हस्त रेखा द्वारा भविष्यकथन
हस्त रेखा द्वारा भविष्यकथन

हस्त रेखा द्वारा भविष्यकथन  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 8592 | अकतूबर 2016

सामुद्रिक शास्त्र के सिद्धांतों के आधार पर सूक्ष्म रूप से अध्ययन कर भविष्य बताया जाता है। मान्यतानुसार जातक के दोनों हाथों की रेखाएं अलग-अलग होती हैं क्योंकि बायें हाथ की रेखा व्यक्ति के पूर्व जन्म और दायें हाथ की रेखाएं इस जन्म की होती हैं जो वर्तमान कर्मों के अनुसार अतः बनती-बिगड़ती रहती है। इस दोनों ही हाथों का समान रूप से अध्ययन करने पर जोर दिया जाता है। हस्त रेखा शास्त्र में जो व्यक्ति जिस हाथ से कर्म करता है उसके उसी हाथ को अधिक महत्व देना चाहिए। किसी व्यक्ति का भविष्य कथन करते समय उसकी हथेली में विद्यमान विभिन्न रेखाओं, चिह्नों, क्राॅस, शंख, चक्र, आकृतियों, यवों आदि का धैर्य एवं गंभीरता पूर्वक विचार किया जाना चाहिए। इसके लिए जिन मुख्य और महत्वपूर्ण तथ्यों का विश्लेषण आवश्यक होता है उसका विश्लेषण निम्न है: - हाथ की बनावट - हाथ के प्रकार- जैसे दार्शनिक, आदर्शवादी, कलापूर्ण (कलाकार) हाथ, चमसाकार हाथ, व्यावसायिक हाथ, समकोण, वर्गाकार हाथ, सम, विषम, निम्न कोटि के हाथ, कठोर, कोमल हाथ। - हाथ की अंगुलियों व इनके पैरों में स्थित चिह्न, शंख, चक्र आदि। 4. हाथ में विभिन्न आकृतियों जैसे - नक्षत्र, सूर्य, चंद्र, कमल, अश्व, ध्वजा, मीन, त्रिशूल, रथ, पर्वत आदि की स्थिति। - हाथ में विद्यमान विभिन्न चिह्नों जैसे-कोण, क्राॅस, त्रिशूल, समकोण, जाल, द्वीप आदि की स्थिति। - हथेली की प्रमुख सहायक और गौण रेखाओं की सूक्ष्म स्थिति। - अंगुलियों के पोरों में स्थित आड़ी और खड़ी रेखाओं की स्थिति। - हाथ में स्थित ग्रहों की स्थिति। हाथ में विद्यमान महत्वपूर्ण योग। शोधों से सिद्ध हो चुका है कि हथेलियों की रेखाओं में कुछ रहस्य छिपे रहते हैं। ये रेखाएं मनुष्य की आंतरिक स्थिति और भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं की सचित्र विधि होती है, जिन्हें पढ़कर जातक से संबंधित बहुत सी बातों का पता लगाया जा सकता है। फलकथन किसी एक रेखा, चिह्न या आकृति मात्र को देखकर ही नहीं, बल्कि हाथ में विद्यमान सभी रेखाओं, चिह्नों, आकृतियों आदि को देखकर करना चाहिए। हाथों के प्रकार के अनुसार जातक का फलकथन

1. जिनका हाथ कोमल होता है वे थोड़े से कष्ट मंे व्याकुल हो जाते हैं और जरा सी खुशी मिलने पर फूले नहीं समाते। ऐसे जातक आराम-तलब, धनवान, चंचल मन, मधुर भाषी, कभी मिलनसार व कभी दुराव रखने वाले होते हैं।

2. कठोर या सख्त हाथ वाले दूरदर्शी, मेहनती, साहसपूर्ण कदम उठाने वाले, पक्के मित्रों वाले व लगनशील होते हैं, ऐसे लोग पूर्ण परमार्थी होते हैं।

3. समकोणिक या चैकोर हाथ सर्वोत्तम माना गया है। जिनके हाथ इस प्रकार के होते हैं, वे दयालु, स्वच्छताप्रेमी, सत्यनिष्ठ, सच्चरित्र और स्वार्थी होने के साथ अधीर, वीर व गंभीर भी होते हैं।

4. चमसाकार हाथ वाले लोग आदर्शवादी, कार्यकुशल और ख्यातिलब्ध होते हैं किंतु वे लोगों को लाभ नहीं पहुंचा पाते और उन्हें भी लोगों से अपने कार्य में सहायता नहीं मिल पाती।

5. चमसाकार हाथ उन्हें कहते हैं जो कलाई, नुकीली, पतली, नीचे हल्की और ऊपर भारी अंगुलियों वाला मुलायम, चिकना व लंबा हाथ आदर्शवादी हाथ कहलाता है। ये सपनों की दुनिया में खोये रहने वाले होते हैं।

6. दार्शनिक हाथ वालों की विवेक शक्ति साधारण लोगों की तुलना में बहुत ऊंची होती है। इसमें भी जिनकी अंगुलियां दृढ़ या कसी हुई हो, वह अपनी रचनात्मकता से लोगों को प्रभावित करता है। ऐसे लोगों की मन की थाह लगाना कठिन होता है। लंबा, गठीला परंतु बीच में कुछ झुका हुआ हाथ जिनकी अंगुलियों के जोड़ उभरे हुए और नाखून लंबे हों, दार्शनिक हाथ कहलाता है।

7. मामूली लंबाई, चैड़ाई वाला हाथ, जिसमें उंगलियों का ऊपरी हिस्सा पतला और निचला मोटा हो, कलाकार या व्यावसायिक हाथ कहलाता है। ऐसे हाथ वाले लोग दूसरों की बातों में अथवा भुलावे में शीघ्र ही आ जाते हैं। किसी ऐसे हाथ में यदि अंगुलियां बड़ी या सख्त हांे तो व्यक्ति कलात्मक कार्यों में माहिर होता है और व्यापारिक कारोबार से धन कमाता है। व्यापारी, गायक, मूर्तिकार, चित्रकार आदि कलाकार इस श्रेणी में आते हैं। इसमें भी जिनकी अंगुलियां पतली परंतु पीली ऐंठन वाली हो वह ईष्र्यालु, धनी तथा प्रपंची होता है। यदि ऐसा हाथ ज्यादा कोमल हो तो व्यक्ति लापरवाह होता है।

8. बेडौल हाथ निष्कपट माना गया है। यह जरूरत से ज्यादा छोटा, मोटा, भारी एवं भरा होता है। अंगूठा आकार मंे बहुत छोटा होता है। ऐसा जातक कभी श्रेष्ठ नहीं होता है। ये केवल भोजन, कपड़ा, मकान तक ही सीमित होते हैं, इनका दुनियादारी से कोई लेना-देना नहीं होता है।

9. मिश्रित हाथ वालों की कोई श्रेणी नहीं होती है। इस हाथ की अंगुलियों के लक्षण विभिन्न तथा मिश्रित होते हैं। कोई अंगुली चमसाकार होती है तो कोई वर्गाकार, कोई दार्शनिक तो कोई नुकीली।

हथेलियों का विश्लेषण

1. लगातार मेहनती लोगों की हथेलियां बड़ी होती हैं। ये उत्साही और कर्तव्यपरायण होते हैं, परंतु छोटी हथेलियों वाले लोग लगन से काम नहीं करते हैं।

2. चैड़ी हथेली वाले उदार, भले आदि गुणों वाले, अच्छे होते हैं।

3. सूखी, पतली, कड़ी हथेली वाले उत्साहविहीन व कायर होते हैं।

4. भारी हथेली वाले कामभोगी होते हैं।

5. लंबी, चैड़ी, गोल हथेली वाले लोग परिश्रमी होती हैं। ये मिथ्यावादी भी होते हैं।

6. कोमल व लंबी हथेली वाले जातक टालमटोल करने वाले, आराम-मतलब, कामचोर व प्रमादी होते हैं।

7. जिन हथेली के मध्य भाग में गड्ढा होता है वे स्वजनों की सहानुभूति से वंचित होते हैं, इस गड्ढे की गहराई इतनी होती है कि इसके विपरीत हाथ के अंगूठे का ऊपरी पोर समा जाता है। ऐसे लोग गृह क्लेश से पीड़ित होते हैं। अंगूठा

1. कोमल व झुका अंगूठा जातक की चंचल मनोदशा का परिचायक है। ऐसे लोग दूसरों की बातों में शीघ्र आ जाते हैं।

2. लंबा, सीधा व सुदृढ़ अंगूठा स्वच्छन्दता और निरंकुशता का प्रतीक है। ये जातक विचारों के पक्के होते हैं।

3. अंगूठे को निम्न 3 भागों में बांट सकते हैं: प्रथम अर्थात् नाखून की ओर काला पोर इच्छा शक्ति, द्वितीय या मध्य का पोर विचार शक्ति, तृतीय या नीचे का पोर- प्रेम शक्ति का संकेत देता है। इस तरह पूरा अंगूठा इच्छा, विचार व प्रेम तीनों शक्तियों का फलकथन करता है। इन पोरों की खराब स्थिति जातक की कमजोरी को दर्शाती है। तृतीय यानि प्रेम शक्ति पोर सीधा और भरा है व छल, कपट यानि स्वार्थ से प्रेम करने वाला होता है। मध्य भाग, उबड़-खाबड़ हो तो जातक को कभी खुशी, कभी दुख रहता है। इनकी किसी से सच्ची मित्रता नहीं होती है। लंबे व सम अंगूठे वाले लोग बुद्धिहीन तथा अधिक नुकीले अंगूठे वाले जातक उभरे विचारों के होते हैं।

प्रमुख हस्तरेखाओं द्वारा फलकथन

1. जीवन-रेखा/आयु रेखा/पितृ रेखा - यह रेखा तर्जनी अंगुली और अंगूठे के मध्य से शुरू होकर शुक्र पर्वत को घेरते हुए मणिबंध तक जाती है। इससे जातक की उम्र का फलकथन किया जाता है। इसका साफ, स्पष्ट, लंबा होना लंबी उम्र व अच्छे स्वास्थ्य व भाग्य का फल करती है। इस रेखा का छोटा होना अल्पायु का द्योतक है। यदि जीवन रेखा न हो तो जातक की अस्वभाविक व असामयिक मृत्यु होती है। यह रेखा टूटी-फूटी, रूक-रूक कर चले या खंडित हो तो जातक बार-बार बीमार होता है या दुर्घटना होती है या अनहोनी घटना घटती है।

2. मस्तिष्क रेखा/मातृ रेखा: यह हथेली के मध्य भाग में जीवन रेखा और हृदय रेखा के बीच होती है। जातक के बुद्धि का पैमाना होती है अैर विवेक का द्योतक है। दोहरी मस्तिष्क रेखा वाले जातक विलक्षण बुद्धि-विवेक वाले होते हैं। चंद्र, मंगल के पर्वतों को घेरती हुई मस्तिष्क रेखा तीव्र बुद्धि, स्पष्ट वक्ता, विचार और निर्भीकता की परिचायक होती है। यदि बहुत सी रेखाएं मस्तिष्क रेखा से निकल कर हृदय रेखा की तरफ जाये तो जातक मिलनसार व लगनशील होता है। यदि मस्तिष्क रेखा जंजीर जैसी हो तो जातक का व्यवहार कलह करने वाला व लहरदार हो तो अर्द्धविक्षिप्त सा व्यवहार करने वाला होता है।

3. हृदय या अंतःकरण रेखा: यह मस्तिष्क रेखा के ऊपर व समानांतर स्थित होती है तथा बुध पर्वत से आरंभ होकर गुरु व शनि पर्वत के बीच समाप्त होती है। सात्विक विचार वाले लोगों की यह रेखा गुरु पर्वत के निकट दो शाखाओं में बंट जाती है। ऐसी रेखा वाले गुरु, पुरोहित व वृद्ध लोगों की सेवा करने वाले होते हैं। यह रेखा अंगुलियों में जितनी दूरी पर होती है जातक उतना ही अधिक वफादार, सफल, दयालुता, विनम्रता, परोपकार आदि गुणों वाला होता है। इसके विपरीत टूटी-फूटी रेखा वाले मतलबी होते हैं, जंजीरनुमा रेखा वाले स्वार्थी होते हैं।

4. भाग्य रेखा/शनि रेखा: यह मणिबंध से सीधी निकलकर शनि पर्वत पर जाती है। यह जातक के प्रारब्ध की निशानी होती है। ये रेखा यदि दोषरहित हो तो जातक भाग्यशाली होता है। कम कर्म से सबकुछ मिल जाता है। इसके हथेली मंे नहीं होने पर भाग्यविहीन, धन विहीन होता है।

5. सूर्य रेखा/यश रेखा: यह अनामिका के मूल से प्रारंभ होकर नीचे जाती है तथा जिस पर्वत को छूती है उसके बल में वृद्धि करती है। इसका साफ-सुथरा, लंबा होना भाग्यशाली होने का सूचक है। इससे विद्या, यश, मान-सम्मान, कीर्ति प्रसिद्धि की जानकारी मिलती है। स्वास्थ्य रेखा: यह बुध पर्वत के क्षेत्र से तिरछी होकर निकलती है। यह रेखा तदुरूस्ती को दर्शाती है। एक स्वस्थ व्यक्ति के हाथ में यह रेखा दिखाई नहीं देती। यह कम लोगों के हाथों में पायी जाती है। रोग होने पर यह गहरी होती है।

7. विवाह रेखा: यह रेखा बुध पर्वत से निकलकर हृदय रेखा पर जाती है। एक से अधिक होने पर प्रेम या शादी के योग दर्शाती है। गहरी रेखा, जीवन साथी से प्रगाढ़ प्रेम को दर्शाती है। मणिबंध रेखा: हथेली के अंत में कलाई पर लगभग तीन सिलवटे दिखाई देती हैं, जिन्हें मणिबंध रेखाएं कहते हैं। इनमें प्रथम रेखा-धन, द्वितीय रेखा- विद्या व और तृतीय रेखा स्वभाव, प्रेम को दर्शाती है। इनसे ‘आयु’ का अनुमान भी लगाया जाता है। प्रत्येक रेखा 30 वर्ष की आयु का प्रभाव दर्शाती है। तीनों पूर्ण स्पष्ट रेखाएं जातक की उम्र 90 वर्ष या इससे अधिक को दर्शाती हैं। दाईं रेखा होने पर 75 वर्ष उम्र का भविष्य कथन किया जाता है। अष्ट चिह्न विचार: हाथ मंे कई प्रकार के चिह्न पाये जाते हैं। दाग, गुणन, जातक आदि अशुभ होते हैं। ये जिस रेखा को प्रभावित करते हैं उसका अशुभ भविष्य कथन करते हैं। - कोण, समकोण, त्रिभुज, द्वीप आदि शुभ चिह्न माने जाते हैं। ये जिस रेखा को प्रभावित करते हैं उसका शुभ भविष्य कथन करते हैं। - हथेली व रेखाओं पर तिल होने पर व्यक्ति के जीवन मंे शुभ/अशुभ फल प्राप्त होते हैं। इस प्रकार हथेली की विभिन्न रेखाओं, चिह्नों, पर्वों आदि का अध्ययन करके किसी भी जातक के जीवन के विभिन्न पहलुओं का भविष्यकथन कर सकते हैं। हथेली में स्थित राशियां, ग्रह नक्षत्र, तिथि, महीने

1. हथेली में स्थित तर्जनी में राशियां और ग्रह: अंगुष्ठ के पास वाली अंगुली को ‘तर्जनी’ (इंडेक्स फिंगर) कहते हैं। सभी अंगुलियों में तीन पर्व या पोरबे होते हैं। इन्हें ऊपर से क्रमशः प्रथम, द्वितीय, एवं तृतीय पर्व (पोरबे) कहा जाता है। तर्जनी के प्रथम पर्व में ‘मेष’ राशि, द्वितीय पर्व में ‘वृष राशि तथा तृतीय पर्व में ‘मिथुन’ राशि का निवास स्थान होता है। हाथ की चारों अंगुलियों के बारह पर्व बारह राशियों को दर्शाती हैं। इस अंगुली के ठीक नीचे मूल में बृहस्पति या ‘गुरु’ पर्वत का निवास होता है। इसे ‘गुरु’ या ‘बृहस्पति’ की अंगुली भी कहते हैं।

2. मध्यमा अंगुली में स्थित राशियां और ग्रह: तर्जनी के पास वाली सबसे बड़ी अंगुली को ‘मध्यमा’ कहते हैं। इसके प्रथम पर्व में ‘मकर’ राशि, द्वितीय पर्व में ‘कुंभ’ राशि तथा तृतीय पर्व में ‘मीन’ राशि का निवास स्थान होता है। इसे शनि की अंगुली भी कहते हैं। इसके ठीक नीचे मूल में शनि पर्वत का निवास स्थान होता ै। अतः यह शनि ग्रह से संबंध रखती है।

3. अनामिका में स्थित राशियां और ग्रह इस अंगुली का स्थान मध्यमा एवं कनिष्ठिका (सबसे छोटी अंगुली) के मध्य है। इसे ‘सूर्य की अंगुली’ भी कहते हैं। इसके प्रथम पर्व में ‘कर्क’ राशि, द्वितीय में ‘सिंह’ राशि तथा तृतीय पर्व में कन्या राशि का निवास होता है। इसके मूल में सूर्य पर्वत स्थित है। अतः यह सूर्य ग्रह से संबंध रखती है।

4. कनिष्ठिका में स्थित राशियां और ग्रह: हाथ की सबसे छोटी अंगुली को ‘कनिष्ठिका’ कहते हैं। इसे ‘लिटिल फिंगर’ या ‘फिंगर आॅफ मर्करी’ भी कहते हैं। इसके ठीक नीचे मूल में बुध पर्वत का स्थान होता है। अतः यह बुध ग्रह से संबंध रखती है। इसके प्रथम पर्व में ‘तुला राशि,’ द्वितीय पर्व में वृश्चिक राशि तथा तृतीय पर्व में ‘धनु’ राशि का स्थान निर्धारित है। जहां से हृदय रेखा शुरू होती है वहां ‘प्रथम मंगल’ तथा मस्तक रेखा के शुरू के पास में ‘द्वितीय मंगल’ स्थित रहते हैं। हथेली के बायीं तरफ बुध पर्वत के नीचे ‘चंद्र पर्वत’ तथा वहां ‘केतु’ तथा मस्तक रेखा एवं हृदय रेखा के पास ‘राहु’ स्थित होते हैं।

5. हाथ में स्थित नक्षत्र: पौराणिक शास्त्रों में हाथ में ‘अट्ठाईस’ (27$1 अभिजीत) नक्षत्र को भी विधिवत स्थापित किया गया है। हस्त रेखा विशेषज्ञ को हाथ में प्रत्येक नक्षत्र, ग्रह, राशि की स्थिति को देखकर फलादेश करना चाहिए।

हथेली के बीच में अश्विनी नक्षत्र स्थापित करके अंगुलियों के मूल में कनिष्ठिका में क्रमशः ‘भरणी, कृतिका (बीच में) तथा रोहिणी’ अंगूठे की तरफ ‘मृगशिरा, आद्र्रा एवं पुनर्वसु, मणिबंध की तरफ ‘पुष्य, अश्लेषा एवं मघा तथा करण में ‘पूर्वाफाल्गुनी’ उत्तरफाल्गुनी एवं हस्त नक्षत्र स्थापित किए जाते हैं। इस तरह तेरह नक्षत्र हथेली में ही स्थापित रहते हैं। कनिष्ठिकादि पांचों अंगुलियों (अंगुष्ठ सहित) के तीनो पर्वों मंे तीन-तीन नक्षत्र को मिलाकर एक अभिजीत नक्षत्र रहता है। इस तरह से चैदह एवं एक अभिजीत नक्षत्र (कुल-पंद्रह) हथेली की अंगुलियों में स्थापित रहते हैं। ये निम्न तरह से हैं- कनिष्ठिका के प्रथम पर्व से क्रमशः विशाखा, स्वाति एवं चित्रा नक्षत्र, अनामिका के प्रथम पर्व से क्रमशः मूल, ज्येष्ठा एवं अनुराधा नक्षत्र, तर्जनी के प्रथम पर्व से क्रमशः शतभिषा, धनिष्ठा एवं श्रवण नक्षत्र, अंगुष्ठ के प्रथम पर्व से क्रमशः रेवती, उत्तराभाद्रपद एवं पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र तथा मध्यमा के तीसरे पर्व से पूर्वाषाढ़ा, दूसरे में उत्तराभाद्रपद एवं प्रथम पर्व में अभिजित नक्षत्र रहता है। इस तरह से ये नक्षत्र हथेली में स्थापित रहते हैं। हाथ से प्रश्न कुंडली की भांति प्रश्नकर्ता के प्रश्न का उत्तर दिया जा सकता है। इसके लिए हाथ में नक्षत्र चक्र की स्थापना उपरोक्तानुसार करनी पड़ती है। तत्पश्चात् जिस नक्षत्र में हाथ को देखा जा रहा है इसे अश्विनी नक्षत्र के स्थान पर रखकर शेष नक्षत्रों को उसी चक्र से स्थापित करते हैं। प्रश्नकत्र्ता के प्रश्न का उत्तर देने के लिए प्रश्नकर्ता के नाम का नक्षत्र जिस स्थान पर आता है उस स्थान की रेखाओं व नक्षत्रों के आधार पर फल की विवेचना की जाती है। यदि यह नक्षत्र हथेली के मध्य स्थान, अंगुलियों के तीसरे पर्व एवं दक्षिण-पश्चिम दिशा में आता है तो कार्य होना संभव होता है एवं शेष स्थानों पर कार्य सिद्धि का द्योतक है। उपरोक्त हथेली में नक्षत्र चक्र (उनके स्वामी ग्रह) जन्मपत्री में महादशाओं (ग्रहों) के चक्र के अनुसार ही होता है- केतु, शुक्र, सूर्य, चंद्र, मंगल, राहु, गुरु, शनि, बुध।

6. हाथ की अंगुलियों में स्थित महीने अंगुलियों के 12 पर्वों में 12 महीने स्थित होते हैं। तर्जनी के प्रथम नख वाले पर्व में ‘मार्च’ तिथि से ‘अप्रैल’ एवं तृतीय में ‘मई’ माह का निवास स्थान होता है। इसी प्रकार मध्यमा के प्रथम में ‘दिसंबर’, द्वितीय में ‘जनवरी’ एवं तृतीय में ‘फरवरी’ तथा अनामिका के प्रथम पर्व में ‘जून’, द्वितीय में ‘जुलाई’ एवं तृतीय में अगस्त तथा कनिष्ठिका के प्रथम पर्व में ‘सितंबर’, द्वितीय में ‘अक्तूबर’ एवं तृतीय में ‘नवंबर’ माह का निवास स्थान होता है।

7. हाथ की अंगुलियांे में स्थित तिथि: कनिष्ठिका के पर्वों में नंदा तिथियां अर्थात् प्रतिपदा, षष्ठी एवं एकादशी (1, 6, 11) का निवास होता है। अनामिका में भद्रा अर्थात् द्वितीय, सप्तमी एवं द्वादशी (2, 7, 12), मध्यमा में जया अर्थात तृतीया, अष्टमी एवं त्रयोदशी (3, 8,13), तर्जनी में रिक्ता अर्थात् चतुर्थी, नवमी एवं चतुर्दशी (4, 9, 14) तथा अंगुष्ठ में पूर्ण अर्थात पंचमी, दशमी एवं अमावस्या या पूर्णिमा (5, 10, 15 या 30) तिथि का निवास होता है। कृष्ण पक्ष हो तो अंगूठे के आखिरी पर्व में अमावस्या अथवा शुक्ल पक्ष होने पर पूर्णिमा होती है। उपरोक्त ये तिथियां प्रत्येक अंगुली में क्रमानुसार प्रथम पर्व से ही स्थापित होती हैं। हाथ में भी जन्मकुंडली के समान किसी घटना के लिए निश्चित समय ‘काल निर्णय’ के अनुसार बताया जा सकता है। इसके अंतर्गत हस्तरेखाविद ‘कीरो’ काल निर्णय के लिए सप्तवर्षीय नियम की स्थापना करते हैं।

व्यवहार एवं अनुभव के आधार पर कीरो द्वारा प्रतिपादित सप्तवर्षीय काल गणना ही सटीक है। कीरो अपने सप्तवर्षीय पैमाने के अंतर्गत जीवन रेखा पर समय आकलन शुभ पर्वत के केंद्र बिंदु को आधार बनाकर, केंद्र बिंदु से मणिबंध की सर्वप्रथम रेखा तक एक रेखा अंकित करते हैं। यह रेखा जिस जगह जीवन रेखा को छूती है। वह काल गणना के अनुसार जिज्ञासु का जीवन रेखा पर 63वां वर्ष है एवं जिस स्थान पर शनि रेखा को स्पर्श करती है वह जिज्ञासु का शनि रेखा पर 21 वां वर्ष अंकित करती है। कीरो, शुक्र पर्वत के केंद्र बिंदु से हथेली के पीछे अंतिम छोर तक रेखा अंकित करने पर जो सीधी रेखा, जहां जीवन रेखा में संयोग कर रही हो, वह जीवन रेखा पर 49वां वर्ष एवं शनि रेखा पर 28वां वर्ष अंकित करती है। इसी तरह, शुक्र पर्वत के केंद्र बिंदु से कनिष्ठिका अंगुली के बाहरी आधार पर रेखा अंकित करने पर जो संयोग जीवन एवं शनि रेखा पर उपस्थित रहा हो वह जीवन रेखा पर शनि रेखा दोनों पर 35वां वर्ष दर्शाते हैं। शुक्र पर्वत केंद्र बिंदु से कनिष्ठिका एवं अनामिका के मध्य आधार बिंदु पर रेखा खींचने पर जीवन रेखा पर बनने वाला संयोग चिह्न 28वां वर्ष एवं शनि रेखा पर 42वां वर्ष बताती है।

शुक्र पर्वत केंद्र बिंदु से अनामिका एवं मध्यमा के बीच आधार बिंदु पर रेखा खींचने पर जीवन रेखा पर खींची गयी रेखा का संयोग बिंदु 21 वां वर्ष और शनि रेखा पर संयोग बिंदु 56वां वर्ष तक बनाती है। सूर्य जीवन रेखा पर 63वें वर्ष के बाद के हिस्से को पांच बराबर भागों में बाटा जाता है। तथा प्रत्येक में 7 वर्ष का अंतर देकर जीवन रेखा पर वर्ष अंकित करते हैं। ये क्रमशः 70, 77, 84, 91 एवं 98 वंे वर्ष आते हैं। इसी प्रकार शनि रेखा पर 56वें वर्ष के बाद के हिस्सों को भी पांच बराबर के हिस्सों में बांटकर काल गणना की जाती है। इसमें भी प्रत्येक में 7-7 वर्ष का अंतर देकर शनि रेखा पर वर्ष अंकित करते हैं। ये क्रमशः 63, 70, 77, 84 एवं 91 वर्ष आते हैं। अतः उपरोक्त के आधार पर हाथ में भी जन्मकुंडली के समान किसी घटना के लिए निश्चित समय बताया जा सकता है। सूर्य रेखा द्वारा जातक के जन्म मास का निर्धारण: लक्षण जन्म तिथि राशि

1. सूर्य रेखा का ठीक सूर्य पर्वत व सूर्य क्षेत्र से उद्भव हो तथा हृदय रेखा की ओर जा रही हो। रेखा पूर्णतः निर्दोष, स्पष्ट तथा मोटी हो। ऐसे जातकों के कानों पर बड़े-बड़े बाल भी होंगे। 14 अप्रैल से 14 मई मेष

2. सूर्य रेखा सूर्य पर्वत से कुछ हटकर हो तथा अन्य पूरक रेखाएं भी उपस्थित हों। रेखा कुछ वक्र हो साथ ही मोटी और स्पष्ट भी। 15 मई से 14 जून वृष

3. सूर्य रेखा टुकड़ों में फटी-फटी हो तथा सूर्य क्षेत्र पर बनी रेखाओं का झुकाव बुध क्षेत्र की ओर हो। 15 जून से 16 जुलाई मिथुन

4. सूर्य रेखा अंत में बहुशाखी हो रही हो। 17 जुलाई से 16 अगस्त कर्क

5. दो रेखाएं सूर्य क्षेत्र पर परस्पर समानान्तर हो और अंत में द्विशाखी हो। 17 अगस्त से 16 सितंबर सिंह

6. सूर्य रेखा सूर्य पर्वत से कनिष्ठा की ओर मुड़ रही हो और बुध से अधिक प्रभावित हो रही हो। 17 सितंबर से 17 अक्तूबर कन्या

7. सूर्य रेखा किंचित तिरछापन लिए टुकड़ों में खंडित और छिन्न-भिन्न अवस्था में हो। 14 अक्तूबर से 15 नवंबर तुला

8. सूर्य रेखा सूर्य स्थल से उत्पन्न होकर कुछ तिरछेपन के साथ निम्न मंगल की ओर मुड़ रही हो या इससे संबंधित किसी अन्य रेखा का झुकाव निम्न मंगल की ओर हो। 16 नवंबर से 15 दिसंबर वृश्चिक

9. सूर्य रेखा यदि प्रारंभ में ही द्विशाखी हो तथा इसकी एक शाखा बृहस्पति पर्वत की ओर झुक रही हो। 16 दिसंबर से 13 जनवरी धनु

10. सूर्य रेखा की कोई शाखा आगे बढ़कर शनि पर्वत पर जा रही हो। 14 जनवरी से 12 फरवरी मकर

11. सूर्य रेखा की कोई सहायक रेखा स्पष्ट हो और शनि पर्वत पर जा रही हो। इस रेखा का स्पष्ट और सरल होना ही इसे मकर राशि से भिन्न बनाता है। 13 फरवरी से 14 मार्च कुंभ

12. सूर्य रेखा की कई रेखाएं हांे और इन पर गुरु क्षेत्र का प्रभाव दिख रहा हो 15 मार्च से 13 अप्रैल मीन जन्मांग के द्वारा भाव तथा उनका प्रतिनिधित्व करने वाले हस्तावयव कुंडली के भाव हथेली के विभिन्न अवयव प्रथम भाव जीवन रेखा, अंगूठा द्वितीय भाव धन रेखा, सूर्य रेखा तृतीय भाव कीर्ति रेखा, सहोदर रेखा चतुर्थ भाव मस्तिष्क रेखा, हृदय रेखा, मातृ रेखा पंचम भाव बुध पर्वत, संतान रेखा, विद्या रेखा षष्ठ भाव शत्रु रेखा, शनि पर्वत, स्वास्थ्य रेखा आड़ी रेखाएं सप्तम भाव विवाह रेखा, शुक्र पर्वत अष्टम भाव आयु रेखा, मंगल क्षेत्र नवम भाव भाग्य रेखा, मणिबंध दशम भाव भाग्य रेखा, उघ्र्व रेखा, मंगल का मैदान एकादश भाव गुरु पर्वत, शनि पर्वत अन्य शुभ चिह्न द्वादश भाव आडी रेखाएं, चिंता रेखाएं, राहु-केतु का क्षेत्र



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