राहु केतु की स्थितियां एवं प्रभाव
राहु केतु की स्थितियां एवं प्रभाव

राहु केतु की स्थितियां एवं प्रभाव  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 3730 | मार्च 2006

शुभ योग, जैसे पंच महापुरुष, गजकेसरी, वसुमति आदि हों, तो काल सर्प योग उन्हें अर्द्धफलित करने की कोशिश करता है। यदि शुभ योग कमजोर हों, तो उन्हें निष्फल भी करता है। यदि कोई शुभ योग नहीं हो और काल सर्प योग हो, तो यह ज्यादा भयंकर हो जाता है। उसके कुप्रभाव देखने को मिलते हैं, जैसे दुर्घटना, जेल यात्रा, सुदामा जैसी निर्धनता आदि। यदि कुंडली में अशुभ योग हो तथा काल सर्प योग भी हो, तो यह अत्यंत विकराल बन जाता है और इसके भयंकर दुष्परिणाम सामने आते हैं

जैसे अल्पायु, सर्पदंश, भूत-प्रेत बाधा, समाज में निंदा आदि। राहु लग्न में और केतु सप्तम में: ऐसी स्थिति में शारीरिक कष्ट, अपयश, स्त्री से अनबन, सिर में चोट, विषपान, चलते-चलते झगड़े आदि होने की संभावना रहती है। गोमेद पहनने से कुछ शांति मिलती है। राहु धन स्थान में और केतु अष्टम में: इसमें चोरी, धन गमन, मुकदमे, धन का व्यय, भूत-प्रेतों से परेशानी, अकारण मृत्यु, गले, आंख, नाक, कान की बीमारियांे आदि का भय रहता है। राहु तृतीय में और केतु नवम् में: भाई-बहन से झगड़ा, आलस्य, शरीर की शिथिलता, पिता से दूरी, हाथों में कष्ट आदि हो सकते हैं।

राहु चतुर्थ में और केतु दशम में: जमीन जायदाद के झगड़े, माता को कष्ट, पिता के घर छोड़ने, फेफड़ों के रोग आदि की संभावना रहती है। राहु पंचम में और केतु एकादश में: संतान कष्ट, संतान से झगड़ा, परीक्षाओं में असफलता, सट्टे में हानि, आमदनी में कमी, उदर रोग आदि का भय रहता है। राहु षष्ठ में और केतु द्वादश में: लंबी बीमारी, शत्रु से परेशानी, मुकदमा, धंधे की कमी, विदेश गमन से कष्ट, जेल यात्रा और गुर्दे, हर्निया, अपेंडिसाइटिस के रोग की संभावना रहती है।

राहु सप्तम में और केतु लग्न में: स्त्री से झगड़ा, तलाक, गर्भपात, परस्त्री भोग एवं बदनामी, योनि तथा जननेंद्रिय संबंधी रोग, व्यापार में तनाव आदि का भय रहता है। राहु अष्टम मंे और केतु द्वितीय में: भूत-प्रेतों से परेशानी, दुर्घटनाएं, विदेश गमन, स्त्री सुख का अभाव, धन हानि, पेशाब के रोग आदि हो सकते हैं। राहु नवम में और केतु तृतीय में: पिता को कष्ट, पिता से झगड़े, उनकी मृत्यु, तरक्की में बाधा, पद में गिरावट, समाज में निंदा, जंघा, पैर, घुटने आदि के कष्ट की संभावना रहती है।


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राहु दशम में और केतु चतुर्थ में: पिता से झगड़ा, उनका घर छोड़ना, कार्य हेतु विदेश गमन, राजनीति में विशेष झगड़े, निलंबित होना, हृदय, फेफड़े आदि के रोग, काम धंधे की कमी आदि हो सकते हैं। राहु एकादश में और केतु पंचम मेंः बड़े भाई से झगड़ा, आय में कमी, नौकरी में परेशानी, सभी तरह के नुकसान, संतान कष्ट, बाहु-भुजा कष्ट, बदनामी आदि का भय रहता है। राहु द्वादश में और केतु षष्ठ में: मुकदमेबाजी, जेल यात्रा, विदेश गमन, विशेष खर्च, मृत्यु, सुदामा जैसी निर्धनता, आंखों के कष्ट आदि की संभावना रहती है।

राहु यदि मिथुन, कन्या, वृष या तुला राशि में हो, तो क्रूरता में कमी आती है। लेकिन यदि वह शत्रुक्षेत्री हो, अस्तगत हो, जैसे कर्क, सिंह, मेष या वृश्चिक राशि में हो, तो क्रूरता में वृद्धि होती है। वह नीच का हो, जैसे धन तथा मीन में, तो अत्यंत विकराल हो जाता है।



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