विधाता ने जब सब कुछ कुंडली में लिखा है तो उपाय क्यों?
विधाता ने जब सब कुछ कुंडली में लिखा है तो उपाय क्यों?

विधाता ने जब सब कुछ कुंडली में लिखा है तो उपाय क्यों?  

अक्षय शर्मा
व्यूस : 9454 | जनवरी 2012

विधि के लिखे लेख ऐसी गूढ़ लिपि में लिखे होते हैं जिसकी भावार्थ, शब्दार्थ सहित पूर्ण व्याख्या कभी संभव नहीं हो सकती। फलतः मनुष्य के कर्म क्षेत्र में उपायों की गुंजाइश बनी ही रहती है। उन उपायों को करने पर ही विधि के लेख साकार रूप लेते हैं। भगवान ने जब गर्भ में प्रवेश के समय ही सब कुछ लिख दिया है तो बाकी सब प्रयास तो बेकार ही कहे जायेंगे।

अगर यह सच है तो मनुष्य के कर्म करने की कोई सार्थकता ही नहीं है या फिर उसे कर्म करने ही नहीं चाहिए। गीता में भगवान कृष्ण ने कहा कि जो होगा अच्छा होगा और जो हुआ अच्छा हुआ, तुम केवल कार्य करो, फल की इच्छा मत करो ऐसा कहकर कार्य करने की ही आज्ञा दी ताकि मनुष्य दुःख रहित जीवन व्यतीत करें।

ऐसा कहकर उन्होंने मनुष्यों के लिये उपाय रूपी कर्म की गुंजाइश बनाये रखी। मनुष्य की अनंत जिज्ञासाओं का समाधान ज्योतिष या वेदों के अलावा कहीं और प्राप्त नहीं हुआ। देवयोग, दिव्य दृष्टि या अंर्तज्ञान को अगर छोड़ दें तो ज्योतिष के बिना ऐसा कोई ज्ञान-विज्ञान नहीं है जो भविष्य की जानकारी दे सकें और मनुष्य के भाग्य को बदल सके।

जैसे वैद्य रोग को जानकर दवाई व परहेज से रोग ठीक करता है और मरते हुए प्राणी को बचाकर दीर्घायु देता है, उसी प्रकार ज्योतिष भी मनुष्य के भाग्य को बताकर उसे लाभ देता है। यह तो केवल ज्योतिष की देन है कि भाग्य में कुछ भी लिखा हो, उसे बदला जा सकता है। इसके कई उदाहरण हमारे पास देखने-सुनने में आते हैं- जैसे सावित्री ने अल्पायु सत्यवान की दीर्घायु करके पति सुख पाया और ऋषि मार्कण्डेय ने तप-जप से शिव की कृपा से चिरंजीवी पद को पाया।

और मेलापक भी तो भाग्य बदलने और सुख पाने का ही उपाय है। अगर सभी के भाग्य में परिवार का सुख होता तो हम कुंडली का मिलान क्यों करते और शारीरिक लक्षण-सामुद्रिक शास्त्र से परीक्षा क्यों करते। मुहूर्त में भी तो यही होता है कि हमारा भाग्य कितना ही खरा क्यों न हो परंतु हम जो भी कार्य करें, वह पूर्णतया सफल रहे और सुख भोगे।

अगर हमारे भाग्य में सुख नहीं हो, तो हम कर्मकाण्ड आयुर्वेद तंत्र-मंत्र- यंत्र तीर्थ-स्नान, जप-तप, दान- योग, सत्य, सेवा, सदाचार, शिष्टाचार, देव- देवी-पूजन इत्यादि कर्म करके ही तो कष्टों का निवारण कर सुख पाने की चेष्टा क्यों करते। अगर ऐसा होता है तभी हम ऐसेे उपाय लाखों-करोड़ों साल से करते आ रहे हैं। डाॅक्टर के यह कहने पर भी कि बचने का कोई उपाय नहीं है, हम पूजा-पाठ, महामृत्युंजय जप आदि करवाते हैं और यह सोचते हैं कि किसी न किसी तरह से बच जायें।

यह उम्मीद और कहां से आती है, यह केवल ज्योतिष और कर्मकाण्ड से मिलती है। इसलिए ज्योतिष का और सभी उपायों का महत्व बढ़ जाता है। जब बात हमारे बस में न हो, तो उपाय से या दवाई से बीमारी का हल निकालते हैं। चोट-ऐक्सीडैंट-अल्पायु के लिए कोई भी वैज्ञानिक उपाय नहीं है और न ही विज्ञान किसी ऐक्सीडैंट या चोट मुकद्मेबाजी की कोई भविष्यवाणी या उपाय नहीं बता सकता मगर ज्योतिष में इसके लिए योग-रत्न-जप-दान-यज्ञ स्नान द्वारा बचा जा सकता है।

ऐसे उपाय जिनमें कुछ भी खर्च नहीं होता और मनुष्य को लाभ हो जाता है। जैसे रत्न धारण, उपरत्न-रुद्राक्ष धारण, यंत्र धारण करना शुलभ उपाय है जिसे धीरे-धीरे विज्ञान भी स्वीकार कर रहा है अगर गौर से देखें तो हर अगला उठ रहा कदम उपाय ही तो है। बिना उपाय यह संसार सजीव नहीं हो सकता फिर तो सब कुछ स्थिर ही रहेगा।



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