परिवार में तालमेल व वास्तु परिवार के सदस्यों के रिश्तों में मधुरता, स्नेह, प्रेम आदि वास्तु शास्त्रीय नियमों का साधारण सा प्रयोग कर लाई जा सकती है। वास्तु शास्त्र वास्तु-वस्तु से संबंधित वह विज्ञान है जिस पर भवन, इमारत नियमानुसार बनाकर विघ्न, प्राकृतिक उत्पातों एवं उपद्रवों से बचाते हुए सब प्रकार से सुख, धन, संपदा, बुद्धि, सुख-शांति के साथ-साथ परिवार के सदस्यों व सास-बहू में मधुर संबंध स्थापित किए जा सकते हैं।
वास्तु शास्त्र अनुसार परिवार में किस स्त्री-पुरुष, सास-बहू को किस भाग में सोना बैठना चाहिए जिससे उनमें मधुर संबंध हों? परिवार का मुखिया दक्षिण दिशा में शयन करता है तो उसकी पत्नी गृह स्वामिनी भी दक्षिण दिशा में शयन करेगी। दक्षिण दिशा में सिर एवं उत्तर दिशा में पैर करके सोना शुभ माना गया है, क्योंकि मानव का शरीर भी एक छोटे चुम्बक की तरह कार्य करता है, शरीर का उत्तरी धु्रव सिर है तथा दक्षिणी धु्रव पैर है, शरीर के उत्तरी धु्रव का भौगोलिक दक्षिण और शरीर के दक्षिण धु्रव का भौगोलिक उत्तर की ओर होना मनुष्य की चिंतन प्रणाली को नियंत्रित करता है।
मस्तिष्क एवं शरीर की बहुत सारी रश्मियां विद्युत चुम्बकीय प्रभाव से नियंत्रित होती हैं, अतः दक्षिण में सिर करके सोना पृथ्वी के विद्युत चुम्बकीय प्रभाव से समन्वय बैठाता है। इससे स्वभाव में गंभीरता आती है एवं व्यक्ति के मस्तिष्क में बुद्धि व विकास संबंधी विकास की योजनाएं जन्म लेती हैं साथ ही दक्षिण दिशा आत्म विश्वास में वृद्धि करती है, दक्षिण दिशा में स्थित व्यक्ति नेतृत्व क्षमता से युक्त हो जाता है, यदि दक्षिण में सिर करके सोने की सुविधा नहीं हो तो पूर्व में सिर करके तथा पश्चिम में पैर करके शयन किया जा सकता है।
गृह स्वामी/गृह स्वामिनी या कोई अन्य स्त्री यदि दक्षिण दिशा में शयन/निवास करती है तो वह प्रभावशाली हो जाती है। अतः स्पष्ट है कि परिवार की मुखिया स्त्री को दक्षिण दिशा में शयन/निवास करना चाहिए। कनिष्ठ स्त्रियां दौरानी या बहू को इस दिशा में शयन नहीं करना चाहिए। जो स्त्रियां अग्नि कोण में शयन/निवास करती है उनका दक्षिण दिशा में शयन करने वाली स्त्रियों से मतभेद रहता है।
अग्नि कोण में युवक व युवती अल्प समय के लिए शयन कर सकते हैं, यह कोण अध्ययन व शोध के लिए शुभ है। भवन के वायव्य कोण में जो स्त्रियां शयन/निवास करती है उनके मन में उच्चाटन का भाव आने लगता है एवं वो अपना अलग से घर बसाने के सपने देखने लगती हैं, अतः इस स्थान पर अविवाहित कन्याओं को शयन कराना शुभ होता है क्योंकि उनको ससुराल का घर संवारना है।
इस कोण को नई दुल्हन या बहू को शयन हेतु कदापि उपयोग में नहीं लेना चाहिए। यदि पुरुष वायव्य कोण में अधिक समय शयन करता है तो उसका मन परिवार से उचाट हो जाता हो जाता है व अलग होने की सोचता है। यदि परिवार में दो या दो से अधिक बहुएं हों तो वास्तु शास्त्र के नियमों के अनुसार शयन/निवास का चयन कर स्नेह प्रेम व तालमेल बनाए रखा जा सकता है।
भवन/निवास का सबसे शक्तिशाली भाग दक्षिण दिशा होता है, अतः इस भाग में सास को सोना चाहिए। अगर सास नहीं हो तो परिवार की बड़ी बहू को सोना चाहिए। दूसरे नंबर की बहू यदि सास नहीं हो) वरना प्रथम नंबर की बहू को दक्षिण-पश्चिम में शयन करना चाहिए, उससे छोटी को पश्चिम दिशा में क्रमवार उससे छोटी बहू को पूर्व दिशा में शयन करना चाहिए यदि और छोटी बहू हो तो ईशान कोण में शयन करना चाहिए।
दक्षिण में शयन करने वाली स्त्री को पति के बायीं ओर शयन करना चाहिए, अग्निकोण में शयन करने वाली स्त्री को दायीं ओर शयन करना चाहिए। गृहस्थ-सांसारिक मामलों में पत्नी को पति के बायीं ओर शयन करना चाहिए। परिवार की मुखिया सास या बड़ी बहू को पूर्व या ईशान कोण में शयन नहीं करना चाहिए।
अग्निकोण में अग्नि कार्य से स्त्रियों की ऊर्जा का सही परिपाक हो जाता है, अग्नि होत्र कर्म भी शुभ हैं, अग्नि कोण में यदि स्त्रियां तीन घंटा व्यतीत कर पाक कर्म करें तो उनका जीवन उन्नत होता है, एवं व्यंजन स्वादिष्ट होते हैं। शयनकक्ष का बिस्तर अगर डबल बेड हो एवं उसमें गद्दे अलग-अलग हों तथा पति-पत्नी अलग-अलग गद्दे पर सोते हों तो उनके बीच तनाव की स्थिति पैदा हो जाती है एवं आगे चलकर अलग हो जाते हैं, अतः शयनकक्ष में ऐसा बिस्तर होना चाहिए जिसमें गद्दा एक हो।
गृह/निवास उत्तरमुखी मकानों में उत्तर दिशा में ईशान कोण पर्यंत, पूर्वाभिमुख मकानों में पूर्व दिशा मध्य से अग्निकोण पर्यंत, दक्षिणाभिमुख मकानों में दक्षिण दिशा मध्य से नैेत्य कोण पर्यंत तथा पश्चिमाभिमुख मकानों में पश्चिम दिशा मध्य से वायव्य कोण पर्यंत यदि बाह्य द्वार न रखा जाए तो स्त्रियों में अधिक समन्वय व प्रेम होता है।
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