जमाने में कहां टूटी हुई तस्वीर बनती है। तेरे दरबार में बिगड़ी हुई तकदीर बनती है।।
साईं जीवन परिचय
विश्व को ‘सबका मालिक एक’ का उपदेश देने वाले चमत्कारी संत साईं बाबा के जन्म स्थान व तारीख के बारे में कुछ भी प्रमाण उपलब्ध नहीं है। परंतु कुछ लोगों के मतानुसार वे 1835 या 1838 में पैदा हुए थे। कुछ कहते हैं कि ये रामनवमी को पैदा हुए हैं तो कुछ श्राद्धपक्ष की अमावस्या और कुछ लोग फाल्गुन, कुछ चैत्र तो कुछ आश्विन मास को इनका जन्म मास मानते हैं। परंतु अधिसंख्य मान्यता अनुसार इनका जन्म 28 सितंबर 1838 को महाराष्ट्र के पाथरी गांव में हुआ था। 15 अक्तूबर 1918 को इन्होंने महासमाधि ली। इनकी जीवन कथा के लेखक श्री नरसिम्हा स्वामी जी के अनुसार ये एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे।
स्वयं साईं बाबा ने ऐसा कहा था कि उनके माता-पिता ब्राह्मण थे और उन्होंने उन्हें उनका पालन पोषण करने के लिए एक फकीर को दे दिया था। इसलिए ये एक मुस्लिम वातावरण में पले बढ़े। यही कारण है कि साईं बाबा के व्यक्तित्व में यह संदेह बना रहता है कि वे मुस्लिम थे या हिंदू। ऐसा भी माना जाता है कि साईं बाबा झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की सेना में 1857 की लड़ाई में साथ रहे थे।
साईं बाबा एक वेदपाठी ब्राह्मण की संतान थे। इसलिए उनकी पढ़ाई की शुरुआत घर से वेदाध्ययन से हुई। बाद में जब पाथरी के गुरुकुल में इन्होंने अध्ययन किया तो कुशाग्र बुद्धि साईं बाबा केवल 7-8 वर्ष की अवस्था में ही अपने गुरुकुल के गुरु से शास्त्रार्थ किया करते थे। जब इनके माता-पिता ने इन्हें किसी फकीर को दे दिया था तो मुस्लिम फकीर के संग में आने के पश्चात इन्होंने कुरान को मुखाग्र कर लिया था। सिरा, सुन्ना, हदीस, फक्का, शरीयत तारिखान को भी याद कर लिया। इस्लाम की इन धार्मिक शिक्षाओं में वे पक्के हो गए, तब उनकी उम्र थी मात्र 12-13 वर्ष।
इस प्रकार छोटी अवस्था में ही इन्होंने इस्लाम और सूफीवाद के रहस्यों को भी जान लिया परंतु भीतर से ये पक्के वेदांती ही रहे। इन पर धर्म परिवर्तन करने का भी दबाव पड़ा परंतु ये धर्म परिवर्तन के कट्टर विरोधी थे। जब वे लगभग 20 वर्ष के थे तो सन् 1858 में पुनः शिरडी लौट आए थे और तभी से उन्होंने घुटनों तक लंबा कुर्ता पहनना शुरू कर दिया था। इस प्रकार की पोशाक के कारण भी लोग बाबा को मुस्लिम समझते थे और आज भी ऐसा ही सोचते हैं। कहते हैं चार से पांच वर्ष तक शिरडी के जंगलों में एक नीम के वृक्ष के नीचे बैठ कर बाबा रोजाना ध्यान लगाया करते थे।
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साईं के चमत्कार
उनके जीवन से जुड़ी अनेक कहानियां हैं जहां पर उन्होंने चमत्कार दिखाकर भक्तों को अचंभित कर दिया। कहते हैं बाबा को मंदिर व मस्जिद में दीए जलाने का चाव था। इसके लिए वे दुकानदारों से तेल मांगा करते थे। रोज-रोज तेल देने से थककर दुकानदारों ने एक दिन कह दिया कि तेल खत्म हो गया है। बाबा बिना तेल लिए वापिस आ गए और तेल के अभाव में दीयों में पानी भर दिया। दीपक जलाए तो सभी जल उठे और देर रात तक जलते रहे। उनकी इस करनी को देखकर दुकानदार बहुत शर्मिंदा हुए।
इसी प्रकार एक बार साईं बाबा ने अपने जन्मदिवस पर लोगों को रामनवमी का उत्सव मनाने का आग्रह किया। उत्सव में आयोजकों को पानी की कमी महसूस हुई। बाबा ने प्रसाद दिया और उसे कुएं में डालने को कहा। प्रसाद डालते ही कुआं पानी से भर गया और बाबा का जन्म दिवसोत्सव निर्विघ्न संपन्न हो गया। एक बार इनके भक्त ने बाबा से गोदावरी नदी में स्नान की इजाजत मांगी। बाबा ने कहा कोई आवश्यकता नहीं है गोदावरी मेरे पैरों तले है। उन्होंने श्रद्धालु भक्त को बुलाया और कहा मेरे पैर के नीचे अपने हाथ रखो और तभी जोरों से वहां से पानी निकलना शुरू हो गया।
साईं बाबा की जीवन कथा से अन्य अनेकों चमत्कार जुड़े हुए हैं जिनमें एक साथ दो स्थानों पर उपस्थित होना, लोगों के मस्तिष्क को पढ़ना, शरीर को जमीन से ऊपर उठाना, हवा में कुछ भी पदार्थ पैदा कर देना, इच्छानुसार समाधिस्थ हो जाना, शरीर के अंग व आंतें बाहर निकालकर पुनः वापस लगा देना, मरणासन्न रोगी को स्वस्थ कर देना, भक्तों की शारीरिक और मानसिक तकलीफों को अपने ऊपर ले लेना, गिरती हुई मस्जिद को रोककर लोगों को चमत्कारी ढंग से बचा लेना आदि प्रमुख हैं।
शिक्षाएं
बाबा का एक ही कहना था कि ‘‘सबका मालिक एक’’ जो कि उनके सभी धर्मों में अटूट विश्वास को दर्शाता है। वे मुस्लिम को कुरान और हिंदू को भगवद्गीता व रामायण पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते थे। दान में उनका दृढ़ विश्वास था। उनका मानना था कि यदि भूखे को खाना, प्यासे को पानी व नंगे को कपड़ा दें व यात्री को आराम करने का स्थान दें तो भगवान प्रसन्न होते हैं।
साईं बाबा ने हिंदू व मुस्लिम धर्म ग्रंथों का अध्ययन किया। उन्होंने अद्वैत वेदान्त के आधार पर धर्म ग्रंथों का विवेचन किया। उनके दर्शन में भक्ति के भी अंश पाए जाते हैं। वे भक्ति योग, ज्ञान योग व कर्मयोग तीनों से प्रभावित थे। वे धर्म की कट्टरपंथी विचारधारा को नकारते थे। बाबा अपने भक्तों को ईश्वर के नाम का कीर्तन, भजन व धर्मग्रंथों का अध्ययन करने की सलाह देते थे।
साईं बाबा अपने भक्तों को श्रद्धा (गुरु के प्रति भक्ति भाव) व सबूरी (प्रेम से धैर्य रखना) का पाठ पढ़ाते थे।
साईं बाबा के बारे में पढ़ने से पता चलता है कि वे अलौकिक संत व विद्वान थे जो अपनी शक्तियों से दीन दुखियों के कष्टों का निवारण कर देते थे। उनकी शक्तियों के कारण ही उनके श्रद्धालु उन्हें भगवान शिव का अवतार मानते थे। वे अवश्य ही एक धर्मनिरपेक्ष के रूप में लोकप्रिय व प्रतिष्ठित थे। उनकी शिक्षाओं में ‘‘सबका मालिक एक’’ में सर्वधर्म समभाव की झलक मिलती है। यदि आज के युग में इस शिक्षा को सच्चे रूप में ग्रहण कर लिया जाए तो अवश्य ही धार्मिक असहिष्णुता की समस्या समाप्त हो सकती है और समाज में भाईचारे की स्थापना हो सकती है।
साईं बाबा के ग्यारह विश्वप्रसिद्ध वचन
- जो शिरडी आएगा उसका कभी पतन नहीं होगा।
- जो मेरी समाधि पर आएगा उसके सभी दुख दर्द समाप्त हो जाएंगे।
- चाहे मैं इस शरीर में न रहूं परंतु मैं अपने भक्तों की सदा सर्वदा रक्षा करता रहूंगा।
- मुझमें विश्वास रखो आपकी प्रार्थना स्वीकार होगी।
- मुझे सदा जीवित जानो और इसे अनुभव करो।
- मेरी शरण में आने वाला खाली हाथ नहीं जाता।
- जो मुझे जिस रूप में भजता है मैं उसे उसी रूप में प्राप्त होता हूं।
- मैं अपने भक्तों का बोझ सदा स्वयं उठाता हूं।
- जो मेरे द्वार पर आता है वह कभी खाली हाथ नहीं जाता।
- जो मेरे प्रति समर्पित हो जाएगा मैं उसका हमेशा ऋणी रहूंगा।
- वह भक्त सर्वदा धन्य है जिसकी मुझमें अनन्य भक्ति है।
।।श्रद्धा सबूरी।।
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