रत्नों का प्रयोग
रत्नों का प्रयोग

रत्नों का प्रयोग  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 6139 | सितम्बर 2010

पौराणिक ग्रन्थों व आचार्य वाराहमहिर की बृहत् संहिता के रत्नाध्याय के विवरणों तथा रत्नों की परंपरागत व्यवहारिकताओं को ध्यान में रखते हुए ज्योतिर्विदों ने अपने अनुसंधानों के द्वारा प्रत्येक ग्रहों से संबंधित रंगों व अनुकूलताओं के आधार पर उन रत्नों की खोज की जिन्हें धारण करके हम किसी भी ग्रह से उत्पन्न दोषों का निवारण कर अपने भविष्य को उज्ज्वल बना सकते हैं।

माणिक्य: लाल, सिंदूरी, गुलाबी, बीरबहूटी आदि रंगों में उपलब्ध पारदर्शीवत विख्यात सूर्य रत्न माणिक्य जिसे अंग्रेजी में रूबी, संस्कृत में रविरत्न, पदमराग, कुरूविन्द, शोण आदि व फारसी में याकूत नाम से भी जाना जाता है। वस्तुतः रासायनिक तौर पर क्रोमियम व अल्मूनियम आक्साइड का एक ठोस रूप है जो कुंडली में अपने स्वामी ग्रह सूर्य के निर्बल व अकारक अवस्था में आ जाने के परिणाम स्वरूप मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा, आर्थिक व पितृ-पक्ष से संबंधित उत्पन्न हुई हानि के निवारण हेतु उपयोग में लाया जाता है।

आयु, वीरता, स्वाभिमान, धैर्य, यश, संतान, धन आदि के कारक के रूप में विचारणीय इस रत्न को सूर्य-दोष के कारण शरीर में उत्पन्न हुए रक्त, हृदय, मस्तिष्क आदि रोगों पर भी अत्यंत लाभकारी प्रभाव देखे गए हैं। ऐसा देखा गया है कि इसे धारण करने से शरीर में अग्नि-तत्वों की सक्रियता बढ़ती है तथा आंतरिक ऊर्जा-शक्ति का विकास होता है। मोती: प्राकृतिक तौर पर समुद्री जीव सीप, शंख व घोंघा के गर्भ से उत्पन्न चिकना, निर्मल, कोमल, वृत्ताकार, अपारदर्शी, सफेद व मिश्रित चमकीले हल्के रंगों से युक्त रासायनिक रूप से कैल्शियम व कांचीओलिन के सम्मिश्रण का ठोस रूप तथा अंग्रेजी में पर्ल, संस्कृत में मुक्ता, फारसी में मरवारीद आदि नामों से विख्यात रत्न मोती को ज्योतिष शास्त्र में अपने स्वामी ग्रह चंद्रमा के कुंडली में निर्बल व पाप ग्रस्त हो जाने के परिणाम स्वरूप उत्पन्न दोषों के निवारण हेतु प्रयोग में लाया जाता है।


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इसे धारण करने से ऐसा देखा गया है कि मानसिक पीड़ा, मातृ-पक्ष से हानि, द्वंद व हीनता, जैसी समस्याएं दूर हो जाती हैं। चंद्र दोष के कारण उत्पन्न मिर्गी, रक्तचाप, गुर्दे में पथरी, गर्भाशय व योनि मार्ग की समस्या तथा जल तत्व से संबंधित सर्दी, खांसी, जुकाम, मूत्र-विकार, जल शोध आदि रोगों पर भी इस रत्न का अत्यंत लाभप्रद प्रभाव देखा गया है।

मूंगा: प्राकृतिक तौर पर पोलिपाई किस्म के आइसिस मोवाइल्स नामक समुंद्री लेसदार जीव से निर्मित सुंदर लाल, सिंदूरी, गेरु व हिंगुले के रंग समान अपारदर्शक, चिकना, चमकदार व औसत वजन से अधिक प्रतीत होने वाला रासायनिक रूप में मैग्नीशियम कार्बोनेट, फैरिक आॅक्साइड, फौस्फेट, कैल्शियम आदि तत्वों का एक ठोस संगठन तथा अंग्रेजी में कोरल, फारसी में मरजान, संस्कृत में पिइ्रूम, प्रवाल, लतामणि आदि नामों से विख्यात रत्न मूंगे को ज्योतिष शास्त्र में अपने स्वामी ग्रह मंगल के कुंडली में निर्बल व पाप ग्रस्त अवस्था में आ जाने के परिणाम स्वरूप उत्पन्न हुए दोष के निवारण हेतु प्रयुक्त किया जाता है जिसे धारण करने से शौर्य, पराक्रम व साहस में हो रही कमी दूर होती है, शत्रु हार मानते हैं तथा धन-धान्य में वृद्धि होती है।

इस के अतिरिक्त मंगल-दोष के कारण उत्पन्न पाण्डु, हृदय विकार, लाल रक्त-कण की कमी, लकवा, पुरुष में शुक्राणु की समस्या, गडिया, बवासीर आदि रोगों पर भी इस रत्न का काफी लाभप्रद प्रभाव देखा गया है।

पन्ना: प्राकृतिक तौर पर ग्रेनाइट व पैग्मेटाइट चट्टानों से निर्मित पारदर्शक, दूब की हरी घास, तोते व भिन्न-भिन्न प्रकार के हरे, रंगों में दीप्त, रासायनिक रूप में सिलिका, लीथियम, कैल्शियम व क्रोमियम आक्साइड का ठोस संगठन तथा अंग्रेजी में एमरेल्ड, फारसी में जमरूद, संस्कृत में मरकत, हरितमणि आदि नामों से प्रसिद्ध रत्न पन्ना के पापग्रस्त स्वामी ग्रह बुध के कुंडली में निर्बल व पापग्रस्त अवस्था में स्थित हो जाने के परिणाम स्वरूप उत्पन्न धन व स्वास्थ्य की हानि, शिक्षण कार्य में व्यवधान, पद-प्रतिष्ठा में गिरावट, बुद्धि-विवेक की हानि, नैतिकता के पतन आदि समस्याओं व दोषों के निवारण हेतु अत्यंत प्रभावकारी माना गया है। इसके अतिरिक्त इसे धारण करने से रक्त-चाप, नपुंसकता, खांसी, तपेदिक, सिर-दर्द, मिर्गी आदि रोगों पर भी अत्यंत लाभप्रद प्रभाव देखे गए हैं।

पुखराज: हल्दी, केशर, सरसों के फूल के समान पीला, सफेद व स्वर्ण रंगों से दीप्त रासायनिक रूप में सिलिका, एल्यूमिना, फ्लोरिन व कैल्शियम के योगिकों का ठोस संगठन तथा अंग्रेजी में टोपाज, संस्कृत में पुष्पराज, लैटिन में टोपोजियो, फारसी में जर्द याकूत आदि नामों से विख्यात रत्न पुखराज को अपने स्वामी ग्रह गुरु के कुंडली में निर्बल, क्षीण व अशुभ अवस्था में होने के परिणाम स्वरूप उत्पन्न धन, ऐश्वर्य, पद-प्रतिष्ठा व नैतिक मूल्यों की हानि, विवाह कार्य में व्यवधान, दाम्पत्य सुख में कटुता, व्यभिचार, व्यवहार वाणी आदि में दोष व समस्याओं के निवारण हेतु प्रयुक्त किया जाता है।

इस के साथ-साथ गुरु प्रभावित टाइफाइड, कब्ज, गाउटर, यकृत अर्थात, चर्बी जनित आदि रोगों पर भी इस रत्न का अत्यंत लाभप्रद प्रभाव देखा गया है। हीरा: रासायनिक तौर पर कोयले के गुणों के समान रवेदार विशुद्ध कार्बन का ठोस रूप अंधेरे में जुगनू की तरह प्रकाशित, इंद्रधनुष के रंगों से युक्त चमकदार, आकर्षक, चिकना व पारदर्शक तथा अंग्रेजी में डायमंड, फारसी में इलियास, संस्कृत में इंद्रमणि, हीरक आदि नामों से प्रसिद्ध समस्त रत्नों में अति दुर्लभ व कीमती रत्न हीरा जो ज्योतिष शास्त्र में अपने स्वामी ग्रह शुक्र के अस्त, क्षीण व पापग्रस्त अवस्था में आ जाने के परिणाम स्वरूप उत्पन्न हुए स्त्री-वियोग, दांपत्य-कलह, ऐश्वर्य व आकर्षण में कमी जैसी समस्याओं के निवारण हेतु प्रयुक्त किया जाता है।


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जिसे धारण करने से जीवन में आई उदासीनता सौंदर्यता में परिणित हो जाती है। शुक्रजनित कफ, मधुमेह, हिस्टीरिया, वीर्य से संबंधित गुप्त आदि रोगों पर भी इस रत्न का काफी लाभप्रद प्रभाव देखा गया है। नीलम: प्राकृतिक तौर पर कुरू बिंद पत्थरों से निर्मित चिकना, पारदर्शक, आसमानी, मोर के पंख के समान प्रखर व चमकीले नीले रंग से युक्त, रासायनिक रूप में कोवाल्ट, कोरण्डम व टाईटेनिस आॅक्साइड का ठोस संगठन तथा अंग्रेजी में सफायर, बंगला में इंद्रनील, फारसी में नीलबिल, याकूत, संस्कृत में नील, नील-मणि, तृणनील आदि नामों से विख्यात रत्न नीलम अपने स्वामी ग्रह शनि से जनित धन-हानि, प्रवास, अपमान, वैराग, विश्वासघात, नशे की लत, कार्यों में व्यवधान, आलस्य, दुर्घटना आदि समस्या तथा अस्थि-भंग, साइटिका, लकवा, गठिया, फोड़ा-फुंसी, कुष्ठ आदि रोगों के निवारण हेतु अत्यंत लाभप्रद माना गया है।

गोमेद: सुनहरे गहरे पीले, कत्थई, गोमूत्र के समान, मधु की झांई के समान रंगों में पाया जाने वाला पारदर्शक, अर्धपारदर्शक, चिकना, चमकदार, रासायनिक रूप में निकोनियम नामक तत्व का सिलिकेट तथा अंग्रेजी में जिरकन, संस्कृत में गोमेद, फारसी में मेढ़क, जरकूनियम आदि नामों से विख्यात रत्न गोमेद अपने स्वामी ग्रह राहु के दोष पूर्ण हो जाने के परिणाम स्वरूप उत्पन्न शत्रुहानि, वैराग्य, दुख-शोक, अपमान, प्रेत-बाधा, अस्थिरता, धन-हानि आदि की समस्या तथा प्रमेह, उदर, वात्, अंडकोष की वृद्धि, चर्म व विष जनित रोगों के निवारण हेतु अत्यंत लाभप्रद माना गया है।

लहसुनिया: पैग्मेटाइट नाइस तथा अम्रकमय परतदार शिलाओं से निर्मित, सूखे पत्ते या धुएं जैसा, सफेद, काले, हरे, पीले आदि रोगों से युक्त जिसके अंदर सफेद सूत सी धारा जैसी प्रदिर्शित, रासायनिक रूप में एल्युमिनियम व बेरोनियम के यौगिक का ठोस संगठन तथा अंग्रेजी में कैट्स आई, संस्कृत में बैदूर्य, सूत्रमणि, फारसी में वैडर आदि नामों से विख्यात केतु रत्न लहसुनिया अपने स्वामी ग्रह के दोष पूर्ण अवस्था के कारण उत्पन्न कलह, स्थान परिवर्तन, कार्यों में बाधा, मानसिक व्यथा, धन-धान्य, ऐश्वर्य में कमी व शत्रुओं से हानि जैसी समस्या तथा कुष्ठ, स्नायु, वायु व क्षुधा जनित रोगों के निवारण हेतु अत्यंत लाभप्रद माना गया है।



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