वैवाहिक सुख के लिए विवाह परमावश्यक है। अच्छी पत्नी एवं अच्छी संतान भाग्य से मिलती है। ऐसे लोग बहुत हैं, जिनके पास कुंडली नहीं है और वे यह जानना चाहते हैं उन्हें कैसा जीवनसाथी मिलेगा और वैवाहिक सुख कितना मिलेगा। ये सब बातें हस्तरेखाओं के माध्यम से जानी जा सकती है, कैसे आइए जानें...
बच ा े ं क े य ु व ा ह ा े त े ह ी माता-पिता उ न क े कैरियर और विवाह की सोचने लगते हैं। बच्चों के सुखमय वैवाहिक जीवन के लिए ही माता-पिता उनकी कुंडलियां मिलाते हैं। कुंडलियों के अभाव में हाथों की रेखाओं के आधार पर वैवाहिक जीवन और संतति की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
यहां इन दो महत्वपूण्र् ा विषयों से संबंधित रेखाओं, यवों, पर्वतों आदि का विश्लेषण प्रस्तुत है। वैवाहिक सुख का ज्ञान विवाह रेखा से होता है। यह रेखा हृदय रेखा के समीप बुध पर्वत पर होती है। विवाह रेखाएं एक से अधिक भी हो सकती हैं। जिन लोगों की विवाह रेखाएं हृदय रेखा के ऊपर होती हैं, उनमें 2-3 प्रतिशत को छोड़कर सभी के विवाह हो जाते हैं। जिनके हाथों में रेखाएं हृदय रेखा के नीचे होती हैं।
उनमें 2-3 प्रतिशत को छोड़कर शेष के विवाह नहीं होते हैं। एक विवाह रेखा का होना अच्छा माना जाता है और यदि यह बारीक और सीधी हो, तो अत्युत्तम होती है और शुभ विवाह की सूचना देती है। यह रेखा हृदय रेखा के जितना समीप होगी विवाह उतना शीघ्र संपन्न होगा।
विवाह रेखाएं दो, तीन, चार हों तो इसका यह नहीं कि विवाह भी उतने ही होंगे बल्कि इनमें से जो रेखा साफ, सुंदर, स्पष्ट व निर्दोष होगी वही विवाह का द्योतक होगी शेष रेखाओं से रिश्ता या प्रेम संबंध टूटने का संकेत मिलता है। लंबी विवाह रेखा के साथ गुरु पर्वत पर क्राॅस हो, तो उसे भी शुभ माना गया है।
यह रेखा में पति-पत्नी के मध्य सौहार्दपूर्ण संबंध का संकेत देती है। विवाह रेखा लंबी हो और उसका सिरा दोमुंहा हो, तो पति-पत्नी में परस्पर वैचारिक मतभेद रहता है। संतान, सम्पत्ति एवं अन्य कई बातों को लेकर दोनों में वैमनस्यता उत्पन्न होती है। यदि इस रेखा के सिरे की कोई शाखा हृदय रेखा से छू जाए, तो व्यक्ति पत्नी से अधिक साली के प्रति आकृष्ट होता है।
यदि यह रेखा हृदय रेखा को काटकर आगे? निकल जाए, तो जातक जीवनसाथी का त्याग कर देता है। चंद्र पर्वत से उठने वाली रेखा भाग्य रेखा से मिल जाए, तो व्यक्ति का भाग्योदय विवाहोपरांत होता है। यदि भाग्य रेखा को कोई रेखा काटे तो अनेक बाधाएं उत्पन्न होती हैं। आप किसी को कितना चाहते हैं यह आप अपने दाएं हाथ की विवाह रेखा से जानें और किसी को किस सीमा तक पसंद करते हैं यह बाएं हाथ की विवाह रेखा से जानें।
विवाह रेखा प्रारंभ में दोमुंहीे होकर आगे बढ़े तो रिश्ता होकर टूट सकता है या विवाह में किसी कारण विलंब हो सकता है। जीवन रेखा के समानांतर कोई रेखा चले, जिसे लोग मंगल रेखा या जीवन रेखा की सहायक रेखा भी कहते हैं, तो पति-पत्नी का परस्पर संबंध बहुत प्रगाढ़ होता है। यदि चंद्र पर्वत से कोई रेखा उठकर भाग्य रेखा से जा मिले, तो समझ लें कि व्यक्ति का विवाह हो चुका है।
हृदय रेखा के अंत में क्रास हो तो उसकी दुर्घटना या किसी अन्य कारण से मृत्यु हो सकती है। विवाह रेखा में यव हो तो पारिवारिक सुख में बाधाएं, कष्ट, संघर्ष आदि होते हंै। यदि विवाह रेखा आगे बढ़कर हृदय रेखा को काटते हुए जीवन रेखा से मिल जाए तो यह स्थिति तलाक की सूचक है। यदि यही रेखा और आगे बढ़कर शुक्र पर्वत पर जा मिले, तो पत्नी की मृत्यु हो सकती है।
चंद्र पर्वत से कोई रेखा उठकर मंगल रेखा से जा मिले तो इससे पत्नी के भाग्य को क्षति पहुंच सकती है। यदि मंगल रेखा में यव हो तो भयंकर कठिनाई या बाधा का सामना करना पड़ सकता है और तनाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। यदि विवाह रेखा आगे बढ़कर मस्तिष्क रेखा को काटे और वहीं रुक जाए तो गृहस्थ जीवन के कलहकारी होने और अकारण लड़ाई-झगड़े, की संभावना रहती है।
विवाह रेखा नीचे झुकी हो, तो पति-पत्नी रोगी होते हैं। विवाह रेखा हृदय रेखा के समानांतर चले तो विवाह शीघ्र होता है। यदि कोई रेखा शुक्र पर्वत पर यव से प्रारंभ होकर हृदय रेखा को छूती हो, तो वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं होता। विवाह रेखा में एक शाखा नीचे की ओर हो, तो पति गप्पी होता है और झूठ बोलता है।
यदि यह रेखा पत्नी के हाथ में हो, तो उसका गर्भ नहीं ठहरता। विवाह रेखा के अंत में फर्क हो तो दोनों में परस्पर वैचारिक मतभेद होते हैं। मणिबंध से कोई रेखा निकलकर शुक्र पर्वत पर जाए और वहां से शनि पर्वत की ओर चली जाए तो कन्या वृद्ध पुरुष से विवाह करती है। मणिबंध से कोई रेखा निकलकर शुक्र पर्वत पर जाए और फिर वहां से सूर्य पर्वत की ओर चली जाए, तो कन्या कलाकार या चर्चित पुरुष से विवाह करती है।
वायु रेखा से कोई शाखा निकलकर सूर्य पर्वत या सूर्य रेखा से मिलती हो या ऊघ्र्व रेखा गुरु पर्वत पर जाकर नक्षत्र पर समाप्त हो जाए या विवाह रेखा सूर्य रेखा तक जाए तो, उसका विवाह धनी से होगा। ऐसे पुरुष से विवाह कदापि न करें जिस पुरुष के हाथ में अधोलिखित लक्षण दिखाई दें उससे विवाह नहीं करना चाहिए। अंगूठा क्लब्ड हो। अंगूठे का दूसरा पर्व छोटा हो। तर्जनी छोटी और मुड़ी हुई हो।
हृदय रेखा छोटी हो और बिना शाखा के हो। विवाह रेखा में यव हो। कुआंरापन या वियोग की स्थिति यदि किसी के दाहिने हाथ में विवाह रेखा बुध क्षेत्र की ओर मुड़कर कनिष्ठिका के तृतीय पोर की संधि से मिल जाए उसे आजीवन अविवाहित रहना पड़ता है। यदि विवाह किसी प्रकार हो भी जाए, तो परिणाम भयंकर होता है और विवाहोपरांत मृत्यु तक हो सकती है।
कहने का तात्पर्य यह है कि विवाह रेखा ऊपर की ओर मुड़ी हो, तो विवाह सुख नहीं मिलता है क्योंकि विवाह होता ही नहीं है। विवाह रेखा स्वास्थ्य रेखा से स्पर्श करे तो भी विवाह नहीं होता है। विवाह रेखा नीचोन्मुख होकर हृदय रेखा की ओर झुक जाए या उसे काटे तो पति विधुर या पत्नी विधवा हो सकती है अथवा ऐसी स्थिति में विवाह होता ही नहीं है।
कई बार विवाह हो जाता है और पति-पत्नी को वियोग सहना पड़ता है। विवाह रेखा और चिह्न विवाह के मध्य में द्वीप चिह्न वैवाहिक बाधाओं का संकेत देता है। विवाह रेखा पर क्रास चिह्न हो तो यह संबंध विच्छेद या जीवन साथी की मृत्यु का सूचक है। विवाह रेखा को स्पर्श करता हुआ ऊपर स्थित क्रास चिह्न स्त्री जातक की कुंडली में गर्भपात का संकेत देता है।
विवाह रेखा पर काले रंग का बिंदु जीवनसाथी की मृत्यु का सूचक है। सूर्य रेखा तक पहुंचने वाली विवाह रेखा के अंत में नक्षत्र चिह्न उच्च कुल में विवाह कराता है और मान एवं धन से युक्त करता है। विवाह रेखा के ऊपर बनने वाला वर्ग चिह्न विवाह में आने वाली बाधाओं को कम कर देता है। विवाह कब होगा?
विवाह कब होगा इसका अनुमान करने के लिए सर्वप्रथम हृदय रेखा के उत्पत्ति स्थान पर एक बिंदु लगा लें और दूसरा बिंदु उसी की सीध में कनिष्ठिका के तृतीय पोर की हथेली बंद रेखा पर लगा दें और इन दोनों बिंदुओं को किसी स्केल से मिला लें अथवा सेमी. में नाप लें। फिर इसे दो समान भागों में विभक्त कर लें। इस रेखा के मानक वर्ष 54 मान लें और दो समान भाग 27-27 वर्ष के होंगे।
यदि विवाह रेखा हृदय रेखा वाले भाग में है तो विवाह 27 वर्ष से पूर्व होगा और यदि कनिष्ठिका वाले भाग में है तो विवाह 27 वर्ष के बाद होगा। अधिक सूक्ष्मता से निर्णय करने के लिए इसका अनुमान त्रैराशिक रीति से लगा लेना चाहिए। मान लंे, कुल विवाह वर्ष 54 हैं और कनिष्ठिका से हृदय रेखा के उत्पत्ति स्थल तक की दूरी 15 सेमी. है और विवाह रेखा हृदय रेखा से 7 सेमी. पर स्थित है तो विवाह वर्ष इस प्रकार होंगे।
विवाह आयु ज्ञात करने का सूत्र: (54/कनिष्ठिका से हृदय रेखा के उत्पत्ति स्थल की दूरी सेमी. में) ग हृदय रेखा से विवाह रेखा तक की दूरी सेमी. में विवाह आयु ज्ञात करने का सूत्र: (54/15) ग 7 = 25.2 वर्ष अर्थात् 25 वर्ष 2 मास 12 दिन की आयु में विवाह होगा।
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