हिन्दू पर्वो की गणना विस्तृत रूप में धर्मशास्त्रों में जैसे धर्म सिन्धु व निर्णय सिन्धु आदि ग्रन्थों में दी गई है लेकिन फिर भी फरवरी माह में महाशिवरात्रि दो तारीखों में मनाई गई। कारण यह था कि लखनऊ से पूर्व में सूर्योदय आदि पहले होने के कारण गणना एक थी व उसके पश्चिम में दूसरी। मुख्य पर्वो की गणना एक हो इसके लिए आवश्यक है कि सभी विद्वानगण मिलकर प्रत्येक पर्व के लिए एक स्थान निश्चित करें जहां पर वह मुख्य रूप से मनाया जाता है। इसी स्थान से फिर पर्व की गणना कर भ्रम दूर हो सकेगा।
कम्प्यूटर द्वारा गणना तो सटीक हो सकती है लेकिन गणना के आधार पूर्ण रूप से निश्चित होने चाहिए। इस लेख के माध्यम से कुछ मुख्य पर्वो के स्थान निश्चित करने की दिशा में हम एक कदम उठाने जा रहे हैं। कौन से पर्व के लिए कौन सा स्थान चयन करना चाहिए कारण सहित उल्लेख किया जा रहा है।
इसी क्रम में 7-8 अप्रैल को उज्जैन में भी सम्मेलन में एक सत्र निर्धारित किया गया है।
माघ स्नान: यह पर्व माघ माह में मनाया जाता है। इस दिन गंगा नदी में स्नान करने का महात्म्य माना गया है और गंगा नदी हिमालय से लेकर कोलकाता तक बहती है। परंतु काशाी को सबसे बड़ा तीर्थस्थान माना गया है इसलिए माघ स्नान के लिए वाराणसी (काशी) को ही आधार माना जाना चाहिए।
लोहड़ी: मकर संक्रांति के पहले दिन यह पर्व मनाया जाता है। यह त्यौहार पंजाब में विशेषकर मनाया जाता है और अमृतसर को प्रमुख स्थान माना गया है क्योंकि पंजाब के लोगों का सबसे महत्वपूर्ण तीर्थस्थल स्वर्ण मंदिर अमृतसर में ही है।
मकर संक्रांति: निरयण पद्धति के आधार पर सूर्य मकर राशि में जिस दिन प्रवेश करता है उस दिन मकर संक्रांति मनायी जाती है और यह पर्व गंगा स्नान से संबंधित होने के कारण इसके प्रमुख स्थल काशी, वाराणसी इसका आधार स्थल है।
बसंत पंचमी: पूर्वाह्न व्यापिनी माघ शुक्ल पंचमी के दिन बसंत पंचमी का पर्व मनाया जाता है। यह पंजाब राज्य का प्रमुख पर्व है और अमृतसर इसका प्रमुख स्थान है।
महाशिवरात्रि: निशीथ व्यापिनी फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाता है। अतः शिवजी के तीर्थस्थल कैलाश मानसरोवर इसका आधार स्थल होना चाहिए।
होलिका दहन एवं धुलैंडी: प्रदोष व्यापिनी फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है एवं अगले दिन होली खेली जाती है। बरसाना (मथुरा) की होली प्रसिद्ध है। इसलिए होलिका दहन और धुलैंडी पर्व के लिए मथुरा को ही आधार माना गया है।
चैत्रीय नवरात्र: सूर्योदयकालीन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवरात्र प्रारंभ होकर चैत्र शुक्ल नवमी तक चैत्रीय नवरात्र होते हैं। यह पर्व उत्तर भारत में मुख्य रूप से माना जाता है और मां दुर्गा का सबसे महत्वपूर्ण मंदिर एवं तीर्थस्थान वैष्ण् ाोदवी मंदिर माना गया है जो कि जम्मू कश्मीर में स्थित है इसलिए यही उचित स्थान है।
रामनवमी: मध्याह्न व्यापिनी चैत्र शुक्ल नवमी के दिन रामनवमी का पर्व मनाया जाता है और यह भगवान श्रीराम के जन्मस्थान अयोध्या में हुआ था। इसलिए अयोध्या ही उचित स्थान है।
हनुमान जयंती: यह पर्व उत्तर और दक्षिण भारत में अलग-अलग तिथियों पर मनाया जाता है। उत्तर भारत में चैत्र शुक्ल पूर्णिमा के दिन तथा दक्षिण भारत में मध्य रात्रिकाल में कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को मनाते हैं।
शास्त्रों के अनुसार भगवान हनुमान जी का जन्म स्थान अजनेरा हिल्स की पहाड़ियों में है जो कि महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित हैं। अतः इस पर्व के लिए नासिक (महाराष्ट्र) उचित स्थान होगा।
बैशाखी: मेष संक्रांति के दिन मुख्य रूप से पंजाब में बैशाखी मनायी जाती है। इसके लिये पंजाब के आनंदपुर साहब, रूद्रनगर को आधार माना जाना चाहिए।
अक्षय तृतीया: पूर्वाह्न व्यापिनी वैशाख शुक्ल तृतीया को मनाते हैं। इस दिन गंगा स्नान का महत्व है अतः काशी, वाराणसी को आधार माना जाना चाहिए।
गंगा दशहरा/निर्जला एकादशी: पुर्वाह्न व्यापिनी ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन गंगा दशहरा एवं सूर्योदयकालीन एकादशी के दिन निर्जला एकादशी का पर्व मनाते हैं। इन दोनों पर्वो का काशी से संबंध है अतः वाराणसी इन पर्वो का आधार होना चाहिए।
देवशयन/देवप्रबोधिनी एकादशी: सूर्योदयकालीन आषाढ़ शुक्ल एकादशी को देवशयन एकादशी और कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन देवप्रबोधिनी एकादशी मनायी जाती है। देवताओं में विष्णु जी का प्रमुख स्थल बद्रीनाथ मंदिर है। अतः इन पर्वो के लिए बद्रीनाथ धाम को आधार स्थल मानना चाहिए।
गुरु पूर्णिमा: त्रिमुहूर्त व्यापिनी की आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनायी जाती है और शास्त्रों में इसका संबंध वाराण् ासी के सारनाथ मंदिर से होने के कारण इसी को पर्व निर्णय का आधार माना जाना चाहिए।
हरियाली तीज: तीजों का यह पर्व उत्तर भारत में श्रावण शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है और राजस्थान में प्रमुख रूप से मनाये जाने के कारण इसकी राजधानी जयपुर को पर्व निर्णय का स्थल माना जाना चाहिए।
जन्माष्टमी: भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि राहिणी नक्षत्र में यह पर्व मनाते हैं और श्रीकृष्ण जी का जन्मस्थल मथुरा होने के कारण यही इस पर्व का निर्णय स्थल होगा।
गणेश चतुर्थी (गणपति स्थापना): मध्याह्न व्यापिनी भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी में गणपति स्थापना का पर्व महाराष्ट्र के मुंबई शहर में प्रमुख रूप से मनाया जाता है। अतः यही उचित स्थल होगा।
राधाष्टमी: अपराह्नकालीन भाद्रपद शुक्ल अष्टमी के दिन यह पर्व होता है। राधा जी का संबंध हडसर चंबा, म.प्र. से होने के कारण इस पर्व का आधार वही होना चाहिए।
अनंत चतुर्दशी: द्विमुहूर्त व्यापिनी भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी को यह पर्व होता है। इस दिन महाराष्ट्र में गणपति जी की मूर्ति का जल विसर्जन किया जाता है। इसलिए यही उचित स्थान होगा।
श्राद्ध: श्राद्ध की अवधि अपराह्नकालीन भाद्रपद पूर्णिमा से सूर्योदयकालीन आश्विन अमावस्या के दिन तक होता है। श्राद्ध कर्म के लिए गया (बिहार) को सबसे महत्वपूर्ण स्थल होने के कारण उचित स्थान होगा।
शारदीय नवरात्र: सूर्योदयकालीन आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से सूर्योदयकालीन आश्विन शुक्ल नवमी तक शारदीय नवरात्र होते हैं। इन दिनों देवी जी की पूजा पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर में प्रमुख रूप से की जाती है। इसलिए यही उचित स्थान होगा।
दशहरा: श्रवण नक्षत्र से युक्त अपराह्नकालीन आश्विन शुक्ल दशमी के दिन दशहरा मनाया जाता है। इस पर्व को कर्नाटक राज्य के मैसूर नगर में बड़ी धूमधाम के साथ मुख्य रूप से मनाते हैं। इसलिए यही उचित स्थान होगा।
शरद पूर्णिमा: निशीथव्यापिनी आश्विन पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा मनाते हैं। यह लक्ष्मी जी का पर्व है। समुद्र मंथन में लक्ष्मी जी उत्पन्न हुई थीं। अतः दक्षिण में स्थित कन्याकुमारी उचित स्थान होगा।
करवा चैथ: चंद्रोदयकालिक कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को करवा चैथ मनाते हैं। इसका संबंध सती सावित्री से है। सती सावित्री के पिता मदरा के राजा थे जो वर्तमान समय में खम्माम जिले में है। अतः यही उचित स्थान होगा।
धनतेरस: प्रदोषव्यापिनी कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को धनतेरस मनाते हैं। यह पर्व धन की देवी मां लक्ष्मी से संबंधित है और लक्ष्मी जी का संबंध कन्याकुमारी से होने के कारण यही उचित स्थान होगा।
दीपावली: प्रदोष काल में कार्तिक अमावस्या को भगवान राम की अयोध्या वापसी की खुशी में दीपावली मनायी जाती है। इसलिए अयोध्या ही उचित स्थान होगा।
गोवर्धन पूजा: साढ़े तीन प्रहर व्यापिनी कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। गोवर्धन पर्वत मथुरा में स्थित होने के कारण मथुरा ही उचित स्थान है।
भैया दूज: अपराह्नव्यापिनी कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यह पर्व मनाते हैं। यह उत्तर भारत का प्रमुख पर्व होने के कारण बिहार और यू.पी के बीच लखनऊ उचित स्थान है।
सूर्य षष्ठी (छठ): पराविद्धा कार्तिक शुक्ल सप्तमी युक्त षष्ठी के दिन मनाया जाता है। यह बिहार राज्य का प्रमुख पर्व है। अतः इसकी राजधानी पटना को इस पर्व का निर्णय स्थल माना जा सकता है।