ग्रह व्यक्ति के इर्द गिर्द एक आभा मंडल विकसित करते हैं। हर ग्रह का एक विशेष प्रभाव क्षेत्र है और हर राशि/भाव में उसकी विशेष भूमिका होती है। हर आत्मा में दैवीय अंश है, जो अपने में जन्मों का इतिहास समेटे है। आत्मा, इस संसार में बुद्धि एवं अनुभव के विकास के लिए, तरह-तरह के प्रयोग करती है और इन प्रयोगों के लिए उसे भौतिक संसार से जुड़ना होता है। ज्योतिष मत से ब्रह्मांड 2 भागों में बंटा है: बाह्य ब्रह्मांड ग्रह हैं और आंतरिक ब्रह्मांड राशियां हैं। यदि मंगल का विश्लेषण करें, तो बाह्य जगत में मंगल उन समस्त चीजों का प्रतिनिधित्व करता है, जो शक्ति की परिचायक हैं, जैसे सिपाही, शल्य चिकित्सक, औजार, लोहा, मुर्दा घर, खेल क्रियाएं आदि।
आंतरिक जगत में मंगल साहस, शौर्य, आत्मनिर्भरता, आत्मसम्मान, इच्छाएं (सांसारिक) क्रोध, बुद्धि (तर्क शक्ति) चातुर्य आदि को दर्शाता है। शारीरिक तौर पर मंगल बाह्य सिर, नाक, प्रजननांग, गाॅल ब्लैडर, रक्त आदि का प्रतिनिधित्व करता है। मंगल ऊर्जात्मक कार्यों से संबंधित है और ऊर्जा व्यक्ति के जीवन में 2 प्रकार के कार्यों के लिए आवश्यक है। यह प्रजनन शक्ति को दर्शाता है, तार्किक बुद्धि और ज्ञान निर्धारित करता है, जो व्यक्ति के कार्यों को दिशान्वित कर के उसे अच्छा स्थान पाने को प्रेरित करते हैं। मंगल व्यक्ति की ऊर्जा को कैसे संचालित करता है, इसे समझने का प्रयास करते हैं।
साधारण राशि में मंगल मेष राशि का प्रतिनिधित्व करता है, जो प्राकृतिक ऊर्जा से ओतप्रोत है। काल पुरुष की कुंडली में पहला स्थान मेष राशि है और इसी लिए मेष पुरुष शक्ति का परिचायक है तथा सप्तम स्थान तुला राशि प्रकृति है। इसलिए प्रत्येक कुंडली में मंगल पुरुष शक्ति को दर्शाता है और सप्तम प्रकृति को। काल पुरुष की कुंडली में तुला राशि मूलाधार चक्र का स्थान है, जो कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए प्रयुक्त होता है। वृश्चिक तुला से दूसरी राशि होने से व्यक्ति में जमा की गयी कुंडलिनी शक्ति को बताती है, जो आत्मोत्थान के कर्मकांड में सहायक है। कुंडलिनी शक्ति रीढ़ की हड्डी में सुप्तावस्था मंे रहती है, जिसे मनस शक्ति और काम शक्ति (मेष और वृश्चिक राशि) दोनों के संयुक्त उपयोग से जागृत किया जा सकता है। यहां यह कहना आवश्यक है कि मेष और वृश्चिक दोनों राशियों का स्वामी मंगल है।
वेदों में मंगल को ‘अंगारक’ कहा गया है। यह रजोगुणी है और कर्म, शक्ति तथा बल का स्रोत है। जातक पारिजात के अनुसार मंगल पुल्लिंग है और जीवन शक्ति से भरपूर है। सर्वार्थ चिंतामणि में मंगल को कहा गया है ‘भौमः प्रतापी रतिकेलिलतिः’। काली दास ने उत्तर कालामृत में भी मंगल के बारे में कहा हैः ‘कामक्रोधपरावाद गृह सैन्येशः शतघ्नी कुजः। अर्थात मंगल सैन्य बल, हिंसा को दर्शाता है और काम क्रीड़ाओं में भी मंगल की भूमिका अस्वीकार्य नहीं है। मंगल अग्नि का परिचायक है और एक व्यक्ति को जीवन में 3 प्रकार की अग्नि का सामना करना होता है-जठराग्नि, क्रोधाग्नि, कामाग्नि। तीनों प्रकार की व्यक्तिगत आवश्यकताओं को पूर्ण करने में मंगल ही सहायक होता है।
मंगल का दूसरा अहम पक्ष है मन की शक्ति, अर्थात मंगल तर्क और बुद्धि का द्योतक भी है। मंगल की पूर्ण भूमिका काल पुरुष की कुंडली से समझने का प्रयास करें। काल पुरुष की कुंडली में मंगल प्रथम स्थानाधिपति है। वह दशम स्थान (मकर राशि) में उच्चस्थ है। दशम स्थान व्यक्ति विशेष के व्यवसाय, कार्यक्षेत्र, पद को दर्शाता है। काल पुरुष की कुंडली में मंगल दशम स्थान (मकर राशि) में बैठ कर चतुर्थ स्थान में बैठे उच्चस्थ गुरु की दृष्टि में रहता है। गुरु काल पुरुष की कुंडली में नवमाधिपति है, जो धर्म भाव है और द्वादशाधिपति है, जो मोक्ष भाव भी है।
गुरु और मंगल की आपसी दृष्टि इस बात की ओर संकेत करती है कि जीवन का लक्ष्य सुकर्म और धर्म कार्य करना है। दशम स्थान (मकर राशि) से मंगल काल पुरुष के लग्न मेष को दृष्ट करता है, जो यह व्यक्त करता है कि कर्म करने के लिए व्यक्ति को ईच्छा शक्ति और ऊर्जा शक्ति की जरूरत होती है। दशम भाव में उच्चस्थ मंगल (मकर राशि से) काल पुरुष के पंचम स्थान को दृष्ट करता है और पंचम स्थान विद्या, बुद्धि और ज्ञान का है। मंगल का पंचम भाव, अर्थात सिंह राशि को दृष्ट करना यह दर्शाता है कि प्रत्येक कार्य को अच्छा अर्थ देने के लिए बुद्धि आवश्यक है।
पंचम भाव पूर्व पुण्य का भी भाव है और पूर्व जन्म के संचित कर्म की ओर संकेत करता है। यह भी सत्य है कि व्यक्ति के इस जन्म के कर्म उसके पूर्व कर्मों का ही लेखाजोखा है। मंगल चूंकि लग्नेश हो कर दशम भाव में उच्च होता है और मंगल का सभी आवश्यक और शुभ भावों से संबंध इसे विशिष्टता प्रदान करता है, इसलिए मानव जीवन में व्यक्ति के कर्मों की गुणवत्ता मंगल ही बताता है। यही कारण है कि मंगल की स्थिति और बल पर ध्यान देना अत्यावश्यक है। इसकी अच्छी स्थिति व्यक्ति को विशेष ऊर्जा एवं ईच्छाशक्ति प्रदान करती है, जो उसे जीवन में कुछ सार्थक करने को प्रेरित करती है।
यह रचनात्मक ऊर्जा व्यक्ति विशेष को मिलना निश्चित हो जाता है, जब मंगल कुंडली में मूलभूत बिंदुओं लग्न, लग्नेश, चंद्र, चंद्रेश को प्रभावित करता है। जब मंगल इन उपर्युक्त मूलभूत बिंदुओं में से किसी को प्रभावित करता है, तो व्यक्ति में एक विशेष ऊर्जा संचारित होती है, जो उसे अच्छे एवं असाधारण कार्यों के लिए प्रेरित करती है। इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है कि शुभ मंगल व्यक्ति को सात्विक और रचनात्मक कार्यों की ओर प्रेरित करता है, तो दुष्प्रभाव में गया मंगल एवं वक्री मंगल व्यक्ति को व्यभिचारी एवं अत्याचारी बना देता है।
उदाहरण: महारानी एलिजाबेथ द्वितीय की कुंडली में मंगल लग्न में उच्च राशि मंे है। मंगल-गुरु की युति है। गुरु यद्यपि मकर राशि में नीचस्थ है, लेकिन मंगल गुरु का नीच भंग कर के उसे नीच भंग राजयोगकारक बना रहा है, क्योंकि मंगल चंद्र और लग्न से कंेद्र में है एवं उच्चस्थ है। लग्न में उच्च का मंगल गुरु के साथ अति शुभ है, जिससे महारानी के उच्च घराने में जन्म का प्रमाण मिलता है। मंगल इस कुंडली में चतुर्थेश है और एकादशेश भी है, जो लग्नेश शनि के साथ राशि परिवर्तन भी कर रहा है। चंद्र मंगल से दृष्ट है, जिससे चंद्र-मंगल योग भी निर्मित हो रहा है। यह कुंडली को शुभत्व प्रदान करता है। मंगल का लग्न, लग्नेश और चंद्र से संबंध महारानी एलिजाबेथ को शक्ति, बल, पद एवं उच्च विचारधारा देता है। ऐसी अच्छी स्थिति का मंगल महारानी के उच्च पद और परिपूर्ण जिं़दगी की ओर संकेत करता है।
यहां दिये गये सभी उदाहरणों से यह निश्चित कहा जा सकता है कि व्यक्ति विशेष को जीवन पथ पर उन्नति करने के लिए मंगल की ऊर्जा एवं चलाने के बल की अत्यधिक आवश्यकता है। मंगल का बल, उसकी कुंडली में मूलभूत बिंदु लग्न, लग्नेश, चंद्र, चंद्रेश से संबंध, अथवा दशम स्थान से संबंध, अन्य योगकारी ग्रहों से संबंध व्यक्ति को जीवन में ऊंचा उठने के लिए आवश्यक ऊर्जा एवं शक्ति प्रदान करते हैं, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति असाधारण कार्य करने की क्षमता रखता है और बली मंगल व्यक्ति विशेष को अपने कार्यक्षेत्र में मान-सम्मान पाने को प्रेरित करता है।