ग्रह और वकालत
ग्रह और वकालत

ग्रह और वकालत  

यशकरन शर्मा
व्यूस : 9388 | मई 2014

एक अच्छा वकील बनने के लिए जातक की कुण्डली में कभी न खत्म होने वाली मानसिक ऊर्जा, तीव्र बुद्धि, शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता एवं वाक्पटुता के कारक गुरु व बुध का बलवान होना आवष्यक है। इसके अतिरिक्त ग्रह मण्डल में गुरु ग्रह को न्याय का कारक माना गया है इसीलिए गुरु ग्रह से प्रभावित जातक न्यायाधीषादि जैसे उच्च पदों पर आसीन होते हैं। ग्रहमण्डल में शनि को मजिस्ट्रेट या दण्डाधिकारी के रूप में जाना जाता है।

अतः वकालत के क्षेत्र में सफलता हेतु कुण्डली में गुरु, बुध व शनि के बल की नाप-तौल करनी होगी। व्यावहारिक रूप में देखा गया है कि जिन जातकों की कुण्डली में शुक्र की स्थिति श्रेष्ठ होती है वे भी धनी एवं सफल वकील बनते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शुक्र ग्रह से प्रभावित जातकों में सांसारिकता की बहुत अच्छी समझ होती है जिसके फलस्वरूप वे सच को झूठ और झूठ को सच बनाने में माहिर होते हैं। राहु ग्रह का विषेष प्रभाव- कई बार ऐसा देखा गया है कि वकील लोग मुकद्दमे में विजय हासिल करने के लिए झूठे बयान देते हैं और कूटनीतिपूर्ण व्यवहार करते हैं। राहु इस प्रकार के कार्यों का कारक होता है।


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यदि राहु उपरोक्त वकालत कार्य के कारक भावों व ग्रहों से सम्बन्ध बनाए तो जातक के कुषल वकील बनने की सम्भावनाएं बढ़ जाती हैं। बहस करने के लिए वकील को साहसी भी होना चाहिए और मंगल ग्रह के बली होने से जातक साहसी होता है। उपरोक्त विष्लेषण से हम यह मान सकते हैं कि इस व्यवसाय में आगे बढ़ने के लिए गुरु, बुध व शनि के अतिरिक्त शुक्र एवं मंगल के महत्व को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। कुण्डली के छठे भाव से कोर्ट-कचहरी, कानून व मुकद्दमे आदि विषयों के बारे में विचार किया जाता है। कानून का सम्बन्ध न्याय व न्यायपालिका से है तथा नवम् भाव से न्याय का विचार किया जाता है। एक अच्छे वकील में सत्य को संसार के सामने लाने की योग्यता होती है और वे बेकसूर को दण्डित होने से बचा लेते हैं।

परन्तु आज कल वकील लोग सत्य से छेड़-छाड़ करके सफलता व धन प्राप्त करने की प्रक्रिया में तल्लीन रहते हैं। दोनों ही प्रकार के वकीलों को प्रभावषाली और ओजस्वी वाणी की आवष्यकता होती है। कुण्डली के द्वितीय भाव से वाक्पटुता, पंचम भाव से बुद्धि तथा दषम भाव से व्यवसाय का विचार किया जाता है। इसलिए द्वितीय, पंचम, षष्ठ, नवम भाव, इनके स्वामी व कारक बली होकर दषम भाव से सम्बन्ध स्थापित करने की स्थिति में जातक को सफल वकील बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।

यदि द्वितीय भाव का स्वामी उच्च राशिस्थ होकर केंद्र में वाणी के कारक बुध व अन्य शुभ ग्रहों से युक्त हो तथा गुरु भी उच्च राशिस्थ होकर केंद्र में विराजमान हो तो जातक सर्वश्रेष्ठ वकील होता है।


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