महाकुम्भ का महात्म्य
महाकुम्भ का महात्म्य

महाकुम्भ का महात्म्य  

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व्यूस : 9651 | फ़रवरी 2013

हिंदुओं के धार्मिक ग्रंथों में अनेक प्राचीन धार्मिक उत्सवों के प्रमाण मिलते हैं। उनमें कुंभ एवं महाकुंभ भी हैं। इस अवसर पर भव्य एवं विशाल मेला लंबे समय तक चलता है, जहां, मनोरंजन के साथ-साथ, मानव चरित्र को आवश्यक विधियों की ओर प्रवृत्त करने का मौका मिलता है।

प्रत्येक तीन वर्षों के अंतराल में हरिद्वार, उज्जैन, प्रयाग और नासिक अपार जन समूह को आकृष्ट करने के लिए विश्व विख्यात हैं। महाकुंभ तथा कुंभ के लिए प्रयाग को मुख्य स्थल माना गया है। प्रयाग का शाब्दिक अर्थ है यज्ञ करने का दिव्य स्थल। हेमाद्रि ग्रंथ में कहा गया है कि सूर्य के मकर संक्रांति में संगम पर काष्ठ और अग्नि का दान सर्वश्रेष्ठ है। इसी समय, हेमाद्रि ग्रंथ एवं विष्णु धर्म के अनुसार, पितरों का श्राद्ध अति उत्तम कहा गया है।

माधवीय ग्रंथ में मकर संक्रांति के पूर्व बीस घड़ी पुण्य काल माना गया है। धर्म सिंधु के अनुसार, इस स्थल के आठ दान अति उत्तम माने गये हैं। तुलसी और शालिग्राम की शिला को निकट रख कर, तिल, लोहा, सुवर्ण, कपास, लवण, सप्त धान्य, पृथ्वी, गौ, के दान श्रेष्ठ माने गये हैं। इसी प्रयाग में मुंडन एवं श्राद्ध भी श्रेष्ठ माने गये हैं।

समय के निर्णय में, सिंधु के अनुसार, तीर्थ, द्रव्य, सुपात्र, ब्राह्मण की प्राप्ति होने पर समय और मुहूर्त का विचार न करें और शीघ्र ही श्राद्ध करें। पौष की पूर्णिमा से माघ की पूर्णिमा तक पितरों और देवताओं के निमित्त मूली न दें और न ही ब्राह्मण वर्ग को इसका भक्षण करना चाहिए। यह बात वैष्णामृत गौड़ निबंध में स्पष्ट रूप से कही गयी है।

पद्म पुराण के अनुसार गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम स्थल ही सर्वोत्तम तीर्थ का स्थल माना गया है और यहां का पुण्य काशी से हजारों गुना ज्यादा माना गया है। इस स्थल पर ब्राह्मण आदि चारों वर्ण भीष्म के निमित्त अगर जल नहीं देते हैं, तो उनका एक वर्ष का पुण्य नष्ट हो जाता है। मकरस्थे दिवानाथे वृषशिगते गुरौ। प्रयागे कुंभयोगो वै माघमासे विधुक्षये।।

यह मेला भी ग्रहों की विशेष स्थितियों से संबंधित है। इसकी तिथि निश्चित होती है और सूर्य, गुरु तथा चंद्रमा की विभिन्न स्थितियों के अनुसार यह मेला लगता है। माघमासे च यः स्नायान्नैरन्तर्येण भारत। पौंडरीक फलं तस्य दिवसे दिवसे भवेत्।। गंगा, यमुना एवं सरस्वती जैसी पावन नदियों का संगम, विशेष योगों के संबंध के कारण, बहुत ही पवित्र माना गया है। प्रयागवास करने वाले श्रद्धालुओं को इन तिथियों में विशेष पुण्य लाभ होगा।


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कुछ तिथियां, विशेष योग या योगों के कारण, त्रिवेणी संगम में स्नान के लिए विशेष महत्व रखती हैं। दुर्लभ स्नान विधि एवं मंत्र यत्र कुत्रापि यो माघे प्रयाग-स्मरणान्वितः। करोति मज्जनं तीर्थे स लभेद् गांगमज्जनम्।। स्नान का सर्वोत्तम काल अरुणोदय काल है। सूर्योदय से पहले पूर्वी क्षितिज में जो प्रकाश नजर आता है, उसे अरुणोदय कहते हैं।

अरुणोदय काल में भी स्नान के लिए वह समय सर्वोत्कृष्ट है, जब तारे दिखाई पड़ रहे हों। इसके बाद सूर्योदय तक का काल, जब तारे छुप चुके हों, अपेक्षाकृत कुछ कम महत्व का है। सूर्योदय के बाद प्रातः काल स्नान के लिए सामान्य माना गया है। माघ स्नान विधि: हाथ में जल, अक्षत, पुष्प, द्रव्य ले कर, मन को शांत रखते हुए, पूर्व दिशा की ओर मुंह कर के, मन में अथवा वाणी से संकल्प करना चाहिए।

संकल्प मंत्र माघमासमिमं पूर्ण स्नास्येऽहं देव माधव।

तीर्थस्यास्य जले नित्यं पापनाशाय मुक्तये।।

माघमासमिमं पूर्ण स्नास्येहं देव माधव।

तीर्थस्यास्य जले नित्यमिति संकल्प्य चेतति।

दुःख दारिद्रनाशाय श्रीविष्णोस्तोषणाय च।

प्रातः स्नानं करोम्यद्य माघे पापविनाशनम्।।

मकरस्थे रवौ माघे गोविंदाच्युत माधव।

स्नानेदानेन में देव यथोक्तफलदो भव।

सवित्रे प्रसवित्रे च परं धाम जले मम।

त्वत्तेजसा परिभ्रष्टं पापं यातु सहस्रधा।।

आवाहन मंत्र नमस्ते रुद्ररूपाय रसानां पतये नमः।

वरुणाय नमस्तेऽस्तु हरिवास नमोस्तु ते।।

गंगा एवं जल के स्वामी वरुण देवता को, सफेद पुष्प ले कर, आवाहन करना चाहिए। ततपश्चात् पुष्प को गंगा में छोड़ दें।

गंगा पूजन: हाथ में पुष्प, अक्षत ग्रहण कर के गंगा का पूजन करें। ओम् इमं में गंगे यमुने सरस्वती शुतुद्रि स्तोमं सचता परुष्ण्या। असिक्न्या मरुद्वृधे वितस्तयार्जीकीये श्रृणु ह्या सुषोमया।।

गंगा आज्ञा: अब तीर्थराज प्रयाग को प्रणाम करें। मां गंगा का स्मरण और वरुण देवता का नमन करें। सरस्वती एवं यमुना का स्मरण करें और हाथ जोड़ कर जल के बाहर घुटने के बल बैठ कर आज्ञा मांगें। हे मां गंगे, आपकी शरण में चरण रज पाने का मैं अभिलाषी हूं। करुणामयी मां अपने अबोध बालक (बालिका) को अपने सान्निध्य में लो।

आज्ञा मंत्र: गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती। नर्मदे सिंधु कावेरी जलेस्मिन सन्निधिंकुरु। पुष्कराद्यानि तीर्थानि गंगाद्याः सरितस्तथा। अगच्छन्तु पवित्राणि स्नानकाले सदामम।।

स्नान मंत्र: नग्न शरीर स्नान न करें। साफ-सुथरे एवं शुद्ध वस्त्र धारण करके शुद्ध अवस्था में गंगा स्नान करें। सर्वप्रथम सिर से स्नान करें। सुविधा के लिए स्नान का कोई बर्तन साथ रखें। स्नान के समय साबुन, तेल, शैंपू आदि का उपयोग न करें एवं स्नान के समय मौन धारण करें।

मंत्र: दुःखदारिद्रयनाशाय श्रीविष्णोस्तोषणाय च। प्रातः स्नानं करोम्यद्य माघे पापविनाशनम्।। मकरस्थे रवौ माघे गोविंदाच्युत माधव। स्नाने दानेन में देव यथोक्तफलदो भव।।

कत्र्तव्य: सर्वप्रथम वस्त्र धारण करें। संभव हो तो श्वेत वस्त्र धारण करें। चंदन आदि धारण करें। संगम के मिट्टी का चंदन सर्वमान्य होता है। दान पदार्थों को तैयार रखें और दान करने के लिए संकल्प करें। इंद्रियों को संयत रख कर नियमपूर्वक काम, क्रोध और लोभ से दूर रहें। किसी भी प्रकार के पाप की प्रवृत्ति से बचें। त्रिवेणी में माघ स्नान कर के प्रतिदिन निर्धनों को तिल और शक्कर (चीनी) दान करें। इस समय तिल-शक्कर के लड्डू या तिल से बने खाद्य पदार्थ भी दान करें।

इस पुण्यप्रदायक अवसर पर दान की भारी महिमा है। तिल, शक्कर के अलावा निर्धनों एवं संत महात्माओं को श्रद्धापूर्वक तिलनिर्मित मिठाई, गर्म, रेशमी आदि वस्त्र, अन्न, स्वर्ण आदि का भी यथाशक्ति दान करें।

गंगा स्तुति: नमः शिवायै गंगायै शिवदायै नमो नमः। नमस्ते रुद्ररूपिण्यै शांकर्यै ते नमो नमः।। नन्दायै लिंगधारिण्यै नरायण्यै नमो नमः। नमस्ते विश्वमुख्यायै रेवत्यै ते नमो नमः।। सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते। निर्लेपाये दुर्गहंयत्रयै दक्षायै ते नमो नमः।। गंगेत्वं परमात्मा च शिव तुभ्यं नमः शिवे। य इदं पठति स्तोत्रं भक्त्या नित्यं नरोऽपि यः।।


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