पोलियो
पोलियो

पोलियो  

अविनाश सिंह
व्यूस : 4505 | अकतूबर 2016

आयुर्वेदिक दृष्टिकोण: पोलियो का प्रभाव बच्चे-बूढे़ दोनों पर ही होता है। बूढ़ों को होने वाले पोलियो को अधरंग वात कहते हैं और बच्चे को होने वाले पोलियो को पक्षाघात या शैशवीय पक्षवध कहते हैं। आधुनिक चिकित्सा शास्त्र में इसे पोलियो मेलाइटिस कहते हैं।

रोग के कारण: पोलियो तीन प्रकार के विषाणु से उत्पन्न होता है, जिन्हें पोलियो मेलाइटिस वायरस प्ए प्प्ए प्प्प् कहते हैं। मानव जाति में पहले और तीसरे प्रकार के विषाणुओं से यह रोग होता है। संक्रमण के बाद इसकी उत्पत्ति 7 से 15 दिन में होती है। मानव शरीर इन जीवाणुओं का आश्रय स्थान है। मक्खी, गंदगी, दूषित दूध या पानी से शरीर में विषाणु का संक्रमण होता है। मुंह या गुदा से भी संक्रमण होता है।

पाचन संस्थान में पहुंचने के बाद इनकी संख्या बढ़ने लगती है। वहां से ये विषाणु खून में और खून से वात वाहक नाड़ी में पहुंच जाते हैं। इनके प्रसार के अनुरूप ही रोग की अवस्थाएं होती हैं और किसी भी अवस्था में रोग को रोका जा सकता है। रोग के लक्षण: पहली अवस्था में संक्रमण का आभास ही नहीं होता। विषाणु अन्नवाही प्रणाली में रहकर संख्या में बैठने लगते हैं। यहां किसी प्रकार के लक्षण नहीं पाये जाते। दूसरी अवस्था में विषाणु खून में प्रवेश करने की स्थिति में पहुंच जाते हैं।


Get Detailed Kundli Predictions with Brihat Kundli Phal


सिर दर्द, बुखार, गले में खराश इसके लक्षण हैं। यदि दूसरी अवस्था में रोकथाम न हो तो विषाणु वात नाड़ी संस्थान में प्रवेश कर जाते हैं। यह तीसरी अवस्था है। इसमें मस्तिष्क के आवरणों में उत्तेजना के लक्षण पाये जाते हैं। सिर दर्द, गर्दन में जकड़न और कड़ेपन का अनुभव होता है। इस अवस्था में पक्षाघात नहीं होता और धीरे-धीरे शरीर के अन्य अंगों में कड़ापन महसूस होता है। जब ये रोग के लक्षण देखें तो बच्चे को एक-दो सप्ताह बिस्तर पर पूर्ण आराम करने दें क्योंकि थोड़ी सी भी चोट, भाग-दौड़ इस अवस्था को पोलियो में बदल सकती है। पोलियो होने की अवस्था: पोलियो एक साल की आयु के बच्चों में, बिना किसी लक्षण या 1 से 4 दिन के बुखार के बाद हो सकता है।

इसलिए छह सप्ताह से नौ माह तक के बच्चे को एक-एक माह के अंतराल में पोलियो निरोधक औषधि की पांच खुराकें पिलाएं। डाॅक्टर की सलाह और देखभाल में इलाज करें। आयुर्वेद अनुसार पोलियो में रोगी की मालिश करनी चाहिए और सेंक देनी चाहिए। बच्चों का कोष्ठ मृदु होता है इसलिए उन्हें मुनक्का, गुलाब की कली, अगरवध जैसे द्रव्यों का हल्का विरेचन देना चाहिए। स्नायु पीड़ा कम करने के लिए और इनकी शक्ति वापिस लाने के लिए अभितुंडी रस, एकांगवीर रस, वृहदवात चिंतामणि, बृहदकस्तूरी भैरव जैसी दवाइयां रोगी की आयु के अनुसार वैद्य की सलाह से लेनी चाहिए।

बचाव: रोग के बारे में सतर्क रहना चाहिए और तुरंत उपचार करना चाहिए। बरसात में, यानी जून से सितंबर माह में इसका खतरा बढ़ जाता है। इस माह में सर्दी, जुकाम, खांसी या हल्का बुखार आये तो सतर्क रहना चाहिए और तुरंत वैद्य, हकीम या डाॅक्टर की सलाह ले उपचार करना चाहिए। ज्योतिषीय दृष्टिकोण: पोलियो शीघ्र उत्पन्न होने वाला संक्रामक रोग है, जो विषाणुओं से उत्पन्न होता है और इसके कारण शरीर का कोई भी भाग निष्क्रिय या संवेदनाशून्य हो जाता है। ज्योतिषीय दृष्टि से देखा जाए, तो संक्रमण राहु-केतु से होता है। निष्क्रियता का संबंध सूर्य और चंद्र से है क्योंकि पोलियो में विकलांगता भी है।

इसलिए शनि का प्रभाव भी विशेष महत्व रखता है। लग्न, लग्नेश, सूर्य, चंद्र यदि दुष्प्रभावों में रहेंगे, तो पोलियो रोग या अधरंग वात हो सकती है। अंगों में निष्क्रियता किसी भी आयु में आ सकती है लेकिन बचपन में होने वाली निष्क्रियता को पोलियो कहते हैं। इसलिए उपर्युक्त ग्रहों का प्रभाव बचपन में ही होगा अर्थात् ग्रहों की दशांतर्दशा, गोचर यदि बचपन में ही रहेगा तो पोलियो हो सकता है।


For Immediate Problem Solving and Queries, Talk to Astrologer Now


विभिन्न लग्नों में पोलियो

मेष लग्न: सूर्य षष्ठ भाव में चंद्र के साथ हो, राहु या केतु से दृष्ट हो, लग्नेश मंगल अष्टम भाव में, बुध सप्तम भाव में, शनि एकादश भाव में हो तो पोलियो हो सकता है।

वृष लग्न: सूर्य लग्न में राहु-केतु से दृष्ट या युक्त हो, शनि सूर्य से सप्तम हो, चंद्र शुक्र से युक्त एकादश या द्वादश भाव में हो तो पोलियो का खतरा रहता है।

मिथुन लग्न: लग्नेश बुध वक्री और अस्त होकर लग्न या चतुर्थ भाव में हो, मंगल दशम भाव में चंद्र से दृष्ट या युक्त हो, राहु या केतु लग्न, सूर्य और चंद्र पर दृष्टि दे तो पोलियो रोग की संभावना होती है।

कर्क लग्न: लग्नेश चंद्र शनि से युक्त दशम भाव में हो, सूर्य द्वादश भाव में राहु-केतु से दृष्ट हो, बुध लग्न में हो तो पोलियो हो सकता है।

सिंह लग्न: सूर्य षष्ठ भाव में शनि से युक्त या दृष्ट, राहु लग्न में या लग्न पर दृष्टि रखे, बुध पंचम भाव में चंद्र से युक्त हो तो पोलियो रोग होता है।

कन्या लग्न: लग्नेश त्रिक भावों में सूर्य से अस्त हो और केतु के प्रभाव में भी हो, मंगल लग्न में या लग्न को देखता हो, शनि अपनी शत्रु राशि में हो और चंद्र पर उसकी दृष्टि हो, तो पोलियो होने की संभावना रहती है।

तुला लग्न: शुक्र अष्टम भाव में और गुरु लग्न में हो, शनि सूर्य से अस्त हो, राहु की दृष्टि लग्नेश पर हो, चंद्र राहु-केतु के प्रभाव में हो तो पोलियो हो सकता है।

वृश्चिक लग्न: लग्नेश मंगल अष्टम भाव में राहु या केतु से युक्त हो या सूर्य से अस्त होकर बुध से युक्त हो, चंद्र पर भी राहु या केतु की दृष्टि हो तो जातक को पोलियो जैसा रोग हो सकता है।

धनु लग्न: लग्नेश गुरु षष्ठ या अष्टम भाव में हो, चंद्र लग्न में होकर राहु या केतु से दृष्ट या युक्त हो, सूर्य शनि से दृष्ट या युक्त हो तो पोलियो जैसा रोग जातक को देता है।

मकर लग्न: गुरु लग्न में हो, शनि सूर्य से अस्त होकर त्रिक भावों में हो, चंद्र केतु से दृष्ट या युक्त हो, मंगल सप्तम भाव में हो तो पोलियो हो सकता है।

कुंभ लग्न: लग्नेश षष्ठ भाव में सूर्य से अस्त हो, केतु लग्न में या लग्न पर दृष्टि रखे, बुध सप्तम भाव में चंद्र से युक्त हो और गुरु की लग्न पर दृष्टि हो तो पोलियो रोग हो सकता है।

मीन लग्न: शुक्र लग्न में राहु या केतु से युक्त या दृष्ट हो, सूर्य तृतीय या एकादश भाव में हो और शनि से युक्त या दृष्ट हो, चंद्र द्वितीय भाव में बुध से युक्त हो, तो पोलियो रोग होता है।

रोग की उत्पत्ति संबंधित ग्रह, दशांतर्दशा और गोचर ग्रह के प्रतिकूल रहने तक शरीर में रोग रहता है। उसके उपरांत राहत मिल जाती है।


Book Durga Saptashati Path with Samput




Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.