कविता का मन आज सुबह से काफी अनमना था। न चाहते हुए भी उसका मन अतीत की गहराइयों में जा रहा था। उसकी मम्मी बार-बार पार्टी में चलने की जिद कर रही थीं पर वह आज की वैलेंटाइन पार्टी में जाना ही नहीं चाहती थी। वह तो बस अपने सबसे पहले वैलेंटाइन डे की यादों में खो जाना चाहती थी जब नीलेश ने गुलाब के फूलों के साथ उसके समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा था। यों तो उसे नीलेश ने गुलाब बहुत बार दिए पर उस वैलेंटाइन डे के गुलाबों की ताजगी व महक आज भी उसके साथ थी। कितनी खुश थी वह जब चार साल पहले नीलेश ने उसके समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा था-मानो जीवन की सारी खुशियां उसे मिल गई थीं और उसने उसकी जीवन संगिनी बनने की हामी भी भर दी थी। लेकिन घर में जब उसके मम्मी पापा को पता चला तो उन्होंने आसमान सिर पर उठा लिया।
वे किसी भी कीमत पर उसका विवाह नीलेश से नहीं करना चाहते थे। लेकिन उसकी जिद के आगे उनकी एक न चली और उन्होंने न चाहते हुए भी समाज में अपनी नाक ऊंची रखने की खातिर नीलेश से उसका विवाह धूमधाम से कर दिया और वह नीलेश के साथ कनाडा चली गई। विवाह के पश्चात कुछ महीने तो मानो पंख लगा कर उड़ गए लेकिन धीरे-धीरे उसे लगने लगा कि वह रोज की दिनचर्या से ऊब रही है। भारत में नौकरों से घिरी रहने वाली कविता को कनाडा में सभी छोटे-छोटे काम स्वयं करना असहनीय लगने लगा। छोटी-छोटी बातों पर वह झुंझला जाती और नीलेश से झड़प हो जाती। उसके पापा का रोज फोन आता और वे उसे गलत निर्णय का ताना मारते।
आज उसे लग रहा था कि यदि उसे उचित सलाह मिलती और यदि उसने धैर्य रखा होता तो आज अकेली न होती। नीलेश उसे समझाने की बहुत कोशिश करता लेकिन जब वह ज्यादा जिद करती तो वह अपना विवेक खो बैठता और अंत में दोनों लड़ झगड़ कर सो जाया करते। विवाह के अवसर पर दिए गए वचनों का रंग फीका पड़ने लगा और एक दिन छोटी सी बात पर रूठ कर वह अपना सामान लेकर अपने मायके लौट आई। वह नीलेश को एक सबक सिखाना चाहती थी और चाहती थी कि वह उसकी खुशामद कर उसे वापस ले जाए। लेकिन दिल्ली पहुंचने पर उसके मम्मी पापा ने उसकी एक न चलने दी और उसे समझाने की बजाय सीधे उसकी ससुराल फोन कर उसके सास ससुर को खूब खरी खोटी सुनाई और दहेज मांगने के जुर्म में अंदर कराने की धमकी तक दे डाली। कविता के लाख कोशिश करने पर भी उन्होंने तलाक के कागजात नीलेश के पास भेज दिए।
नीलेश ने सपने में भी नहीं सोचा था कि कविता ऐसा भी कर सकती है। उसका मन वितृष्णा से भर उठा और चाह कर भी उसने कविता से बात नहीं की। उधर कविता ने भी इन सब घटनाओं की कल्पना नहीं की थी। वह तो बस नीलेश को एक सबक सिखाना चाहती थी। उसने कई बार नीलेश को फोन करना चाहा पर नीलेश ने गुस्से में उससे बात नहीं की और आनन-फानन में उनका तलाक हो गया। उसके मम्मी पापा अपनी जीत पर बेहद प्रसन्न थे पर उसके दिल की बात किसी ने जानने की कोशिश नहीं की कि उसका दिल आज भी नीलेश के नाम पर धड़कता था और उसी को चाहता था।
आज उसे नीलेश की बहुत याद आ रही थी, लेकिन अपनी ही गलतियों पर वह इतनी शर्मिंदा थी कि चाह कर भी उसे फोन करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी। अचानक फोन की घंटी बजी और चूंकि घर पर कोई नहीं था, इसलिए कविता ने ही फोन उठाया और नीलेश की आवाज सुन कर मानो उसके दिल की धड़कन रुक सी गई और जुबान को ताले लग गए। नीलेश ने उसका हाल चाल पूछा तो वह एकदम फफक पड़ी और उससे बार-बार माफी मांगने लगी। उधर नीलेश के सब्र का बांध भी टूट गया। वह भी कविता के बिना बिलकुल अधूरा था और उसने बिना अधिक सोचे बस इतना ही पूछा, ‘क्या तुम फिर से मेरी बनोगी?’ कविता ने तुरंत हामी भर दी और हमेशा साथ रहने की कसम खाई।
उसने मन में ठान लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए वह नीलेश के साथ ही वापस जाएगी और अपनी बिखरी गृहस्थी के तिनके फिर से इकट्ठे कर अपना आशियाना बनाएगी। आइए करंे नीलेश और कविता की कुंडलियों का विश्लेषण कि ऐसे कौन से योग हैं जिनके कारण उनके तलाक के बाद दोबारा मिलन के आसार बन रहे हैं? कहीं अन्यत्र विवाह करने की बजाय वे फिर से एक दूसरे के साथ सूत्र में बंधना चाहते हैं जबकि दोनों के माता पिता इसके बिलकुल खिलाफ है क्योंकि ं उन्हें यही लगता है कि उनका गृहस्थ जीवन कभी सफल नहीं होगा।
प्रेम, घृणा और फिर प्रेम का यह खेल कौन सा मोड़ लेगा। आइए देखें: नीलेश की कुंडली में द्वादश भाव में सूर्य, गुरु, बुध, शुक्र और राहु विद्यमान हैं जो संन्यासी योग बना रहे हैं। गुरु की दशा और शुक्र की अंतर्दशा में उसका विवाह तो संपन्न हो गया पर उसमें स्थिरता न आ सकी और गुरु की महादशा एवं मंगल की अंतर्दशा में 2005 में उसका कविता से तलाक भी हो गया। कविता का लग्न कन्या एवं जन्म राशि मथुन है। चाहे लग्न से देखें अथवा राशि से, गुरु सप्तम होकर अकारक है। गुरु की महादशा में ही विवाह एवं तलाक भी हुआ।
दोनों की ही अब 2007 एवं 2008 से शनि की महादशा आरंभ हो रही है जो पुनर्विवाह का संकेत कर रही है। कविता के द्वादश भाव का मंगल उसे मंगली दोष तो दे रहा है पर गुरु की पूर्ण दृष्टि उस दोष को पूर्णतया निर्बल भी कर रही है। नीलेश की कुंडली में मंगली दोष तो नहीं है, द्वादश भाव में स्थित बहुत सारे ग्रह संबंध विच्छेद का योग बना रहे हैं। नीलेश की कुंडली में सप्तमेश चंद्रमा धन स्थान में धनेश शनि और मंगल की दृष्टि में होने से ससुराल पक्ष से अधिक धन की प्राप्ति दिखाता है परंतु गुरु की दशा होने के कारण वह धन का सुख नहीं भोग सका, क्योंकि गुरु को केंद्राधिपति दोष लग रहा है। पितृकारक ग्रह सूर्य की द्वादश भाव में स्थिति और मातृ कारक ग्रह चंद्र पर शनि की दृष्टि होने से माता-पिता से विचारों में भिन्नता रही और उसके विवाह विच्छेद में उनकी अहम भूमिका रही।
इसी तरह कविता की कुंडली में पितृकारक ग्रह सूर्य द्वादश भाव का स्वामी होकर एकादश भाव में बैठा है और पापी ग्रहों के मध्य में स्थित होकर पापकर्तरी योग बना रहा है। चंद्रमा शनि के साथ होकर मातृ स्थान को देख रहा है फलतः माता-पिता तलाक के एक अहम कारण बने। परंतु शनि की दशा में उनका आपसी प्रेम उन्हें दोबारा मिलाएगा क्योंकि उनकी जन्म राशि के स्वामियों में भिन्नता है। लेकिन एक बात यह भी है कि यदि यह विवाह अभी हो जाता है तो फिर से शनि की महादशा आने तक कुछ विवाद फिर हो सकते हैं। किंतु शनि की दशा में उनके वैवाहिक जीवन में स्थिरता आ जाएगी।