विवाह संपूर्ण मानव जाति के लिए परमात्मा की एक अनुपम भेंट है। भारत वर्ष में लोग प्राचीन काल से ही विद्या अध्ययन के बाद विवाह करते थे, लेकिन वर्तमान समय के युवा वर्ग यह नहीं मानते कि सामाजिक परंपरा मिलन आदि के बाद विवाह किया जाए।
आजकल यह चल रहा है कि जो लड़की पसंद आ जाए वही ठीक है लेकिन यह बड़ी भूल की बात है क्योंकि जब तक वर वधु का मानसिक तत्व, शारीरिक तत्व, बुद्धि भेद, धार्मिक भेद आदि का परस्पर मेल न हो तब तक विवाह का संबंध सुखदायी नहीं हो सकता।
कुंडली मिलान यानि वर वधु के मन का मिलान है जब तक मन नहीं मिलेंगे विवाह सफल नहीं हो सकता है। विवाह की सफलता के लिए मिलान आवश्यक है। सभी राशियों के अग्नि तत्व, जल तत्व, वायु तत्व, आकाश तत्व एवं पृथ्वी तत्व होते हैं।
उदाहरण - यदि अग्नि तत्व वाले का विवाह जल तत्व वाले से कर दिया जाए तो परिणाम स्वरूप वे एक दूसरे के जीवन पर्यन्त शत्रु बने रहेंगे।
अतः विवाह में मंगल दोष, प्रेम विवाह, विच्छेद आदि के कारण दाम्पत्य जीवन कष्टमय न हो इसके लिए हमें हमारे परम पूज्य श्रेष्ठ प्राचीन ऋषियों पाराशर, वशिष्ठ, जैमिनी, अत्रि ने अपनी दिव्य दृष्टि से अनुभव से तथा अनेक प्रकार से जांच विचार कर निःस्वार्थ भाव हो, मनुष्यों के हित के लिए बहुत सी रीतियां बना रखी है।
जान बूझकर इन शिक्षा एवं रीतियों का उल्लंघन करना यानि पुत्र-पुत्री को काटें की सैया पर सुलाना है। मंगल दोष मंगल जब वर या कन्या की कुंडली में 2, 4, 7, 8, 12 स्थान पर होता है तब मंगल दोष होता है अर्थात वर की कुंडली में स्त्री हंता योग एवं कन्या की कुंडली में वैधव्य योग होता है। मंगल के समान ही शनि दोष पर भी विचार करना चाहिए।
यदि कन्या की कुंडली में लग्न से अष्टम भाव में शनि या अन्य कोई पाप ग्रह बैठा हो और विशेष कर नीच हो या शत्रु गृही हो या नीच वर्ग का हो तो पति के लिए अनिष्टकारी होता है। यदि वर की कुंडली में द्वितीय सप्तम स्थानों में पाप ग्रह हो तो भी स्त्रीहंता योग होता है। अभिप्राय यह है कि यदि कन्या की कुंडली में मंगल दोष अथवा शनि दोष हो तो उसका विवाह मंगल दोष या शनि दोष वाले वर के साथ (सभी मिलान ठीक हो तो) किया जा सकता है।
इस विषय में डाॅ. हेनीमेन का कथन ‘विषस्य विष औषधम’ ऐसे स्थान पर लागू होता है। अतः मंगल दोष को लग्न, चंद्र, सूर्य, आदि से विचार करना चाहिए ताकि दाम्पत्य जीवन सुखमय बना रहे। प्रेम विवाह प्रेम विवाह अर्थात वर, कन्या का अपनी पसंद से अपना जीवन साथी चुनना।
यह सभी जानते हैं लेकिन वर्तमान समय में लोग रीति रिवाज को न मान कर अपने दिल की बात को प्राथमिकता देते हैं लेकिन प्रेम विवाह पूर्णतया सफल नहीं होते एवं कुछ लोग बोझ समझ कर झेलते हैं एवं अपने भाग्य से समझौता करते हैं। जब वे भाग्य से समझौता करते हैं तब यह बात कहते हैं कि काश हमने अपने बड़ों की बात मानी होती लेकिन तब तक समय हांथ से निकल चुका होता है। पश्चाताप के अलावा कुछ नहीं रह जाता तब सभी तरफ से हारा व्यक्ति ज्योतिषी के पास जाता है और सोचता है कि कहीं कुछ ठीक हो जाए तो उसका जीवन सफल हो जाए।
यदि हम इस बात को पहले ही विचार कर लें तो अपना जीवन सुखमय व्यतीत कर सकते हैं। कई व्यक्ति प्रेम विवाह कर अपने समस्याओं से ग्रस्त होते हैं। किसी में नाडी दोष, किसी में गण दोष, किसी में पूर्ण गुण नहीं मिलते, किसी में मंगल दोष। इन सभी को युवा वर्ग नजर अंदाज कर देते हैं एवं दुख के भागी होते हैं।
प्रेम विवाह के कुछ योग:
1. पांचवा भाव या इसका स्वामी ग्रह किसी प्रकार भी लग्न या सातवें भाव से संबंधित हो तो प्रेम विवाह होता है।
2. यदि सातवां भावा या सातवें भाव का स्वामी किसी भी प्रकार लग्न पाचवें या ग्यारहवें भाव से संबंधित हो जाए तो प्रेम विवाह होता है।
3. पंचमाधिपति की उच्च राशि में राहु या केंद्र स्थित हो।
4. सप्तमेश अगर सप्तम में शुक्र के साथ बैठा हो तो लाभेश और लाभस्थ ग्रह पंचम या सप्तम भाव संबंधित हो तथा शुभ लग्न पंचम और सप्तम से संबंध स्थापित करे।
5. नवमेश की युति पंचमेश या सप्तमेश के साथ हो तो प्रेम विवाह होता है।
6. यदि सप्तमेश या पंचमेश नीच राशि में हो तो अंतरजातीय विवाह होता है।
विवाह विच्छेद के कारण जब 2, 7, 11 भावों में अशुभ ग्रह हो या इन भावों पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव पड़ रहा हो। शनि, राहु, मंगल, सूर्य की स्थ्तिि अशुभ हो तो विवाह विच्छेद निश्चित होता है। सप्तम भाव में पाप ग्रहों की अधिक दृष्टि दाम्पत्य सुख को नष्ट कर देती है। चंद्र-राहु, मंगल-राहु, शुक्र चंद्र राहु सूर्य शनि ये युति यदि सप्तम भाव या सप्तमेश से युति करे तो विवाह विच्छेद, अशांति, कलह बनी रहती है।
उपाय :
1. ग्रहानुकूल शांति करना चाहिए।
2. शिव पूजा करें, अभिषेक आदि नियम पूर्वक करना चाहिए।
3. मंगल प्रभाव अधिक हो तो विष्णु या कुंभ विवाह आर्क विवाह आदि करना चाहिए।
4. इस प्रकार विवाह को सुख युक्त बना सकते हैं।