पृथकताजनक दृष्टिकारी ग्रह और उनके प्रभाव
पृथकताजनक दृष्टिकारी ग्रह और उनके प्रभाव

पृथकताजनक दृष्टिकारी ग्रह और उनके प्रभाव  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 6108 | जुलाई 2008

जन्म कुंडली या प्रश्न कुंडली के अध्ययन के लिए प्रयोग में लाए जाने वाले महत्वपूर्ण सिद्धांतों में से एक हैं, ग्रहों की पृथकताजनक दृष्टि का सिद्धांत। छायात्मजः पंगुदिवाकरेषु खेटद्धयों दिशति यत्र निज प्रभावम्। नुनं पृथकता विषयाद्धि तस्माद्दशमे यथा राज्यन्यासमाहुः।। सूर्य, शनि और राहु - इन तीनों में से कोई दो ग्रह किसी एक भाव पर संयुक्त दृष्टि डालते हैं तो उस भाव के सुख का नाश हो जाता है।

इन तीन ग्रहों के अतिरिक्त द्वादशेश, जिस राशि में राहु है उस राशि का स्वामी भी पृथकताजनक दृष्टि का प्रभाव रखता है। शुभ ग्रह की स्थिति में यह प्रभाव कम या ज्यादा हो सकता है। यदि लग्न पर इन ग्रहों की दृष्टि हो तो व्यक्ति आत्मघाती, या खुद की गलतियों से मरणासन्न हो जाता है। ऐसे व्यक्ति तुनकमिजाजी, चिड़चिड़े या अवसाद से पीड़ित भी हो सकते हैं।

यदि द्वितीय भाव पर यह पृथकताजनक प्रभाव हो तो व्यक्ति के धन का नाश हो जाता है, या उसे कुटुम्ब से पृथक होना पड़ सकता है। साथ ही वाणी या दृष्टि दोष भी हो सकता है। चतुर्थ भाव पर इस योग के प्रभाव से भूमि, भवन, वाहन, आदि का त्याग या माता के सुख से विरक्त रहना पड़ सकता है। सप्तम भाव पर इसके प्रभाव से विवाह में बाधा, अविवाहित स्थिति, जीवनसाथी से तलाक या मृत्यु भी संभव है।

व्यापार की कमी या व्यापार योग का अभाव भी उससे होता है। यदि दृष्टि दसवें भाव पर हो तो व्यक्ति कर्महीन हो सकता है, ऐसी दशा मंे बड़े से बड़े खानदान में जन्म लेने के बावजूद वह कंगाल जैसा हो सकता है। एकादश भाव पर इसके प्रभाव से व्यक्ति को अपने परिश्रम का लाभ नहीं मिल पाता है, उसे श्रम की अपेक्षा लाभ कम मिलता है या हानि उठानी पड़ सकती है।


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इस प्रकार के योगों के दुष्प्रभावोें को समझने के लिए कुछ कंुडलियों का अध्ययन किया जाए :

प्रथम कंुडली लेते हैं श्रीमती सोनिया गंाधी की-

उदाहरण कुंडली 1: इनका जन्म 9 दिंसबर 1946 को इटली के तुरीन में रात्रि 9ः30 बजे हुआ। कर्क लग्न की कुंडली में शनि लग्नस्थ होकर सप्तम दृष्टि से सप्तम भाव को तथा राहु एकादश भाव से नवम दृष्टि से सप्तम भाव को देख रहा है। यह दोनों ग्रहों की पूर्ण पृथकतानजक दृष्टि सप्तम भाव पर है और इसके दुष्प्रभाव से पति से वियोग हुआ। श्रीमती सोनिया गंाधी की कुंडली में शनि और राहु के करण सप्तम भाव के सुख से पृथकताजनक दृष्टि का दुष्प्रभाव शनि की महादशा में राहु की अंर्तदशा के समयावधि में हुआ। दिनांक 7/4/1990 से दिनांक 13/2/1993 तक के समय की यह दशा सप्तम भाव के सुख के लिए विनाशकारी सिद्ध हुई। उल्लेखनीय है कि मई 1991 में राजीव गांधी की हत्या हुई थी।

उदाहरण कुंडली 2: प्रस्तुत दूसरी कुंडली राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की है, जिनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर में प्रातः 8ः24 पर तुला लग्न में हुआ था। कुंडली में शनि द्वितीय भाव में विद्यमान है तथा तृतीय दृष्टि से चतुर्थ भाव को देख रहा है। चतुर्थ भाव पर राहु की सप्तम दृष्टि दशमें भाव से भी है। गांधी जी की कुंडली के अनुसार राहु की महादशा में शनि की अंर्तदशा दिनांक 13/3/1927 से दिनांक 19/1/1930 तक रही। यह तो सर्वविदित है इस अवधि में गांधी जी ने देश की स्वतंत्रता के लिए अपना घर, सुख, संपŸिा सबका त्याग कर दिया था एवं जेल यात्रा की थी।

उदाहरण कुंडली -3: जातक का जन्म 11 जनवरी 1971 को प्रातः 5ः30 पर जयपुर में हुआ। धनुलग्न में सूर्य की सप्तम दृष्टि सप्तम भाव पर, राहु की पंचम और शनि की तृतीय दृष्टि सप्तम भाव पर स्थित है जिसके प्रभाव से जातक के विवाह में अनेक बाधाएं आईं, दिनांक 10/5/2000 से 16/3/03 के मध्य शनि की महादशा में राहु की अंर्तदशा मंे मंगेतर ने आत्महत्या की थी। इसके पश्चात् एक तलाकशुदा महिला से विवाह निश्चित हुआ और रिश्ता टूट गया। उक्त ग्रहों की तांत्रिक पद्धति से शांति करवाने के पश्चात् 34 वर्ष की आयु में विवाह हुआ।


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उदाहरण कुंडली -4: राष्ट्रीय स्तर के राजनेता की है। 3 जून 1930 को 4ः25 सुबह की जन्म लेने वाले इस जातक की मेष लग्न की कुंडली है। लग्नेश लग्न में ही राहु के साथ बैठकर राहु के समान पृथकताजनक दृष्टि से सप्तम भाव को देख रहा है, अतः इनका विवाह नहीं हो सका। विवाह के योग के समय सूर्य की महादशा, सिंह पर राहु और शनि की दृष्टि फिर चंद्र की दशा, जिस पर भी शनि व राहु की दृष्टि, फिर मंगल की महादशा 1977 तक रही। इस समय तक विवाह की उम्र ही निकल चुकी थी। अतः उपरोक्त अध्ययन से स्पष्ट है कि सूर्य शनि और राहु की संयुक्त दृष्टि, भाव का नाश करते ही हैं। यदि समय रहते गहराई से अध्ययन करके दशाकाल की गणना करके विधिवत् शांति करायी जाए तो भाव नाश, सुख की कमी जैसी समस्या का समाधान किया जा सकता है। यदि उक्त ग्रहों की तंत्रोक्त पद्धति से शांति करायी जाती है तो सफलता अवश्य मिलती है।

 



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