संतान का मोह
संतान का मोह

संतान का मोह  

आभा बंसल
व्यूस : 5667 | जनवरी 2010

संतान सुख मनुष्य की सबसे बड़ी कामना होती है। संतान के प्रति उसका मोह उससे सब कुछ करा लेता है, पर जब उसके इस सुख में बाधा आती है, तो उसके दुख की सीमा नहीं रह जाती। किरण जी ने अपने और अपनी बेटी के परिवार के सुख के लिए क्या कुछ नहीं किया? उन्हें सुख मिला, उनकी बेटी नीरा को भी सुख मिला, लेकिन फिर नीरा को अपनी पहली संतान के सुख से वंचित होना पड़ा। ईश्वर की दया से उसकी गोद फिर हरी हुई। कैसे हुआ यह सब? कैसे उनकी खुशियां छिनीं, कैसे फिर वापस आईं? आइए, जानें... एक पुरानी कहावत है कि साहूकार को मूल से ज्यादा प्यारा ब्याज होता है और वह ब्याज नहीं छोड़ता। इसी प्रकार कहा जाता है कि नाना-नानी और दादा-दादी को अपने बच्चों से ज्यादा प्रिय अपने नाती-नातिन और पोते-पोती होते हैं और वे उन्हें अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करते हैं।

उनका मोह चाहे अपने बच्चों में कम हो पर छोटे नाती या पोते से वे कभी भी मुख नहीं मोड़ पाते। कितने ही ऐसे परिवार हैं, जहां माता-पिता के उनके विवाहित बच्चों से संबंध अच्छे न होने पर भी नाती या पोते के जन्म के बाद संबंध सुधरते देखे गए हैं। हमारे समाज में इन्हीं भावनात्मक संबंधों की मजबूत नींव ने संयुक्त परिवार पद्धति की महत्ता को बनाए रखा है। लेकिन कभी-कभी ग्रह-नक्षत्र ऐसा खेल खेल जाते हैं कि व्यक्ति बेबस हो जाता है और अपने आप से यही सवाल करता है कि ऐसा मेरे साथ ही क्यों हुआ? अभी हाल ही में मेरी मुलाकात किरण जी से हुई। बहुत आकर्षक व्यक्तित्व था उनका। उन्हें देख कर मुझे यही लगा कि वह किसी अच्छे पद पर कार्यरत हैं और अच्छे संपन्न परिवार से हैं। उन्होंने अध्यात्म और ज्योतिष में काफी रुचि दिखाई। मेरे यह पूछने पर कि उनकी यह रुचि कब से है, उनकी आंखें भर आईं और बरबस ही उनकी रुलाई फूट पड़ी। मुझे पहले तो लगा कि शायद मैंने कुछ गलत पूछ लिया है, लेकिन जब उन्हें ढाढ़स बंधाया, तो वह खुल पड़ीं और अपने अतीत में खो गईं। किरण जी का विवाह 32 वर्ष की आयु में हुआ था और वह एक सरकारी बैंक में उच्च अधिकारी के पद पर आसीन थीं। विवाह के तुरंत बाद उनके यहां पुत्री नीरा ने जन्म लिया जिसका लालन-पालन उन्होंने बड़े प्यार से किया। समय सुखपूर्वक गुजर रहा था कि अचानक उनके पति को एक असाध्य रोग हो गया और उनका कुछ वर्ष पश्चात ही स्वर्गवास हो गया। फिर परिवार की सारी जिम्मेदारी किरण जी ने अकेले ही निभाई। नीरा का उन्होंने खास खयाल रखा, उसे पूरे जतन से उच्च शिक्षा दिलाई, सारी सुख-सुविधाएं प्रदान कीं और बड़े होने पर उसका विवाह उसकी पसंद के लड़के मुदित से कर दिया। विवाह के पश्चात नीरा और मुदित आस्ट्रेलिया चले गए और वहीं बस गए। विवाह के पांच वर्ष बीतने पर भी जब नीरा गर्भवती नहीं हुई, तो उन्होंने उसका कृत्रिम गर्भाधान कराया और उस पर लाखों का खर्च किया।


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आखिरकार उन्हें अच्छी खबर मिली, और वह फौरन आस्ट्रेलिया गईं और वहां कुछ महीने रह कर नीरा की सेवा की। उनकी खुशी का ठिकाना न रहा, जब प्रतीश ने जन्म लिया। उन्होंने भगवान का लाख-लाख धन्यवाद किया कि प्रभु ने उनकी सुन ली और वह अपने नाती और बेटी तथा दामाद के साथ वापस भारत आ गईं। अब तक प्रतीश सात आठ महीने का हो गया था। वह अत्यंत चपल और समझदार था और घुटनों के बल चलने लगा था। एक दिन उन्हीं के सामने प्रतीश गुब्बारे से खेल रहा था और वह उससे बातें करती हुई उसे खिला रही थीं। तभी अचानक गुब्बारा फूट गया और प्रतीश ने फूटे गुब्बारे का रबड़ अपने मुंह में डाल लिया। उन्होंने फौरन उस रबड़ को निकाल कर दूर फेंक दिया। इसी बीच उनके फोन की घंटी बजी और वह फोन सुनने के लिए गईं, तो उनकी पीठ प्रतीश की तरफ हो गई। प्रतीश को तो मानो काल बुला रहा था। वह फौरन घुटनों के बल चलता हुआ उसी गुब्बारे के टुकड़े के पास पहुंच गया और फौरन उसे निगल लिया। जब किरण जी की नजर उस पर पड़ी तब तक गुब्बारा उसकी सांस की नली में फंस चुका था। उन्होंने बहुत कोशिश की कि वह उसके हलक से निकल जाए पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी और उनके कलेजे के टुकड़े ने उनकी बाहों में ही दम तोड़ दिया। किरण जी तो मानो पागल हो गईं। प्रतीश के पिता, दादा और यहां तक कि उनकी अपनी बेटी ने उन्हें ही प्रतीश की मौत का जिम्मेदार ठहराया और उन पर ऐसे इल्जाम लगाए कि उन्हें लगा कि धरती फट जाए और वह उसमें समा जाएं। उन्हें प्रतीश की मौत का इतना गहरा सदमा लगा कि वह बेहोश हो गईं और कोमा में जाते जाते बचीं। इस हालत में वह लगभग बीस दिन तक अस्पताल में रहीं। उनके अपने माता-पिता ने उनकी देखभाल की - बेटी और दामाद ने तो बात भी नहीं की। किरण जी ने उसके बाद से अपने को सब तरफ से, सब से अलग कर लिया। आज वह बस इतना जानना चाहती हैं कि उनके नाती की मौत का कलंक उन्हें क्यों लगा? उसकी मौत का कारण वह क्यों बनीं? वह हर वक्त प्रभु से यही प्रार्थना करती रहती हैं कि उनकी बेटी की गोद फिर से भर जाए ताकि वह प्रतीश की मौत को कुछ हद तक भूल सकें।

उनकी प्रार्थना प्रभु ने सुन ली और अब उनकी बेटी फिर से गर्भवती है और उनसे बात भी करने लगी है। किरण जी इस बात से अत्यंत खुश हैं कि उसकी सूनी गोद फिर से भरेगी और उसके घर में किलकारियां गूंजेंगी। मेरे यह पूछने पर कि क्या वह आस्ट्रेलिया नहीें जाएंगी, उन्होंने कहा कि वह फिर से अपशकुन नहीं करना चाहतीं। वह तो दूर से ही अपने नाती और बेटी को जी भर के आशीर्वाद देकर खुश हो लेंगी। इस नानी के दर्द को शायद आप समझ सकते हैं। आइए, देखें प्रतीश, नीरा, मुदित और किरण जी की कुंडलियां। प्रतीश के भाग्य के तार इस सभी से जुड़े थे या यों कहें कि प्रतीश के आगमन ने किस तरह से अपने परिवार के अन्य सदस्यों को प्रभावित किया। प्रतीश की कुंडली के अनुसार लग्नेश शनि दुःस्थान अष्टम में केतु के साथ और अष्टमेश सूर्य लग्न में बुध के साथ स्थित है। लग्नेश और अष्टमेश का स्थान परिवर्तन और राहु और शनि की परस्पर दृष्टि प्रतीश की आयु पर प्रश्न चिह्न लगा रही है। कुटुंब भाव में क्रूर ग्रह राहु स्थित है। राहु जिस भाव में बैठता है उस भाव से संबंधित फल देता है और द्वितीय भाव में हो, तो जातक का रिश्तेदारों से अलगाव कराता है।

इस कुंडली में राहु कुटुंब भाव में स्थित है और शनि (क्रूर ग्रह) से दृष्ट भी है। राहु की इस स्थिति ने कुटुंब भाव को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया। लग्न में सूर्य की शत्रु राशि में स्थिति और उस पर मंगल की दृष्टि भी प्रतीश के स्वास्थ्य को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर रही है। शुभ ग्रह शुक्र और गुरु की द्वादश भाव में स्थिति भी शुभ नहीं है। मृत्यु के समय 22 अक्तूबर, 2008 को लग्नेश शनि अष्टम भाव में सिंह राशि पर जन्मकुंडली में जन्मकालिक शनि के ऊपर गोचर कर रहा था और साथ ही गोचरस्थ मंगल व नीच राश्स्थि सूर्य को तृतीय दृष्टि से देख रहा था। नीरा की कुंडली के अनुसार अष्टमेश चंद्र की लग्न में स्थिति, पंचमेश (संतान भाव के स्वामी) मंगल की द्वादश भाव में स्थिति और उस पर शनि व राहु की दृष्टि और राहु की अष्टम भाव में स्थिति तथा कुटुंब भाव पर उसकी दृष्टि संतान के लिए शुभ नहीं है। कुटुंब भाव कालसर्प योग से भी ग्रस्त है। पंचम भाव पर नीच राशि स्थित सूर्य व वक्री बुध की दृष्टि भी है और एकादश भाव पाप कत्र्तरी योग से भी पीड़ित है। नवांश कुंडली में भी पंचम भाव में राहु स्थित है। फलस्वरूप संतानोत्पत्ति की क्षमता भी प्रभावित हुई है। नीरा की कुंडली में चूंकि अष्टमेश चंद्र भी लग्न में स्थित है, इसलिए सभी ग्रह लग्न तथा चंद्र दोनों से ही प्रतिकूल प्रभाव डाल रहे हैं। सप्तमेश बुध व भाग्येश सूर्य अपनी नीच राशि में पाप कत्र्तरी योग में हैं, इसलिए उसके वैवाहिक जीवन में भी कुछ उथल-पुथल के संकेत मिल रहे हैं। साथ ही 22 अक्तूबर, 2008 को, जिस दिन प्रतीश की मृत्यु हुई, नीरा पर सूर्य की दशा में गुरु की अंतर्दशा प्रभावी थी। सूर्य अपनी नीच राशि में ही जन्मकालिक सूर्य के ऊपर गोचर कर रहा था।


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गोचर में पंचमेश मंगल सूर्य के साथ तुला राशि में स्थित था। मंगल स्वयं गोचर के शनि से दृष्ट था और नीरा के पंचम भाव को पूर्ण दृष्टि से देख रहा था। इन सारे प्रतिकूल योगों के फलस्वरूप नीरा को पुत्र की मृत्यु का सदमा झेलना पड़ा। मुदित की कुंडली में पंचमेश बुध षष्ठ भाव में मंगल और सूर्य के साथ स्थित है। सप्तम स्थान में चंद्र, राहु व पूर्ण अस्त शुक्र अपनी शत्रु राशि में स्थित हैं। इस कुंडली में भी शनि कुटुंब भाव में स्थित है। किरण जी की कुंडली के अनुसार शुक्र में राहु की अंतर्दशा चल रही है। राहु सूर्य व अस्त बुध के साथ अष्टम भाव में स्थित है। प्रतीश की मृत्यु के समय राहु पंचम भाव में और शनि द्वादश में अष्टमेश मंगल के ऊपर गोचर कर रहे थे और गोचर के द्वादशेश सूर्य को भी तृतीय दृष्टि से देख रहे थे। यहां भी कुटुंब भाव में गोचरस्थ सूर्य नीच राशि में स्थित है, जिसे अष्टम भाव से राहु, सूर्य व बुध देख रहे हैं।

स्पष्ट है कि प्रत्येक कुंडली में कुटुंब भाव प्रतिकूल रूप से प्रभावित है और हर कुंडली में राहु, सूर्य, मंगल तथा शनि की क्रूर दृष्टि कुटुंब भाव को प्रभावित कर उस भाव से संबंधित समस्या की ओर स्पष्ट संकेत कर रहे हैं। किरण जी तो दुर्भाग्यवश इस दुखद घटना की साक्षी बन गईं अन्यथा प्रतीश और नीरा की कुंडली में इस दुखद घटना के घटने के प्रबल संकेत मिल रहे हैं। प्रतीश की कुंडली का अष्टमेश व लग्नेश का स्थान परिवर्तन योग यह दर्शाता है कि उसकी कुंडली अत्यधिक नकारात्मक ऊर्जाओं से युक्त है। यही कारण है कि वह अपनी मृत्यु के बाद समस्त परिवार के झगड़े, कलह और शोक का कारण बना। किरण जी की जन्मपत्री में ऐसा कोई योग नहीं है, जिसके कारण उन्हें अपने नाती की मृत्यु के कलंक का दंश झेलना पड़े। उनकी कुंडली के द्वादश भाव में महान अकारक मंगल अष्टम व अष्टम से अष्टम भाव का स्वामी हो कर स्थित है जिसके ऊपर शनि का अशुभ भाव में गोचर यह दुखद परिणाम लेकर आया। आइए, अब किरण जी के अन्य प्रश्नों पर विचार करें। अब किरण जी इस बात को लेकर चिंतित हैं कि नीरा की भावी संतान को कोई दोष तो नहीं है?

वह मातृत्व सुख भोग पाएगी या नहीं? यद्यपि नीरा की कुंडली में कुछ ग्रहों की प्रतिकूल स्थिति के कारण उसकी प्रथम संतान की हानि हुई, लेकिन संतान के कारक गुरु का लग्नेश होकर बली होना इस बार संतान सुख की अभिवृद्धि करेगा। शनि व गुरु का गोचरीय प्रभाव आने वाले समय में आने वाली संतान की रक्षा निश्चित रूप से करेगा। मुदित की कुंडली में भी संतान सुख के पूर्ण योग बने हुए हैं। संतान का कारक गुरु केंद्र में है, लग्नेश व शुभ ग्रह गुरु और शुक्र केंद्र में हैं तथा भाग्येश व कर्मेश शनि पर गुरु की पूर्ण दृष्टि है। ये सारे योग नीरा को भाग्यशाली संतान देंगे।



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