विष्णु पुराण में भगवान विश्वकर्मा को शिल्पावतार, शिल्पग्रंथों में सृष्टिकर्ता और स्कंदपुराण में देवायतनों का सृष्टा कहा गया है। जिस सृष्टि को ब्रह्मा ने रचा उसको व्यवस्थित करने का श्रेय भगवान विश्वकर्मा को है। आज के परिप्रेक्ष्य में कहें तो वह सभी प्रकार के इंजीनियरों, वैज्ञानिकों और वास्तुशास्त्रियों का एकरूप है। जिस विज्ञान के चमत्कारों से हम अचंभित रह जाते हैं, उसके जनक विश्वकर्मा ही हैं।
धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि पुष्पक विमान को बनाने वाले भी विश्वकर्मा ही हैं। विश्वकर्मा की महता इसी बात से पता चलती है कि त्रिदेवों को अपने कई कार्य कराने के लिये इनकी मदद लेनी पड़ी थी। चाहे भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र हो या फिर भोलेनाथ का त्रिशूल यमराज का कालदंड हो इनकी रचना उनके हाथों ही हुई।
यहां तक कि कर्ण के कवच-कुंडल, रावण का पुष्पक विमान या इंद्रप्रस्थ का रंगमहल, विश्वकर्मा ने ही तैयार किया। पुराणों में भगवान विश्वकर्मा को सृष्टिकत्र्ता परमपिता भी कहा गया है। यदि विष्णु ने अन्न दिया तो उसे उत्पन्न करने के लिये जरूरी औजार विश्वकर्मा ने ही बनाये। भोलेनाथ के पास पापियों का संहार करने की शक्ति है, तो आम लोगों को आत्मरक्षा के लिये हथियार विश्वकर्मा ने ही दिये।
कहना गलत नहीं होगा कि बिना विश्वकर्मा के इस सृष्टि की रचना अधूरी रह जाती। आज भी विश्व का सबसे पहला तकनीकि ग्रंथ विश्वकर्मीय गं्रथ को ही माना जाता है। 17 सितंबर को भगवान विश्वकर्मा की जयंती मनाई जाती है। इस दिन सभी कल-कारखानों में उनकी पूजा औजाओं के जनक के रूप में की जाती है।