लोकव्यवहार में वर्ष भर में आश्विन नवरात्र एवं चैत्र नवरात्र की ही अधिक मान्यता है। देवी भक्त इस पुण्य अवसर पर मां भगवती त्रिशक्ति (महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती) स्वरूप दुर्गा के यथाशक्ति के अनुसार व्रत, पूजा, पाठ, जप, ध्यान, साधना करते हैं। देवी की साधना किसी न किसी रूप में प्रत्येक व्यक्ति को अवश्य करनी चाहिए। देवी भुक्ति-मुक्ति दोनों को ही देने वाली हैं। ऐसा कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य की प्रारंभ में शक्ति की साधना के प्रति विशेष रुचि नहीं थी लेकिन जब उन्हें एक दिन भगवती शक्ति का साक्षात्कार हुआ तो उनके हृदय में देवी की भक्ति एवं शक्ति के प्रति परमश्रद्धा एवं विश्वास बने।
प्रत्येक प्राणी मात्र के अंदर जो शक्ति है, जिससे व्यक्ति क्रियाशील होता है वह मां भगवती की ही शक्ति है। संसार का कोई भी कार्य बिना क्रिया शक्ति के संचालित नहीं हो सकता है। अतः हमारे जीवन में शक्ति का कितना महत्व है इसका अनुभव हम अपने जीवन में स्वयं कर सकते हैं। देवी भगवती की साधना यदि यंत्र एवं मंत्र के माध्यम से संयुक्त रूप से की जाए तो शीघ्र मनोवांछित सफलता की प्राप्ति होती है, परिवार में सुख-शांति बनती है। धन, ऐश्वर्य, संपत्ति की अभिवृद्धि होती है।
शुद्ध ताम्र पत्र पर बने नवदुर्गा यंत्र को प्रथम नवरात्र के दिन अपने पूजा स्थल में स्थापित करके नवमी पर्यन्त इस यंत्र की नित्य पूजा करने से इच्छित फल में आने वाली बाधाओं का निराकरण होता है, पारिवारिक उन्नति, पद, प्रतिष्ठा एवं कार्यक्षेत्र नौकरी, व्यवसाय में लाभ की प्राप्ति होती है।
सरल पूजन एवं स्थापना विधि: प्रथम नवरात्र को प्रातःकाल के समय किसी शुद्ध पात्र पर फूल एवं चावल डाल कर, उसके ऊपर इस यंत्र को स्थापित करें तथा सबसे पहले गंगाजल या शुद्ध ताजे जल से स्नान कराएं, फिर दूध, दही, घी, मधु, शक्कर से बारी-बारी अभिषेक करें। फिर शुद्ध जल से अभिषेक करके शुद्ध वस्त्र से पोंछ कर लकड़ी की चैकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उसके ऊपर यंत्र स्थापित करें।
ऊँ दुं नवदुर्गायै नमः इस मंत्र से यंत्र पर 108 बार रंगे चावल एवं पुष्प चढ़ाएं, फिर रोली, अक्षत, पुष्प अर्पण करें। धूप, दीप, नैवेद्य, दक्षिणा चढ़ाएं, क्षमा प्रार्थना करके यंत्र के सम्मुख बैठकर निम्न मंत्र का लाल चंदन की माला पर नित्य नवरात्रपर्यंत 11 माला जप करें अथवा दुर्गा अष्टोत्तर शतनामावली का पाठ करें। मंत्र: ऊँ दुं नव दुर्गायै नमः