ग्रहों की अनुकूलता हेतु नवग्रह रत्न यंत्र एवं माला आचार्य. रमेश शास्त्राी नव ग्रहों का हमारे जीवन से घनिष्ठ संबंध है। ग्रहों की अनुकूलता एवं प्रतिकूलता प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में घटित होती रहती है। परंतु जब ग्रह प्रतिकूल होते हैं। तब व्यक्ति विवष हो जाता है। उस समय शारीरिक एवं मानसिक परिश्रम करने के बावजूद उसका फल प्राप्त नहीं होता। ऐसी परिस्थितियों में इन ग्रहों के अषुभ प्रभावों के शमन का उपाय करने से लाभ प्राप्त होता है। नवरत्न अंगूठी एवं लाॅकेट: यह अंगूठी तथा लाॅकेट नवग्रहों के नवरत्न से जड़ित होते हैं। यदि कुंडली में अधिक ग्रह कमजोर हों, अथवा जीवन में परिश्रम करने पर भी उस अनुपात में फल न मिलता हो, तो नवग्रह रत्न अंगूठी को दायें हाथ की अनामिका में रविवार की सुबह धारण करें। यदि अंगूठी धारण न करना चाहें तो नवरत्न लाॅकेट धारण कर सकते हैं। इसे धारण करने से जीवन में ग्रहों के अशुभ प्रभाव दूर होते हैं और लाभ एवं उन्नति के मार्ग खुलते हैं। नव रत्न माला: यह माला नव ग्रहों के नव रत्नों से निर्मित की जाती है। यह माला ग्रहों के अशुभ प्रभाव को दूर करने तथा उनकी अनुकूलता प्राप्त करने के लिए धारण की जाती है। यदि व्यापार में घाटे की स्थिति अधिक रहती हो, कार्य में मन न लगता हो, उत्साह में कमी हो, तो यह माला धारण करें, लाभ मिलेगा। इसे मान सम्मान, यश आदि की प्राप्ति के लिए भी धारण किया जाता है। माला को गंगा जल अथवा पंचामृत से शुद्ध करके रविवार को प्रातः काल सूर्योदय के बाद गले में धारण करें और साथ ही नित्य नवग्रह मंत्र का 108 बार जप करें एवं निम्न मंत्रों में से किसी भी एक मंत्र का नित्य जप करें, शुभ फल की प्राप्ति होगी। नव ग्रह यंत्र: यह यंत्र सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु यंत्रों को मिलाकर बनाया गया है। परिवार में ग्रहों की अनुकूलता हेतु इसे घर की पूर्व दिशा में रविवार को प्रातः काल स्थापित करना चाहिए। यंत्र का पंचोपचार पूजन और प्राण प्रतिष्ठा के पश्चात् उसकी नित्य धूप दीप दिखाकर प्रार्थना करें। इस यंत्र के प्रभाव से नव ग्रहों के अशुभ प्रभाव दूर होते हैं तथा शुभ फलों में वृद्धि होती है। इस तरह इस यंत्र की पूजा उपासना से जीवन में सुख समृद्धि बढ़ती है। 1. जप मंत्र: ब्रह्मा मुरारिस्त्रिापुरान्तकारी भानुःशशी भूमिसुतो बुधश्च। गुरुश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः सर्वेग्रहाः शान्तिकरा भवन्तु। सर्वे ग्रहाः शान्तिकरा भवन्तु। सर्वेभ्यो ग्रहेभ्यो नमः