आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से नकसीर फूटने के कई कारण हैं जिनमें आम कारण है लोगों की नाक के अंदर अंगुली से कुरेदने की आदत- ऐसे में नाखून से नाक की भीतरी कोमल परत पर चोट लग कर खून बहना। इसके अतिरिक्त - उच्च रक्त चाप: उच्च रक्त चाप रोगियों में भी नकसीर फूटने का भय होता है।
- नाक के भीतर संक्रमण: इस दशा में रोगी को ज्वर, नाक से पानी बहना और मुंह से बदबू आने के साथ-साथ खून भी निकल सकता है। नाक की त्वचा में किसी प्रकार की एलर्जी हो जाए तो उसका स्राव सूख जाता है और वहां पपड़ी जम जाती है जो अलग होते समय रक्तस्राव कर सकती है।
- नाक में किसी प्रकार का ट्यूमर (गांठ): इससे भी रक्त स्राव होता है। ऐसे में सांस लेने में भी तकलीफ, पानी आना, दर्द जैसे लक्षण प्रायः रहते हैं। र्यूमेटिक फीवर: इससे ज्वर के साथ-साथ जोड़ों में दर्द और शरीर पर लाल दाने और नाक से रक्तस्राव होता है।
-रक्त कोशिकाओं की विकृति ः कोशिकाओं की विकृति कोशिकाओं की विकृति के कारण भी नकसीर फूट सकती है।
- विटामिन की कमी, मासिक धर्म की अनियमितता, अत्यधिक शारीरिक श्रम, धूप में ज्यादा देर रहना जैसे कारण भी रक्तस्राव को जन्म दे सकते हैं। उपचार: जब भी नकसीर फूटे, चाहे अल्पमात्रा में ही क्यों न हो, अवहेलना न करें और तुरंत उचित परामर्श लें। रक्तस्राव का कारण जानकर उसके अनुसार उपचार करें।
यदि अचानक नकसीर फूटे तो घबराएं नहीं। रोगी को शांत और ठंडे स्थान पर ले जाकर धीरज बंधाएं, ताकि उसका रक्त चाप नियंत्रण में रहे और रक्तस्राव रूके। नाक को अंगूठे और तर्जनी से जोर से लगातार दबाए रखें। मरीज को मुंह से सांस लेने दें और गले तक खून रिस रहा हो तो थूकने को कहें। - रोगी की नाक और उसके माथे पर बर्फ के पानी की पट्टियां दंे और सीधा बैठाएं। इस पर भी खून बहना न रूके तो रूई का एक गोला बनाकर किसी भी क्रीम या ग्लिसरीन में डुबोकर नाक के भीतर अच्छी तरह ठूंस दें और रोगी को लिटा दें और उसे ठंडा पेय पीने को दें।
उसे मुंह से सांस लेने के लिए प्रेरित करें और ध्यान रखें कि वह नाक में अंगुली न डालने पाए या नाक से बार-बार सांस न ले। वह खंखारे भी नहीं, वरना रक्तस्राव पुनः शुरू हो सकता है। यदि इन सभी तरीकों से भी रक्तस्राव न रूके तो तुरंत विशेषज्ञ के पास ले जाएं और उचित उपचार करें। घरेलू उपचार
- माजू फल को पीसकर नाक में सूंघने से नकसीर बंद हो जाती है। - सुहागे को थोड़े से पानी में घोलकर दोनों नथुनों पर लेप करें। - अनार के रस की नसवीर देने से खून गिरना बंद हो जाता है।
- मीठे अंगूर का रस नाक में धीरे-धीरे खींचें, नकसीर ठीक हो जाएगी। - अजवायन और नीम के पत्तों का बारीक पीसकर कनपटी पर लगावें। इससे नाक से खून आना बंद हो जाता है।
- नींबू का रस निकालकर नाक में पिचकारी देने से नकसीर में लाभ होता है। - सूखे आंवले को पानी में भिगोकर रख दें। प्रातः छानकर पानी पीएं।
- मेहंदी की ताजी पत्तियां पानी में पीसकर तलवों में लगाने से नकसीर बंद हो जाता है। ज्योतिषीय दृष्टिकोण ज्योतिषीय दृष्टि में कालपुरुष की कुंडली का तृतीय भाव नाक की आंतरिक प्रक्रिया का नेतृत्व करता है। नाक के आंतरिक रोगों का कारक बुध होता है। मंगल रक्त का कारक है। चंद्र रक्तचाप का कारक है। इसीलिए ‘नकसीर’ का संबंध तृतीय भाव, बुध, चंद्र और मंगल से है। यदि ये दुष्प्रभावों में रहे तो नकसीर जैसा रोग होता है। विभिन्न लग्नों में नकसीर रोग
मेष लग्न: लग्नेश मंगल षष्ठ भाव में, षष्ठेश तृतीय भाव में चंद्र से युक्त या दृष्ट हो और तृतीय भाव पर राहु या केतु की दृष्टि हो तो जातक को नकसीर हो सकता है।
वृष लग्न: लग्नेश त्रिक भावों में मंगल से युक्त या दृष्ट हो, तृतीयेश चंद्र राहु या केतु से दृष्ट हो, तृतीय भाव में गुरु अपने उच्च अंशों पर बुध से युक्त हो, तो नकसीर दे सकती है।
मिथुन लग्न: लग्नेश और तृतीयेश षष्ठ या अष्टम भावों में हो, मंगल तृतीय भाव में या तृतीय भाव पर दृष्टि रखें, चंद्र तृतीय भाव में राहु से दृष्ट हो और गुरु, केतु से युक्त होकर लग्न पर दृष्टि रखे तो नकसीर होता है।
कर्क लग्न: लग्नेश और तृतीयेश तृतीय भाव में होकर मंगल से दृष्ट हो और मंगल राहु से दृष्ट हो, लग्न पर शनि की दृष्टि हो तो नकसीर होता है।
सिंह लग्न: लग्नेश सूर्य षष्ठ भाव में हो और षष्ठेश शनि तृतीय भाव में हो तथा मंगल से दृष्ट या युक्त हो, तृतीयेश, बुध से युक्त होकर राहु से दृष्ट हो, चंद्र लग्न या चतुर्थ भाव में हो, तो नकसीर होता है।
कन्या लग्न: लग्नेश त्रिक भावों में हो, चंद्र तृतीय भाव में मंगल से युक्त या दृष्ट हो, गुरु तृतीय भाव में हो या तृतीयेश पर दृष्टि रखे और राहु-केतु तृतीय भाव पर या लग्न पर दृष्टि रखे तो नकसीर जैसा कष्ट होता है।
तुला लग्न: लग्नेश अष्टम भाव में, मंगल तृतीय भाव में गुरु से युक्त या दृष्ट हो, बुध षष्ठ में चंद्र से युक्त हो और राहु-केतु से दृष्ट हो, तो नकसीर जैसा रोग होता है।
वृश्चिक लग्न: लग्नेश और षष्ठेश शनि से दृष्ट होकर षष्ठ भाव में हो, तृतीय भाव में चंद्र बुध, राहु से दृष्ट हो तो नकसीर जैसा रोग जीवन में कभी तो आता ही है।
धनु लग्न: शुक्र और बुध तृतीय भाव में, सूर्य द्वितीय भाव में राहु से युक्त या दृष्ट हो, चंद्र तृतीयेश शनि से युक्त हो और लग्नेश त्रिक भावों में हो, तो नकसीर रोग हो सकता है।
मकर लग्न: गुरु तृतीय भाव में हो और लग्नेश त्रिक भावों में हो, तृतीय भाव पर मंगल की दृष्टि हो, चंद्र मंगल से युक्त हो, बुध सूर्य से अस्त हो, तो नकसीर जैसा रोग हो सकता है।
कुंभ लग्न: लग्नेश षष्ठ भाव में या अष्टम भाव में हो, मंगल तृतीय भाव में बुध से युक्त हो और गुरु से दृष्ट हो, चंद्र राहु के दुष्प्रभाव में हो, तो नकसीर जैसा रोग हो सकता है।
मीन लग्न: तृतीयेश शुक्र और बुध षष्ठ या अष्टम भाव में सूर्य से अस्त हो, चंद्र तृतीय भाव में राहु से युक्त या दृष्ट हो, लग्नेश कमजोर या अकारक ग्रह से युक्त या दृष्ट हो तो जातक को नकसीर जैसे रोग से पीड़ा होती है।
उपरोक्त सभी योग, रोग की उत्पत्ति संबंधित ग्रह की दशांर्तदशा और गोचर के प्रतिकूल स्थितियों के कारण होता है। जब तक दशांतर्दशा और गोचर प्रतिकूल रहते हैं शरीर में रोग रहता है उसके पश्चात रोग से मुक्ति प्राप्त होती है।