संपूर्ण भारतवर्ष का एकमात्र सूर्यप्रधान नवग्रह मंदिर पं. लोकेश जागीरदार खरगोन के श्री नवग्रह मंदिर का संपूर्ण भारतवर्ष में अलग ऐतिहासिक महत्व है। यहां माता बगलामुखी देवी स्थापित हैं। यह स्थान पीतांबरा ग्रह शांति पीठ कहलाता है क्योंकि यहां नवग्रहों की शांति के लिए माता पीतांबरा की पूजा अर्चना एवं आराधना की जाती है। नवग्रह देवता को नगर के देवता व स्वामी के रूप में पूजा जाता है। इसलिए खरगोन को नवग्रह की नगरी कहते हैं। इस ऐतिहासक मंदिर के नाम से प्रतिवर्ष नवग्रह मेला लगता है और मेले के अंतिम गुरुवार को नवग्रह महाराज की पालकी यात्रा निकाली जाती है। श्री नवग्रह मंदिर कुंदा नदी के तट पर स्थित है। इस मंदिर की स्थापना वर्तमान पुजारी व मालिक के आदि पूर्वज श्री शेषाप्पा सुखावधानी वैरागकर ने लगभग 600 वर्ष पूर्व की। शेषाप्पा जी ने कुंदा नदी के तट पर सरस्वती कुंड, सूर्य कुंड, विष्णु कुंड, शिव कुंड एवं सीताराम कुंड का निर्माण किया और उनके समीप तपस्या करके माता पीतांबरा को प्रसन्न कर अनेक सिद्धियां प्राप्त कीं तथा इन कुंडों के सम्मुख ही नवग्रह मंदिर की स्थापना की। मंदिर के रखरखाव की संपूर्ण व्यवस्था शेषाप्पा जी की छठी पीढ़ी के वंशज लोकेश दत्तात्रय जागीरदार एवं उनके परिवार के स्वामित्व व आधिपत्य में है। पंडित लोकेश दत्तात्रय जागीरदार के अनुसार मंदिर की स्थापना निम्नलिखित श्लोक के आधार पर की गई है ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी, भानु शशि भूमिसुतो बुधश्च। गुरूश्च शुक्र शनि राहु केतवः सर्वे ग्रहा शांति करा भवन्तु।। पंडित जी के अनुसार मंदिर में श्री ब्रह्मा के रूप में माता सरस्वती, मुरारी के रूप में भगवान राम तथा त्रिपुरांतकारी के रूप में श्री पंचमुखी महादेव और मंदिर के गर्भगृह में नवग्रह विराजमान हैं। मंदिर के गर्भगृह के मध्य में पीतांबरा ग्रह शांति पीठ व सूर्यनारायण मंदिर है तथा परिक्रमा स्थली में अन्य ग्रहों के दर्शन होते हैं। पीतांबरा ग्रहशांति पीठ में माता बगलामुखी देवी व सिद्ध ब्रह्मास्त्र स्थापित हैं। सूर्यनारायण मंदिर में सात घोड़ों के रथ पर सवार भगवान सूर्यनारायण एवं सिद्ध अष्टदल सूर्य यंत्र स्थापित है। परिक्रमा स्थली में पूर्व दिशा में बुध, शुक्र, चंद्र दक्षिण में मंगल, पश्चिम में केतु, शनि, राहु और उत्तर में गुरु ग्रह विराजमान हैं। सभी ग्रहों की स्थापना दक्षिण भारतीय पद्धति व नवग्रह दोषनाशक यंत्र के आधार पर की गई है। सभी ग्रह अपने अपने वाहन व ग्रह मंडल सहित स्थापित हैं। सूर्य प्रधान मंदिर होने के कारण सूर्य उपासना के महापर्व मकर संक्रांति के अवसर पर यहां विशाल आयोजन होता है। इस महापर्व पर प्रदेश भर से काफी संख्या में लोग ग्रहशांति हेतु नवग्रह दर्शन करने आते हैं। मान्यता है कि इस महापर्व पर किया गया दर्शन व पूजन विशेष पुण्य, सुख समृद्धि और वैभव प्रदायक, सर्वकार्य सिद्धि कारक, नवग्रह दोष निवारक, लक्ष्मी व ऐश्वर्य प्रदायक एवं ग्रह शांति प्रदायक होता है। यहां नवग्रहों के साथ में उनसे संबंधित उपासक देवताओं के दर्शन भी होते हैं जो इस प्रकार हैं - ग्रह देवता सूर्य भगवान राम चंद्र पंचमुखी महादेव मंगल पूर्वमुखी हनुमान बुध गणेश गुरु दत्तात्रय शुक्र लक्ष्मी शनि बाल भैरव राहु सरस्वती केतु नाग देवता उक्त सभी उपासक देवता इस मंदिर में विराजमान हैं। इन देवताओं की उपासना से भी ग्रह पीड़ा का निवारण होता है। यहां नवग्रहों की शांति के लिए नवग्रहों की अधिष्ठात्री माता बगलामुखी का पूजन होता है। मंदिर परिसर में ग्रह पीड़ा निवारणार्थ श्री नवग्रहेश्वर महादेव के दर्शन होते हैं। विशेषताएं: मंदिर के तीन शिखर त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) के प्रतीक हैं। मंदिर में प्रवेश करने वाली सात सीढ़ियां, सात वारों (रविवार से शनिवार) की प्रतीक हैं। गर्भगृह में उतरने की बारह सीढ़ियां बारह राशियों (मेष से मीन) की प्रतीक हैं। गर्भगृह से वापस ऊपर चढ़ने की बारह सीढ़ियां बारह महीनों (चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ, फाल्गुन) की प्रतीक हैं। यह सूर्यप्रधान मंदिर है क्योंकि सूर्य ग्रहों के राजा हैं। गर्भगृह में उत्तरायण में प्रातः समय सूर्य की किरण सूर्य यंत्र से होते हुए सूर्य रथ पर गमन करती है। मंदिर के प्रारंभिक दर्शन ब्रह्मा, विष्णु महेश के रूप में तथा अंतिम दर्शन भी ब्रह्मा, विष्णु, महेश के दर्शन के साथ संपन्न होते हैं। सभी नवग्रहों के उपासक देवता यहां पर विराजमान हैं। माता बगलामुखी के स्थापित होने के कारण यह मंदिर पीतांबरा ग्रहशांति पीठ कहलाता है। इस तरह यह मंदिर संपूर्ण भारतवर्ष का एकमात्र सूर्य प्रधान मंदिर है। सूर्य प्रधान मंदिर होने के कारण सूर्य उपासना के महापर्व मकर संक्रांति के अवसर पर यहां विशाल आयोजन होता है। इस महापर्व पर प्रदेश भर से काफी संख्या में लोग ग्रहशांति हेतु नवग्रह दर्शन करने आते हैं। मान्यता है कि इस महापर्व पर किया गया दर्शन व पूजन विशेष पुण्य, सुख समृद्धि और वैभव प्रदायक, सर्वकार्य सिद्धि कारक, नवग्रह दोष निवारक, लक्ष्मी व ऐश्वर्य प्रदायक एवं ग्रह शांति प्रदायक होता है।