प्रश्न- ईशान क्षेत्र में शयन कक्ष क्या प्रभाव देता है ? उत्तर- ईशान क्षेत्र की दिशा परम पिता परमेश्वर की दिशा है जिस पर देव गुरु बृहस्पति का आधिपत्य होता है। अतः इस दिशा में शयन-कक्ष नहीं बनाना चाहिए क्योंकि भोग विलास और शयन सुख पर शुक्र का आधिपत्य है। यह दिशा अर्थात् गुरु के क्षेत्र में शयन कक्ष होने पर गुरु, शुक्र के प्रभाव में कमी लाएगा जिसके फलस्वरूप उचित शयनसुख नहीं मिल पाएगा। आपसी प्रेम में कमी एवं तकरार की स्थिति बनी रहेगी। साथ ही लंबी गंभीर बीमारियों का सामना भी करना पड़ता है, परंतु सत्रह-अठारह साल तक के बच्चे के लिए ईशान क्षेत्र में शयनकक्ष बनाया जा सकता है। इस दिशा में शयनकक्ष रहने पर बच्चे अनुशासित और मर्यादित बने रहेंगे क्योंकि ज्ञान के स्वामी गुरु एवं बुद्धि के स्वामी बुध ग्रह का संयुक्त प्रभाव इस क्षेत्र पर बना रहता है। इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र में जल तत्व की अधिकता रहती है जो बच्चों के विकास के लिए आवश्यक है। घर में वृद्धजन जो सांसारिक कार्यों से विरक्त हो गए हैं उन्हें ईशान क्षेत्र में शयन-कक्ष दिया जा सकता है। प्रश्न: सत्रह अठारह साल के बाद के बच्चों के लिए किस स्थान पर शयन कक्ष होना चाहिए। उत्तर - सत्रह अठारह साल के बाद के बच्चों के लिए दक्षिण-पूर्व में शयनकक्ष बनाया जा सकता है। परंतु जो बच्चे आक्रामक एवं झगड़ालू प्रवृत्ति के हों उन्हें दक्षिण-पूर्व के कमरे में नहीं सुलाना चाहिए क्योंकि यह क्षेत्र अग्निशासित होता है। ऐसे में उन्हें इस दिशा के किसी कक्ष में सुलाने से उनके क्रोधी और झगड़ालू हो जाने का भय बना रहता है। अतः आक्रामक एवं झगड़ालू प्रवृत्ति के बच्चों के लिए उत्तर दिशा में शयन कक्ष बनाना अधिक लाभप्रद होता है। प्रश्न- दक्षिण-पूर्व की दिशा गर्भवती महिला के लिए कैसा होता है? उत्तर-गर्भवती महिला के लिए दक्षिण-पूर्व की दिशा अच्छा नहीं होता है। यह दाम्पत्य जीवन में तनाव एवं नींद में कमी लाता है। साथ ही गर्भपात का भय बना रहता है। अर्थात जिस महिला को बार-बार गर्भपात होता हो उसे इस क्षेत्र में किसी भी कीमत पर शयन कक्ष नहीं रखना चाहिए। परंतु वैसे नव दम्पत्ति को जिनमें संतान उत्पन्न करने की इच्छा हो उन्हें इस क्षेत्र में शयनकक्ष देना चाहिए क्योंकि दक्षिण-पूर्व पर शुक्र का आधिपत्य एवं अग्नि का वास होता है। प्रेम संबंधों में वेग और ऊष्मा के लिए यह क्षेत्र उपयुक्त होता है। इस दिशा में शयन कक्ष होने पर ऊर्जा और स्फूर्ति का समुचित संचार होता है जिसके फलस्वरूप संतान उत्पन्न करने की इच्छा बलवती होती है। किंतु गर्भधारण के उपरांत उन्हें इस दिशा से अपना शयन कक्ष परिवर्तित कर लेना चाहिए। प्रश्न-दाम्पत्य संबंधों में प्रगाढ़ता के लिए नव दम्पत्तियों को किस स्थान पर शयन कक्ष रखना चाहिए? उत्तर: दाम्पत्य संबंधांे में प्रगाढ़ता, आपसी प्रेम तथा खुशियों के लिए भवन में नव विवाहित दम्पत्तियों के लिए उत्तर-पश्चिम के क्षेत्र में अर्थात् वायव्य की ओर शयनकक्ष बनाना चाहिए। इसे नव दम्पत्ति वंशवृद्धि की इच्छा रखने पर भी इस्तेमाल कर सकते हैं। संतान की इच्छा रखने पर सिर दक्षिण या पूर्व की ओर कर सोयंे तो काफी मदद मिलेगी। गर्भवती हो जाने पर दम्पत्ति को दक्षिण की तरफ शयन कक्ष में सुलाया जा सकता है। अच्छे दाम्पत्य सुख के लिए पति के बायें पत्नी को सोना चाहिए। प्रश्न- विवाह योग्य बच्चों के लिए शयनकक्ष किस स्थान पर उपयुक्त होता है ? उत्तर -अविवाहित बच्चों के लिए उत्तर-पश्चिम का भाग शयनकक्ष के लिए उपयुक्त होता है। शीघ्र विवाह होने की संभावना रहती है क्योंकि चन्द्र इस दिशा का स्वामी है जो शीघ्र विवाह एवं स्थान परिवर्तन करवाता है। अतः जो लड़कियां या लड़के विवाह योग्य हों उन्हंे उत्तर-पश्चिम के कमरे में शयनकक्ष देने से उनका विवाह शीघ्र होने की संभावना रहती है। प्रश्न- मेहमानों के लिए शयनकक्ष किस स्थान पर उपयुक्त होता है? उत्तर - उत्तर-पश्चिम का क्षेत्र मेहमानों के लिए भी उपयुक्त होता है। वे आते तो अवश्य हैं परंतु शीघ्र ही चले भी जाते हैं, क्योंकि यह क्षेत्र चन्द्र के साथ-साथ वायु द्वारा शासित होता है जो गतिशीलता का द्योतक है। प्रश्न- अध्ययन करने वाले बच्चों को उतर-पश्चिम में रखना चाहिए? उत्तर -अध्ययन करने वाले बच्चों के कमरे उत्तर-पश्चिम में नहीं होने चाहिए अन्यथा उनमें चंचलता बढ़ जाएगी और पढ़ाई के प्रति एकाग्रता में कमी आएगी। प्रश्न- शयनकक्ष में दर्पण रखना चाहिए? उत्तर-पति पत्नी विश ेष् ातया नवविवाहित दम्पत्ति के कमरे में दर्पण का प्रयोग अत्यधिक हानिकारक होता है। अतः इसका इस्तेमाल भूलकर भी न करें। यदि ड्रेसिंग टेबल की आवश्यकता हो तो उसे उत्तरी या पूर्वी दीवार पर इस तरह रखें कि सोते समय अपना प्रतिबिंब या शरीर का कोई हिस्सा उसमें दिखाई न पड़े अन्यथा वह हिस्सा पीड़ित रहेगा। टीव्म् वीव्म् और कम्प्यूटर भी कमरे में होने से दाम्पत्य जीवन में धीरे-धीरे तनाव एवं अलगाव शुरू हो जाता है। अतः इन वस्तुओं को शयन कक्ष में न रखें। प्रश्न- शयनकक्ष में पलंग एवं बिस्तर की स्थिति किस तरह होनी चाहिए? उत्तर-शयन कक्ष में पलंग की स्थिति कभी भी इस तरह नहीं रखनी चाहिए जिससे सोने वाले का सिर अथवा पैर सीधे द्वार की तरफ हो। ऐसी स्थिति में रहने पर सोने वाले को हमेशा मृत्यु समान भय बना रहता है। साथ ही दाम्पत्य जीवन सुखमय नहीं रहता है। अतः शयन कक्ष में पलंग द्वार के विपरीत कोने में रखें। पलंग से द्वार दिखता रहे इस बात का ध्यान रखें। पलंग को किसी दीवार के साथ लगा कर रखें यह स्थिति दाम्पत्य जीवन में स्थिरता लाती है। पलंग को कभी भी उभरे हुए बीम के नीचे न रखें। बीम दोनों के मध्य आता हो तो उससे आपसी संबंध खराब रहता है और शरीर को काटते हुए रहने पर स्वास्थ्य के लिए घातक होता है। शयन कक्ष का बिस्तर अगर डबल बेड का हो और उसमें गद्दे अलग-अलग हों तथा पति-पत्नी अलग-अलग गद्दे पर सोते हों तो उनके बीच तनाव रहता है और आगे चलकर वे अलग हो जाते हैं। अतः इस कारण शयन कक्ष में ऐसा बिस्तर रखें जिसमें पूरा एक ही गद्दा हो। प्रश्न- सोते वक्त सिर को किस दिशा की ओर रखना लाभप्रद होता है ? उत्तर- सिर दक्षिण दिशा में रखकर सोना अत्यधिक लाभप्रद होता है। इसके अतिरिक्त पश्चिम एवं पूर्व की ओर सिर रखकर सोना भी शुभ फलप्रद होता है। सोते समय पश्चिम की ओर सिर होने से नाम,यश एवं भाग्य की वृद्धि एवं पूर्व की ओर सिर होने से मानसिक शांति एवं धार्मिक प्रवृत्ति में वृद्धि होती है। दक्षिण की ओर सिर कर सोने से धन एवं भाग्य की वृद्धि होती है तथा स्वास्थ्य अच्छा रहता है। प्रश्न- उत्तर की ओर सिर कर सोने से क्या फल मिलता है ? उत्तर- मनुष्य के सिर को उत्तरायण और पैर को दक्षिणायन माना गया है। यदि सिर को उत्तर की ओर रखेंगे तो पृथ्वी क्षेत्र का उत्तरी धु्रव मानव के उत्तरी धु्रव से घृणा कर चुबंकीय प्रभाव को अस्वीकार करेगा जिससे शरीर में रक्त संचार हेतु उचित और अनुकूल चुबंकीय क्षेत्र का लाभ नहीं मिल सकेगा जिस कारण मस्तिष्क में तनाव होगा और शरीर को शांतिमय निद्रा की अनुकूल अवस्था प्राप्त नहीं होगी। साथ ही बुरे स्वप्न अत्यधिक दिखाई पड़ंगे तथा छाती में दर्द एवं जकड़न महसूस होगी।