रेकी चिकित्सा सीमा सोनी दवाओं का अधिकतर लाभ धनी लोगों को हासिल हो रहा है। किंतु आम आदमी के पास इतना धन नहीं है जो डाॅक्टर क बड़े-बड़े बिलों का बोझ उठा सके। इसलिये मानव जाति को एक ऐसी चिकित्सा विधि की जरूरत है जो साधारण, सरल व सस्ती हो। यह चिकित्सा पद्धति (रेकी) भारत की देन हैं। इस पद्धति का उपयोग गौतम बुद्ध, सांई बाबा व अन्य ऋषि मुनियों ने लोगों के रोगों को दूर करने के लिये किया।
इसका उल्लेख अथर्वेद में छठवें श्लोक के छठवें छंद में किया गया है। अथर्वेद का मुख्य प्रति जबलपुर (मप्र. ) के एक लाईब्रेरी में रखा हुआ है। कुछ वर्षों तक यह पद्धति लुप्त हो गई थी। चीन के डाॅ. मेक मिकाऊ सांई ने इस पद्धति को पुर्नजीवित किया। रेकी पद्धति को आधुनिक युग का सबसे बड़ा आविष्कार कहा जा सकता है क्योंकि इस पद्धति से इलाज कराने वाले रोगी को किसी भी प्रकार की कोई भी औषधि, दवाईयां नहीं दी जाती हैं और ना ही कोई परहेज कराया जाता है। यह सिर्फ और सिर्फ प्रकृति से दूर हुए लोगों को फिर से जोड़ने का एक सफल प्रयोग है।
यह एक ऐसी पद्धति है जो तन मन व शरीर को सभी प्रकार के रोगों (शारीरिक, मानसिक) आदि से मुक्त कर स्व में स्थित करती है। रेकी हमारे शरीर में चार तरह से प्रभाव डालती है।
1. शारीरिक (च्ीलेपबंसद्ध)
2. मानसिक (डमदजंसद्ध)
3. भावनात्मक (म्उवजपवदंसद्ध)
4. आध्यात्मिक (ैचपतपजनंसद्ध)
रेकी से हमारे शरीर में प्राण शक्ति बढ़ती है जिससे हम अच्छी विचारधारा के धनी बनते हैं। अगले अंक में हम चर्चा करेंगे कि रेकी से किस तरह की बीमारियों का इलाज संभव है व रेकी हमारे शरीर में किस तरह से काम करते हैं, रेकी का मतलब व उद्देश्य क्या है, रेकी हमारे शरीर को वैज्ञानिक व अध्यात्मिक पद्धति से किस तरह प्रभावित करती है, इस विषय पर हम अगले अंक में चर्चा करेंगे।
जीवन में जरूरत है ज्योतिषीय मार्गदर्शन की? अभी बात करें फ्यूचर पॉइंट ज्योतिषियों से!