प्रेतादि शक्तियों का रहस्य व प्रभाव डाॅ. टीपू सुल्तान ‘‘फैज’’ संसार के समाज के सभी वर्गों व धार्मिक मान्यताओं में अदृश्य शक्तियों अर्थात् भूत-प्रेतादि जैसी शक्तियों के अस्तित्व को अपने-अपने अंदाज से स्वीकारा किया गया है। ऐसी मान्यता है कि आत्मा अजर-अमर है जो मनुष्यों के मरणोपरांत भी नष्ट नहीं होती बल्कि इन्हीं में से अतृप्त आत्माओं की कल्पना भूत-प्रेतादि के रूप में की जाती है। वेद, पुराण, भगवद्गीता आदि जैसे प्राचीन आध्यात्मिक ग्रंथों में इस संदर्भ में अनेक विवरणों को उल्लेखित किया गया है। गरुड़ पुराण में वर्णित तथ्यों से ज्ञात होता है कि मृत व्यक्ति के अंतिम संस्कार यदि धार्मिक रीति-रिवाजों के अंतर्गत न किये जाएं तो वे प्रेत-योनी को प्राप्त होते हैं। प्रेतादि व अन्य नकारात्मक तत्वों के लक्षण: जातक के आत्म विश्वास का टूटना, भोग-विलासी प्रवृŸिा, निद्रा काल में डरावने या अश्लील स्वप्नों का आना, पवित्र ग्रंथों व वस्तुओं से घृणा, किसी से नेत्र न मिला पाना, कभी चिल्लाना, बड़बड़ाना या कभी एकदम चुप्पी साध लेना, क्रोध का बार-बार आना, अचानक या अक्सर सुगंध तो कभी दुर्गंध का आना, अस्वस्थता, शरीर का काला या पीला पड़ जाना तथा गुप्तांगों का विकृत या रोग ग्रस्त हो जाना। ये सारे के सारे लक्षण भूत-प्रेतादि व अन्य अदृश्य नकारात्मक तत्वों से प्रभावित होने वाले व्यक्ति के हैं। इसके अतिरिक्त कुछ अलौकिक घटनाएं भी हैं जिन से इन नकारात्मक शक्तियों के लक्षणों या प्रभावों का पता चल सकता है, जैसे- अनायास आकाश से पत्थरों का गिरना जिन के बारे में यह पता नहीं चलता कि कहां से आ रहे हैं, घर के सामानों का अपने-आप इधर-उधर फेंका जाना या लापता हो जाना। अनायास किसी अनजान वस्तु का घर में आ जाना या पड़ा होना। टंगे या रखे कपड़ों या अन्य किसी वस्तु आदि में आग लग जाने की घटना। प्रेतादि व नकारात्मक तत्वों की अनिष्टताएं तथा उसका निराकरण: अकाल-मृत्यु प्राप्त जातकांे की अतृप्त आत्माएं अपनी अपूर्ण इच्छाओं की पूर्ति हेतु दृढ़ता से आसक्त हो जाती है तो उनके द्वारा घातक ऊर्जा का उत्सर्जन होता है। इसके साथ-साथ कुछ अतृप्त आत्माएं साधकों द्वारा तांत्रिक क्रियाओं के अंतर्गत निहित कर ली जाती है, जिन्हें बाद में साधक या तांत्रिक अपनी उपयोगिता अनुसार जादू-टोने आदि कार्यों के हेतु प्रयुक्त करता है। इन प्रेतादि शक्तियों के अतिरिक्त इससे मिलती खबीस, जिन्न्ा, दैत्य, पिशाच आदि नामों की कुछ अन्य अदृश्य शक्तियां भी हैं जिनकी नकारात्मक परिधि में भी यदि कोई जातक आ जाए तो उसके जीवन में तरह-तरह की अनिष्टताएं उत्पन्न होने लगती हैं। अतः इन विषयों से संबंधित घातक व हानिकारक समस्याओं से बचाव व निराकरण हेतु कुछ सरल, सहज व उपयोगी उपाय इस प्रकार हैं- इन शक्तियों से बचाव के लिए शरीर को पाक-पवित्र रखें। इसके अतिरिक्त साधक आकर्षक व सुगंधित वस्तुओं के प्रयोग करते समय विशेष सावधानी का प्रयोग करें। देवदारु, हींग, सरसों, जौ, नीम की पŸाी, कुटकी, कटेली, चना व मोर के पंख को गाय के घी तथा लोहबान में मिश्रित करके मिट्टी के पात्र में रख लें, फिर उसे अग्नि से जलाकर उसका धुंआ प्रेतादि बाधा से पीड़ित जातक को दिखाएं। इस प्रक्रिया को नित्य कुछ दिनों तक दोहराते रहें, अवश्य लाभ मिलेगा। मंगल व शनिवार के दिन जावित्री व श्वेत अपराजिता के पŸो को आपस में पीसकर उसके रस को प्रेतादि या ऊपरी बाधा से पीड़ित जातक को सुंघाएं, इन नकारात्मक शक्तियों से अवश्य ही मुक्ति मिलेगी। सेंधा नमक, चंदन, कूट, घृत, चर्बी व सरसों के तेल के साथ मिश्रित करके किसी मिट्टी के पात्र में रख लें तथा फिर उसे अग्नि से जलाकर उसका धुंआ प्रेतादि बाधा से पीड़ित जातक को दिखाएं। इस प्रक्रिया को शनिवार अथवा मंगलवार से प्रारंभ करके नित्य 21 दिनों तक दोहराएं। ऊपरी बाधा से अवश्य ही मुक्ति मिलेगी। बबूल, देवदारु, बेल की जड़ व प्रियंगु को धूप अथवा लोहबान के साथ मिश्रित करके मिट्टी के पात्र में रख लें तथा फिर उसे अग्नि से जलाकर उसके धुंए को पीड़ित जातक के ऊपर से उतारें। मंगल या शनिवार से इस कार्य को प्रारंभ करके इसे 21 दिनों तक दोहराते रहें तथा जब यह प्रयोग समाप्त हो जाए तो 22वें दिन जली हुई सारी सामग्री को किसी चैराहे पर मिट्टी के पात्र सहित प्रातः सूर्य- उदय से पूर्व फेंक आएं। अवश्य लाभ होगा। मंगल या शनिवार के दिन लौंग, रक्त-चंदन, धूप, लोहबान, गौरोचन, केसर, बंसलोचन, समुद्र-सोख, अरवा चावल, कस्तूरी, नागकेसर, जई, भालू के बाल व सुई को भोजपत्र के साथ अपने शरीर व लग्न के अनुकूल धातु के ताबीज में भरकर गले में धारण करें। शरीर पर प्रेतादि जैसे नकारात्मक तत्वों का कोई दुष्ट प्रभाव नहीं पड़ सकता।