मंगल
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मंगल  

व्यूस : 7871 | जून 2008
आचार्य अविनाश सिंह, दिल्ली सर्य के इर्द-गिर्द घूमने वाले ग्रहों में चैथा ग्रह मंगल है अर्थात् मंगल की कक्षा चैथी है। हमारी पृथ्वी मंगल और शुक्र ग्रहों के बीच में है। पृथ्वी के निकट बाह्य कक्षा ग्रह है। इसकी सूर्य से दूरी 1270 लाख से 1530 लाख मील के बीच रहती है। मंगल कभी पृथ्वी के बहुत निकट 487 लाख मील की दूरी पर आ जाता है और कभी 2333 लाख मील दूर चला जाता है। इसलिए कभी छोटा और कभी बड़ा दिखाई देता है। इसका वर्ण लाल है पर कभी-कभी बहुत लाल दिखाई देता है इसीलिए इसे अग्नि, अंगारक और लोहितांग भी कहा जाता है। मंगल का व्यास 4200 मील है- लगभग पृथ्वी से आधा । इसकी नक्षत्र-परिक्रमा अवधि 687 दिन तथा संयुति काल 780 दिन है। इसका अहोरात्र 24 घंटे का होता है। मंगल पर जल और वायु है अतः प्राणी भी हो सकते हैं। संभव है, मंगल का वातावरण सुखद। कदाचित इसी कारण इसे मंगल कहा जाता है। मंगल और पृथ्वी में बहुत समानता है, इसीलिए इसे पृथ्वी का पुत्र कहा जाता है। वैज्ञानिकों ने मंगल के विषय में बहुत खोज और जानकारी हासिल की है। सूर्य से दूर होने के कारण इसे आकाश में आसानी से देखा जा सकता है। मंगल एक बार उदित होने पर 21-22 मासों तक दिखाई देता रहता है 780 दिनों में यह एक बार उदित और अस्त होता है। उदित होने के 10 मास बाद यह वक्री होता है। फिर दो मास के बाद मार्गी होता है और उसके 10 मास बाद अर्थात् उदय के 22 मास बाद अस्त हो जाता हो जाता है और चार मास तक अस्त रहता है। मंगल के दो उपग्रह हैं जिनके नाम डिमांस तथा फोबोस हंै। पौराणिक दृष्टिकोण पुराणों के अनुसार मंगल देवता की चार भुजाएं हैं। इनके शरीर के रोयें लाल हैं। इनके हाथों में अभय मुद्रा त्रिशूल, गदा और वर मुद्रा है। इन्होंने लाल माला और लाल वस्त्र धारण कर रखे हैं। इनके सिर पर स्वर्ण मुकुट है तथा ये मेष (मेढ़ा) के वाहन पर सवार हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण (ब्रह्म खंड 9) के अनुसार पृथ्वी एक बार विष्णु भगवान का सुंदर रूप देख कर कामातुर हो गई। वह अक्षत यौवना सुंदरी नारी बन कर हंसती हुई मलयागिरि के निर्जन वन में विराजमान तथा रत्नों से भूषित विष्णु के पलंग पर सो गई। विष्णु ने उसकी मनोभावना को जानकर उसके साथ संभोग किया। तब वह संभोग सुख से मूच्र्छित हो गई। हरि ने मृत तुल्या कामिनी को वक्ष स्थल से लगाया और उसमें वीर्याधान किया। स्वर्ग लोक की अप्सरा उर्वशी उसी मार्ग से किसी के पास जा रही थी। उसने पृथ्वी को जगाया और उसके मुख से सारा वृŸाांत सुना। पृथ्वी ने कहा कि वह विष्णु के वीर्य को धारण करने में असमर्थ है। उर्वशी ने उसे मूंगे की एक खदान में गिरा दिया तो उससे सूर्य सा तेजस्वी एवं मूंगे के समान लाल शरीर वाले मंगल पैदा हुए। बाद में मंगल का विवाह मेधा से हुआ। मंगल तेजस्वी देव हैं, नारायण के पत्रु ह ंै आरै पाप गह्र भी हं।ै पù पुराण (सृष्टि खंड अध्याय 83) के अनुसार एक बार अंधक नाम का दैत्य पार्वती को देख कर कामातुर हो गया। उसका शिव से युद्ध होने लगा और शुक्राचार्य मरे दैत्यों को संजीवनी विद्या द्वारा जीवित करने लगे। नन्दी ने शुक्राचार को पकड़कर शिव को दे दिया, शिव शुक्राचार्य को निगल गये किंतु बाद में उन्होंने शुक्र को भूमि पर उगल दिया। चूंकि शुक्र भूमि पर गिरे, इसलिए भौम (मंगल) कहलाए। शिवपुराण (पार्वती खंड 10) के अनुसार एक बार शंकर का श्रमजन्य पसीना माथे से भूमि पर गिर पड़ा और रक्त वर्ण, चतुर्भज एवं सुंदर शिशु होकर रोने लगा। पृथ्वी देवी शंकर से डरती हुई कुछ सोचने के बाद सुंदरी नारी का रूप धारण कर वहां आई और शिशु को गोद में लेकर स्तनपान कराने तथा उसका मुख चूमने लगी, शंकर की कृपा से बालक मंगल ग्रह हो गया और काशी में कुछ दिनों तक शिव की आराधना करने के बाद आकाश में शुक्र के ऊपर चला गया। इस प्रकार विभिन्न कल्पों में मंगल की उत्पŸिा की विभिन्न कथाएं हंै। पूजा के प्रयोग में इन्हें भारद्वाज गोत्र कहकर संबोधित किया जाता है। पुराणों में मंगल ग्रह की पूजा की बड़ी महिमा बताई गई है। यह प्रसन्न होकर मनुष्य की हर प्रकार की इच्छा पूर्ण करते हैं। भविष्य पुराण के अनुसार मंगल व्रत ताम्रपत्र पर भौमयंत्र लिखकर तथा मंगल की सुवर्णमयी प्रतिमा की प्रतिष्ठा कर पूजा करने का विधान है। ज्योतिषीय दृष्टिकोण- ज्योतिष के अनुसार मंगल एक क्रूर ग्रह है जिसका वर्ण अग्नि के समान लाल है। इसलिए इसे अंगार भी कहते हैं। यह स्वतंत्र प्रकृति का और अनुशासनप्रिय है। इस ग्रह से प्रभावित जातक सेनाध्यक्ष, राजदूत आदि होते हैं या उच्च पदों पर कार्य करते हैं। उनमें नेतृत्व शक्ति विशेष होती है। वे निडर होते हैं किसी भी प्रकार का जोखिम ले लेते हैं। खिलाड़ी ऐथलीट्स, वायुसेना, थल सेना, नौ सेना के अध्यक्ष आदि मंगल से ही प्रभावित होते हैं। वे हर प्रकार के चुनौती पूर्ण कार्य में रुचि रखते हैं। मंगल को भौम, कुजा आदि नामों से भी जाना जाता है। नव ग्रहों में मंगल को सेनापति की संज्ञा दी गयी है। शारीरिक तौर पर मंगल से प्रभावित जातक स्वस्थ, और मध्य लंबे कद के होते हैं। कमर पतली छाती चैड़ी, बाल घुंघराले, आंखे लाल होती हैं। उनके चेहरे पर तेज होता है। मंगल मेष एवं वृश्चिक राशि का स्वामी है। मृगशिरा, चित्रा और धनिष्ठा नक्षत्रों का स्वामित्व भी मंगल को ही प्राप्त है। मंगल तृतीय एवं षष्ठ भाव का कारक है। मिथुन लग्न और कन्या लग्न की कुंडली में यह विशेष अकारक ग्रह बन जाता है। मंगल मकर राशि में उच्च और कर्क राशि में नीच का होता है। लग्न कुंडली में मंगल जिस भाव में स्थिति होता है उस भाव से संबंधित कार्यों को अपनी प्रकृति के अनुसार सुदृढ़ करता है। शुभ मंगल मंगलकारी और अशुभ मंगल अमंगलकारी कार्य करता है। मंगल शक्ति, साहस, सेनाध्यक्ष, युद्ध, दुर्घटना, क्रोध, षड्यंत्र, बीमारियों, शत्रु, विपक्ष, विवाद, संपŸिा, छोटे भाई नेता, पुलिस, डाक्टर, वैज्ञानिक, मेकैनिकल इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्राॅनिक कार्यों का कारक ग्रह है। मंगल तांबे, खनिज पदार्थों, कच्ची धातु, सोने, मूंगे, हथियार, भूमि आदि का प्रतिनिधित्व करता है। मंगल शिराओं, धमनियों टूट-फूट, अस्थि-मज्जा के रोग, रक्त स्राव, गर्भपात, मासिक धर्म मंे अनियमितता, सूजाक, गठिया, और जलना आदि रोगों का प्रतीक है। अशुभ मंगल अमंगलकारी हो जाता है जिसके प्रभाव से प्रभावित जातक क्रोधी, आतंकवादी, दुराचारी, षड्यंत्रकारी और विद्रोही होता है। मंगल की क्रूरता के कारण ही वर-वधू की कुंडली में मंगली मिलान आवश्यक होता है। दाम्पत्य जीवन सुखमय हो इसके लिए वर-वधू दोनों की कंुडली में मंगल की स्थिति को देख कर मिलान किया जाता है। मंगल ग्रह की शांति के लिए शिव उपासना तथा मूंगा रत्न धारण करने का विधान है। मंगल की अनुकूलता के लिए तांबे, सोने, लाल वस्त्र, गुड़, लाल चंदन, लाल पुष्प, केसर कस्तूरी, मसूर की दाल, भूमि आदि का दान, मंगलवार का व्रत तथा हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए। साथ ही इसके बीज मंत्र ऊँ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः और ऊँ अं अंगारकाय नमः का जप करना चाहिए।



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