विवाह व वैवाहिक जीवन में ज्योतिष की भूमिका
विवाह व वैवाहिक जीवन में ज्योतिष की भूमिका

विवाह व वैवाहिक जीवन में ज्योतिष की भूमिका  

रज्जन प्रसाद पटेल
व्यूस : 6302 | अप्रैल 2016
विवाह व वैवाहिक जीवन के मुख्य कारक ग्रह शुक्र-शुक्र ग्रह, प्रेम, विवाह, संगीत, वैवाहिक सुख, वैवाहेत्तर सबंध, भौतिक सुख और सेक्स अंगांे का कारक होता है अतः प्रेम विवाह या विवाह, दाम्पत्य सुख, प्रमेह, वीर्य कमी या शुक्राणुओं में कमी, संभोग में अक्षमता या अति संभोग से उत्पन्न दुर्बलता, शीघ्रपतन, काम ज्वर, कामांधत्व, यूटरस व ओवरी में समस्या, स्त्री जन्य रोग, मधुमेह, शीत व वात रोग आदि के बारे में जानकारी शुक्र के शुभाशुभ प्रभाव से प्राप्त होती है। चारुर्दीर्घभुजः पृथूरुवदनः शुक्राधिकः कांतिवान्, क्रष्णाकुंचितसूक्ष्मलम्बितकचो दूर्वाअंकुरष्यामलः। क ा म ी वातकफात्मकोअतिसुभगश्चित्राम्रो राजसो, लीलावानमतिमानिवषालनयनः स्थूलांदेशः।।( सारावली) लम्बी भुजाओं से युक्त, सुन्दर, विशाल वक्ष और मुख, वीर्याधिक, कान्तिमान, काले घुंघराले लटके हुये केश, दूर्वा के अंकुर के समान श्यामल वर्ण, कामी, वात और कफ प्रकृति, अत्यंत भाग्यशाली, विचित्र वर्ण के वस्त्र, रजोगुणी, केलि क्रिया में पटु, बड़े नेत्र तथा स्थूल स्कंद वाला शुक्र है। जन्मकुंडली में अशुभ या पीड़ित शुक्र: गुप्तेन्द्रिय संबंधी रोग, स्त्रियों में जननेंन्द्रिय संबंधी रोग, गर्भाशय, स्तन रोग, मूत्राशय, गर्भाशय रोग, स्त्रियों का बंधत्व, स्त्री या पुरुषों में कामेच्छा में कमी, केतु, मंगल, राहु से पीड़ित होने पर अत्यध् िाक कामेच्छा, हिस्टीरिया आदि रोगों की संभावना होती है। सौम्य कान्तिविलोचनो मधुरवाग्गौरः कृशंगो युवा, प्रांशुः सूक्ष्मनिकुंचितकचः प्राज्ञो मृदुः सात्विकः। चारुर्वातकफात्मकः प्रियसखोरक्त्तैकसारो घृणी, वृद्धस्त्रीषु रतश्चलोअतिशुगः शुभ्राम्बरश्चन्द्रमाः।। (सारावली ) चंद्र- सौम्य, सुन्दर नेत्र, मृदुभाषी, कृशगात्र, युवा, लम्बा, छोटे, घुंघराले केश, विवेकी, मृदुस्वभाव, सात्विक वृत्ति वाला, मनोहर, वात कफ प्रधान प्रकृति, मित्रों का प्रेमी, पुष्ट रक्त, वाला, चमकीला, वृद्धा से प्रेम करने वाला और श्वेत वस्त्र धारण करने वाला चन्द्रमा है। इसके अतिरिक्त वायव्य दिशा का स्वामी, स्त्री स्वभाव, श्वेत वर्ण और जलीय ग्रह है। वात श्लेष्मा इसकी धातु और रक्त व मन का स्वामी है। माता, स्त्री (मत्तांतर से), मन, चित्त, जल, कल्पना, दया, संपत्ति का कारक है। जन्मकुंडली में अशुभ या पीड़ित चन्द्र- मानसिक रोग जैसे- भय, शंकालु प्रवृत्ति, आत्मविश्वाश की कमी, निराशा, अवसाद, एकाकीपन, कामेच्छा में कमी, निद्रा रोग, मानसिक रोग, मनो रोग, अनिद्रा, भय, सर्दी, निमोनिया, शीत व कफ समस्या, स्त्रीरोग, उदर रोग व व्यर्थ भ्रमण, अस्थिरता, व्यग्रता, महिलायों में मासिक स्राव की समस्या, चिड़चिड़ापन आदि रोग देता है। क्रूरेक्षणस्तरुणर्मूत्तिरुदारशीलः, पित्तात्मकः सुचपलः कृशमध्यदेशः। संरक्तगौररुचिरावयवः प्रतापी, कामीतमोगुणरतस्तु धराकुमार। क्रूर दृष्टि, तरुण, उदार, पित्त प्रकृति, चपल, शरीर का मध्य भाग अर्थात दुर्बल, सुन्दर रक्ताभ गौर वर्ण, प्रतापी, कामी, तथा तमोगुणी- ऐसा मंगल का स्वरुप है। मंगल - मंगल दक्षिण दिशा का स्वामी, पुरुष जाति, साहसी, निडर, पति (मतान्तर से), पित्त प्रकृति, रक्त वर्ण व अग्नि तत्व प्रधान होता है। इस ग्रह को तेज, पापी, क्रोधी व कूर ग्रह माना जाता है जबकि शुभ मंगल धैर्य, दूसरों की मदद करने वाला, खेल प्रिय, साहस, क्रोध और दुस्साहस का कारक होता है। राहु-राहु ग्रह नैर्ऋत्य दिशा का स्वामी, काला रंग, राजनीति, कूटनीति, झूठ, छल-कपट का कारक, मनोरोग देने वाला, अस्थिरता, नीच-उच्च का विचार न करने वाला होता है एवं जिस ग्रह के साथ या भाव में रहता उसी के समान फल देने वाला होता है। कामास्थे रिपुवित्त लग्नपयुते पापे पर स्त्री रतः। पापारतिकलत्तपा नवमगाः कामा तुरो जायते।।(जातक पारिजात) कोई पाप ग्रह षष्ठेश, धनेश और लग्नेश से युक्त होकर सप्तम भाव में हो तो व्यक्ति परस्त्रीगामी होता है। यदि पाप ग्रहों के साथ षष्ठेश और सप्तमेश नवम भाव में हो तो व्यक्ति कामातुर होता है। कलत्र स्थानगे भौमे शुक्रे जमित्रगे शनौ। लग्नेशे रन्ध्र राशिस्थे कलत्र त्रयवान भवेत। (पा.हो.शा.) सातवें भाव में भौम, शुक्र हों, और लग्नेश आठवें भाव में हो और अशुभ प्रभाव में हो तो तीन स्त्रियाँ होती हैं या तीन स्त्रियों से सम्बन्ध होतें है एवं स्त्री की जन्मपत्री में इस प्रकार के योग होने पर होने पर तीन शादियाँ या सम्बन्ध होते हैं। वित्ते पापबहुत्वे तु कलत्रे व तथा विधे। तदीशे पाप संद्रस्टे कलत्र त्रय भाग भागभवेत।।(जातक पारिजात) धन स्थान में पाप ग्रह या उनकी दृष्टि, सप्तमेश पाप युक्त और शत्रु स्थान में केतु हो तो जातक या जातिका की तीन शादियाँ या तीन सम्बन्ध की सम्भावना होती है। प्रेम विवाह योग 1. बारहवें के स्वामी और द्वितीयेश का आपस में राशि परिवर्तन योग। 2. पंचमेश व सप्तमेश का राशि परिवर्तन योग अर्थात पंचम भाव (प्रेम भाव ) के स्वामी, सप्तम भाव (विवाह भाव) में और सप्तम भाव के स्वामी पंचम भाव में स्थित हो। 3. पंचमेश व सप्तमेश का युति सम्बन्ध योग अर्थात पंचम भाव (प्रेम भाव ) के स्वामी, सप्तम भाव (विवाह भाव) के स्वामी किसी भी भाव में एक साथ स्थित हो। 4. दूसरे,पांचवें,सातवें,तथा बारहवें भाव के स्वामियों का लग्नेश से युति या दृष्टि सम्बन्ध होने पर। 5. द्वितीय भाव पाप प्रभाव में हो, शुक्र राहु या शनि के साथ स्थित हो तथा सप्तमेश का सम्बन्ध शुक्र, चन्द्र और लग्न युति या दृष्टि से हो तो प्रेम विवाह की सम्भावना होती है। प्रेम का रोग या प्रसंग जातक या जातिका को किसी भी उम्र में हो सकता है लेकिन इसकी सम्भावना 16 वर्ष से 30 वर्ष के मध्य अधिक होती है क्योंकि उक्त उम्र में मंगल और शुक्र ग्रहों का प्रभाव सबसे अधिक होता है। लेकिन वर्तमान समय में 40, 50, 60, 70 वर्ष की उम्र में भी प्रेम सम्बन्ध के बहुत उदहारण सुनने में आ रहे हैं, ये सब ग्रहों की स्थिति और वातावरण पर निर्भर रहता है। इस प्रकार जन्मकुंडली में ग्रहों की स्थिति, ग्रहों की दशाओं एवं अन्य सामाजिक, स्थानिक वातावरण व अन्य परिस्थितियां भी प्रेम प्रसंग या अतिरिक्त शारीरिक सम्बन्ध के लिए उत्तरदायी होती हैं। लेकिन इस विषय से सम्बंधित अनेक प्रकार के योग ज्योतिष शास्त्र में वर्णित हैं। उक्त योग प्रबल हों व दशाओं का प्रभाव हो तो प्रेम, विवाह में परिणत हो जाता है, नहीं तो प्रेम अधूरा ही रह जाता है। जैसे यदि गुरु, बुध व चन्द्र सप्तम में हों और पाप प्रभाव में हों तो एक से अधिक शारीरिक संबंध की सम्भावना होती है। यदि शुक्र शत्रु भाव में शनि राहु या मंगल से पीड़ित हो और शुभ ग्रहों का प्रभाव न हो तो स्त्री या पुरुष का अन्य से सम्बन्ध हो सकता है। सप्तमेशे तनौ चास्ते परजायाशु लम्पटह। (वृहत पराशर ) अर्थात सप्तमेश लग्न या सप्तम भाव में हो एवं अन्य अशुभ प्रभाव भी हों तो जातक पर स्त्री में आसक्त होता है। द्यूनेशे नवमे वित्ते नानास्त्रीभिः समागतः। (वृहत पराशर ) अर्थात सप्तमेश, नवम या दूसरे भाव में अशुभ प्रभाव हो .तो जातक के अनेक स्त्रियों से सम्बन्ध होते हैं। यदि मंगल और शुक्र की परस्पर युति हो या दृष्टि संबध हो तथा तीसरे या चैथे भाव में राहु हो एवं अन्य अशुभ प्रभाव भी हों तो तब जातक या जातिका के पड़ोस या मकान के आसपास प्रेम या शारीरिक सम्बन्ध हो सकते हैं। यदि शुक्र और मंगल की युति या दृष्टि दशम भाव या दशमेश से हो तो, सप्तम भाव में द्विस्वभाव राशि हो, एवं अन्य अशुभ प्रभाव भी हों तो जातक जातिका के व्यवसाय या नौकरी स्थल पर प्रेम संबध या जीवनसाथी के अतिरिक्त प्रेम सम्बन्ध हो सकते हैं। यदि चन्द्र से दसवें स्थान में शुक्र हो और शुक्र से दसवें स्थान में शनि हो एवं अन्य अशुभ प्रभाव भी हों तो जातक या जातिका के अपने से निम्न बाॅस व कर्मचारी, मालिक व नौकरानी, मालकिन व नौकर से प्रेम या शारीरिक सम्बन्ध हो सकते हैं। एक से अधिक प्रेम संबंध और बहु विवाह पर जलवायु, वातावरण और अन्य कारको का प्रभाव उक्त विषय पर विश्व स्तर पर विचार जैसे पश्चिमी देशों में सबसे अधिक प्रेम संबंध, प्रेम विवाह एवं बहु विवाह का प्रचलन है जिसका कारण पश्चिम दिशा के कारण तुला राशि जिसका स्वामी शुक्र होता है एवं शीत जलवायु अर्थात चन्द्र, मांस का अधिक प्रयोग अर्थात मंगल एवं शराब का प्रयोग अर्थात राहु ग्रह का प्रभाव। भारत में मुंबई भी प्रसिद्ध है। मुंबई महानगर की पश्चिम दिशा अर्थात तुला राशि और समुद्र का प्रभाव अर्थात चन्द्र, नॉनवेज अर्थात मंगल एवं शराब अर्थात राहु जैसे ग्रहों की ऊर्जाओं की अधिकता। विवाह में बाधक ज्योतिषीय योग सप्तमेश और द्वितीयेश षष्ठ भाव में, सप्तम भाव पर शनि की नीच दृष्टि व षष्ठेश की सप्तम भाव पर दृष्टि, केंद्र में शुभ प्रभाव की कमी हो तो विवाह में बहुत बाधा होती है, कभी-कभी विवाह होता भी नहीं है। कर्क लग्न हो, लग्न में गुरु, सप्तम भाव व सप्तमेश पीड़ित हो तो विवाह देरी और बहुत परेशानियों के बाद होता है। शुक्र शत्रु राशि में हो, सप्तमेश निर्बल हो तो विवाह काफी देरी से होता है। सप्तमेश वक्री हो, अशुभ शनि की दृष्टि सप्तम भाव और सप्तमेश पर हो तो विवाह बहुत देरी से होता है। सप्तमेश षष्ठ या द्वादश भाव में पाप पीड़ित या अस्त हो तो विवाह में देरी होती है। सप्तम भाव और सप्तमेश पापकर्तरी दोष में हो तो और शुभ प्रभाव की कमी हो तो विवाह में देरी होती है। दाम्पत्य जीवन में क्लेश और ज्योतिषीय योग यदि शुक्र सप्तमेश हो, पाप ग्रहों के साथ हो अथवा दृष्ट हो या शुक्र नीच व शत्रु नवांश में हो तो उस जातक की पत्नी कठोर चित्त वाली, कुमार्गिनी होती है, जिससे दाम्पत्य जीवन में कलह होती है। सप्तम भाव, सप्तमेश और द्वितीय भाव पर क्रूर ग्रहों का प्रभाव हो तो वैवाहिक जीवन में क्लेश पैदा होता है। सप्तम और अष्टम भाव में गर्म ग्रह हो और पाप प्रभाव हो तो वैवाहिक जीवन में कड़वाहट होती है। लग्न और नवम भाव पर शनि का अशुभ प्रभाव, पंचम भाव, भावेश, शुक्र और मंगल के कमजोर होने से जातक या जातिका में काम वासना में कमी होती है, जो कि दाम्पत्य जीवन में दूरियां पैदा करता है। सप्तम भाव और सप्तमेश पर शनि और बुध का अशुभ प्रभाव, साथ में अन्य ग्रह भी कमजोर हों तो पुरुष में नपुंसकता पैदा करता है जो दाम्पत्य जीवन में कड़वाहट का कारण होता है। लग्नेश व शुक्र कमजोर हो, नवम भाव पर अशुभ शनि का प्रभाव हो तो जातक या जातिका में वैराग्य भाव आ जाता है (अर्थात कमेच्छाओं की कमी)। इस प्रकार का प्रभाव भी दाम्पत्य जीवन में कड़वाहट का कारण होता है एवं इस प्रकार की स्थिति भी विवाहेतर संबंध का कारण होती है जो कि कुछ समय के लिए या अधिक समय के लिए होता है। यह दशाओं पर निर्भर करता है। पति पत्नी की विचारधारा या सोच में अंतर के कारण दाम्पत्य जीवन में कड़वाहट यदि एक जन्मकुंडली में शनि, चन्द्र, गुरु का अधिक प्रभाव हो तो जातक या जातिका में पुराने विचारों की अधिकता होती ै। इसके विपरीत दूसरी जन्मकुंडली में शुक्र, मंगल, चन्द्र का प्रभाव अधिक हो तो आधुनिक विचारों की अधिकता होती है। विचारों व सोच में अंतर के कारण सामंजस्य की कमी रहती है एवं दाम्पत्य जीवन में विवाद प्रारंभ हो जाते हैं। विवाह में बाधा या वैवाहिक जीवन में समस्या के लिए ज्योतिषीय उपचार जातक या जातिका की जन्मकुंडली में किसी भी प्रकार के ग्रह दोष या मकान में वास्तु दोष के कारण निम्न समस्याएं आ सकती हैं: ƒ लड़का या लड़की का पूर्ण उम्र व सुयोग्य होने के बावजूद भी विवाह में देरी होना। ƒ विवाह के बाद पति पत्नी में मनमुटाव या कड़वाहट या तलाक की नौबत आ जाना। ƒ विवाह के बाद पति पत्नी में एक दूसरे से मनमुटाव या एक दूसरे से असंतुष्ट रहना। ƒ दाम्पत्य जीवन में तीसरे व्यक्ति का प्रवेश। ƒ किसी भी लड़का या लड़की के झूठे प्यार के चक्कर में आ जाना, जिससे भविष्य में जीवन तबाह हो जाता है। ƒ कभी- कभी लड़का लड़की सुयोग्य होने के बाद भी प्यार में असफलता या दिक्कत आना। उक्त समस्यायों के समाधान हेतु ज्योतिष एवं भारतीय शाश्त्रों के आधार पर दो प्रकार के उपाय होते हैं। 1. जिनकी जन्मकुंडली उपलब्ध है अतः जन्म कुंडली के आधार पर उपाय पंचम, सप्तम व द्वादश भाव, उक्त भाव व स्वामियों पर जिन अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो उनसे संबन्धित दान करें और मंत्रों का जाप करवायंे, आवश्यक होने पर पंचमेश, सप्तमेश से संबन्धित रत्न, उपरत्न या रुद्राक्ष धारण करें। 2. जिनकी जन्मकुंडली उपलब्ध नहीं है उनके लिए अन्य विभिन्न प्रकार के उपाय जन्मकुंडली में अशुभ ग्रहों के जाप, दान व लड़कियों को पीला पुखराज या सुनहला या मूंगा और लड़कांे को सफेद पुखराज या हीरा या मोती रत्न, उपरत्न धारण करना या शांति मन्त्रों के जाप, उचित विधि से सात्विक आकर्षण मन्त्रों के जाप या यंत्र धारण करना। जैसे - लड़की के शीघ्र विवाह के लिए: मन्त्र- ऊँ ह्रीं कुमाराय नमः स्वाहा। पारद शिवलिंग के सम्मुख सोमवार के दिन 21 माला जाप करें एवं 7 या 21 सोमवार के दिन जाप करने से शीघ्र विवाह के योग बनते हैं। लड़के के शीघ्र विवाह के लिए: मन्त्र: पत्नी मनोरमां देहि मनो वृत्तानु सारणीम। तारणीम दुर्ग संसार सागरस्य कुलदभवाम। प्रत्येक शुक्रवार को पवित्र मन से स्फटिक की माला से 11 माला जाप करें। इस प्रकार से 11 शुक्रवार जाप करें एवं अंतिम शुक्रवार को सौभाग्यवती महिलाओं को यथाशक्ति शौभाग्य सामग्री दान करें। पति वशीकरण मन्त्र: कभी-कभी पतिदेव बाहरी दुनिया (स्त्री) के चक्कर में पड़कर पत्नी व परिवार से दूर होनें लगते है व पारिवारिक जीवन कष्टमय हो जाता है। मन्त्र: ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय त्रिलोकनाथ त्रिपरवाहनाय (पति का नाम) वश्यं कुरु स्वाहा। पत्नी सिद्धयोग में उचित विधि से मन्त्र का जाप कर प्रेमपूर्वक मन्त्र से पान या अन्य खाने योग्य सामान अभिमंत्रित कर पति को खिलाये तो पति-पत्नी में प्रेम में वृद्धि होगी और समस्या का समाधान होगा। पत्नी वशीकरण मन्त्र: आज के भौतिकवादी युग और पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव में पत्नी का भटकना या पत्नी का अन्य के प्रति लगाव होना सामान्य बात हो गई है। मन्त्र: ऊँ चामुंडे जय जय वश्यंकरि (पत्नी का नाम) पति सिद्धयोग व उचित मुहूर्त में उक्त मन्त्र का जाप कर प्रेमपूर्वक मन्त्र से पान या अन्य खाने योग्य सामान अभिमंत्रित कर पत्नी को खिलाये तो पति पत्नी में प्रेम में वृद्धि होगी और समस्या का समाधान होगा।


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