रत्न
रत्न

रत्न  

आभा बंसल
व्यूस : 1051 | जून 2004

हर मनुष्य की जन्मपत्री में कोई न कोई ग्रह कमजोर और कुछ ग्रह बली होते हैं और इनके अनुसार ही जातक के भाग्य में परिवर्तन आता रहता है। अशुभ ग्रहों को शुभ बनाना या शुभ ग्रहों को और अधिक शुभ बनाने की मनुष्य की सर्वदा चेष्टा रही है। इसके लिए मनुष्य अनेक उपाय करते हैं, जैसे मंत्र जाप, दान, औषधि स्नान, रत्न धारण, धातु एवं यंत्र धारण, देव दर्शन आदि। रत्न धारण एक महत्वपूर्ण एवं असरदार उपाय है। कब कौन सा रत्न कैसे धारण करें, इस विषय की चर्चा इस अंक में विस्तृत रूप से की जा रही है। सार में, किसी रत्न धारण करने के लिए निम्न सूत्रों का ध्यान रखना चाहिए:

रत्न कौन से हैं और कैसे काम करते हैं

सूर्य से ले कर केतु तक नव ग्रहों के लिए नौ मूल रत्न हैं-सूर्य के लिए माणिक, चंद्र का मोती, मंगल का मूंगा, बुध का पन्ना, गुरु का पुखराज, शुक्र का हीरा, शनि का नीलम, राहु का गोमेद एवं केतु का लहसुनिया। ये रत्न इन ग्रहों से आ रही किरणों को आत्मसात करनें में सक्षम हैं एवं ग्रहों से आ रही किरणों के साथ अनुनाद (resonance) स्थापित कर हमारे शरीर में किरणों के प्रवाह को बढ़ाते हैं। उपरत्न सस्ते होते है एवं उनका अनुनाद रत्नों के अनुनाद के नजदीक ही होता है, लेकिन उसी बारंबारत़ा (frequency) पर नहीं। अतः उपरत्न भी कुछ हद तक वही काम करते हैं, जो रत्न करते हैं। लेकिन अनुनाद ठीक से न होने के कारण इनका असर दस प्रतिशत से अधिक नहीं होता। अतः मूल रत्न ही धारण करने चाहिए।

रत्न को कैसे परखंे

रत्न को आंखों से देख कर ही जाना जा सकता है कि उसमें कोई दरार तो नहीं है। रत्न का पारदर्शी होना एवं उसमें चमक होना उसकी किस्म को दर्शाते हैं। उसका कटाव एक कोण में होना भी आवश्यक है। यदि कटाव ठीक नहीं होगा, तो रत्न रश्मियों को एकत्रित करने में सक्षम नहीं रहेगा।

क्या रत्न प्रभावशाली रहेगा

ग्रह कैसी राशि में स्थित है, यह निर्धारित करता है कि कौन सा उपाय फल देगा। जैसे यदि ग्रह वायु राशि में स्थित हो, तो मंत्रोच्चारण, कथा, पूजा आदि सिद्ध होंगे। ग्रह अग्नि राशि में हो, तो यज्ञ, व्रत आदि, जल राशि में दान, पानी में बहाना, औषधि स्नान आदि एवं पृथ्वी तत्व में रत्न, यंत्र, धातु धारण एवं देव दर्शन आदि। यदि जन्मपत्री में योगकारक ग्रह निर्बल हो, तो रत्न धारण, यंत्र धारण एवं मंत्र द्वारा उपचार करना चाहिए।

यदि मारक ग्रह बली हो, तो उसे वस्तु बहा कर या दान से निर्बल बनाना चाहिए, अन्यथा मंत्रोच्चारण एवं देव दर्शन द्व ारा कारक में परिवर्तित करना चाहिए। ऐसे में रत्न धारण करने से ग्रह का मारक तत्व और उभरेगा। यदि योगकारक ग्रह बली हो, या मारक ग्रह निर्बल हो, तो किसी उपाय की आवश्यकता नहीं है।

कौन से ग्रह का रत्न धारण कर

रत्न ग्रह को बली करने के लिए पहनाया जाता है। किसी ग्रह से संबंधित पीड़ा हरने के लिए, अन्यथा जिस ग्रह की दशा या अंर्तदशा चल रही हो, उस ग्रह का रत्न धारण करना चाहिए। लेकिन यह आवश्यक है कि वह ग्रह जातक की कुंडली में योगकारक हो, मारक न हो। अष्टमेश यदि लग्नेश न हो, तो सर्वदा त्याज्य ही है। योगकारक ग्रह यदि निर्बल हो, तो रत्न अवश्य धारण करना चाहिए।

क्या रत्न हमारे लिए शुभ है

यह जान लेना परम आवश्यक है कि रत्न हमें शुभ फल देगा, या दे रहा है। विशेष रूप से नीलम को आप परख कर ही पहनें। कई बार नग विशेष में कुछ त्रुटि होने के कारण कष्ट झेलने पड़ते हैं। नीलम में यदि कुछ लालपन हो, तो वह खूनी नीलम कहलाता है और दुर्घटना करवा सकता है। अतः रत्न को परखने के लिए अपने हाथ पर बांध लें। यदि आप स्फूर्ति महसूस करते हैं, तो रत्न ठीक है, अन्यथा दूसरा नग देख लें। यदि दो-तीन नग देखने पर भी ठीक नहीं लगता, तो वह रत्न आपको ठीक फल नहीं देगा।

कितने वजन का नग पहन

नग का वजन शरीर के वजन एवं ग्रह की निर्बलता के अनुपात में होना चाहिए। यदि ग्रह अति क्षीण है, तो अधिक वजन का नग पहनना चाहिए। प्रायः सवाया वजन ही शुभ माना जाता है एवं पौन अशुभ। महिलाओं को सवा तीन रत्ती से सवा पांच रत्ती तक एवं पुरुषों को सवा पांच रत्ती से सवा आठ रत्ती तक के नग पहनने चाहिएं। हीरा एक अपवाद है। यह कम वजन एवं कई टुकड़ों में भी हो सकता है।

क्या रत्न का शरीर को छूना आवश्यक है

रत्न का शरीर से छूना अति आवश्यक है, केवल हीरे को छोड़ कर, जो प्रतिबिंब (reflection) से काम करता है, न कि अपवर्तन (refraction) से। रत्न का कोण भी सम होना चाहिए, जो अंगुली को छूए। लाॅकट आदि में भी रत्न इसी प्रकार छूते हुए जड़वाने चाहिए। लेकिन अंगुली रश्मियों को आत्मसात करने में अधिक सक्षम होती है। लाॅकेट में कम से कम दुगुने वजन का रत्न होने से उतना असर होगा, जितना अंगूठी में। अतः रत्न को अंगूठी में पहनना ही श्रेष्ठ है।

किस धातु में रत्न जड़वाएं

स्वर्ण रत्न के लिए उत्तम धातु है। सभी नौ ग्रहों के लिए स्वर्ण का उपयोग शुभ है। हीरे के लिए प्लेटिनम अत्युत्तम है। नीलम तथा गोमेद के लिए अन्य धातु मिश्रित चैदह कैरट का सोना उत्तम है। मोती के लिए चांदी इस्तेमाल की जा सकती है। मूंगे के लिए तांबे की बजाय तांबा मिश्रित स्वर्ण अत्युत्तम है। माणिक, पन्ना, पुखराज तथा लहसुनिया बाईस कैरट सोने में पहनें।

रत्न किस अंगुली एवं हाथ में पहनें

पुरुष को रत्न दाहिने हाथ में एवं स्त्री को बायें हाथ में धारण करना चाहिए। यदि व्यक्ति विशेष बायें हाथ से काम करता है या कोई स्त्री पुरुष की भांति काम-काज करती है, तो भी स्त्री को बायें एवं पुरुष को दायंे हाथ में ही रत्न धारण करना चाहिए। छोटी अंगुली में हीरा एवं पन्ना, अनामिका में माणिक, मोती, मूंगा तथा लहसुनिया, बीच की अंगुली में नीलम तथा गोमेद एवं तर्जनी में पुखराज पहनना उत्तम है। हीरा अनामिका एवं बीच की अंगुली में पहना जा सकता है। पन्ना अनामिका में तथा लहसुनिया छोटी अंगुली में भी पहने जा सकते हैं।


अपनी कुंडली में राजयोगों की जानकारी पाएं बृहत कुंडली रिपोर्ट में


रत्न कब तथा कैसे धारण करें

रत्न को धारण करने के लिए आवश्यक है कि पहली बार पहनते समय शुभ मुहूर्त हो एवं चंद्र बली हो, समय, वार एवं नक्षत्र रत्न के अनुकूल हों। ऐसे समय में रत्न को गंगा जल एवं पंचामृत में धो कर धूप, दीप दिखाकर, ग्रह के मंत्रोच्चारण सहित धारण करना चाहिए। इस प्रकार रत्न का शुभ फल अधिक होता है एवं अशुभ फल में न्यूनता आती है। माणिक रविवार, मोती सोमवार, मूंगा मंगलवार, पन्ना तथा लहसुनिया बुधवार, पुखराज गुरुवार, हीरा शुक्रवार, नीलम और गोमेद शनिवार को धारण करने चाहिए। सभी रत्न प्रातः, नीलम सूर्यास्त से पहले एवं गोमेद सूर्यास्त के बाद धारण करना श्रेष्ठ है।

रत्न कब तक पहनें: कोई भी रत्न तीन साल तक ही पूर्णतया फल देने में सक्षम है। केवल हीरा पूर्ण काल तक पूरे फल देता है। अतः आवश्यक है कि तीन वर्ष बाद हम रत्न बदल लें, या उस रत्न को उतार कर रख दें एवं कुछ साल बाद दोबारा पहनें, या रत्न किसी और को दे दें। यदि आपका वांछित कार्य हो गया हो, या दशा बदल गयी हो, तो भी रत्न उतार देना चाहिए।

किस रत्न के साथ क्या न पहनें

माणिक, मोती, मूंगा, पुखराज के साथ नीलम तथा गोमेद नहीं पहनना चाहिए। हीरा, पन्ना और लहसुनिया के साथ अन्य कोई भी रत्न धारण करने में दोष नहीं है। लेकिन हीरे के साथ माणिक्य, मोती एवं पुखराज को परख कर ही पहनना चाहिए।

रत्न कैसे उतारें

आम तौर पर लोग रत्न को उतारने के लिए समय आदि पर ध्यान नहीं देते हैं। ऐसा नहंीं करना चाहिए। रत्न को उसके वार के दिन ही उतार कर रखना चाहिए। उतार कर उसे गंगा जल में धो कर सुरक्षित स्थान पर रखें एवं उसके बाद उस ग्रह की वस्तुओं का दान करें।

रत्न शकुन

यदि रत्न खो जाए, या चोरी हो जाए, तो समझें कि ग्रह के दोष खत्म हुए। यदि रत्न में दरार पड़ जाए, तो समझें कि ग्रह बहुत प्रभावशाली है। उसकी शांति भी करवाएं। यदि रत्न का रंग फीका पड़े, तो ग्रह का असर शांत हुआ समझें।


To Get Your Personalized Solutions, Talk To An Astrologer Now!




Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.