर- मेहर

14. ताराचंडी मंदिर- अमरकंटक तमिलनाडु के शक्तिपीठ

15. शुचि- कन्याकुमारी

16. रत्नावली- अज्ञात

17. भद्रकाली मंदिर- संगमस्थल

18. कामाक्षीदेवी- शिवकांची बिहार के शक्तिपीठ

19. मिथिला- अज्ञात

20. वैद्यनाथ- बी. देवघर

21. पटनेश्वरी देवी- पटना उत्तरप्रदेश के शक्तिपीठ

22. चामुण्डा माता- मथुरा

23. विशालाक्षी- मीरघाट

24. ललितादेवी मंदिर- प्रयाग राजस्थान के शक्तिपीठ

25. सावित्रीदेवी- पुष्कर

26. वैराट- जयपुर गुजरात के शक्तिपीठ

27. अम्बिक देवी मंदिर- गिरनार आंध्रप्रदेश के शक्तिपीठ

28. गोदावरीतट- गोदावरी स्टेशन

29. भ्रमराम्बादेवी- श्रीशैल महाराष्ट्र के शक्तिपीठ

30. करवीर- कोल्हापुर

31. भद्रकाली- नासिक कश्मीर के शक्तिपीठ

32. श्रीपर्वत- लद्दाख

33. पार्वतीपीठ- अमरनाथ गुफा पंजाब के शक्तिपीठ

34. विश्वमुखी मंदिर- जालंधर उड़ीसा के शक्तिपीठ

35. विरजादेवी- पुरी हिमाचल प्रदेश के शक्तिपीठ

36. ज्वालामुखी शक्तिपीठ- कांगड़ा असम के शक्तिपीठ

37. कामाख्यादेवी- गुवाहाटी मेघालय के शक्तिपीठ

38. जयंती- शिलांग त्रिपुरा के शक्तिपीठ

39. राजराजेश्वरी त्रिपुरासुंदरी- राधाकिशोरपुर हरियाणा के शक्तिपीठ

40. कुरुक्षेत्र शक्तिपीठ- कुरुक्षेत्र

41. कालमाधव शक्तिपीठ- अज्ञात नेपाल के शक्तिपीठ

42. गण्डकी- गण्डकी

43. भगवती गुहेश्वरी- पशुपतिनाथ पाकिस्तान के शक्तिपीठ

44. हिंगलाजदेवी- हिंगलाज श्रीलंका के शक्तिपीठ

45. लंका शक्तिपीठ- अज्ञात तिब्बत के शक्तिपीठ

46. मानस शक्तिपीठ- मानसरोवर बांगलादेश के शक्तिपीठ

47. यशोर- जैशौर

48. भवानी मंदिर- चटगांव

49. करतोयातट- भवानीपुर

50. उग्रतारा देवी- बारीसाल 51 पंचसागर शक्तिपीठ है।

- अज्ञात Satish Upadhyay 9370082080 पूजा से सम्बंधित जरूरी नियम सुखी और समृद्धिशाली जीवन के लिए देवी-देवताओं के पूजन की परंपरा काफी पुराने समय से चली आ रही है। आज भी बड़ी संख्या में लोग इस परंपरा को निभाते हैं। पूजन से हमारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, लेकिन पूजा करते समय कुछ खास नियमों का पालन भी किया जाना चाहिए अन्यथा पूजन का शुभ फल पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं हो पाता है। यहां 30 ऐसे नियम बताए जा रहे हैं जो सामान्य पूजन में भी ध्यान रखना चाहिए। इन बातों का ध्यान रखने पर बहुत ही जल्द शुभ फल प्राप्त हो सकते हैं।

ये नियम इस प्रकार हैं:

- सूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव और विष्णु, ये पंचदेव कहलाते हैं, इनकी पूजा सभी कार्यों में अनिवार्य रूप से की जानी चाहिए। प्रतिदिन पूजन करते समय इन पंचदेव का ध्यान करना चाहिए। इससे लक्ष्मी कृपा और समृद्धि प्राप्त होती है।

- शिवजी, गणेशजी और भैरवजी को तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए।

- मां दुर्गा को दूर्वा (एक प्रकार की घास) नहीं चढ़ानी चाहिए। यह गणेशजी को विशेष रूप से अर्पित की जाती है।

- सूर्य देव को शंख के जल से अघ्र्य नहीं देना चाहिए।

- तुलसी का पत्ता बिना स्नान किए नहीं तोड़ना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति बिना नहाए ही तुलसी के पत्तों को तोड़ता है तो पूजन में ऐसे पत्ते भगवान द्वारा स्वीकार नहीं किए जाते हैं।

- शास्त्रों के अनुसार देवी-देवताओं का पूजन दिन में पांच बार करना चाहिए। सुबह 5 से 6 बजे तक ब्रह्म मुहूर्त में पूजन और आरती होनी चाहिए। इसके बाद प्रातः 9 से 10 बजे तक दूसरी बार का पूजन। दोपहर में तीसरी बार पूजन करना चाहिए। इस पूजन के बाद भगवान को शयन करवाना चाहिए। शाम के समय चार-पांच बजे पुनः पूजन और आरती। रात को 8-9 बजे शयन आरती करनी चाहिए। जिन घरों में नियमित रूप से पांच बार पूजन किया जाता है, वहां सभी देवी-देवताओं का वास होता है और ऐसे घरों में धन-धान्य की कोई कमी नहीं होती है।

- प्लास्टिक की बोतल में या किसी अपवित्र धातु के बर्तन में गंगाजल नहीं रखना चाहिए। अपवित्र धातु जैसे एल्युमिनियम और लोहे से बने बर्तन। गंगाजल तांबे के बर्तन में रखना शुभ रहता है।

- स्त्रियों को और अपवित्र अवस्था में पुरुषों को शंख नहीं बजाना चाहिए। यदि इस नियम का पालन नहीं किया जाता है तो जहां शंख बजाया जाता है, वहां से देवी लक्ष्मी चली जाती हैं।

- मंदिर और देवी-देवताओं की मूर्ति के सामने कभी भी पीठ दिखाकर नहीं बैठना चाहिए।

- केतकी का फूल शिवलिंग पर अर्पित नहीं करना चाहिए।

- किसी भी पूजा में मनोकामना की सफलता के लिए दक्षिणा अवश्य चढ़ानी चाहिए। दक्षिणा अर्पित करते समय अपने दोषों को छोड़ने का संकल्प लेना चाहिए। दोषों को जल्दी से जल्दी छोड़ने पर मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होंगी।

- दूर्वा (एक प्रकार की घास) रविवार को नहीं तोड़नी चाहिए।

- मां लक्ष्मी को विशेष रूप से कमल का फूल अर्पित किया जाता है। इस फूल को पांच दिनों तक जल छिड़क कर पुनः चढ़ा सकते हैं।

- शास्त्रों के अनुसार शिवजी को प्रिय बिल्व पत्र छह माह तक बासी नहीं माने जाते हैं। अतः इन्हें जल छिड़क कर पुनः शिवलिंग पर अर्पित किया जा सकता है।

- तुलसी के पत्तों को 11 दिनों तक बासी नहीं माना जाता है। इसकी पत्तियों पर हर रोज जल छिड़कर पुनः भगवान को अर्पित किया जा सकता है।

- आमतौर पर फूलों को हाथों में रखकर हाथों से भगवान को अर्पित किया जाता है। ऐसा नहीं करना चाहिए। फूल चढ़ाने के लिए फूलों को किसी पवित्र पात्र में रखना चाहिए और इसी पात्र में से लेकर देवी-देवताओं को अर्पित करना चाहिए।

- तांबे के बर्तन में चंदन, घिसा हुआ चंदन या चंदन का पानी नहीं रखना चाहिए।

- हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि कभी भी दीपक से दीपक नहीं जलाना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति दीपक से दीपक जलाते हैं, वे रोगी होते हैं।

- बुधवार और रविवार को पीपल के वृक्ष में जल अर्पित नहीं करना चाहिए।

- पूजा हमेशा पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख रखकर करनी चाहिए। यदि संभव हो सके तो सुबह 6 से 8 बजे के बीच में पूजा अवश्य करें।

- पूजा करते समय आसन के लिए ध्यान रखें कि बैठने का आसन ऊनी होगा तो श्रेष्ठ रहेगा।

- घर के मंदिर में सुबह एवं शाम को दीपक अवश्य जलाएं। एक दीपक घी का और एक दीपक तेल का जलाना चाहिए।

- पूजन-कर्म और आरती पूर्ण होने के बाद उसी स्थान पर खड़े होकर 3 परिक्रमाएं अवश्य करनी चाहिए।

- रविवार, एकादशी, द्वादशी, संक्रान्ति तथा संध्या काल में तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ना चाहिए।

- भगवान की आरती करते समय ध्यान रखें ये बातें- भगवान के चरणों की चार बार आरती करें, नाभि की दो बार और मुख की एक या तीन बार आरती करें। इस प्रकार भगवान के समस्त अंगों की कम से कम सात बार आरती करनी चाहिए।

- पूजाघर में मूर्तियाँ 1, 3, 5, 7, 9, 11 इंच तक की होनी चाहिए, इससे बड़ी नहीं तथा खड़े हुए गणेश जी, सरस्वतीजी, लक्ष्मीजी की मूर्तियाँ घर में नहीं होनी चाहिए।

- गणेश या देवी की प्रतिमा तीन, शिवलिंग दो, शालिग्राम दो, सूर्य प्रतिमा दो, गोमती चक्र दो की संख्या में कदापि न रखें।

- अपने मंदिर में सिर्फ प्रतिष्ठित मूर्ति ही रखें। उपहार, काँच, लकड़ी एवं फायबर की मूर्तियां न रखें एवं खंडित, जली-कटी फोटो और टूटा काँच तुरंत हटा दें। शास्त्रों के अनुसार खंडित मूर्तियों की पूजा वर्जित की गई है। जो भी मूर्ति खंडित हो जाती है, उसे पूजा के स्थल से हटा देना चाहिए और किसी पवित्र बहती नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए। खंडित मूर्तियों की पूजा अशुभ मानी गई है। इस संबंध में यह बात ध्यान रखने योग्य है कि सिर्फ शिवलिंग कभी भी, किसी भी अवस्था में खंडित नहीं माना जाता है।

- मंदिर के ऊपर भगवान के वस्त्र, पुस्तकें एवं आभूषण आदि भी न रखें। मंदिर में पर्दा अति आवश्यक है। अपने पूज्य माता-पिता तथा पितरों का फोटो मंदिर में कदापि न रखें, उन्हें घर के नैर्ऋत्य कोण में स्थापित करें।

- विष्णु की चार, गणेश की तीन, सूर्य की सात, दुर्गा की एक एवं शिव की आधी परिक्रमा कर सकते हैं। Kajal Manglik 8923637986 शुभ शकुन विचार

- यदि घर में बिल्ली प्रसव करती है तो यह शुभ संकेत है कि जल्दी ही धन संपदा की प्राप्ति होगी, ऐसे कई संकेत प्रकृति हमारे सामने नित्य रखती है, परंतु हम समझ नहीं पाते हैं। यह कुदरत का नियम है कि जो भी शुभ या अशुभ होना है, उसकी पूर्व सूचना मनुष्य को ऐसे ही संकेतों से मिलती है। हमारे ऋषि-मुनि चिंतक और आत्मदर्शी थे और वे मानव जीवन की, प्रकृति परिवर्तन की, पशु-पक्षियों के व्यवहार, बोली अथवा बार-बार होने वाली घटनाओं का अत्यंत सूक्ष्म दृष्टि से विश्लेषण किया करते थे। बृहत् संहिता में एक सम्पूर्ण अध्याय इसी विषय पर लिखा गया है।

मनुष्यों के मार्गदर्शन के लिए जो शुभ संकेतों का वर्णन किया गया है उनमें से कुछ की चर्चा आज आपके सामने कर रहा हूं:-

- घर के दरवाजे के अंदर आकर अचानक गाय रम्भाना शुरू कर दें तो, यह संकेत सुख सौभाग्य का सूचक है।

- बंदर यदि आपके घर के आँगन में आम की गुठली कहीं से लाकर डाल दे तो यह संकेत आपके व्यापार में लाभ होने का सूचक होता है।

- सुबह-सुबह यदि कौआ आपके घर के मुख्य द्वार के पास बोलता है तो समझ लीजिए कि आज आपका कोई प्रिय आने वाला है। यदि दोपहर को बोलता है तो कोई पत्र या अतिथि आपसे मिलने आएगा।

- घर के दक्षिण दिशा में तीतर यदि आवाज करता है तो अचानक सुख, सौभाग्य और धन प्राप्ति का योग बनता है।

- यदि आपके घर में कोई भी पक्षी चांदी का टुकड़ा या चांदी की अन्य चीज ला कर डाल देता है तो आपको कहीं से अचानक लक्ष्मी की प्राप्ति होगी।

- यदि आपके घर की मुंडेर या चहारदीवारी पर कोयल या सोन चिड़िया बैठकर मधुर स्वर करती है तो घर के स्वामी का भाग्योदय होता है तथा सुखी जीवन का प्रतीक है।

- घर की छत या दीवार पर काली चींटियों का घूमना या रेंगना घर की उन्नति के लिए शुभ संकेत माना जाता है ।

- यदि हाथी आ कर आपके घर के मुख्य द्वार के सामने अचानक अपनी सूंड़ उठा कर जोर से स्वर करता है तो विवाद में आपकी जीत होती है और मुकद्दमा आपके पक्ष में होता चला जायगा ।

- सफेद कमेड़ी यदि आपके घर की किसी भी दीवार पर बैठ कर आवाज करती है तो यह संकेत आपकी व्यापार वृद्धि में अत्यंत सहायक सिद्ध होगा।

- घर में बिल्ली यदि छत या किसी कमरें में अपना प्रसव करती है तो समझ लीजिए कि धन संपदा की वृद्धि होने वाली है।

- यदि आप किसी कार्य से जा रहे हैं तो आपके सामने सुहागन स्त्री अथवा गाय आ जाए तो कार्य में सफलता मिलती है।

- जाते समय आप कपड़े पहन रहे हैं और जेब से पैसे गिरें तो धन प्राप्ति का संकेत है। कपड़े उतारते समय भी ऐसा हो तो शुभ होता है।

- यदि आपके यहाँ सोकर उठते ही कोई भिखारी माँगने आ जाए तो ये समझना चाहिए आपके द्वारा दिया गया पैसा (उधार) बिना माँगे वापस आ जाएगा।

- आप सोकर उठे हों उसी समय नेवला आपको दिख जाए तो गुप्त धन मिलने की संभावना रहती है।

- आप किसी कार्य से जा रहे हों, तब आपके सामने कोई भी व्यक्ति गुड़ ले जाता हुआ दिखे तो आशा से अधिक लाभ होता है।

- लड़की के लिए आप वर तलाश करने जा रहे हों तब घर से निकलते समय चार कुँवारी लड़कियाँ बातचीत करते मिल जाएँ तो शुभ योग होता है।

- यदि शरीर पर चिड़िया गंदगी कर दे तो आपको समझना चाहिए आपकी दरिद्रता दूर होने वाली है। ये शुभ शकुन हैं।

Vinay Garg 9810389429 शेयर बाजार और ज्योतिष शेयर बाजार का सीधा संबंध मंगल से है। किसी व्यक्ति विशेष की कुंडली में मंगल की सकारात्मक स्थिति उसे शेयर बाजार में लाभ दिलाती है। बारह भावों में से पांचवां भाव प्रारब्ध से जुड़ा होता है। पूर्व जन्मों के कर्म हमें इस जन्म में अनायास लाभ दिलाते हैं। पांचवें भाव या भावेश के साथ मंगल का संबंध होने पर हौंसला और भाग्य आपस में जुड़ जाते हैं। इस तरह शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव के बीच द्वीप की तरह खड़ा व्यक्ति आसानी से तनाव को झेल जाता है और आशातीत धन कमाता है। किसी व्यक्ति की कुण्डली में शेयर बाजार से पैसा कमाने का योग है अथवा नहीं यह देखने के लिए पहले उसके पांचवें भाव को देखने की आवश्यकता होती है। पांचवें भाव का किसी भी तरह से मंगल से संबंध बनता हो तो समझ लीजिए कि शेयर बाजार का काम किया जा सकता है। इसके बाद आता है बाजार में टिके रहने का योग। इसके लिए जरूरी है कि जातक का सूर्य भी मजबूत हो यानि सूर्य लग्न, पांचवें या मंगल से अच्छी तरह संबंधित हो तो ऐसा व्यक्ति पूरे भरोसे के साथ अंत तक बाजार में टिका रहता है। एक दिन में कई बार सौदे करने वाले लोगों के लिए चंद्रमा को भी देखना पड़ता है।

ऐसे लोगों का चंद्रमा बारहवें भाव से संबंध करे या तो पूरी तरह खराब हुआ होता है या फिर पांचवें भाव में ही बैठकर स्पेक्युटलेटिव माइंड देता है। चंद्रमा की खराब स्थिति में व्यक्ति शेयर बाजार से कमाकर भी सुखी नहीं रह पाता है जबकि पांचवंे भाव का चंद्रमा वाला व्यक्ति शेयर बाजार में आसानी से कमाता है और जल्दी बाहर आ जाता है। बाजार में कौन सी कंपनियां मंगल के अधीन हैं। इस बात का कोई लेन-देन शेयर बाजार और मंगल से नहीं है लेकिन जातक की कुंडली में मंगल का रोल अधिक महत्वपूर्ण है। शेयर बाजार के संबंध में सबसे आम धारणा यही है कि यह एक अनिश्चित कार्य है यानि युद्ध का मैदान, कब कौन सी गोली किधर से आकर लग जाएगी कोई नहीं जानता। शेयर बाजार में भी वही सबकुछ होता है जो कमोडिटी मार्केट में होता है अंतर इतना है कि कमोडिटी में ट्रेडर के हाथ में फिजिकल जैसा कुछ नहीं होता और शेयर बाजार में डीमैटीरिएलाइज शेयर होते हैं। कमोडिटी में एक दिन का घाटा कुछ हजार रुपए से कुछ सौ करोड़ रुपए तक हो सकता है लेकिन शेयर बाजार में किसी एक व्यक्ति को इतना लाभ या घाटा नहीं होता। लेकिन नियम वही रहते हैं कि गोली कहीं से भी आ सकती है।

तो कौन से व्यक्ति हंै जिसे शेयर बाजार में उतरना चाहिए। चंद्रमा की स्थिति मजबूत हो, लग्नेश उच्च हो और मंगल से संबंध बनाता हो तो शेयर बाजार में उतर जाना चाहिए। अगर यह कमजोर होता है तो शेयर बाजार की उतार-चढ़ाव के साथ बहने लगता है। प्रायः मेष, सिंह और तुला लग्न के लोग शेयर बाजार के धंधे के लिए उत्तम होते हैं अन्य लग्नों के लोग भी इसमें सफलता प्राप्ति कर सकते हैं जबकि लग्न का अधिपति अच्छी स्थिति में बैठा हो। लग्न उत्तम होने पर आदमी स्पष्ट निर्णय कर पाता है और उस पर अडिग रह पाता है। लम्बी रेस के घोड़ों में यह खासियत होती है कि वे जल्दी से घबराते नहीं हैं। एक बार पिछड़ जाने पर अपने निर्णयों को बदलते नहीं हैं और रेस के अंत में अधिक प्रयत्न कर जीत जाते हैं। उन्हें छोटे-छोटे झगड़ों में जीता जा सकता है लेकिन युद्ध वे ही जीतेंगे। इसलिए लग्न बहुत बलशाली होना चाहिए। कोई भी लग्न बलशाली हो सकता है बशर्ते उस पर किसी क्रूर ग्रह की नजर न पड़ रही हो। मंगल सेनापति है। पहले लड़ने के लिए जोश देता है और फिर डटे रहने के लिए बाद में समय पर निकल जाने की बुद्धि भी। L K Mishra 9431431040



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