नीम का वृक्ष हर गली, मुहल्ले, बाग-बगीचे, सड़क किनारे में देखने को मिलता है। शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जिसने नीम का वृक्ष न देखा हो। भारत वर्ष में नीम हर जगह पाई जाती है। यह एक विशाल वृक्ष है जिसकी ऊंचाई 40 फीट से 60 फीट होती है। चारों ओर शाखाएं-प्रशाखाएं निकली रहती हैं। पत्तियां शाखाओं पर समूहबद्ध क्रम में लगी होती हैं। शाखाग्र कोमल होते हैं जो कोपल कहलाते हैं। फल लंबे गोल, कच्ची अवस्था में हरे तथा पकने पर पीले होते हैं। छाल मोटी, खुरदरी तथा रेशेयुक्त होती है। पत्ते एक इंच से तीन इंच लंबे व आधे से पौने इंच चैड़े होते हैं। पत्ती स्वाद में कड़वी होती है। इसके नये पत्ते लालिमा युक्त, कोमल और सुंदर होते हैं। नीम के पुष्प सफेद गुच्छों में होते हैं। इसकी सुगंध चारां तरफ फैलती है। नीम के फल को निमोरी या निम्बोली कहते हैं। प्रारंभ में ये हरा रंग लिए होती हैं लेकिन पकने के बाद पीली हो जाती हं। नीम को अंग्रेजी में डंतहवें ज्तमम कहते हैं। गुण धर्म: नीम में एक तरल पदार्थ निकलता है जिसे मार्गोसीन कहते हैं। यह कोढ़ नाशक होता है और सभी प्रकार के चर्म रोगों में लाभदायक है। इसके पत्तों में विटामिन अधिक पाया जाता है। मूत्र विकार नष्ट होते हैं, मज्जों के लिए हितकारी हैं। कफ व पित्त रोगनाशक हैं। चेचक के रोग में यह अमृत का काम करती है। नीम कीटनाशक भी है। प्राचीन काल से हमारे महर्षि आयुर्वेदिक औषधियांे में नीम के पचांग का प्रयोग करते आये हैं। आयुर्वेद में नीम को कल्पवृक्ष कहा गया है। जिस स्थान पर यह वृक्ष होता है उसके एक किलोमीटर के घेरे तक यह वातावरण को शुद्ध करता है और घातक कीटाणुओं को नाश करता है। उपयोग: नीम के तेल, ताड़ी तथा लवणचूर्ण का संग्रह किया जाता है। कोपल या ताजी छाल सीधे प्राप्त हो जाती है। नीम का तेल पकी निंबौली से प्राप्त किया जाता है। - विषम ज्वर को शांत करता है। कफ व पित्त को शांत करता है। - नीम के पुराने वृक्षों से एक प्रकार का रस निकलता है जो उच्च कोटि का रक्तशोधक माना जाता है। - नीम एक जीवाणुनाशक औषधि है। - नीम की पत्तियों का काढ़ा विषाणुरोधी क्षमता रखता है। - रक्त का समग्र शोधन कर यह प्रतिरोधी सामथ्र्य बढ़ाता है। - नीम की पत्तियों का अर्क रक्त शर्करा को कम करता है। नीम के तेल की मालिश समस्त प्रकार के फंुसी-फोड़े खुजली आदि में लाभदायक होती है। - विषैले फोड़ों, पुरानी त्वचा की व्याधि, कोढ़ तथा किसी भी प्रकार के रोगाणु के आक्रमण में फायदा करता है। - नीम की दातून दांतों को मजबूत और मसूढ़ों में होने वाले पायरिया की रोकथाम करती है। विभिन्न रोगों में नीम का उपयोग बवासीर नीम के तेल की कुछ बूंदे गुदा में लगाने से बवासीर के मस्से बैठ जाते हैं। चर्म रोग नीम तेल की मालिश करने से शरीर पर पड़े चकते आदि दूर हो जाते हैं। चर्म रोग में नीम के पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से या पीस का लेप करने से भी चर्म रोग में लाभ होता है। नीम के पत्तों को पानी में उबालकर इससे स्नान करने से भी शरीर की त्वचा सुंदर और रोग रहित होती है। कुष्ठ रोग इस रोग में आंवले हरीतकी और नीम के पत्तों का चूर्ण लेने से बहुत लाभ होता है। पीलिया पीलिया में नीम के पत्तों के रस में सोंठ व शहद मिलाकर देने से लाभ होता है। शीत पित नीम के दस पत्ते, पांच ग्राम आंवला चूर्ण व पांच ग्राम घी मिलाकर 15 दिन पिलाने से शीतपित्त रोग ठीक हो जाता है। गठिया नीम के पत्ते और परवल के पत्तों को बराबर मात्रा में लेकर पानी में उबालकर शहद मिलाकर सुबह शाम सेवन करने से गठिया में लाभ होता है। हैजा नीम की दस ग्राम पत्तियों में 5 ग्राम हींग और पांच ग्राम गुड़ मिलाकर दो बार एक-एक गोली खिलाने से भयंकर हैजे में लाभ होता है। अतिसार नीम, बबूल के पत्तों को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें और शहद मिलाकर रोगी को दें, फौरन लाभ होगा। मलेरिया नीम के छाल का चूर्ण सत्वगिलोय और चिरायता के साथ लेने से मलेरिया में बहुत लाभ होता है। श्वेत प्रदर नीम व बबूल की छाल का काढ़ा पीने से श्वेत प्रदर में लाभ होता है। टी. बीनीम के पत्तों को पीसकर दस ग्राम शहद मिलाकर प्रातः चालीस दिन तक पीने से अत्यंत लाभ होता है। बालों की बढ़त व गंज में दस-दस ग्राम बेर व नीम के पत्तों को पीसकर पल्प बनाकर सिर पर बालों की जड़ों पर लेप करें फिर चार घंटे बाद धो डालें। यह क्रिया तीस दिन तक लगातार करें। बाल खूब बढ़े़ंगे, गंज ठीक होकर नये बाल निकलने लगेंगे। कुछ विशेष - चैत्र मास में नीम की कोपलों का सेवन श्रेष्ठ माना गया है। - कुष्ठ रोग के लिए नीम के नीचे रहने से रोग में लाभ होता है। - नीम की दातून करना, प्रतिदिन प्रातः नीम के पत्तों का रस, नीम तेल, सारे शरीर में नीम तेल रस का उबटन करने से त्वचा से संबंधित सभी रोग दूर होते हैं। कोढ़ जैसा रोग भी ठीक हो जाता है। - श्वेत कुष्ठ में रोगी को नीम पत्र-पुष्प-फल समभाग में रखकर महीन पीसकर 2 ग्राम की मात्रा में जल से घोंट- छानकर सेवन करते हुए 3-6 माशा तक बढ़ाते हुए 40 दिनों तक सेवन करना चाहिए। - नीम पत्तों का चूर्ण देसी घी के साथ नित्य 2 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से कभी विषम ज्वर नहीं आता तथा किसी भी प्रकार की चोट में घाव पकता नहीं है।