गोमेद रत्न परिचयः गोमेद को संस्कृत में गोमेदक, पिगस्फटीक, पीतरक्तमणि, तमोमणि, राहु रत्न, अंग्रेजी में ऐगेट, चीनी में पीली, बंगला में मोदित मणि, अरबी में हजार यमनी कहते हैं। रंगः यह लाल लिये हुए पीले रंग का पारदर्शक चमकीला रत्न होता है। इसका रंग शहद जैसा भूरा होता है। गाय के मूत्र के रंग का होने के कारण इसे गोमेद कहा जाता है। क्योंकि गोमूत्र का अपभ्रंश रूप है गोमेद। गोमेद से लाभः धारण करने वालों के भ्रम का नाश करता है। निर्णय लेने की शक्ति प्रदान करता है। आत्मबल का संचार करता है। दरिद्रता मिटा कर आत्मसंतुष्टि देता है। शत्रु पर विजय होती है। वह अजात शत्रु बन जाता हैं। सफलता सुगमता से मिलती है। नशा, परस्त्री/परपुरुष दारा गमन एवं अपहरण जैसी बुरी आदत में शीघ्र सुधार करता है। पाचन के स्थान के मुख्य अंग आमाशय की गड़बड़ी को दूर करता है। अभद्र खाद्य वस्तु को त्यागने की भावना का संचार करता है। विवाह संस्कार में आने वाली बाधा को दूर कर शीघ्र शादी करवाता है। संतान बाधा को दूर कर शीघ्र संतान प्रदान करता है। जीवन की बाधा को दूर कर व्यक्ति को विकास पथ पर स्वतः अग्रसर करवाता है। ज्योतिषीय आंकलन: व्यक्ति पर इसका असर शीघ्र होता है। विदेशी मतानुसार गोमेद अगस्त में जन्मे व्यक्ति का जीवन रत्न होता है। 15 फरवरी से 15 मार्च, यानी कुंभ के सूर्य में जन्मे व्यक्ति को यह रत्न अवश्य धारण करना चाहिए। अंक विज्ञान (न्यूमरोलाॅजी) के अनुसार 4, 13, 22 एवं 31 तारीख को जन्मे व्यक्ति को गोमेद धारण करना चाहिए। कन्या राशि और कन्या लग्न वालों द्वारा गोमेद धारण करने से उनका मन प्रसन्न रहता है, चिंता दूर रहती है। रत्न की प्राण प्रतिष्ठा होने पर इसकी दैविक शक्ति में चार चंाद लग जाते हैं। गोमेद का भौतिक गुण: यह लोहा एवं जस्ता तथा अन्य द्रव्यों का मिश्रण है। लोहे का अंश अधिक होने पर गोमेद को चुंबक खींच लेता है। प्रथम वर्ग: यह गोमेद प्रसिद्ध है। इसके दो रंग हैं- पीला और श्वेत। यह सरलता से तराशा नहीं जा सकता है। इसमें अपूर्व चमक होती है। यह सामान्य जन के लिए सुलभ नहीं है। द्वितीय वर्ग: यह भूरा रंग लिए होता है। इसमें अन्य गुण प्रथम श्रेणी के ही पाये जाते हैं। गया का गोमेद, जो संसार में प्रसिद्ध है इसी वर्ग का गोमेद है। तृतीय वर्ग: इसमें हरे रंग की झांइयां होती हैं। यह भूरे और नारंगी रंग में भी पाया जाता है। प्राप्ति स्थान: लंका, भारत, थाईदेश, कंबोडिया, मैडागास्कर। गोमेदक उपरत्न: तुरसाब, जिरकन, तुस्सा और साफी। इसके अतिरिक्त तृणकांत भी है। यह कहवा पेड़ का गोंद है, जो समय पा कर पत्थर का रूप ले लेता है। यह पीला, चमकीला और सुंदर होता है। गोमेद धारण करने की विधि: गोमेद कभी भी सवा चार रत्ती से कम का नहीं धारण करना चाहिए। राहु, मिथुन राशि मे उच्च और धनु राशि में नीच माना जाता है। यह कन्या राशि में रहता है, अतः 6, 11, 7, 10 रत्ती का धारण कर सकते हैं, परंतु 9 रत्ती का कभी भी धारण न करें। रत्न के अभाव में: रत्न के अभाव में सफेद चंदन, नीले डोरे में बांध कर, गले में धारण करें।