हस्त रेखा द्वारा जन्मकुंडली
हस्त रेखा द्वारा जन्मकुंडली

हस्त रेखा द्वारा जन्मकुंडली  

आई.एल. खत्री
व्यूस : 52195 | जून 2013

प्रश्न: यदि किसी जातक के पास अपना जन्म विवरण न हो तो क्या हस्तरेखा के द्वारा जन्म विवरण जानकर जन्मकुंडली बनायी जा सकती है। यदि हां तो विस्तृत वर्णन करें अथवा प्रश्न कुंडली द्वारा वांछित प्रश्न का उत्तर कैसे देंगे, विस्तार पूर्वक वर्णन करें। यदि किसी जातक के पास अपना जन्म विवरण (जन्म दिनांक, समय व स्थान) न हो तो वह हस्तरेखा द्वारा जन्म विवरण की जानकारी हासिल कर जन्मकुंडली बनाकर भविष्य कथन जान सकता है।

हस्तरेखा शास्त्र द्वारा जन्म विवरण (तारीख, समय, स्थान) की जानकारी:

1. चंद्र राशि से जन्मदिन/तारीख, सूर्य चिह्न से जन्ममास (महीना) एवं गुरु व शनि से जन्म वर्ष का पता लगाया जा सकता है।

2. पक्ष तथा समय (दिन, रात्रि) का निर्धारण - यदि जातक के एक अंगूठे में यव चिह्न हो तो कृष्णपक्ष व दोनों अंगूठों में यव चिह्न हो तो शुक्ल पक्ष का जन्म होता है। - यदि दाएं हाथ के अंगूठे में यव चिह्न हो तो शुक्ल पक्ष व दिन का जन्म होता है। - यदि बाएं हाथ के अंगूठे में यव चिह्न हो तो शुक्ल पक्ष व रात्रि का जन्म होता है। - यदि दोनों हाथ के अंगूठों में यव हो तो कृष्ण पक्ष में दिन का जन्म होता है। जैन सामुद्रिक शास्त्रानुसार यदि दाएं अंगूठे में यव हो तो शुक्ल पक्ष व दिन का जन्म तथा बाएं हाथ के अंगूठे में यव हो तो कृष्ण पक्ष व रात का जन्म होता है।


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3. जन्म मास व राशि का निर्धारण - दोनों हाथों की तर्जनी अंगुलियों के दूसरे व तीसरे पोर में स्थित दोष रहित लम्बवत् रेखाओं के योग को 23 से गुणा करने पर जो संख्या आए इसमें 12 का भाग देने पर जो संख्या शेष बचे वही जन्ममास और राशि होती है। उदाहरण यदि शेष 1 बचे तो जातक का जन्म मेष राशि, वैशाख मास में माना जाता है। इसी प्रकार क्रमशः आगे भी। - इसके अलावा, अनामिका अंगुली (सूर्य की) के नीचे सूर्य क्षेत्र में जिस भी राशि का स्पष्ट चिह्न यदि हो तो, इससे भी जन्ममास ज्ञात कर सकते हैं।

4. जन्मतिथि का निर्धारण - मध्यमा अंगुली के दूसरे व तीसरे पोर मंे स्थित लंबी रेखा का योग कर उसमें 32 जोड़कर 5 से गुणा कर फिर गुणनफल में 15 का भाग देने से जो शेष संख्या आए, वही जन्मतारीख (तिथि) होगी। - अंगूठे के नीचे स्थित शुक्र क्षेत्र पर स्थित दोषरहित कुल लंबवत् रेखाओं को 6 से गुणा कर उसमें 15 का भाग देने पर जो शेष बचता है वह तिथि होगी। यदि शेष शून्य बचता है तो जन्म पूर्णिमा का होता है। 15 के बाद 30 के अंदर का क्रम होने पर जन्म कृष्ण पक्ष का होता है।

5. जन्म वार का निर्धारण अनामिका के दूसरे व तीसरे पर्व में स्थित दोषरहित कुल रेखाओं में 517 जोड़कर 5 से गुणा कर गुणनफल में 7 का भाग देने पर शेष बची संख्या उसका वार होगी। यदि शेष 1 तो रविवार, 2 सोमवार, 3 मंगलवार, 4 बुधवार, 5 गुरुवार, 6 शुक्रवार व 7 शेष आने पर शनिवार होगा।

6. वर्ष/जन्म सन् का निर्धारण हस्तरेखा में बृहस्पति व शनि क्षेत्र में सभी दोषरहित लंबवत् रेखाओं का अलग-अलग योग करें। ये रेखाएं अंगुलियों के मूल के अंतिम (तृतीय) पर्व से निकलती हुई मिलेगी। इस तरह बृहस्पति की कुल रेखाओं को डेढ़ से व शनि की कुल रेखाओं को ढाई से गुणा करके आपस में जोड़ दें। इस जोड़ में मंगल पर्वत की रेखाओं का योग करने पर जातक का जन्म वर्ष आ जायेगा। इससे जातक की वर्तमान आयु/उम्र का भी पता चल जायेगा।


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7. जन्म लग्न/ समय का निर्धारण अनामिका व मध्यमा पर्व पर तथा सूर्य व गुरु पर्वत पर जितनी दोषरहित खड़ी रेखायें हों, उन्हें गिनकर इसमें 811 जोड़कर, 124 से गुणा कर, 60 से भाग देने से जो भागफल आएगा उससे जन्म का समय घंटे में तथा शेष मिनट में स्पष्ट होगा। योगफल 24 से अधिक होने पर पुनः 24 का भाग दें। पंचांग देखकर लग्न निकालें।

8. जन्म लग्न का अन्य विवेचन अंगूठा जातक की कुंडली का ‘लग्नेश’ कहलाता है। यदि तर्जनी व अंगूठे के बीच न्यूनकोण है तो जातक में ईच्छा शक्ति की कमी है। फलतः लग्नेश निर्बल होगा। यदि दोनों के बीच समकोण या अधिक कोण है तो प्रबल ईच्छा शक्ति है तथा लग्नेश बली (उच्च, स्वगृही, मित्रराशि का) होगा। अतः अंगूठा ‘लग्न’ का दर्पण है। - यदि अंगूठे पर मशाल या अग्नि जैसी जलती हुई लपटें ऊपर की ओर उठती हांे तो जातक का लग्न मेष, सिंह या धनु होगा। - यदि अंगूठे में तंबू या वायु के गुब्बारे जैसा बीच से उठा हुआ भाग हो तो जातक का लग्न, मिथुन, तुला या कुंभ होगा। - यदि अंगूठे से उठती हुई लहरें, पर्वत या टेकरी जैसा कोई चिह्न या आकृति हो तो जातक का लग्न वृष, कन्या या मकर होगा। - यदि अंगूठे में चक्र या समुद्री लहरों के चिह्न जैसी कोई आकृति हो तो लग्न, कर्क, वृश्चिक या मीन होता है। हाथ - - चर लग्न (मेष, कर्क, तुला, मकर) में जन्मे जातकों का हाथ चपटा या वर्गाकार होता है। - यदि किसी जातक का हाथ नुकीला व लंबा हो तो लग्न ‘स्थिर’ (वृष, सिंह, कुंभ, वृश्चिक) होता है। - हाथ-दार्शनिक हो तो जातक का लग्न ‘द्विस्वभाव’ (मिथुन, कन्या, धनु, मीन) होता है।

9. कुंडली में सूर्य की स्थिति का विवेचन जन्म मास का निर्धारण - यदि मस्तिष्क रेखा, चंद्र पर्वत पर समाप्त होकर दो या तीन भागों में विभक्त हो जाये या यव, क्राॅस का चिह्न बने तो जातक के जन्म के समय सूर्य, कर्क या सिंह राशि में होता है। - यदि मष्तिष्क रेखा, मंगल पर्वत पर समाप्त हो तो सूर्य, मेष या वृश्चिक राशि में होता है। हस्त रेखा के उदाहरण-2 में मस्तिष्क रेखा, मंगल क्षेत्र पर समाप्त हो रही है इनकी कुंडली में सूर्य उच्च (मेष) का है। अतः इनका जन्म मास चैत्र या अप्रैल है। - यदि मस्तिष्क रेखा, शनि पर्वत के नीचे समाप्त हो तो सूर्य मकर, कुंभ या बुध की राशि मिथुन अथवा कन्या में होता है। उदाहरण -1, सायं का सूर्य दशम भाव में कन्या राशि में है, मस्तिष्क रेखा, शनि के नीचे समाप्त हो रही है आदि। इस तरह जन्म मास की गणना कर सकते हैं। - यदि अनामिका, तर्जनी से बड़ी हो तो सूर्य की स्थिति कुंडली में चतुर्थ भाव से नवम भाव के बीच में होती है। उदाहरण 2 में सूर्य मेष का होकर सप्तम भाव में स्थित है क्योंकि इनकी अनामिका लंबी है। सप्तम भाव में मेष राशि आने पर लग्न ‘तुला’ हो जाता है। - यदि तर्जनी, अनामिका से बड़ी हो तो सूर्य 10 से 3 भाव में होता है। उदाहरण 1 में मनमोहन जी की कुंडली में सूर्य दशम भाव में है। इनकी तर्जनी लंबी है।


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10. चंद्र स्थिति - यदि चंद्र पर्वत से कोई रेखा, सूर्य पर्वत की ओर जाती हो तो चंद्र बली, (उच्च, स्वगृही, मित्र राशि) होता है। - चंद्र पर्वत पर उभार, आकृति व चिह्न की जांच करते हैं।

11. मंगल स्थिति - यदि शुक्र पर्वत से रेखायें मंगल पर्वत पर आती हों तो मंगल की स्थिति कुंडली में शत्रु राशिस्थ जैसे- शुक्र की राशि आदि अथवा नीचस्थ होती है। अर्थात् मंगल निर्बल होता है। -पपद्ध मंगल-पर्वत दबा या कटा-फटा अशुभ हो तो मंगल निर्बल होता है।

12. बुधादित्य योग यदि दोनां पर्वत हाथ में एक दूसरे की तरफ झुके हां तो जन्मपत्री में बुध एवं सूर्य साथ-साथ होते हैं।

13. बुध स्थिति यदि बुध पर्वत उन्नत है तो बुध ग्रह बली है। निर्बल होने पर बुध पर्वत दबा होगा।

14. गुरु स्थिति - यदि गुरु पर्वत पर क्रास हो तथा यह पर्वत दबा हो एवं जीवन रेखा से कोई रेखा गुरु पर्वत पर जाती हो तो कुंडली में गुरु ग्रह की स्थिति चर राशियों-मेष, कर्क, तुला, मकर में होती है। - बिंदु upper में यदि गुरु पर्वत उठा हो तथा बाकी सारी स्थितियां हों तो गुरु ग्रह द्विस्वभाव राशि में होता है। - गुरु का क्षेत्र बड़ा, उन्नत, साफ-सुथरा हो तो गुरु स्थिर राशियों में होता है।

15. शुक्र स्थिति - यदि शुक्र पर्वत पर आड़ी-तिरछी रेखायें या जाल हो तथा बुध पर्वत से कोई रेखा शुक्र पर्वत पर जाती हो तो शुक्र द्विस्वभाव में होता है। - यदि शुक्र पर्वत उठा हुआ हो तो शुक्र वृष अथवा तुला मंे होता है। - यदि शुक्र पर्वत दबा हो, सूक्ष्म धारियां नजर आयं तो शुक्र ग्रह निर्बल, अस्त, शत्रुराशि में होता है।


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16. शनि स्थिति - शनि पर्वत मांसल, उन्नत होने तथा शनि, सूर्य रेखा सुस्पष्ट होने पर शनि बली होता है। - शनि पर्वत दबा हुआ, शनि रेखा टूटी हुई हो तो शनि नीच, शत्रु, अस्त तथा निर्बल होता है। ग्रहों की कुंडली में विभिन्न स्थानों पर स्थिति - यदि पर्वत हाथ में अपने स्थान से बायीं ओर झुके हों तो उनसे संबंधित ग्रह जन्मपत्री में 2, 3, 5, 6 भावों में होते हैं। - दायीं ओर झुके होने पर - 8, 9, 11, 12 भावों में होते हैं। - यदि पर्वत हाथ में अपनी सही जगह पर उभार लिये हैं तो 1, 4, 7, 10 केंद्र स्थानों में ग्रह स्थित होते हैं। उपर्युक्त विवेचन के आधार पर जातक का जन्म विवरण ज्ञात कर जन्मपत्रिका बना सकते हैं।



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