श्वास रोग दमा
श्वास रोग दमा

श्वास रोग दमा  

अविनाश सिंह
व्यूस : 30170 | अकतूबर 2006

श्वास रोग दमा अपने नाम के अनुरूप ही जान पर बन आने वाला रोग है। दमा क्यों होता है? इसके लक्षण क्या हैं? इससे बचने के क्या उपाय है ं?इसकी सही उपचार विधि क्या है? जानने के लिए पढ़िए यह आलेख....

दमा सांस नली का बार-बार होने वाला रोग है। इस रोग में वातावरण में मौजूद विभिन्न उत्तेजक पदार्थ सांस नलियों को संवेदनशील करते रहते हैं जिससे कि वे सिकुड़ जाती हैं और सांस लेने में कठिनाई उत्पन्न हो जाती है।

दमा किस आयु में होता है:

यह रोग किसी भी आयु में हो सकता है। परंतु बच्चों में पांच वर्ष से कम की आयु में यह रोग ज्यादा होता है। कुछ रोगी इससे छुटकारा पा लेते हैं तो कुछ को यह जीवन पर्यंत सताता रहता है।

इस दशक में दमा के रोगियों में 75 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हुई है। अकेले अमेरिका में ही करीब 6 प्रतिशत बच्चे दमा रोग से पीड़ित हैं। और शहरों के बच्चों में तो यह रोग करीब 40 प्रतिशत तक पाया गया है। बड़ों में यह रोग स्त्री व पुरुष दोनों को बराबर होता है।

वंश दर वंश:

अगर मां या पिता में से किसी एक को दमा रोग हो तो बच्चांे को दमा का खतरा 25 प्रतिशत और अगर दोनों ही रोगी हों तो 50 प्रतिशत तक हो जाता है।

इसके अतिरिक्त यह उस व्यक्ति को भी हो सकता है जो एलर्जी रोग से ग्रस्त हो, उसे जुकाम रहता हो, छींकंे आती हों या साइनस हो। त्वचा में पित्ती या छपाकी के कारण भी यह रोग हो सकता है। विभिन्न प्रकार के चर्म रोग जैसे एक्जिमा, सोरियासिस आदि के साथ भी यह रोग हो सकता है।

जो माताएं गर्भावस्था के दौरान ध¬ूम्रपान करती हैं, उनके बच्चों को दमा रोग का खतरा बहुत अधिक हो जाता है। शहर में रहने वाले बच्चों में तो यह रोग, जैसा कि ऊपर बताया गया है, 40 प्रतिशत तक भी पाया गया है। शहरों में बच्चे धूल में पनपने वाले कीट और तिलचट्टे के मल के संपर्क में आने से गांवों के मुकाबले ज्यादा दमा रोग के शिकार हो जाते है।


जीवन की सभी समस्याओं से मुक्ति प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करें !


दमा के अन्य उत्प्रेरक कारण:

    • वातावरण में तेज गंध, चिरमिराहट करने वाला धुआं, बीड़ी, सिगरेट, वा¬हनों, मिलों आदि से निकलने वाला धुआं या अन्य दूषित वातावरण।
    • ठंडी हवा।
    • सिलाई एंव गलीचे उद्योग से जुड़े लोग।
    • कुछ दवाएं, जैसे, ऐस्पिरिन सल्फा एवं Nsaid आदि। कुछ खास व्यवसायों जैसे पशुपालन या मुर्गी पालन केंद्र में कार्य करने वाले।
    • पालतू जानवर जैसे बिल्ली, कुत्ते अथवा घोड़े इत्यादि।
    • पत्थर तोड़ना, रेत व्यवसाय में कार्य करना।
    • गले में फफंूदी, वायरल या अन्य संक्रमण होना।
    • फूलों के पराग कण
    • शारीरिक या फिर मानसिक तनाव।
    • कुछ खाने की वस्तुएं जैसे- अंडा, मांस, मछली, मदिरा, चायनीज साॅस, सोयाबीन, काजू, दूध एवं दूध से बने पदार्थ, मूंगफली और मूंगफली से बना मक्खन इत्यादि।

दमा रोग में होने वाली रासायनिक क्रिया:

दमा रोग फेफड़े की ऐसी बीमारी है, जिसमें सांस के लेने और छोड़ने में अवरोध से सांस खिंचकर आती है। सांस मांसपेशियों के भरसक प्रयास के बावजूद फेफड़े में स्थित रक्त केपिलेरिज में आॅक्सीजन तथा कार्बनडायआॅक्साइड का समुचित आदान प्रदान नहीं होता। नतीजा होता है सांस का तेज-तेज चलना या दौरा, सांस नली की मांसपेशियों का सिकुड़ना, सांस नली की दीवार में सूजन और बलगम का बनना। शुरू की अवस्था में रोगी को मामूली खांसी या बलगम आने जैसा कोई लक्षण नहीं रहता- खास कर दौरे न होने की अवस्था में। जब रोगी को खांसी नहीं होती उस अवस्था में भी बलगम का बनना चालू रहता है। इस बलगम में जब संक्रमण हो जाता है तब दमा के दौरे पड़ने की आशंका बढ़ जाती है। बिना एलर्जी के दमा में रोग की शुरुआत ए िस ट ा इ ल क ा े ल ी न नामक रसायन का स्राव होने से होती है। इस रसायन की वजह से मास्ट कोशिकाओं से हिस्टामिन नामक रसायन निकलता है। ये मास्ट कोशिकाएं सांस नली की दीवार में मौजूद होती हैं। यही हिस्टामिन सांस नली की मांसपेशी को सिकोड़ते तथा उसमें अधिक बलगम पैदा करते हैं, परिणाम स्वरूप खांसी और खांसी के साथ बलगम उखड़ना जैसे लक्षण उत्पन्न होते हैं।

जिन बच्चों में एलर्जी के उपरांत दमा रोग होता है, उनमें, वातावरण में फैले परागकण, घर में मिट्टी में पनप रहे कीट, डस्टमाइट, तिलचट्टे की टट्टी आदि के सांस नली में प्रवेश करते ही रासायनिक क्रिया शुरू हो जाती है जिसके फलस्वरूप इम्यूनोग्लोब्युलिन ;प्हम् पउउनदवहसवइनसपदेद्ध अत्यधिक मात्रा में उत्पन्न हो जाता है और यही इम्यूनोग्लोब्युलिन सांस नली में मौजूद मास्ट कोशिकाओं से चिपक जाता है। तत्पश्चात हिस्टामिन नामक रसायन का स्राव होता है। यही हिस्टामिन सांस नली की मांसपेशी को सिकोड़ देता है। परिणाम होता है दमा या फिर दमा का दौरा।


अपनी कुंडली में सभी दोष की जानकारी पाएं कम्पलीट दोष रिपोर्ट में


केवल हिस्टामिन ही नहीं, कुछ अन्य रसायन भी देर सबेर इन IgE Immunoglobulins के चिपकने के फलस्वरूप उत्पन्न होते रहते हैं और इनसे बलगम का बनना, सांस नली का अत्यधिक संवेदनशील रहना, बिना रुके चलता रहता है। ये रासायनिक बदलाव, रोगी को बहुत ही मामूली कारण से, जैसे वायरल संक्रमण या मामूली सा मानसिक तनाव या फिर बिना किसी कारण के भी, रोग को बनाए रखते हैं।

कब दौरा पड़ने वाला है इस बात का आभास इन रोगियों को, मिर्गी दौरे के रोगियों की तरह ही हो जाता है। ये लक्षण हैं- पसीना आना, छींकें आना, गले में गुलगुली होना और उत्तेजित हो जाना आदि। जिन्हें एलर्जी रहती है, उन्हें आंखों के चारों तरफ खुजली होती है या फिर गले में धुआं या रस्सी के बंधने जैसा अनुभव होता है।

दमा रोग के लक्षण:

जब मामूली दमा हो तब केवल खांसी ही एकमात्र लक्षण रहता है। या फिर जब बच्चे व्यायाम करें, दौड़ें भ¬ागंे, सीढ़ियां चढ़ंे या ठंडी हवा में जाएं तभी उन्हें खांसी होती है। परंतु जब दमा ज्यादा हो तब सीटियां बजने लगती हैं। सांस काफी खिंचकर आती है। सांस की मांसपेशियां भी काम करने लगती हैं। बार-बार मांसपेशी के अधिक काम करने से छाती दुखने लगती है। बच्चा लेट नहीं पाता है। बैठने या फिर आगे झुककर बैठने से थोड़ा आराम मिलता है।

वयस्क रोगियों की सांस फूलती है या खिंचकर आती है, खासकर सांस के छोड़ने में ज्यादा अवरोध आता है और खांसी रहती है। इस रोग के दौरे ज्यादातर रात के समय ही आते हैं, वैसे ये दौरे कभी भी, कहीं भी पड़ सकते हंै। किसी-किसी रोगी को छाती पर वजन रखे होने जैसा आभास होता है, साथ में सूखी खांसी भी आती है।

यदि दमा रोग का इलाज नहीं किया जाए, तो यह एम्फाइसिमा नामक रोग को जन्म देता है। सबसे छोटी सांस नलियों में न ठीक हो सकने वाली क्षति हो जाती है। चूंकि बराबर ज्यादा हवा फेफड़ों में रहती है और सांस लेने के लिए ज्यादा काम करना पड़ता है, इसलिए छाती अकड़ी हुई, पीपे के आकार ;ठंततमस ेींचमक ब्ीमेजद्ध की बन जाती है और कमर आगे को झुक जाती है।

निदान: दमा का निदान बहुत आसान है। स्टेथोस्कोप ;ैजमजीवेबवचमद्ध को छाती पर रखकर, सांस खींचकर सुनने से सीटी की आवाज सुनाई पड़े ;त्ीवदबीपद्ध तो इसे दमा का लक्षण समझना चाहिए। पलमोनरी फंक्शन जांच कर भी इस रोग का पता लगाया जाता है।

पलमोनरी फंक्शन टेस्ट ;च्नसउव¬दंतल थ्नदबजपवद ज्मेजद्ध: इस जांच से निम्नलिखित बातों का पता लगाया जाता है:

1. कितनी हवा फेफड़े में रह सकती है।

2. कितनी तेजी से मनुष्य हवा को फेफड़ों के अंदर और बाहर ले जा सकता है।

3. कितनी बड़ी सतह से और आसानी से हवा फेफड़ों से रक्त में प्रवेश करती है।

स्पाइरोग्राम या पी एफ टी ;च्थ्ज्द्ध, जाचांे के दौरान एफ वी सी ;थ्टब्द्ध एफ इ वी 1 ;थ्म्ट1द्ध तथा एफ इ वी/ एफ वी सी थ्म्टध्थ्टब्द्ध आदि को मापा जाता है।


अपनी कुंडली में राजयोगों की जानकारी पाएं बृहत कुंडली रिपोर्ट में


जांच के दौरान ही सांस नली खोलने की दवा, सेलब्युटामोल, या टेरबुटा¬लिन देकर इस बात की जांच की जाती है कि सांस नली पूरी तरह खुलती है अथवा नहीं। इससे रोगी को किन-किन दवाओं, इन्हेलर आदि की जरूरत पड़ेगी यह तय किया जाता है।

कुछ लोगों में फेफड़े के आयतन की जांच ;स्नदह अवसनउम जमेजद्ध भी करने की आवश्यकता पड़ सकती है।

पीक फ्लो मापक : पीक फ्लो माप दमा रोगी के लिए ठीक वैसी ही है जैसी कि ब्लड प्रेशर के रोगी के लिए रक्तचाप माप।

जैसे रक्तचाप की माप के बाद ही दवाएं कम, ज्यादा या फिर बदलकर दी जाती हंै, ठीक उसी प्रकार पीक फ्लों माप से भी दवाएं कितनी प्रभावशाली हैं यह तय किया जाता है।

कुछ अन्य कारण जिनके लिए पीक फ्लो माप आवश्यक है।

1. कभी-कभी इसी माप द्वारा ही दमा रोग की पुष्टि की जाती है। केवल एक बार की माप नहीं बल्कि समय-समय पर, प्रतिदिन या प्रति सप्ताह यह माप ली जाती है।

2. इस माप द्वारा किसी खास वातावरण जैसे कार्यालय, रसोई या फिर फैक्टरी में कोई उत्प्रेरक कारण मौजूद है या नहीं इसका पता लगाया जा सकता है।

3. दमा की दवा इन्हेल करने के 10 मिनट बाद पीक फ्लो मापने से दवा पूरी तरह कारगर है या नहीं, यह तय किया जाता है और चिकित्सक को दवा की उचित मात्रा देने या फिर दवा बदलने में आसानी होती है।

4. नियमित रूप से माप करने और विश्लेषण करने से दमा का दौरा पड़ने से बहुत पहले ही इस बात का पता चल जाता है कि दमा का दौरा पड़ने वाला है।

पीक फ्लो माप गुब्बारे को फुलाने जैसा ही आसान है। इसमें मापक में पूरे जोर से तीन बार सांस को छोड़ना होता है, जिस बार सबसे अधिक माप आए वह ही सही माप मानी जाती है।

रोजाना दो से तीन बार इसकी माप ली जानी चाहिए। जब छाती पर बोझ महसूस करें, या गले में धुआं जैसा लगे या कोई एलर्जी करने वाली खाने की वस्तु खाने के बाद अजीब सा लगने लगे तब इस मापक द्वारा माप काफी उपयोगी साबित होती है।

सांस के या दमा के दौरे साधारणतया अल्प समय तक ही रहते हैं, परंतु कभी-कभी कई घंटों अथवा दिनों तक बने रहकर जानलेवा भी साबित हो सकते हंै। ऐसी स्थिति को स्टेटस ऐस्थमेटिक्स कहा जाता है।

दमा के गंभीर एवं जानलेवा लक्षण

      • जब सुनाई पड़ने वाली सीटियां अचानक बंद हो जाएं और रोगी को सांस लेने में कठिनाई बनी रहे।
      • जब गर्दन की मांसपेशियां हर सांस के साथ उभर आएं और साफ-साफ दिखाई पड़ंे।
      • जब दौरे कई घंटों या दिनों तक लगातार चलते रहंे।
      • त्वचा ठंडी पड़ जाए या फिर पसीने से तर हो जाए।
      • रक्त में आॅक्सीजन की कमी से त्वचा पीली या फिर हल्की नीली पड़ जाए।

Book Online 9 Day Durga Saptashati Path with Hawan


ऐसे में क्या करें ?

सबसे उचित तो यह होगा कि नजद¬ीक के किसी योग्य चिकित्सक के पास या फिर नजदीकी अस्पताल में जाकर परामर्श करें और उचित इन्जेक्शन, आॅक्सीजन, दवा इत्यादि लें। ऐसे रोगियों के लिए अधिकतर सांस नली पर प्रभाव करने वाली दवाएं, जिन्हें इन्हेलर के नाम से जाना जाता है, सबसे अधिक कारगर होती हंै।

बच्चों में उपचार के लिए एक छोटी मशीन का उपयोग भी किया जाता है, जिसे नेबुलाइजर कहते हैं। इसमें दवा डालकर उसका धुआं बना कर सांस नली को सामान्य किया जाता है। तीसरे प्रकार का इन्हेलर, जिसे सूखा पाउडर इन्हेलर क्ण्च्ण्प्ण् कहते हैं, भी इन रोगियों के इलाज हेतु इस्तेमाल में लाया जाता है।

दमा रोग से कैसे बचें

दमा रोगियों को निम्नलिखित वस्तुओं से दूर बचा कर रखें:

1. पक्षियों के पंखों से बने तकिये

2. गलीचे

3. धूल पकड़ने वाले पर्दे, फानूस, सोफा, गद्दे इत्यादि।

4. जब घर, कार्यालय, मिल, सड़क पर झाडू लग रहा हो।

5. फूलों के पराग कण

6. खाने की वस्तुओं, जिनसे ऐर्लजी रहती हो।

7 मांस, मदिरा, मछली अंडा, डिब्बाबंद, अन्य ऐसे पदार्थ जो एर्लर्जी करते हों।

8. अत्यधिक शारीरिक तथा मानसिक तनाव।

9. संसाधित खाद्य पदार्थ ;च्तव¬बमेेमक थ्ववकद्ध जैसे फेन, बिस्कुट, पेस्ट्री, केक, नूडल्स, ब्रेड, कार्न फ्लेक्स, बेकरस ओटस इत्यादि।

10. डिब्बा बंद पदार्थ

11. कृत्रिम पेय पदार्थ

12. चाकलेट

13. आइसक्रीम इत्यादि।

14. सिनेमाघरों तथा ऐसी जगहों से जहां पर भीड़ रहती हो।

15. बर्फीला या अधिक ठंडा पानी या फल रस।

16. धूम्रपान न करें न धूम्रपान वाले व्यक्ति के पास बैठें।

क्या-क्या करें

दमा के रोगी निम्नलिखित उपायों से आराम पा सकते हैं।

1. नियमित प्राणायाम


For Immediate Problem Solving and Queries, Talk to Astrologer Now


2. नियमित योगाभ्यास

3. भोजन में दो से तीन प्रकार के फल खाएं। फल रस की अपेक्षा फल खाना श्रेयस्कर रहता है।

4. अदरक का नियमित सेवन अवश्य करें।

5. चाय पीनी हो तो केवल अदरक, गुड़, हरी चायपत्ती, अजवायन और तुलसी के पत्ते वाली पीएं।

6. दिन में दो प्रकार की हरी सब्जी खाएं।

7. रात को पत्ते वाली सब्जियों का साग खाएं। इससे पेट हल्का रहता है और भरपूर पोषक तत्व भी मिलते हैं।

8. खाने में पकाए हुए भोजन की मात्रा धीरे-धीरे 5-10 प्रतिशत प्रतिमाह घटाकर कच्चे तथा अंकुरित भोजन लेना शुरू करें।

9. आधा से एक चम्मच तक अंकुरित मेथी दाना भी लें।

10. निर्धारित दवाएं, इन्हेलर आदि नियमित रूप से लेते रहें।

11. गेहूं की घास या घास का रस 30-50 मि. लि. प्रतिदिन लें।

12. जिन्हें चर्म रोग रहता हो वे 2 ग्राम चिरायता और 2 ग्राम कुटकी पानी में 12-24 घंटे कांच के बर्तन में भिगोकर सुबह खाली पेट पीएं और तत्पश्चात 3-4 घंटे तक कुछ न लें। इसे पीने से पहले बर्फ को जीभ पर रगड़ लें।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.