आरक्षण का मामला इन दिनों अत्यधिक गर्म है। कोई इसका समर्थन कर रहा है तो कोई विरोध। ज्योतिष में इसका कारण बिल्कुल साफ है। यह बात ज्योतिष के सभी विद्यार्थी जानते हैं कि सूर्य राजशाही का प्रतीक है और शनि प्रजातंत्र तथा निचले तबके, अनुसूचित जातियों, जनजातियों का प्रतिनिधित्व करता है। शनि की राशियां मकर एवं कुंभ तथा सूर्य की राशि सिंह है।
जब-जब शनि का प्रभाव इन राशियों पर पड़ता है तब तब शनि की स्थिति मजबूत होती है। इतिहास में देखें तो सबसे पहले 1918 में मद्रास प्रेसिडेंसी में चुनिंदा जातियों के लिए आरक्षण लागू हुआ। तब शनि सिंह राशि पर था और कुंभ राशि को पूर्ण दृष्टि से देख रहा था। इसके बाद 1935 में पूना समझौते के बाद विधायिका में सीटों का आरक्षण दिया गया। उस समय शनि कुंभ राशि में था तथा सिंह राशि को पूर्ण दृष्टि से देख रहा था।
फिर 1979-80 में मंडल आयोग ने अन्य पिछड़ी जातियों के आरक्षण पर तत्कालीन गृह मंत्री बूटा सिंह को रिपोर्ट दी। उस समय भी शनि सिंह राशि पर विद्यमान था तथा कुंभ राशि को पूर्ण दृष्टि से देख रहा था। 1990 में भारत में वी.पी. सिंह ने जब रिपोर्ट मंजूर की उस समय भी शनि अपनी मकर राशि में था। इसके बाद 1993 में जब केंद्र की नौकरियों में आरक्षण लागू किया गया तब भी शनि कुंभ राशि में विद्यमान था तथा सिंह राशि को पूर्ण दृष्टि से देख रहा था।
अब 2006 में अर्जुन सिंह केंद्रीय विश्व विद्यालय, आइ. आइ एम., आइ. आइटी. आदि में मंडल-2 लागू कर रहे हैं तथा इसी वर्ष 1 नवंबर से शनि सिंह राशि में आ रहा है जहां से वह कुंभ रािश पर दृष्टि डालेगा। शनि का भ्रमण काल हर 30 वर्षों के बाद आता है। यह विशेष बात ज्योतिष के विद्यार्थी ही अच्छी तरह समझ सकते हैं कि जब भी शनि मजबूत होता है तो उपेक्षित लोग मजबूत होते हंै।
यह शनि 1 नवंबर से 2008 तक यहा सिंह राशि में रहेगा, इसलिए कोई भी ताकत आरक्षण को रोक नहीं सकती है, वह लागू होगा ही। क्योंकि यदि 15 अगस्त 1947 का, जिस दिन भारत आजाद हुआ था, अंक देखें तो 1$5$8$1$9$4$7 = 35 अर्थात 5$3 = 8 आठ का अंक आता है जो शनि का अंक है। अतः यहां पर शनि की ही प्रधानता है। इसी कारण गरीबी है, नेताओं की बेईमानी है, बिना ज्ञान वाला व्यक्ति भी बहुत ऊंचा चला जाता है, जातीय संघर्ष है, जनसंख्या अधिक है।
यह सभी शनि के देश के गुण धर्म हैं। और तो और जब सूर्य शनि की मकर राशि में आता है तो अपना तेज खो बैठता है। यदि भारत को एक दिन पहले या एक दिन बाद आजाद किया जाता तो भारत की तस्वीर ही दूसरी होती। विशेष: सूर्य एवं शनि पिता पुत्र हैं, किंतु दोनों में परम शत्रुता है। जहां सूर्य देवताओं का प्रतिनिधित्व करता है वहीं शनि राक्षसी प्रवृत्ति का है।
सूर्य रोशनी है शनि अंधेरा है। जब जब सूर्य बलवान होता है, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य इत्यादि का बोलबाला रहता है। जब शनि बलवान होता है तब शूद्रों का बोलबाला होता है।
नोट: यदि राजशाही का अंत भी देखें तो उन वर्षों में जिनमें राजशाही का अंत हुआ है, शनि की प्रबलता थी और सिंह राशि शनि से पीड़ित थी। 1947 से 1950 के बीच जब भारत में राजशाही का अंत हुआ, उस समय शनि कर्क राशि में था तथा मकर राशि पर उसकी पूर्ण दृष्टि थी।
अब नेपाल में भी ऐसा ही है शनि कर्क पर है और मकर पर, जो शनि की अपनी राशि है, पूर्ण दृष्टि है। उसकी 1919 में रुस में भी यह स्थिति थी। पूर्व ब्रिटेन में भी यही स्थिति थी।