रुद्राक्ष की उत्पत्ति एवं महत्व
रुद्राक्ष की उत्पत्ति एवं महत्व

रुद्राक्ष की उत्पत्ति एवं महत्व  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 4628 | मई 2006

भारत में रुद्राक्ष मुख्यतः बंगाल एवं असम के जंगलों में, तथा हरिद्वार एवं देहरादून के पहाड़ी क्षेत्रों में तथा दक्षिण भारत के नीलगिरी मैसूर और अन्नामलै क्षेत्र में पाया जाता है। नेपाल में रुद्राक्ष के वृक्ष अधिक पाए जाते हैं। रुद्राक्ष के वृक्ष सामान्य रूप से आम के वृक्षों की तरह होते हैं। आम के पत्तों की तरह इसके पत्ते भी होते हैं। इसका फूल सफेद रंग का होता है इसके फल हरी आभा युक्त नीले रंग के गोल आकार में आधा इंच ब्यास से लेकर एक इंच व्यास के होते हैं। इसके हरे फल को अगर खाया जाए, तो फलों का गूदा खाने में कुछ खट्टा सा लगता है।

इस वृक्ष के फलों को अनेक पक्षी, बड़े चाव से खाते हैं, उनमें मुख्य पक्षी नीलकंठ है जो अधिकतर उत्तर भारत में पाया जाता है। जब ये पक्षी कच्चे फल को खाकर उसकी गुठली जमीन पर गिरा देते हैं तो वह कच्चा फल माना जाता है और कसौटी पर खरा नहीं उतरता। इसके वृक्ष में हमेशा फूल और फल दिखते हैं। फल की गुठली पर प्राकृतिक रूप से कुछ धारियां होती हैं और धारियों के बीच का भाग रवेदार होता है।

गुठलियों पर आड़ी धारियों से ही रुद्राक्ष के मुखों की गणना की जा सकती है। रुद्राक्ष में फल लगने के आठ नौ माह के बाद सूख कर कठोर हो जाता है और स्वतः गिर जाता है। इन्हीं दानों को एकत्रित कर और उसका छिलका अलग कर लिया जाता है, यही रुद्राक्ष है। रुद्राक्ष के रंग तथा मुख एवं उसमें बने छिद्र प्राकृतिक रूप से होते हैं। ये मुख्यतः चार रंगों में पाये जाते हैं।

1. श्वेत वर्ण रुद्राक्ष

2. लाल वर्ण रुद्राक्ष

3. पीत वर्ण रुद्राक्ष

4. श्याम वर्ण रुद्राक्ष। रुद्राक्ष के छोटे एवं काले दानों के वृक्ष अधिकांशतः इंडोनेशिया, में पाए जाते हैं। तथा नेपाल में भी इसके कुछ वृक्ष हैं।


जीवन की सभी समस्याओं से मुक्ति प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करें !


इंडोनेशिया में विशेषतौर पर 1 मुखी, 2 मुखी और 3 मुखी पाया जाता है। यह रुद्राक्ष नेपाल में बहुत कम पाया जाता है। इसलिए 1 मुखी, 2 मुखी और 3 मुखी नेपाली दाना की कीमत ज्यादा होता है। रुद्राक्ष का महत्व रुद्राक्ष की नित्य पूजा एवं, धारण करने से या विविध रूपों में इसे उपयोग करने से अन्न वस्त्र एवं ऐश्वर्य की कमी नहीं होती तथा अनेक बीमारियों को दूर करने में रुद्राक्ष सहायक होता है। किसी भी रंग या किसी भी क्षेत्र का रुद्राक्ष अनेक सिद्धियों एवं रोगों के उपचार के लिए उपयोग में लाया जा सकता है।

रुद्राक्ष-पाप वृत्ति से दूर रखता है, हिंसक कार्यो से बचाता है भूत प्रेत एवं ऊपरी बाधांओं से रक्षा तथा पाप कर्मों को नष्ट करके पुण्य का उदय करता है। रुद्राक्ष को धारण करने से बुद्धि का विकास होता है। इस लोक में सुख भुगतने के बाद शिव लोक में जाने का अधिकार प्राप्त होता है।

रुद्राक्ष धारी व्यक्ति की अल्पमृत्यु नहीं होती एवं रुद्राक्ष दीर्घायु को प्रदान करता है। रुद्राक्ष से भोग और मोक्ष दोनों प्राप्त होते हैं। उपयोगिता मुख्यतः रुद्राक्ष पंद्रह प्रकार के पाए जाते हैं।

- जिसमें प्रथम गौरीशंकर से लेकर चतुर्दशमुखी तक रुद्राक्ष हैं, इसके अनेक प्रकार से लाभ हैं। यूं- तो रुद्राक्ष को वैज्ञानिक आधार पर बिना मंत्र का उच्चारण किए भी धारण किया जा सकता है। किंतु यदि शास्त्रीय विधि से रुद्राक्ष को अभिमन्त्रित करके धारण किया जाए तो अति उत्तम है। रुद्राक्ष को अभिमंत्रित करने से उसमें विलक्षण शक्ति उत्पन्न हो जाती है। इसकी विधि यह है कि किसी योग्य पंडित से रुद्राक्ष को अभिमंत्रित कराया जाए और फिर उसे उपयोग में लाया जाए प्रत्येक रुद्राक्ष के लिए ग्रंथों में अलग-अलग मंत्रों का उल्लेख मिलता है। जो निम्न हैं

- रुद्राक्ष का आधुनिक मूल्यांकन रुद्राक्ष अनेक रूपों में मानव जीवन के लिए उपयोगी है, इसे भस्म बनाकर उपयोग में लाया जाता है तथा जल शोधित किया जाता है, लिंग स्वरूप मान कर भी इसकी पूजा होती है। इसे अंगूठी में लगाकर धारण किया जाता है, माला बनाकर गले में धारण की जा सकती है। छोटे दानों को गला, कलाई एवं कमर में भी बांध कर इसे उपयोग में लाया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जातक के ग्रह प्रतिकूल होने पर रुद्राक्ष की माला धारण करने से ग्रहों का अनुकूल फल प्राप्त होता है। वैज्ञानिक आधार पर आज रुद्राक्ष अपनी कसौटी पर खरा उतर चुका है और लोगों को अनेक तरह से लाभ प्रदान कर रहा है।

रुद्राक्ष के दाने जैसे-जैसे छोटे होते हैं वैसे उनकी कीमत बढ़ती जाती है। परंतु एक मुखी एवं गौरीशंकर रुद्राक्ष का बड़े आकार का अधिक महत्व है तथा कलयुग में काला रुद्राक्ष अत्यधिक उपयोगी एवं लाभकारी माना गया है। इसकी पैदावार मुख्यतः इंडोनेशिया में होती है। रुद्राक्ष के प्रकार एवं उपयोग एकमुखी रुद्राक्ष यह रुद्राक्ष साक्षात भगवान शंकर का स्वरूप है। इससे भुक्ति व मुक्ति दोनों की प्राप्ति होती है। धारक पवित्र व पापमुक्त होकर परम्ब्रह्म की प्राप्ति करता है। यह अत्यंत दुर्लभ रुद्राक्ष है एवं अनेक कार्यो में सफलता प्रदान करता है।


Get the Most Detailed Kundli Report Ever with Brihat Horoscope Predictions


शिव उवाच- ¬ नमः श्रृणु षण्मुख तत्त्वेन वक्त्रे वक्त्रे तथा फलम्। एकवक्त्रः शिवः साक्षाद्ब्रह्म्राहत्यां व्यपोहति।। शिवजी स्वयं कार्तिकस्वामी से कह रहे हैं-हे षड़मुख ! कितने मुख वाला रुद्राक्ष किस प्रकार के फल को देने वाला है उसे ध्यान से सुनो ! एकमुखी रुद्राक्ष साक्षात् मेरा ही स्वरूप है तथा यह ब्रह्महत्या व पाप को दूर करने वाला है। एकमुखी रुद्राक्ष सर्वसिद्धि प्रदाता रुद्राक्ष कहा गया है। यह सात्त्विक शक्ति में वृद्धि करने वाला, मोक्ष प्रदाता रुद्राक्ष है। जिसके घर में यह रुद्राक्ष होता है

वहां लक्ष्मी का स्थायी वास हो जाता है तथा उसका घर धन-धान्य, वैभव, प्रतिष्ठा और दैवीय कृपा से भर जाता है। संक्षेप में यह धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को देने वाला चतुवर्ग प्रदाता रुद्राक्ष है।

उपयोग से लाभ

- जो मनुष्य उच्छिष्ट अथवा अपवित्र रहते हैं अथवा बुरे कर्म करने वाले होते हैं। वे इस रुद्राक्ष को स्पर्श करने से सभी पापों से मुक्त हो जाते हैं।

- इस रुद्राक्ष को कंठ में धारण करने वाला महत्वाकांक्षी होता है और उसके सभी कार्य सफल होते हैं।

- इसे सिर के ऊपर रखकर स्नान करने से अनेक गंगा स्नान का फल प्राप्त होता है।

- इस रुद्राक्ष को धारण करने से सभी देवता और देवियां स्वतः ही प्रसन्न हो जाते हैं तथा इच्छित फल प्रदान करते हैं।

उपयोग मंत्र- ¬ ह्रीं नमः। ¬ नमः शिवाय। दोमुखी रुद्राक्ष दोमुखी रुद्राक्ष को शंकर व पार्वती का रूप माना गया है अर्थात अर्धनारीश्वर रूप है। इसके उपयोग से धारक के सभी मनोरथ सिद्ध होते हैं। कार्य तथा व्यापार में सफलता मिलती है यह मोक्ष और वैभव का दाता है।

द्विवक्त्रो देवदेवेशो गोवधं नाशयेद्धु्रवम्।। दोमुखी रुद्राक्ष साक्षात् देवदेवेश का स्वरूप है। यह गोवध जैसे पापों से छुड़ाने वाला है। इसको धारण करने वाले व्यक्ति की अनेक व्याधियां स्वतः ही शांत हो जाती हैं। यह रुद्राक्ष भी चतुवर्ग सिद्धि प्रदाता है। आंवले के फल के बराबर दोमुखी रुद्राक्ष समस्त अनिष्टों का नाश करने वाला तथा श्रेष्ठ माना गया है।

इस रुद्राक्ष में पूर्णरूप से अंतगर्भित विद्युत तरंगे ं होती हैं। इन्हीं से इसकी शक्ति का पता चलता है। दोमुखी रुद्राक्ष के धारण करने से शिवभक्ति बढ़ती है और अनेक रोग नष्ट होते हैं। यह रुद्राक्ष कर्क लग्न वालों के लिए विशेष उपयोगी है।

उपयोग से लाभ

- वैदिक ऋषियों का यह मत है कि इसे धारण करने से मन को शांति मिलती है। उसका मुख्य कारण यह है कि यह शरीर की गर्मी को अपने में खींचकर गर्मी को स्वतः बाहर फेंकता है।

- यदि दोमुखी रुद्राक्ष की भस्म को स्वर्णमाच्छिक भस्म के साथ बराबर की मात्रा में एक रत्ती सुबह-शाम उच्च रक्तचाप के रोगी को दूध या दही अथवा मलाई के साथ दिया जाए तो चमत्कारी प्रभाव होता है।

- मसूरिका नामक दुर्दम्य रोग का नाश करने के लिए तीन दिन तक बासी जल के अनुपात से रुद्राक्ष एवं काली मिर्च का समभाग एक मासे से तीन मासे तक सेवन करने से मसूरिका रोग समूल नष्ट हो जाता है। उपयोग मंत्र-¬ नमः। ¬ शिवशक्तिभ्यां नमः। तीनमुखी रुद्राक्ष त्रिवक्त्रोग्निश्च विज्ञेयः स्त्रीहत्यां च व्यपोहति।। तीनमुखी रुद्राक्ष साक्षात अग्निदेव का स्वरूप है। यह स्त्री हत्या इत्यादि पापों को दूर करने वाला है।

इसे पहनने से शीत ज्वर ठीक हो जाता है। इसके धारण से विद्याओं की प्राप्ति होती है। मंदबुद्धि बालकों के लिए इसे धारण करना नितांत आवश्यक है। निम्न-रक्तचाप के निराकरण हेतु इसे पहना जा सकता है। इसे सत्व, रज और तम तीनों त्रिगुणात्मक शक्तियों का स्वरूप और इच्छा, ज्ञान और क्रिया का शक्तिमय रूप माना गया है। यह ब्रह्मशक्ति व खुशहाली दिलाने वाला रुद्राक्ष है।

उपयोग से लाभ

- तीनमुखी रुद्राक्ष के कुछ दाने तांबे के बर्तन में पानी डालकर भिगाये रखें। प्रत्येक 24 घंटे के अंतराल से इस रुद्राक्ष जल को खाली पेट प्रातः पीने से विभिन्न चर्म रोगों के निदान में सहायता प्राप्त होती है।

- इस रुद्राक्ष को पत्थर पर घिस कर नाभि पर लगाने से धातु रोग में लाभ होता है।

- तीन मुखी रुद्राक्ष की माला द्वारा जप करने से यश प्राप्त होता है एवं कामनाएं सिद्ध होती हैं।

- जो मनुष्य उच्छिष्ट अथवा अपवित्र रहते हैं अथवा बुरे कर्म करने वाले होते हैं। वे इस रुद्राक्ष के धारण से सभी पापों से मुक्त हो जाते हैं।

उपयोग मंत्र- ¬ क्लीं नमः। ¬ अग्नये नमः। चारमुखी रुद्राक्ष यह ब्रह्मा जी का स्वरूप माना गया है यह चारों वेदों का द्योतक है। मनुष्य को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्रदान करने वाला है। इसे धारण करने से मानसिक रोग दूर होते हैं तथा मन में सात्विक विचार उत्पन्न होते हैं एवं धर्म में आस्था बढ़ती है।

चतुर्वक्त्रः स्वयं ब्रह्मा नरहत्यां व्यपोहति।। चतुर्मुखी रुद्राक्ष स्वयं ब्रह्मा है तथा यह नर-हत्या इत्यादि जघन्य पाप को दूर करने वाला है। यह अभीष्ट सिद्धियों को देने वाला परम गुणकारी रुद्राक्ष है।


For Immediate Problem Solving and Queries, Talk to Astrologer Now


अनुकूल विद्या को प्राप्त करने में इससे सहायता मिलती है तथा सद्गुरु की प्राप्ति होती है। इसको धारण करने से मंदबुद्धि वालों की भी बुद्धि कुशाग्र हो जाती है। यह रुद्राक्ष धनु और मीन लग्न के जातकों के लिए अत्यंत लाभकारी माना गाया है। ऐसे जातकों को यह पूरी तरह लाभ प्रदान करता है।

उपयोग से लाभ

- यह रुद्राक्ष डाॅक्टर, इंजीनियर, अध्यापक आदि को भौतिक कार्य करने में सहायता प्रदान करता है।

- इसे धारण करने से व्यर्थ की चिंता नष्ट होती है तथा यह धर्म की ओर अग्रसर करता है और सफलता देता है।

- उदर तथा गर्भाशय से रक्तचाप तथा हृदय रोग से संबंधित अनेक बीमारियों के लिए चारमुखी रुद्राक्ष के कुछ दाने मिट्टी की हांडी में पानी डालकर भिगोए रखें प्रत्येक 24 घंटे पश्चात यह रुद्राक्ष जल खाली पेट प्रातःकाल पीने से निश्चित लाभ होगा।

- चारमुखी रुद्राक्ष धारण के पश्चात् सिद्धि आदि करने पर शीघ्र सफलता मिलती है। उपयोग मंत्र- ¬ ह्रीं नमः। ¬ ब्रह्मणे नमः। पांचमुखी रुद्राक्ष यह रुद्राक्ष कालाग्नि रुद्र का स्वरूप है इसके देवता कालाग्नि हैं इसके उपयोग से दुःख और दरिद्र नष्ट होता है। पुण्य का उदय होता है शारीरिक स्वास्थ्य प्राप्त होता है एवं यह पाप का नाशक है।

पंचवक्त्रः स्वयं रुद्रः कालाग्निर्नाम नामतः।। पंचमुखी रुद्राक्ष स्वयं कालाग्नि नामक रुद्र का स्वरूप है, पर स्त्री गमन करने से जो पाप बनता है तथा अभक्ष्य भक्षण करने से जो पाप लगता है वह सब पंचमुखी रुद्राक्ष के धारण करने से नष्ट हो जाते हैं।

इसमें कोई संशय नहीं, यह पंचतत्त्वों का प्रतीक है तथा अनेक औषधि कार्य में इसका उपयोग होता है। यह सर्वकल्याणकारी, मंगलप्रदाता एवं आयुष्यवर्द्धक है। महामृत्युंजय इत्यादि अनुष्ठानों में इसका ही प्रयोग होता है। यह अभीष्ट सिद्धि प्रदाता है। सर्वत्र सहज सुलभ होने के कारण इसका महत्व कुछ कम हो गया है परंतु शास्त्रीय दृष्टि से इसका महत्त्व कम नहीं है।

उपयोग से लाभ

- पंचमुखी रुद्राक्ष की माला पर महामृत्युंजय का जप एवं गायत्री जप शीघ्र सिद्धि प्रदान करता है।

- पंचमुखी रुद्राक्ष की माला पर ¬ नमः शिवाय का नित्य एक माला जप करने से मंत्र शीघ्र सिद्ध हो जाता है तथा इस मंत्र द्वारा किसी भी कार्य पूर्ति के लिए सफलता पाई जा सकती है।

- पंचमुखी रुद्राक्ष धारण करने से अभक्ष्य-भक्षण और पर स्त्री गमन जैसे- जघन्य अपराध भी भगवान शिव द्वारा नष्ट होते हंै। उपयोग मंत्र-¬ ह्रीं नमः। ¬ नमः शिवाय। छःमुखी रुद्राक्ष यह भगवान षडानन का स्वरूप है, इसके देवता भगवान कार्तिकेय हैं इससे धारक की सोई हुई शक्ति जाग्रत होती हैं। यह विद्या प्राप्ति के लिए श्रेष्ठ है तथा आत्मशक्ति संकल्प शक्ति और ज्ञान शक्ति प्रदान करता है।

षड्वक्तः कार्तिकेयस्तु धारयेद्दक्षिणे भुजे। भ्रूणहत्यादिभिः पापैर्मुच्यते नात्र संशयः।। षट्मुखी रुद्राक्ष स्वयं कार्तिकेय है। उसको जो मनुष्य अपनी दक्षिण भुजा में धारण करते हैं, वे भू्रणहत्या आदि से लेकर बड़े पापों से छूट जाते हैं।

इसमें कुछ संशय नहीं है। गुप्त शत्रु एवं प्रकट शत्रु नष्ट करने हेतु इस रुद्राक्ष का बड़ा भारी महत्व है इसलिए कुछ विद्वान इसे ’शत्रुंजय रुद्राक्ष’ भी कहते हैं। यह भी सब प्रकार की अभीष्ट सिद्धि को देने वाला कहा गया है। छःमुखी रुद्राक्ष वृष लग्न के जातक को अत्यधिक लाभ प्रदान करता है।


अपनी कुंडली में सभी दोष की जानकारी पाएं कम्पलीट दोष रिपोर्ट में


उपयोग से लाभ

- प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष शत्रु के शमन के लिए यह रुद्राक्ष अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसी कारण इसका एक नाम शत्रुंजय भी है

- विपत्ति काल में छःमुखी रुद्राक्ष की माला जप करने से विपत्ति से छुटकारा मिलता है एवं पीड़ाएं नष्ट होती हैं।

- बड़े आकार का छःमुखी रुद्राक्ष दाहिनी भुजा पर (पुरुष) धारण करने से बड़े से बड़ा पाप नष्ट होता है।

- छःमुखी रुद्राक्ष धारण करने से मनुष्य की सोई हुई शक्तियां जाग्रत होती हंै। स्मरण शक्ति प्रबल होती है और बुद्धि तीव्र होती है। यह रुद्राक्ष आत्मशक्ति, संकल्पशक्ति और ज्ञानशक्ति का दाता है।

उपयोग मंत्र- ¬ ह्रीं ह्रूं नमः। ¬ षडाननाय नमः। सातमुखी रुद्राक्ष यह सात आवरण, पृथ्वी, जल, वायु, आकाश, अग्नि व अंधकार का स्वरूप माना गया है। इसके देवता सप्तऋषि हैं इससे लक्ष्मी प्राप्ति होती है तथा धन-संपत्ति, कीर्ति बढ़ती है। सप्तवक्त्रो महासेन अनंतो नाम नामतः। स्वर्णस्तेयं गोवधंच कृत्वा पापशतानि च।। हे महासेन ! सप्तमुखी रुद्राक्ष ’अनंत’ नाम से विख्यात है। जिस मनुष्य ने सोने की चोरी की है, गोवध किए हैं अथवा अनेक प्रकार के सैकड़ों पाप किए हैं उनको यह पवित्र बना देता है।

यह रुद्राक्ष अभीष्ट सिद्धियों को देने वाला, पाप नाशक एवं भूमि प्रदाता है। ्राचीन काल में ऋषियों को यह अत्यंत प्रिय था और ऋषिगण प्रायः इसका उपयोग अत्यधिक किया करते थे। यह रुद्राक्ष वृष, कन्या, कुंभ लग्न के जातक को अत्यंत लाभ प्रदान करता है।

उपयोग से लाभ

- इसे धारण करने से अनेक विपरीत लिंग के लोग आकर्षित होते हैं तथा उनसे सहयोग सुख प्राप्त होता है।

- यह रुद्राक्ष धनागमन एवं व्यापार उन्नति में अत्यंत सहायक माना गया है।

- सातमुखी रुद्राक्ष धारण करने स दांपत्य सुख की वृद्धि होती है तथा पौरुष को बढ़ाता है।

- सातमुखी रुद्राक्ष धारण करने से पति-पत्नी के मध्य परस्पर सहयोग एवं सम्मान तथा प्रेम की वृद्धि होती है। उपयोग मंत्र- ¬ ह्रूं नमः। ¬ अनन्ताय नमः। आठमुखी रुद्राक्ष अष्टमुखी रुद्राक्ष को विनायक का रूप माना गया है इसके देवता वटुक भैरव हैं इससे धारक की विघ्न बाधाएं दूर होती हैं। आठों दिशाओं में विजय प्राप्त होती है व कोर्ट कचहरी के मामलों में सफलता मिलती है। अष्टवक्त्रो महासेन साक्षाद्देवो विनायकः।। हे महासेन ! अष्टमुखी रुद्राक्ष साक्षात गणेशजी का स्वरूप है तथा यह अष्टसिद्धि प्रदाता है। मानकूटादिक और परस्त्रीजन्य जो पाप हंै वे अष्टमुखी रुद्राक्ष धारण करने से नष्ट होते हैं। यह रुद्राक्ष गणेश रुद्राक्ष के नाम से जाना जाता है तथा गणेश विषयक अनुष्ठानों में शीघ्र सफलता प्रदान करता है। यह रुद्राक्ष मीन लग्न के जातकों के लिए अत्यंत लाभकारी माना गया है।

उपयोग से लाभ

- इस रुद्राक्ष की माला पर जप करने से गणेश की सिद्धि शीघ्र ही प्राप्त होती है तथा आठांे दिशाओं में विजय पताका लहराता है।

- यह रुद्राक्ष धारण करने से कोर्ट कचहरी के मामलों में सफलता मिलती है साथ ही दुर्घटनाओं एवं प्रबल शत्रुओं से रक्षा होती है तथा भूत, प्रेत, जिन्न, पिशाच आदि बाधाओं से रक्षा होती है - यह रुद्राक्ष धारण करने से गुरुपत्नी एवं दुष्ट स्त्री से किए गए सहवास का पाप नष्ट होता है।

- इस रुद्राक्ष को धारण करने से समस्त बाधाएं नष्ट होती हैं तथा धारक को परमपद की प्राप्ति होती है।

उपयोग मंत्र- ¬ ह्रूं नमः। ¬ श्री महागणाधिपतये नमः। नौमुखी रुद्राक्ष यह रुद्राक्ष नवशक्ति से संपन्न है इसके देवता भगवती दुर्गा हैं इससे धारक को नौ तीर्थों-पशुपति, मुक्तिनाथ, केदारनाथ, बद्रीनाथ, जगन्नाथ, सोमनाथ, पारसनाथ, वैद्यनाथ, द्वारका आदि तीर्थों का फल प्राप्त होता है इसे धर्मराज का स्वरूप माना गया है। इसे धारण करने से वीरता, साहस और कर्मठता में वृद्धि होती है। नवमं भैरवंनाम कपिलवर्णं मुक्तिदं स्मृतम्। धारणाद्वामहस्ते तु मम तुल्यो भवेन्नरः।।

नैामुखी रुद्राक्ष का नाम भैरव है, कपिलवर्ण है जो मनुष्य अपनी वाम भुजा में इसे धारण करते हैं वे भैरव तुल्य हो जाते हैं वस्तुतः ’भैरवनामक’ नवमुखी रुद्राक्ष नव प्रकार की निधियों का प्रदाता है। यह सभी अभीष्ट वस्तुओं का प्रदाता है। यह नवदुर्गा, नवग्रह, नव-नाथों एवं नवधा भक्ति का प्रतीक है। यह सभी अभिलषित वस्तुओं का प्रदाता है। नवमुखी रुद्राक्ष को लक्ष-हजार पापों को नष्ट करने वाला कहा गया है।

उपयोग से लाभ

- नौमुखी रुद्राक्ष धारण करने से तांत्रिक सिद्धियां शीघ्र प्राप्त होती हैं तथा तंत्र क्षेत्र का ज्ञान बढ़ता है।

- नौमुखी रुद्राक्ष को बायीं भुजा पर धारण करने से व्यक्ति को भैरवसिद्धि प्राप्त होती है तथा वह व्यक्ति तन, मन से सदा पवित्र रहता है।

- नौमुखी रुद्राक्ष की माला पर नवरात्रि में नवार्णमंत्र का जप करने से मंत्र सिद्ध हो जाता है एवं मां भगवती की कृपा प्राप्त होती है। इसी माला पर शुभ मुहूर्त में भैरवमंत्र का जप करने से भैरव कृपा प्राप्त होती है।

उपयोग मंत्र- ¬ महाभैरवाय नमः। ¬ ह्रीं ह्रूं नमः। दशमुखी रुद्राक्ष यह भगवान विष्णु का स्वरूप है

इसके देवता भगवान विष्णु हैं इससे सर्व ग्रहशांत होते हैं ग्रह बाधा के कारण यदि भाग्य साथ न दे तो अवश्य धारण करें यह धारक को बेताल, पिशाच, ब्रह्म, राक्षस आदि के भय से निर्भयता प्रदान करता है।

दश वक्त्रो महासेन साक्षाद्देवो जनार्दनः।। हे महासेन ! दशमुखी रुद्राक्ष साक्षात जनार्दन अर्थात विष्णु का स्वरूप है दशमुखी रुद्राक्ष के धारण करने से मनुष्य के सर्व ग्रह शांत रहते हैं और पिशाच, बेताल, ब्रह्म, राक्षस, सर्प इत्यादि का भय नहीं होता।

ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु के दसों अवतारों की शक्ति इसमें सन्निहित होती है। यह रुद्राक्ष सभी प्रकार की बाधाओं का नाश कर, सुख, शांति व समृद्धि का प्रदाता है। यह रुद्राक्ष मिथुन एवं कन्या लग्न के जातकों के लिए अत्यधिक लाभकारी माना गया है।


अपनी कुंडली में राजयोगों की जानकारी पाएं बृहत कुंडली रिपोर्ट में


उपयोग से लाभ

- दशमुखी रुद्राक्ष धारण करने से लौकिक एवं पर लौकिक कामनाएं पूर्ण होती हैं तथा सामाजिक कीर्ति एवं सम्मान प्राप्त होता है।

- दशमुखी रुद्राक्ष धारण करने से दशों इंद्रियों से किया गया पाप नष्ट होता है तथा पुण्य का उदय होता है।

- दशमुखी रुद्राक्ष समाजसेवक, वकील, नेता, कलाकार, कवि, लेखक, कृषक आदि के लिए धारण करना लाभदायक माना गया है।

- दशमुखी रुद्राक्ष क्षत्रिय वर्ण के पुरुषों के लिए वीरता प्रदान करता है एवं उनके कार्यों की सफलता हेतु सहयोग प्रदान करता है। उपयोग मंत्र- ¬ नमो नारायणाय। ¬ ह्रीं ह्रूं नमः। ग्यारहमुखी रुद्राक्ष इंद्र को इसका प्रधान देवता मानते हैं यह रुद्राक्ष ग्यारह रुद्रों की प्रतिमा होता है इसके धारण करने से सदा सुख में वृद्धि होती है। एकादशास्यो रुद्रा हि रुद्राश्चैकादश स्मृताः। शिखायां धारयेन्नित्यं तस्य पुण्यफलं श्रृणु।। हे स्कंद ! बारहमुखी रुद्राक्ष एकादश रुद्रों का ही स्वरूप है।

इस रुद्राक्ष को साक्षात शिव का प्रसाद समझकर जो व्यक्ति मस्तक में धारण करके या शिखा स्थान में बांधकर रखते हैं उन्हें हजार अश्वमेध-यज्ञ करने का फल, सौ वाजपेय-यज्ञ करने का फल और ग्रहण में दान करने से जो फल प्राप्त होता है वह फल इस रुद्राक्ष को विधिवत पूजन कर धारण करने से होता है। यह रुद्राक्ष वृश्चिक लग्न वाले जातकों के लिए धारण करना शुभ फलकारक होता है।

उपयोग से लाभ

- ग्यारहमुखी रुद्राक्ष एकादशी में सिखा या सिर पर धारण करने से विष्णु भगवान प्रसन्न होते हैं और अश्वमेध यज्ञ का फल प्रदान करते हैं।

- वन्ध्या स्त्री यदि विश्वास पूर्वक धारण करे तो उसे सन्तानवती होने का सौभाग्य प्राप्त होता है।

- ग्यारहमुखी रुद्राक्ष धारण करने से महारुद्र, वीरभद्र प्रसन्न होते हैं तथा इच्छा पूर्ति करते हैं।

- मस्तिष्क सम्बन्धी विकारों से पीड़ित व्यक्तियों तथा मस्तिष्कीय कार्य करने वाले लोगों को शक्ति प्राप्त होती है।

उपयोग मंत्र-¬ ह्रीं ह्रूं नमः। ¬ सर्वेभ्यो रुद्रेभ्यो नमः। बारहमुखी रुद्राक्ष यह भगवान विष्णु का स्वरूप है इसके देवता बारह सूर्य हंै। इसके धारण करने से दोनों लोकों में सुख की प्राप्ति होती है। गो हत्या मनुष्य हत्या व रत्नों की चोरी जैसे पाप इसके उपयोग से नष्ट होते हैं। नश्यन्ति तानि पापनि वक्त्रद्वादशधारणात्। आदित्याश्चैव ते सर्वो द्वादशैव व्यवस्थिताः।।

द्वादशमुखी रुद्राक्ष धारण करने से सभी पाप नाश हो जाते हैं क्योंकि सूर्य आदि से लेकर संपूर्ण आदित्य द्वादशमुखी रुद्राक्ष में वास करते हैं। इसलिए उन मनुष्यों को चोर, अग्नि का भय तथा अनेक प्रकार की व्याधि नहीं होती और वे अर्थवान होते हैं यदि दरिद्र भी हों तब भी भाग्यवान हो जाते हैं

हाथी, घोड़ा, हरिण, बिलाव, भैंसा, शूकर, कुत्ता, शृंगाल (सियार) अर्थात दाढ़ वाले सभी प्रकार के पशु वगैरा उन मनुष्यों को बाधा नहीं पहुंचा सकते। इस रुद्राक्ष को दांतों की संख्या के बराबर अर्थात् (32) की माला कंठ में धारण करने पर गो-वध, मनुष्य-हत्या एवं चोरी कार्य का पाप नष्ट हो जाता है। यह सब प्रकार की बाधाओं का कीलन करने वाला ‘आदित्यरुद्राक्ष’ नाम से जाना जाता है।


क्या आपकी कुंडली में हैं प्रेम के योग ? यदि आप जानना चाहते हैं देश के जाने-माने ज्योतिषाचार्यों से, तो तुरंत लिंक पर क्लिक करें।


उपयोग से लाभ

- यह रुद्राक्ष दरिद्रता को नष्ट करता है सभी प्रकार के भयानक पशुओं से रक्षा करता है।

- इस रुद्राक्ष की दांतों की संख्या के बराबर की माला कंठ में धारण करने से गो-वध, मनुष्य एवं चोरी जैसे पाप नष्ट होते हैं। - बारहमुखी रुद्राक्ष धारण करने से सभी प्रकार की बाधाएं नष्ट होती हैं मानसिक एवं शारीरिक पीड़ा से छुटकारा मिलता है। उपयोग मंत्र- ¬ क्रौं क्षौं रें नमः। ¬ द्वादशादित्येभ्यो नमः। तेरहमुखी रुद्राक्ष यह रुद्राक्ष स्वामी कार्तिकेय के समान है

यह संपूर्ण कामनाओं एवं सिद्धियों को देने वाला है। निःसंतान को संतान प्रदान करता है तथा सभी कार्यों में सफलता प्रदान करता है। त्रयोदशास्यो रुद्राक्षो साक्षाद्देव पुरंदर।। हे वत्स ! त्रयोदशमुखी रुद्राक्ष साक्षात इंद्र का स्वरूप है। जो मनुष्य तेरहमुखी रुद्राक्ष को धारण करते हैं

उनकी संपूर्ण मनोकामना सिद्ध होती है तथा वे अतुल संपत्ति के मालिक होते हुए भाग्यवान होते हैं। इसको धारण करने वाला व्यक्ति संपूर्ण धातुओं की रसायनिक सिद्धि का ज्ञाता हो जाता है। यह रुद्राक्ष समस्त प्रकार की शक्ति सिद्धिया को देने वाला है। यह रुद्राक्ष तुला लग्न वाले जातकों के लिए धारण करना शुभकारक होता है।

उपयोग से लाभ

- तेरहमुखी रुद्राक्ष धारण करने वाला व्यक्ति सभी प्रकार की धातुओं एवं रसायन आदि की सिद्धि का ज्ञाता होता है।

- यह रुद्राक्ष धारण करने से विश्वदेव प्रसन्न होते हैं तथा करोड़ों महापातक नष्ट हो जाते हैं।

- यह रुद्राक्ष धारण करने से व्यक्ति प्रतापी एवं तेजस्वी होता है तथा सम्पूर्ण मनोकामनाएं सफल होती हैं।

- तेरहमुखी रुद्राक्ष औषधि-विज्ञान, रसायन क्षेत्र, धातु कार्य आदि से जुड़े हुए व्यापारियों को धन एवं वैभव प्रदान करता है।

- इस रुद्राक्ष की माला पर तांत्रिक मंत्रों का जप करने से तंत्र क्रिया सिद्ध होती है।

उपयोग मंत्र- ¬ ह्रीं नमो नमः। ¬ इंद्राय नमः। चैदहमुखी रुद्राक्ष यह स्वयं भगवान शंकर का सर्वप्रिय रुद्राक्ष है यह हनुमान जी का स्वरूप है। यह चैदह विद्या, चैदह लोक, चैदह मनु, का साक्षात् रूप है। इसे धारण करने से सभी पापों से छुटकारा मिलता है व समस्त व्याधियां शांत हो जाती हैं तथा आरोग्य की प्राप्ति होती है। के लिए लाभकारी होता है। जो मनुष्य रुद्राक्ष को मंत्र सहित धारण करते हैं वे रुद्रलोक में जाकर वास करते हैं तथा जो मंत्र रहित रुद्राक्ष धारण करते हैं वे घोर-नरक के भागी होते हंै।

उपयोग से लाभ

- चैदहमुखी रुद्राक्ष धारण करके हनुमान जी की उपासना करने पर परमपद की प्राप्ति होती है

- यह रुद्राक्ष धारण करने से शनि और मंगल की अरिष्ट शांति होती है तथा दुष्ट शत्रुओं का नाश होता है।

- इस रुद्राक्ष की माला पर भगवान पुरुषोत्तम के मंत्रों का जप करने से वैकुंठ की प्राप्ति होती है तथा सदाचार भावना उत्पन्न होती है। - इस रुद्राक्ष को विधि पूर्वक धारण करने से कारागार जाने का भय नहीं रहता है। उपयोग मंत्र- ¬ हनुमते नमः। ¬ नमः। पंद्रहमुखी रुद्राक्ष यह भगवान पशुपति जी का स्वरूप है। यह धारण करने वाले के जाने-अनजाने किए गए पापों को स्वतः ही नाश कर देता है। यह धारक को आध्यात्मिक स्तर पर उठाकर उसे सुख, संपदा, धन, मान प्रतिष्ठा एवं पारिवारिक सुख शांति प्रदान करता है।


Get Detailed Kundli Predictions with Brihat Kundli Phal


पूर्व जन्म में किए हुए पापों का नाश करता है जिससे इस जन्म में भाग्य का साथ प्राप्त होता है। उपयोग से लाभ: यह नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त तथा सकारात्मक ऊर्जा की वृद्धि करता है, जिससे व्यक्ति दिन प्रतिदिन उन्नति करता है। इस रुद्राक्ष को गले में धारण करने से अच्छे संस्कारों का उदय होता है, गलत आदतें छूटती हैं और जीवन में सच्ची शांति प्राप्त होती है।

इस रुद्राक्ष को पूर्णिमा के दिन धारण करने से मानसिक तनाव से मुक्ति मिलती है, मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और मनोबल में वृद्धि होती है। उपयोग मंत्र: ¬ पशुपतिनाथाय नमः गणेश रुद्राक्ष यह गणेश जी का परम स्वरूप है। इसे धारण करने से जीवन में उन्नति के मार्ग में आने वाली संपूर्ण बाधाओं का शमन होता है और बुद्धि का विकास होता है। धारण करने वाले के कार्य क्षेत्र में उन्नति होती है, समाज में मान प्रतिष्ठा बढ़ती है।

बौद्धिक कार्य करने चतुर्दशास्यो रुद्राक्षो साक्षाद्देवो हनूमतः। धारयेन्मूध्नि यो नित्यं स याति परमं पदम्।। चतुर्दशमुखी रुद्राक्ष हनुमान का स्वरूप है। जो मनुष्य नित्य प्रति अपने मस्तक पर धारण करते हैं वे परम पद को प्राप्त होते हैं। इस रुद्राक्ष को पहनने से शनि मंगल दोष की शांति होती है तथा दुष्टजनों का नाश होता है। यह ’हनुमान रुद्राक्ष’ नाम से प्रसिद्ध है तथा सकल अभीष्ट सिद्धियों का दाता है। यह रुद्राक्ष मेष और मकर लग्न वाले जातकों वाले लोगों के लिए यह रुद्राक्ष बहुत उपयोगी होता है।

उपयोग से लाभ:

गणेश रुद्राक्ष को धारण करने से मन स्थिर होता है, सकारात्मक ऊर्जा का विकास तथा नकारात्मक ऊर्जा का ह्रास होता है। इसे धारण करने से परीक्षाओं में अच्छी सफलता प्राप्त होती है। पढ़ाई में मन लगता है और बुद्धि कुशाग्र होती है।

जिन लोगों के कार्य में बार-बार बाधाएं आती हों, काम न बनता हो उन्हें यह रुद्राक्ष धारण करने से लाभ होता है। उपयोग मंत्र: ¬ गं गणपतये नमः गौरीशंकर रुद्राक्ष यह शिव पार्वती का स्वरूप है।

इसे घर, पूजा गृह अथवा तिजोरी में रखने से मंगल कामना सिद्धि होती है। इसे उपयोग में लाने से परिवार में सुख-शांति की वृद्धि होती है वातावरण शुद्ध बना रहता है। गले में धारण करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है।

उपयोग से लाभ

- गौरीशंकर रुद्राक्ष धारण करने से अभक्ष्य-भक्षण और पर त्री गमन जैसे- जघन्य अपराध भी भगवान शिव द्वारा नष्ट होते हंै।

- इसे धारण करने से गृहस्थ जीवन में पति-पत्नी के मध्य प्रेम तथा विशेष सुख शांति प्राप्त होती है।

- यह रुद्राक्ष धनागमन एवं व्यापार उन्नति में अत्यंत सहायक माना गया है।

- गौरीशंकर रुद्राक्ष धारण करने से पुरुषों को स्त्री सुख प्राप्त होता है तथा परस्पर सहयोग, सम्मान तथा प्रेम में वृद्धि होती है।

- यह रुद्राक्ष शिवभक्ति के लिए अधिक उपयोगी माना गया है, भगवान शिव और मां शक्ति इस रुद्राक्ष में निवास करते हैं।

गौरीशंकर का मंत्र- ¬ गौरीशंकराभ्यां नमः। निर्देश: प्रत्येक रुद्राक्ष में अंतगर्भित विद्युत तरंगें होती हैं। तथा इन अंतगर्भित विद्युत तरंग शक्ति का पता उसकी धारियों की संख्या के अनुसार चलता है। अलग-अलग मुख अलग-अलग परिणाम को देने वाले होते हैं तथा उनको एक विशिष्ट नाम से भी संबोधित किया जाता है।


Consult our astrologers for more details on compatibility marriage astrology


रुद्राक्ष सामान्यतः इक्कीस मुख तक पाए जाते हैं परंतु गौरीशंकर रुद्राक्ष को सर्वसिद्धि प्रदाता रुद्राक्ष कहा गया है। यह सात्विक शक्ति में वृद्धि करने वाला एवं मोक्ष प्रदाता है। जिसके घर में यह रुद्राक्ष होता है वहां लक्ष्मी का स्थायी वास हो जाता है तथा उसका घर धन-धान्य, वैभव, प्रतिष्ठा और दैवीय कृपा से भर जाता है। संक्षेप में यह धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को देने वाला चतुवर्ग प्रदाता रुद्राक्ष है। गौरीशंकर रुद्राक्ष में दो रुद्राक्ष के दाने परस्पर जुड़े होते हैं।

गौरीशंकर रुद्राक्ष सभी लग्न के जातकों के लिए शुभ माना गया है इसे धारण करने से अनेक लाभ होते हंै। पंद्रह से इक्कीस मुख के दाने प्रायः दुर्लभ होते हैं। कुछ चालाक व्यक्ति दो रुद्राक्षों को काटकर सफाई से वापस जोड़कर उनके कई मुख बना देते हैं इसी प्रकार से कई लोग गौरीशंकर रुद्राक्ष भी बना डालते हैं। शास्त्रकारों ने चैदह मुख तक के रुद्राक्ष का ही वर्णन किया है। शिवपुराण एवं रुद्राक्षजाबालोपनिषद् रुद्राक्ष के फल महत्व एवं उपासना हेतु प्रामाणिक ग्रंथ माने जाते हैं।

एकमुखी से चैदहमुखी पर्यन्त एवं अन्य सभी रुद्राक्षों की पूजन एवं धारण विधि: यथाशक्ति किसी की रुद्राक्ष को सोने या चांदी में मड़वाकर या बिना मड़वाए, सोमवार अथवा बृहस्पतिवार एवं महाशिवरात्रि आदि पर्व के दिनों में सोने अथवा चांदी की जंजीर या केवल लाल या काले धागे में धारण कर सकते हैं।

प्रातः काल के समय रुद्राक्ष को पवित्र अवस्था में गंगाजल तथा कच्चे दूध से धोकर चंदन का लेप करके धूप एवं दीप से पूजन करके, पंचाक्षर मंत्र ¬ नमः शिवाय की एक माला जप करके पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके श्रद्धा-विश्वास पूर्वक धारण रें। विशेष: यदि कोई साधक इन रुद्राक्षों के विशिष्ट मंत्रों का जप करना चाहे तो रुद्राक्ष धारण करने से पूर्व अपनी सुविधा अनुसार किसी भी मंत्र का जप कर सकते हैं।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.