प्रस्तुत अंक से हम एक नए स्तंभ की शुरुआत कर रहे हैं - विविधा। इस स्तंभ में पाठकों की जिज्ञासा के अनुरूप उनके लाभार्थ हम हमारे आसपास रहने वाले लोगों की नजर, उनके खान-पान, उठने-बैठने, लिखने-पढ़ने आदि की मुद्राओं और उनका अन्य लोगों पर पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण प्रस्तुत करेंगे। शृंखला की पहली कड़ी में लोगों की नजर और उसके बुरे प्रभावों तथा उनसे बचाव के उपायों का विश्लेषण प्रस्तुत है। नजर अगर पाक हो, शुभ हो, तो किसी की बिगड़ी जिंदगी संवार दे, पर अगर नापाक हो, बुरी हो, तो किसी की चैन से गुजर रही जिंदगी में जलजला ला दे, उसका जीना दूभर कर दे। हम जहां रहते हैं, वहां हमारे इर्द-गिर्द कई ऐसे लोग रहते हैं, जिनकी बुरी नजर कब हम पर पड़ जाती है, हम समझ भी नहीं पाते और हमारा सुकून भरा जीवन दुखमय हो जाता है।
कैसे होता है यह? कैसे हम ऐसी नजर की पहचान करें? इससे बचने का उपाय क्या हो? आइए, जानें... नजर अथवा ऊपरी हवाएं आमतौर पर शारीरिक व मानसिक रूप से कमजोर लोगों को सताती हैं, सक्षम लोगों पर इनका प्रभाव बहुत कम होता है, या फिर नहीं होता। इसलिए नजर अथवा ऊपरी हवाओं से ग्रस्त किसी व्यक्ति को उनसे बचाव के उपाय बताने के पूर्व उसकी शारीरिक संरचना व क्षमताओं के विषय में जानना आवश्यक है।
इसी तथ्य के मद्देनजर, यहां शरीर की संरचना का विशद विवरण प्रस्तुत है।
- स्थूल शरीर: स्थूल शरीर से तात्पर्य हड्डी और मज्जा से निर्मित बाहरी शरीर से है, जिसमें प्राण नहीं है।
- सूक्ष्म शरीर: सूक्ष्म शरीर से तात्पर्य शरीर की सूक्ष्मता से है, जिसके विश्लेषण से किसी व्यक्ति की सूक्ष्म शारीरिक क्रियाओं की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
- अति सूक्ष्म शरीर: अति सूक्ष्म शरीर वह होता है, जिसमें अपने अतिरिक्त बाहरी चीजों को देखने की क्षमता होती है।
- मानस शरीर: जब मानव शरीर में मस्तिष्क अपना कार्य करना प्रारंभ कर दे, तो वह मानस शरीर कहलाता है।
- आत्मिक शरीर: जब मानव शरीर में आत्मा का प्रवेश हो जाता है और आत्मा तत्व को जानने लगती है, तो ऐसा शरीर आत्मिक शरीर कहलाता है।
- ब्रह्म शरीर: ब्रह्मांड में स्थित तत्वों से मानव शरीर का एकीकरण व प्राकृतिक तत्वों से मिलन होने पर ब्रह्म शरीर कहलाता है।
- निर्वाण शरीर: जब शरीर से आत्मा निकल जाए और वह आत्मा स्वयं को शरीर मानकर कार्य करे, तो वह निर्वाण शरीर कहलाता है।
जब नजर मानस शरीर पर पड़ती है, तो परिणाम कुछ और होता है और जब नजर आत्मिक अर्थात ब्रह्म शरीर का छेदन या ह्रास करती है, तो परिणाम उससे भिन्न होता है। ऊपरी हवाएं व जीवात्माएं सभी प्रकार के शरीरों को जकड़ लेने में सक्षम होती हैं। प्रत्येक मनुष्य की देखने की अपनी क्षमता होती है और नजर की दूरी की एक निश्चित सीमा है। आंखों से एक ऊर्जा निकलती है, जिसके प्रकाश से हम दूसरों को देख पाते हैं। संभवतः ऐसा नजर दोष प्रकाशीय किरणों द्वारा होता है।
आंखों के रंग भी भिन्न-भिन्न होते हैं। सामान्यतया हमें काली, नीली, पीली, भूरी, हरी और सफेद आंखें देखने में आती हैं। आंखों के रंगों की भिन्नता के समान ही इनकी प्रकाशीय किरणों की क्षमता व आकर्षण भी भिन्न-भिन्न होता है। काने व्यक्ति की नजर में विशेष मारक क्षमता होती है और यह तेजी से असर डालती है। इसके विपरीत भैंगे व्यक्ति की नजर आसानी से नहीं लगती। कब लगती है नजर? कोई व्यक्ति जब अपने सामने के किसी व्यक्ति अथवा उसकी किसी वस्तु को ईष्र्यावश देखे और फिर देखता ही रह जाए, तो उसकी नजर उस व्यक्ति अथवा उसकी वस्तु को तुरत लग जाती है। ऐसी नजर उतारने हेतु विशेष प्रयत्न करना पड़ता है
अन्यथा नुकसान की संभावना प्रबल हो जाती है। विशेष उपचार जब भी आपको ऐसा आभास हो कि आपको किसी की नजर लग गई है तो तुरंत दो बार थूक दें।
बुरी नजर और ऊपरी हवाओं से बचाव के कुछ उपाय यहां प्रस्तुत हैं।
- दोनों संध्याओं तथा मध्याह्न के समय शयन, अध्ययन, स्नान, तेल मालिश, भोजन या यात्रा नहीं करनी चाहिए। विशेष: दोनों संध्याओं से तात्पर्य सूर्यास्त से कुछ पहले व कुछ देर पश्चात के समय से है।
- दोपहर, संध्या या आधी रात के समय किसी चैराहे पर नहीं रहना चाहिए।
- संध्या के समय भोजन, स्त्री संग, निद्रा और स्वाध्याय का त्याग करना चाहिए। इस समय भोजन करने से व्याधि, स्त्री संग से क्रूर संतान का जन्म, सोने से लक्ष्मी का ह्रास और अध्ययन एवं स्वाध्याय से आयु का नाश होता है।
- रात्रि में श्मशान, देवमंदिर, चैराहे, उपवन चैत्यवृक्ष, सूने घर व जंगल का सदैव त्याग करना चाहिए, क्योंकि इस समय इन सभी स्थानों पर ऊपरी हवाएं जाग्रत और सक्रिय रहती हैं।
- अमावस्या के दिन वृक्ष की डाल न काटें, नही उसकी पत्ती तोड़ें।
- जूठे मुंह, नग्न होकर, दूसरे की शय्या पर, टूटी खाट पर एवं सूने घर में नहीं सोना चाहिए। बांस व पलाश की लकड़ी पर सोना भी अशुभ है। भीगे पैर सोने से लक्ष्मी का ह्रास होता है। पुरुष जातक सोते समय मुख साफ रखें और ललाट से तिलक तथा सिर से पगड़ी व पुष्प उतार दें।
- यथासंभव दिन में उत्तर व रात्रि में दक्षिण की ओर मुख करके मल-मूत्र का त्याग करें।
- किसी वृक्ष के नीचे या श्मशान के निकट मूत्र त्याग न करें अन्यथा भारी हानि का सामना करना पड़ सकता है।
- किसी जलाशय, कुआं, बावड़ी या तालाब से कम से कम सोलह हाथ की दूरी पर ही मल-मूत्र का त्याग करें।
- मल-मूत्र का त्याग करते समय मुख सामने की ओर ही रखें - न तो ऊपर की ओर देखें, न ही मल मूत्र की ओर। इस समय जोर-जोर से सांस भी न लें।
- गौशाला, खेत, हरी-भरी घास और देवालय या किसी बिल में अथवा किसी चैराहे, गोबर, पुल या भस्म और कोयले की ढेर, पर्वत की चोटी या किसी बांबी पर या फिर लोगों के घरों के आसपास, अग्नि में या उसके समीप और गेेहूं में भूलकर भी मल-मूत्र त्याग न करें।
- अग्नि, सूर्य, चंद्र, गाय, ब्राह्मण, स्त्री, वायु के वेग और देवालय की ओर मुख करके मल-मूत्र त्याग न करें। विशेष: ऐसा करने पर आयु व बुद्धि का ह्रास होता है व गर्भपात की प्रबल संभावना बन जाती है। प्रथमा, षष्ठी, अष्टमी, एकादशी, चतुर्दशी, पूर्णमासी और अमावस्या को शरीर पर तेल व उबटन आदि न लगाएं।
तेल, उबटन आदि केवल सोमवार, बुधवार व शनिवार को लगाना लाभकारी होता है।
- बुरा स्वप्न देखने के पश्चात नग्न होकर स्नान नहीं करना चाहिए।
- श्मशान से लौटने पर हजामत के पश्चात् या स्त्री संग के पश्चात् नग्न होकर स्नान नहीं चाहिए।
- नए वस्त्र सदैव जल से सिक्त कर ही पहनने चाहिए।
- भीगे वस्त्र नहीं पहनने चाहिए।
- दूसरों के पहने वस्त्र नहीं पहनने चाहिए।
- एक वस्त्र में दान, आहुति, स्वाध्याय, हवन, यज्ञ, देवार्चन व पितृ तर्पण करना अशुभ है।
- भोजन करते समय जो भोज्य पदार्थ गिर जाए अथवा भोजन करके जिस अन्न को छोड़ दिया गया हो, उसे फिर नहीं खाना चाहिए।
- गाय, कुत्ते, रोगी, रजस्वला स्त्री, पक्षी, कौए, चांडाल, वेश्या, विद्वान से निंदित समूह के लिए घोषित अथवा श्राद्ध का, सूतक का, शूद्र का या फिर किसी के द्वारा लांघा हुआ भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए। वैद्य, रंगसाज, धोबी, अभिमानी, नपुंसक, चोर, ढोंगी, तपस्वी, जल्लाद, तेली, लोहार आदि का भोजन भी ग्रहण नहीं करना चाहिए।
- झाडू, बकरी, बिल्ली, कुत्ते, भेड़, गधे और ऊंट की धूलि से सदैव बचकर रहना चाहिए।
उपचार: यदि ऐसी स्थिति से कभी गुजरना पड़ा हो, तो गंगाजल डालकर नहाएं अथवा उसे शरीर पर छिड़कें। अक्सर देखने में आता है कि किसी के घर से बाहर जाते समय कोई दूसरा उसे टोक देता है जैसे कहां जा रहे हो, सुनो, कभी मत जाओ, रुको, जाने का क्या फायदा आदि। इस तरह से टोकना काम पर निकले उस व्यक्ति के लिए अशुभ और अनिष्टसूचक होता है। अतः ऐसी स्थिति से बचना चाहिए। अग्नि और शिवलिंग, भगवान शंकर और नंदी की प्रतिमाओं, घोड़े और सांड़, पति और पत्नी, गाय और ब्राह्मण, ब्राह्मण और अग्नि, दो अग्निपुंजों, दो ब्राह्मणों तथा सूर्य व चंद्र की प्रतिमाओं के बीच से नहीं निकलना चाहिए।
विशेष: शास्त्रानुसार संसार के सभी कार्यों का समय निश्चित है। सभी कार्य अपने समय विशेष पर ही होते हैं। ऐसे में किसी के टोकने या रोकने से उस समय में परिवर्तन हो जाता है, जिसके फलस्वरूप वह कार्य निर्धारित समय पर नहीं होता और उसमें रुकावट आ जाती है। दैनिक कर्मों में कुछ ऐसे होते हैं, जिन्हें करने या जिनके हो जाने पर ऊपरी हवाएं प्रभावी हो जाती हैं, जिसके फलस्वरूपजातक के मार्ग में अनजानी पाठकों के हितार्थ यहां कुछ वैसे ही कार्यों का विवरण प्रस्तुत है, जिनका त्याग करना चाहिए।
- किसी का दिया सेब कभी नहीं खाना चाहिए, क्योंकि सेब पर ऊपरी क्रियाएं करना आसान होता है और वे अत्यंत प्रभावी होती हैं।
- जल के भीतर मल-मूत्र का त्याग करन या थूकना नहीं चाहिए।
- सूर्य की ओर देखते हुए पेशाब नहीं करना चाहिए।
- अग्नि पर पेशाब नहीं करना चाहिए श्वेत आक, चमेली, रात की रानी, पीपल, मौलसिरी, शीशम, ढाक, गूलर, कीकर आदि के पेड़ों के नीचे मल-मूत्र का त्याग नहीं करना चाहिए।
- सफेद रंग की वस्तुएं जैसे चावल, बूरा, मिठाई आदि खाने के पश्चात् उन स्थानों से नहीं गुजरना चाहिए, जहां हवाओं का वास होता है।
- मेंहदी, इत्र आदि लगाकर भी उन स्थानों पर नहीं जाना चाहिए, जहां हवाओं का वास होता है। उपर्युक्त अवस्थाओं से प्रभावित व्यक्ति की पहचान
- ऐसा व्यक्ति बार-बार बुरे स्वप्न देखता है।
- ऐसे व्यक्ति की आंखें व चेहरा लाल हो जाता है।
- उसके पैरों, सिर व पेट में दर्द होता है।
- उसे बार-बार पसीना आता है।
- उसकी आदतें अच्छी हों, तो उसके तन से सुगंध और बुरी हों तो दुर्गंध आती है।
उतारा: उतारा शब्द का तात्पर्य व्यक्ति विशेष पर हावी बुरी हवा अथवा बुरी आत्मा, नजर आदि के प्रभाव को उतारने से है। उतारा वह वस्तु होती है जो सीधा आत्मा पर वार करती है। आमतौर पर इस प्रकार के उतारे मिठाइयों द्वारा किए जाते हैं, क्योंकि मिठाइयों की ओर ये श्ीाघ्र आकर्षित होते हैं। उतारा करने की विधि उतारे की वस्तु सीधे हाथ में लेकर आवेशित व्यक्ति के सिर से पैर की ओर सात अथवा ग्यारह बार घुमाई जाती है। इससे वह बुरी आत्मा उस वस्तु में आ जाती है।
उतारा की क्रिया करने के बाद वह वस्तु किसी चैराहे, निर्जन स्थान या पीपल के नीचे रख दी जाती है और व्यक्ति ठीक हो जाता है। किस दिन किस मिठाई से उतारा करना चाहिए, इसका विवरण यहां प्रस्तुत है।
- रविवार: रविवार को तबक अथवा ड्राइ फ्रुट युक्त बर्फी से उतारा करना चाहिए।
- सोमवार: सोमवार को बर्फी से उतारा करके गाय को खिलाएं।
- मंगलवार: मंगलवार को मोती चूर के लड्डू से उतारा करें व उसे कुत्ते को खिलाएं।
- बुधवार: बुधवार का उतारा इमरती से करें व उसे कुत्ते को डालें।
- गुरुवार: गुरुवार को सायं काल एक दोने में अथवा कागज पर पांच मिठाइयां रखकर उतारा करें। उतारा करके उसमें छोटी इलायची रखें व धूपबत्ती जलाकर किसी पीपल के वृक्ष के नीचे पश्चिम दिशा में रखकर घर वापस जाएं। ध्यान रहे, वापस जाते समय पीछे मुड़कर न देखें। घर आकर हाथ और पैर धोकर व कुल्ला करके ही अन्य कार्य करने चाहिए।
- शुक्रवार: शुक्रवार को मोती चूर के लड्डू से उतारा करना चाहिए व लड्डू कुत्ते को खिलाएं या चैराहे पर रखें।
- शनिवार: शनिवार को उतारा करना हो तो इमरती या बूंदी का लड्डू प्रयोग में लाएं व उसे उतारे के बाद कुत्ते को खिलाएं। नजर उतारने अथवा उतारा आदि करने के लिए निम्नलिखित वस्तुएं प्रयोग में लाई जाती हंै।
- कपूर - बंूदी का लड्डू - इमरती - बर्फी - कड़वे तेल की रूई की बाती। - जायफल - उबले चावल - बूरा, - राई - नमक - काली सरसों - पीली सरसों - मेहंदी - काले तिल - सिंदूर - रोली - हनुमान जी वाला सिंदूर - नींबू - उबले अंडे - गुग्गल - शराब - दही - फल - फूल - मिठाइयां - लाल मिर्च - झाडू - मोर छाल - लौंग
- नीम के पत्तों की धूनी। ऊपरी हवाओं से बचाव हेतु कुछ अनुभूत प्रयोग
- लहसुन के तेल में हींग मिलाकर दो बूंद नाक में डालने से ऊपरी बाधा दूर होती है।
- रविवार को सहदेई की जड़, तुलसी के आठ पत्ते और आठ काली मिर्च किसी कपड़े में बांधकर काले धागे से गले में बांधने से ऊपरी हवाएं सताना बंद कर देती हैं।
- नीम के पत्ते, हींग, सरसों बच व सांप की केचुली की धूनी से भी ऊपरी बाधा दूर होती है।
- रविवार को काले धतूरे की जड़ हाथ में बांधने से ऊपरी बाधा दूर होती है।
- गंगाजल में तुलसी के पत्ते व काली मिर्च पीसकर घर में छिड़कने से ऊपरी हवाओं से मुक्ति मिलती है।
- हनुमान जी की उपासना अत्यंत लाभकारी होती है।
- राम रक्षा कवच या रामवचन कवच पढ़ने से तुरंत लाभ मिलता है।
- पेरीडाॅट, संग सुलेमानी, क्राइसो लाइट, कार्नेलियन जेट, साइट्रीन, क्राइसो प्रेज जैसे रत्न धारण करने से भी लाभ मिलता है।
- गायत्री मंत्र का जप करें। (सुबह की अपेक्षा संध्या समय किया गया गायत्री मंत्र का जप अधिक लाभकारी होता है।) स्थायी व दीर्घकालीन लाभ के लिए निम्नलिखित कार्य अवश्य करें।
- गायत्री मंत्र का जप (संध्या के समय) और जप के दशांश का हवन।
- हनुमान जी की निंरतर उपासना।
- भगवान शिव की उपासना व उनके मूल मंत्र का जप।
- महामृत्युंजय मंत्र का जप।
- मां दुर्गा और मां काली की उपासना।
- स्नान के पश्चात् तांबे के लोटे से सूर्य को जल का अघ्र्य दें।
- पूर्णमासी को सत्यनारायण की कथा किसी कर्मकांडी ब्राह्मण से सुनें।
- संध्या के समय घर में दीपक जलाएं।
- प्रतिदिन गुग्गुल की धूनी दें।
- घर में प्रतिदिन गंगाजल छिड़कें।
- प्रतिदिन सुंदर कांड का पाठ करें।
- आसन की शुद्धि का ध्यान अवश्य रखें।
- किसी के द्वारा दिया गया सेव व केला न खाएं।
- रात्रि बारह से चार बजे के बीच कभी स्नान न करें।
- बीमारी से मुक्ति के लिए नीबू से उतारा करके उसमें एक सुई आर-पार चुभो कर पूजा स्थल पर रख दें और सूखने पर फेंक दें। यदि रोग फिर भी दूर न हो, तो रोगी की चारपाई से एक बाण निकालकर रोगी के सिर से पैर तक छुआते हुए उसे सरसों के तेल में अच्छी तरह भिगोकर बराबर कर लें व लटकाकर जला दें और फिर राख पानी में बहा दें।
- घर व दुकान में प्रातः काल गंगाजल छिड़कें और संभव हो, तो नहाते समय भी गंगाजल प्रयोग में लाएं।
- पूर्णमासी को सत्यनारायण की कथा करवाएं।
- रामायण का पाठ करें।
- घर के निकट मंदिर में प्रातः काल जाकर देव दर्शन करें।
- संध्या समय घर में पूजा स्थल पर दीपक जलाएं।
- संध्या समय घर में नीम के सूखे पत्ते का धुआं दें।
- घर व उसके आस-पास पीपल न उगने दें। केले का पेड़ घर में न लगाएं।
- घर से बीमारी न जा रही हो, तो जायफल उतारकर अग्नि में डालें
- रात्रि में दुःस्वप्न आते हों व ऊपरी हवाएं परेशान करती हों, तो लहसुन के तेल में हींग मिलाकर एक बूंद नाक में लगाएं विशेष: उतारा आदि करने के पश्चात भलीभांति कुल्ला अवश्य करें।