गंगा तट पर भारत माता मंदिर
गंगा तट पर भारत माता मंदिर

गंगा तट पर भारत माता मंदिर  

व्यूस : 4332 | जनवरी 2009
गंगा तट पर भारत माता मंदिर उत्तरांचल के हरिद्वार नगर में अन्य मंदिरों के अलावा भारत मंदिर भी है जो भारत माता को समर्पित है। इसकी स्थापना स्वामी सत्यमित्रानंद ने की और उद्घाटन पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी ने 15 मई, 1983 को किया। मंदिर का भवन आठ मंजिलों का है और इसकी लंबाई लगभग 175 फुट है। मंदिर का समस्त वास्तु शिल्प मांगलिक तांत्रिक संकेतों और साधना पद्धतियों को ध्यान में रखकर किया गया है। भूतल पर भारतमाता की प्रतिमा स्थापित है। श्वेत संगमरमर की 198 से. मी. की इस प्रतिमा के एक हाथ में अनाज की बालियां और दूसरे में दुग्ध पात्र हैं जो क्रमशः हरित और श्वेत क्रांति के परिचायक हैं। प्रतिमा के सामने भारतवर्ष का कंप्यूटर से बना मानचित्र है। इतिहास संजोने का स्वप्न : पहली मंजिल पर भारत के सभी संप्रदायों के श्रेष्ठ संतों और आचार्यों की प्रतिमाओं और चित्रों का मंदिर है। दूसरी मंजिल पर भारत की सन्नारियों, सतियों, साध्वियों को अर्पित सती मंदिर है। तीसरी मंजिल पर शूरमंदिर है, जहां श्रेष्ठ बलिदानी वीरों के विग्रह स्थापित हैं। चौथी मंजिल पर एक विशाल सभागार है और पांचवीं पर नवदुर्गाओं के साथ शक्ति के विभिन्न स्वरूप हैं। छठी मंजिल विष्णु के दशावतारों के विग्रहों की है। सर्वोच्च शिखर मंजिल पर आसीन हैं आशुतोष भगवान शिव, सदशिव की आनंद मुद्रा के साथ-साथ अर्धनारीश्वर और नटराज की विभिन्न मुद्राओं की प्रतिमाएं। ऊपर की तीनों मंजिलों में गणमान्य धर्माचार्यों, राजपुरुषों, विद्वानों, कलाकारों और देश विदेश के हजारों व्यक्तियों की उपस्थिति में प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम रोमांच उत्पन्न करता है। भारत माता मंदिर में जैन, बौद्ध, मुस्लिम, सिख, पारसी, ईसाई आदि विभिन्न धर्मों और संप्रदायों के श्रेष्ठ संतों और महात्माओं का चित्रमय जीवन भी अंकित है। देश की सभी संस्कृतियों की धारा की एक भारतीय धारा के रूप में स्पष्ट अभिव्यक्ति है। इस विराट मंदिर में कहीं भी पारंपरिक दान पात्र नहीं रखे गए हैं। भारतीय संस्कृति की रक्षा शूर वीरों, सतियों एवं संतों ने की है। ये तीनों वर्ग किसी भी देश के श्रद्धा केंद्र होते हैं। परिसर में संतों, शूर वीरों, सतियों एवं शक्ति को समर्पित मंदिर भी हैं। संत मंदिर : जिन महापुरुषों ने इस देश को एकता के सूत्र में पिरोया, मनुष्य जाति को समय-समय पर नया जीवन प्रदान किया, प्रेम, भक्ति और ज्ञान की अजस्र मंगलमयी धारा प्रवाहित की, उन संतों का यहां एक विशिष्ट मंदिर है। इसमें तथागत बुद्ध, महाश्रमण महावीर, जगद्गुरु श्री शंकराचार्य, श्री रामानुजाचार्य, श्री बल्लभाचार्य, श्री निम्बार्काचार्य, श्री मध्वाचार्य, श्री चैतन्य महाप्रभु, गुरु नानक, गोस्वामी तुलसीदास, संत रविदास, संत ज्ञानेश्वर, संत कबीर, नरसी मेहता, स्वामी दयानंद, स्वामी विवेकानंद, सत्य साईं बाबा और जलाराम बाबा की मूर्तियां हैं। शक्ति मंदिर : संत मंदिर के ऊपर के तल पर शक्ति मंदिर है। इसमें प्राचीन ग्रंथों में वर्णित नव दुर्गा की नौ मूर्तियों के अतिरिक्त दक्षिण की मीनाक्षी, गुजरात की अंबा, गायत्री और सरस्वती की मूर्तियां स्थापित हैं। शूर मंदिर : ऊपर के प्रथम तल पर गुरु गोविंद सिंह, महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी, महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह जैसे शूर वीरों की मूर्तियां हैं। भारत माता के दर्शन के बाद श्रद्धालु जन इन शूर वीरों के दर्शन करते हैं। सती मंदिर : शूर मंदिर के बाद भारत की महिमामयी मातृशक्ति के दर्शन कराने वाला सती मंदिर है। यहां वैदिक काल से लेकर आधुनिक युग तक की सती माताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। नारियों के प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए ऋषियों ने कहा है, 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता' अर्थात जहां स्त्रियों का सम्मान होता है, वहीं देवतागण वास करते हैं। यह मंदिर भारतीय समाज में नारी के महत्व को दर्शाता है। इसमें गार्गी, सावित्री, अनुसूया, उर्मिला, दमयंती, मीरा और महारानी लक्ष्मी बाई की मूर्तियां हैं। विष्णु मंदिर : यहां भगवान विष्णु का भी एक मंदिर है जिसमें सीताराम, राधाकृष्ण, लक्ष्मीनारायण, श्री वेंकटेश, भगवान श्रीनाथ और रणछोड़ की प्रतिमाएं स्थापित हैं। शिव मंदिर : परिसर में एक मंदिर देवाधिदेव महादेव को भी समर्पित है। समुद्र मंथन के समय जब हलाहल विष समुद्र से निकला, तब सभी सुरासुर भगवान शंकर के पास गए। उस विष को और कोई धारण नहीं कर सकता था। सबको कल्याण प्रदान करने वाले भगवान शिव ने उसका पान करना स्वीकार किया। भगवान शंकर ने विचार किया कि यदि यह विष उनके कंठ के नीचे जाता है तो हृदय में विराजमान उनके आराध्य भगवान श्री राम को कष्ट होगा और पान नहीं करते हैं तो सारा विश्व समाप्त हो जाएगा, अतः उन्होंने उसे कंठ में ही रोक लिया। इसी कारण उनकी एक संज्ञा नीलकंठ है। संसार के परम शिव, कल्याण और सुख के प्रदाता भगवान शंकर के दर्शन कर, उस परम कृपालु नीलकंठ को प्रणाम कर हम धन्य बनें इसी उद्देश्य से सबसे ऊपरी खंड में शिव मंदिर का निर्माण हुआ। इसमें शिव की रजतमूर्ति, अर्धनारीश्वर और नटराज की भव्य प्रतिमाएं स्थापित हैं। अधिक ऊंचाई स्थित इस मंदिर में जाने के लिए लिफ्ट की व्यवस्था है। संस्कृति मंडप : मंदिर के परिसर में एक विशाल एवं आकर्षक मंडप है, जहां भारत की सांस्कृतिक गरिमा, वैभव तथा अन्य देशों में उसके प्रचार-प्रसार को दृश्य-श्रव्य के आधुनिकतम माध्यम से प्रदर्शित किया जाता है। यह संस्कृति मंडप के नाम से विखयात है। संन्यासी यदि सचमुच कर्मठ, लोकोपकारी और समाज तथा संस्कृति का हित साधक हो, तो हर युग में पूज्य होता है। इस दृष्टि से स्वामी सत्यमित्रानंद परम पूज्य हैं। हरिद्वार में भारत माता मंदिर के रूप में फूंका हुआ उनका समन्वय मंत्र देश, समाज और संस्कृति के प्रति निष्ठा का प्रतीक है।



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