समय बड़ा बलवान है। समय कभी किसी की प्रतिक्षा नहीं करता हैं समय कभी रूकता नहीं है ओर न ही कभी एक जेसा रहता है। समय बहुत शक्तिशाली होता है। पुरुष बली नहीं होत है, समय होत बलवान। लुटेरों का कुछ कर न सका, वही अर्जुन वही बाण। कभी-कभी व्यक्ति अपने जीवन में आये परिवर्तनों को समझ नहीं पाता है कि उसके जीवन में अचानक यह सब कैसे हो गया। व्यक्ति की कुंडली के अनुसार जब एक दशा से दूसरी दशा का परिवर्तन होता है तो जीवन की दिशा ही बदल जाती है क्योंकि महादशा जातक के जीवन में परिवर्तन लाती है जिसका कई बार तुरंत एहसास हो जाता है लेकिन कई परिवर्तन व्यक्ति का जीवन ही बदल देते हैं।
जिसका ज्ञान व्यक्ति को कुछ समय पश्चात होता है। जातक को जनम के समय जो भाग्य दशा प्राप्त होती है तथा उसके पश्चात् आने वाली दशायें ही उसका जीवन सवांरती या बिगाड़ती है। यदि जनम के पश्चात् जीवन के पहले बीस साल में लग्नेश, नवमेश, पंचमेश, दशमेश या स्वचादि ग्रहों की दशा प्राप्त होती है तो जीवन की इमारत की बुनियाद बहुत मजबूत हो जाती है। यदि जीवन की शुरुआत में जातक को त्रिक भावों के स्वामियों की, नीच ग्रह की, ग्रह युद्ध में लिप्त ग्रहों की, सूर्य से अस्त ग्रहों की या राहु की दशा प्राप्त होती है तो जातक का जीवन दुःख, दरिद्री, रोग इत्यादि में ही बीत जाता है। नीचे दी गई कुंडली एक ऐसे व्यक्ति की है जिसके जीवन में दशाओं के पविर्तन ने मात्र 42 वर्ष की आयु में एक सरकारी कंपनी का जनरल मैनेजर व कंपनी सेक्रेट्री बना दिया। जबकि एक ही परिवार में जनम लेने वाले तथा एक ही माहौल में रहने वाले जातक के अन्य तीन भाई-बहन या तो बेरोजगार है या क्लर्क की नौकरी कर रहे हैं।
जातक की कुंडली वृष लग्न की है तथा चंद्र राशि धनु है कुंडली में सूर्य उच्च राशि में तथा शनि व गुरु स्वराशिस्थ है योगकारक शनि भाग्येश होकर भाग्य भाव में केतु के साथ युति कर रहा है। कुंडली में मंगल नीच होकर राहु-केतु अक्षांश में है। जातक का जन्म गंडमूल नक्षत्र में हुआ तथा भोग्य दशा केतु की मिली है। जातक एक साधारण परिवार से संबंध रखता है। इनके पिता कैन्टीन में ग्राहकों को कूपन दिया करते थे। राहु/केतु छाया ग्रह है तथा इन्हें किसी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है। राहु/केतु जिस ग्रह से युति करते हैं या जिस राशि में स्थित हो उसी के गुण अपना लेते हैं।
भोग्य दशा का सवामी केतु योगकारक शनि के साथ पिता के भाव (नवम भाव) में युति कर रहा है। जातक के जनम के दो वर्ष पश्चात् अचानक पिता को सरकारी नौकरी मिल गई। क्योंकि नवामेश शनि अपने ही भाव में केतु युक्त है तथा पिता का कारक सूर्य उच्च का है। इसके बाद दशा परिवर्तन हुआ। केतु के बाद शुक्र की दशा आई, जो कि 20 वर्ष की ाहेती है। शुक्र जातक का लग्नेश होकर केंद्र में दशम भाव में मित्र राशि में स्थित है। लग्नेश शुक्र, गुरु के नक्षत्र में है तथा गुरु लाभ भाव में स्वराशिस्थ होकर पंचम भाव को पूर्ण दृष्टि दे रहा है।
जातक ने सरकारी स्कूल से शिक्षा प्राप्त की थी लेकिन लग्नेश शुक्र की दशा में अच्छी विद्या प्राप्त की तथा हमेशा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए। इसके पश्चात् बी.काम. व एम. काम. में भी प्रथम श्रेणी में पास किया। अब दशा परिवर्तन हुआ। चतुर्थेश सूर्य की दशा प्रारंभ हुई जो उच्च राशि में पंचमेश बुध के साथ केंद्र त्रिकोण संबंध बनाकर राजयोग में लिप्त था तथा साथ ही साथ बुध आदित्य योग भी बना रहा था। सूर्य वर्गोत्तम भी है नवांश में शिक्षा का कारक बुध पंचम भाव सिंह राशि में स्थित है तथा पंचमेश सूर्य उचच राशि में स्थित है।
जन्मकुंडली के पंचम भाव पर ज्ञान का कारक बृहस्पति दृष्टि दे रहा है। सूर्य की दशा में जातक ने आइसीडब्ल्यूए में प्रवेश लिया व नवंबर 1986 में सरकारी नौकरी में सकेक्शन आफिसर का पद प्राप्त किया। लग्नेश शुक्र दशम भाव में स्थित है तथा केतु नौकरी का कारक व दशमेश शनि युक्त नवमस्थ है तथा सूर्य (सरकार) उच्च राशि में स्थित है। सूर्य/मंगल की दशा में जातक का विवाह हुआ। उच्च का सूर्य सप्तमेश मंगल की राशि में द्वादश भाव में स्थित है। द्वादश भाव शैया सुख का भी भाव है तथा कुटुंब भाव का स्वामी द्वितीयेश बुध के साथ बुध आदित्य योग में सम्मिलित है।
अब दशा परिवर्तन हुआ। चंद्र की दशा में जातक को मार्च (1992) में कन्या संतान की प्राप्ति हुई। घर में नन्हे मेहमान के आने से खुशी का माहौल था लेकिन चंद्र/मंगल की दशा में एक अशुभ घटना घटी। जातक का अपनी पत्नी से झगड़ा हुआ और नौबत पुलिस थाने तक पहुंच गई। सप्तमेश मंगल नीच राशि में तृतीय भाव में राहु/केतु अक्षांश में है
तथा शनि की पूर्ण दृष्टि में है। राशिश चंद्रमा अष्टम भाव में स्थित है तथा अष्टम भाव/अष्टमेश से संबंधित ग्रह छिद्र ग्रह माने जाते हैं। चंद्रमा ने अपनी दशा में अष्टमेश का काम किया तथा पति-पत्नी में अलगाव हो गया। नवांश में चंद्रमा तृतीय भाव में अष्टमेश मंगल तथा षष्टम भाव स्थित शनि से दृष्ट है, सप्तमेश शुक्र से चंद्रमा का द्विद्वादश (2/12) का संबंध है। बाद में यह अलगाव चंद्र/गुरु की दशा में खत्म हुआ और फिर से दोनों साथ रहने लगे। चंद्र व गुरु जन्मकुंडली तथा नवांश में गजकेसरी योग बना रहे हैं।
इसके पश्चात चंद्र/शुक्र की दशा में जातक के जीवन में एक अदभुत परिवर्तन हुआ जातक की मार्च 2000 में पदोन्नति हुई। सिर्फ दो पद थे और सीनियरटी में इनका नंबर आठवां था इसके बावजूद जातक की पदोन्नति हुई और डिप्टी जनरल मैनेजर बना दिया। शुक्र दशम भाव में स्थित है और भावत-भावम-दशम से दशमेष (सप्तमेश) मंगल से दृष्ट है। चंद्र राशीश गुरु की भी सप्तम भाव पर दृष्टि है तथा चंद्र व शुक्र परस्पर 3/11 अक्ष में है। दशमांश में चंद्रमा नवमेश गुरु के साथ लाभ भाव में है। गुरु सप्तमस्थ शुक्र को भी देखता है। शुक्र भावात् भावम् के अनुसार सप्तम भाव में (दशम से दशम) में स्वराशिस्थ है तथा लग्न में स्थित उच्च के सूर्य से दृष्ट है।
इसके पश्चात् दशा परिवर्तन हुआ और मंगल की दशा आई। मंगल में शनि की अंतरदशा में सूर्य की प्रत्यंतर दशा में जातक की पदोन्नति हुई और मात्र 42 वर्ष की आयु में जीवन ऐसा बदलाव आया कि उसी सरकारी कंपनी में जनरल मैनेजर बन गये। मंगल सूक्ष्म कर्म स्थान (सप्तम भाव) का सवामी है और भाग्येश शनि से दृष्ट है तथा दोनों समसप्तक है। प्रत्यंतर दशानाथ सूर्य उच्च राशि में स्थित है तथा अंतरदशानाथ के साथ (4/10) चतुर्थ दशम अक्ष पर है। काल चक्र की गति ही जातक के जीवन के उतार-चढ़ाव रूपी परिवर्तन को दर्शाती है जिसके कारण जीवन में कभी सुखद एवं कभी दुखद घटनायें होती है।
जातक के जीवन में दशा परिवर्तन के कारण सभी बदलाव स्पष्ट दिखाई दिय हैं। दशा परिवर्तन से ही जीवन में बड़े-बड़े बदलाव हो जाते हैं। यह एक महिला जातक की कुंडली है। कन्या लग्न व राशि वृष है। कुंडली में शुक्र, राहु/केतु उच्च के हैं तथा गुरु नीच राशि में स्थित है। गुरु स्त्री के लिये पति का कारक है। मंगल कुंडली के सप्तम भाव में स्थित हो कर मंगली दोष भी बना रहा है। जातिका को जन्म के समय चंद्र की भोग्य दशा प्राप्त हुई तथा चंद्र/शनि की दशा में जन्म हुआ। चंद्र लाभेश होकर नवम भाव में उच्च का होकर राहु/केतु अक्षांश में है तथा शनि की पूर्ण दृष्टि में है।
जातिका के जन्म के चार साल पश्चात पिता की मृत्यु हो गई। दशा थी चंद्र/शुक्र/राहु। नवम भाव पर राहु/केतु व शनि का प्रभाव है। नवमेश शुक्र मंगल से पीड़ित है। जो हत्या का कारक भी है। पिता का कारक सर्य नैसर्गिक शत्रु शनि की राशि में शनि द्वारा पीड़ित है तथा नीच ग्रह के साथ युक्त है। नवांश में जन्म कुंडली का नवमेश शुक्र अष्टम भाव में शनि व मंगल से पीड़ित है। चंद्र के बाद दशा परिवर्तन हुआ व जातिका के जीवन में मंगल की दशा आई। मंगल तृतीयेश व अष्टमेश होकर मारक भाव में स्थित है, जिसका राशिश (सप्तमेश) नीच का है। जातिका की विद्या में बार-बार रुकावट हुई। जैसे तैसे जातिका के मामों ने उसकी पढ़ाई का बन्दोबस्त किया व किसी प्रकार से हायर सेकन्डरी तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद जातिका ने पढ़ाई छोड़ दी। मंगल की दशा के पश्चात् राहु की दशा आई। राहु नवम भाव में बली होकर चंद्र से युक्त है।
चंद्रमा मन का कारक है तथा राहु एक छाया ग्रह है। राहु और पारंपरिक, गैर सामाजिक कार्य करवाता है। राहु विष का भी कारक है। चंद्र/राहु युति ग्रहण योग बनाता है। राहु/केतु दशा में जातिका का प्रेम एक लड़के से हो गया। लेकिन दशा परिवर्तन हुआ और राहु/शुक्र की दशा आई और जातिका ने अपने प्रेमी के मित्र, जो किसी कंपनी में इंजीनियर था, से अचानक विवाह कर लिया। राहु भाग्य भाव में है
तथा शुक्र उच्च का सप्तम भाव में मंगल युक्त है। मंगल शुक्र की युति जातक को कामुक बनाती है। राहु व शुक्र 3/11 के अक्षांश में है। तृतीय भाव साहस तथा एकादश भाव लाभ का है। जिसके कारण जातिका के नैन-नक्श व रंग साधारण होने के बावजूद एक सुंदर व इंजीनियर पति हुआ। लेकिन मात्र 4/5 महीने के पश्चात् राहु/शुक्र की महादशा व अंतरदशा में सूर्य की प्रत्यंतर दशा में जातिका अपना ससुराल छोड़ कर एक अन्य जाति के लड़के के साथ अपने सभी गहने व नकद साथ लेकर भाग गई व पुलिस में रिपोर्ट लिखवा दी कि मेरे पति ने मुझे मार-पीट कर नंगे पैर घर से निकाल दिया व महिला सेल में 15 लाख हर्जाने का दावा कर दिया। पति बहुत ही शरीफ खानदान का था
जिसने हर्जाना दे कर अपना पीछा छुड़ाया व तलाक ले लिया। जातिका की कुंडली में राहु/शुक्र 3/11 अक्षांश में थे जिसने जातिका को आर्थिक लाभ भी दिया। दशाओं के परिवर्तन से जीवन में बदलाव आते हैं तथा भाग्य की दिशा ही बदल जाती है।