सर्वाधिक प्रगतिदायक भी है शनि लक्ष्मीनारायण शर्मा ‘मयंक’ शनि का शुभ प्रभाव व्यक्ति को नगर, ग्राम या राष्ट्र का मुखिया, बुद्धिमान विभिन्न प्रकार की कलाओं में निपुण, विनयशील तथा ईश्वर और ब्राह्मण के प्रति आस्थावान बनाता है। साथ ही वह उसे वाहन, स्वर्ण, रत्न, जवाहरात, वस्त्र, आभूषण आदि से समृद्ध करता है। व्यक्ति को प्राचीन स्थानों से भी लाभ मिलता है। इस संबंध में महर्षि पराशर का मत है कि शनि राजयोगकारक हो तो व्यक्ति को सेनापति से सुख, सत्ता पक्ष से लाभ, लक्ष्मी की कृपा, संपŸिा, स्त्री-पुत्र सुख की प्राप्ति आदि होती है। जन्मकुंडली में शनि की सुखदायक स्थितियां- स शनि और बुध की युति व्यक्ति को अन्वेषक बनाती है। स यदि शनि चतुर्थेश होकर कुंडली में बलवान हो तो जमीन-जायदाद का पूर्ण सुख देता है। स यदि शनि लग्नेश तथा अष्टमेश होकर बलवान हो तो जातक दीर्घायु होता है। स धनु, तुला और मीन लग्न में शनि लग्न में ही बैठा हो तो व्यक्ति को धनवान बनाता है। स वर्ष लग्न या जन्म लग्न में वृष राशि हो और शनि-शुक्र का योग हो तो यह स्थिति लाभदायक होती है। स शुक्र और शनि में मित्रता है, इसलिए वृष या तुला लग्नस्थ शनि शुभ फल देता है। स छठे, आठवें या बारहवें भाव का कारक शनि इनमें से किसी भी भाव में हो तो लाभदायक होता है। स कन्या लग्न में आठवें भाव का शनि व्यक्ति को धन सुख देता है। यदि वक्री हो तो अपार संपŸिा देता है। स मीन, मकर, तुला या कुंभ लग्न में, शनि लग्न में ही हो तो व्यक्ति का जीवन सुखमय होता है और उसे मान-सम्मान की प्राप्ति होती है। स शनि यदि केंद्र में स्वराशि, मूल त्रिकोण राशि या अपनी उच्च राशि में हो तो शश नामक पंच महापुरुष योग का निर्माण करता है। यह तुला राशि में 20 अंश तक होता है। इस योग में जन्मे जातक दीर्घायु होते हैं, उनका रंग सांवला तथा आंखें बड़ी होती हैं। उनका व्यक्तित्व आकर्षक होता है। यह योग गरीब परिवार में जन्में व्यक्ति को भी उन्नति के शिखर तक ले जाता है। जातक उच्च स्तरीय नेता हो सकता है। कुंडली 2, 4 एवं 5 में यह योग विद्यमान है। इन कुंडलियों के जातक शनि के शुभ प्रभाव के कारण अपने-अपने क्षेत्र में शिखर तक पहंुचे। यदि कुंडली में शनि के साथ गुरु, शुक्र, बुध एवं चंद्र भी शुभ और बलवान हों तो व्यक्ति सफलता की सीढ़ियां आसानी से चढ़ता चला जाता है। इन सभी उदाहरण कुंडलियों में बुध, शुक्र एवं गुरु तथा चंद्र की स्थितियां देखने योग्य हंै। ये एक दूसरे से केंद्रस्थ या त्रिकोणस्थ हैं या दृष्टि या युति संबंध बनाये हुए हैं। पूर्व राष्ट्रपति डाॅ. अब्दुल कलाम का लग्न धनु है। उन्हें शनि ने अन्वेषक बनाया और देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचाया। वैसे भी कर्क एवं धनु लग्न के जातक अपने क्षेत्र में सर्वाधिक सफल होते हैं। धनु एवं मीन राशियों को छोड़कर शेष राशियों के लिए शनि केंदे्रश या त्रिकोणेश होता है। इस स्थिति में यदि उसका संबंध किसी अन्य केंद्रेश या त्रिकोणेश से हो तो फल अत्यंत शुभ होता है। ऐसे में वह सर्वाधिक प्रगतिदायक बन जाता है। उसकी दृष्टि यदि किसी अन्य केंद्रेश या त्रिकोणेश के आधिपत्य वाली किसीब राशि पर भी हो तो फल शुभ होता है। ऊपर वर्णित उदाहरण कुंडलियों में शनि की यही स्थिति है। प्रसिद्ध भारतीय ज्योतिषी वराह मिहिर ने अपने गं्रथ वृहद् संहिता में शनि की शुभाशुभता का विस्तार से वर्णन किया है। यह बुध, शुक्र, राहु का मित्र तथा सूर्य, चंद्र और मंगल का शत्रु है। गुरु और केतु के साथ समभाव रखता है। यह तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव में श्रेष्ठ फल देता है। अन्य किसी घर में इसका फल शुभ नहीं होता। यह मृत्यु का कारक ग्रह है। यह मकर राशि में अधिक बली होता है। यह पुष्य, अनुराधा और उŸारा भाद्रपद नक्षत्र का स्वामी है। यह नपंुसक और तामस स्वभाव वाला ग्रह है। इसे कालपुरुष का दुख माना गया है। कालचक्र में शनि कर्म और उसके परिणाम का प्रतीक है। गोचर में यदि यह जन्म या नाम राशि से 12वां हो या जन्म राशि में अथवा उससे दूसरा हो तो उन राशि वालों पर साढ़े साती प्रभावी होती है। जब शनि गोचर में जन्म या नाम राशि से चैथा या 8वां होता है तब यह अवधि ढैया कहलाती है। शनि की साढ़े साती या ढैया व्यक्ति को प्रेरित कर आत्मचिंतन, नैतिकता एवं धार्मिकता की ओर ले जाती है। शनि एक राशि में ढाई वर्ष रहता है। दीर्घायु व्यक्ति के जीवन में शनि की साढ़ेसाती प्रायः तीन बार आती है। साढ़े साती या ढैया का प्रभाव सामान्यतः कार्यक्षेत्र, आर्थिक स्थिति एवं परिवार पर पड़ता है। तृतीय साढ़े साती स्वास्थ्य को अधिक प्रभावित करती है। यह प्रभाव व्यक्ति की कुंडली में शनि की स्थिति के अनुसार शुभ या अशुभ होता है। गोचर में तीसरा, छठा या ग्यारहवां शनि हमेशा शुभ एवं लाभदायी होता है। शनि की साढ़ेसाती से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है। यह हमेशा कष्टदायी नहीं होती है।