वास्तु सीखें
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प्रमोद कुमार सिन्हा
व्यूस : 5037 | आगस्त 2011

प्र0: भवन में पूजाकक्ष किस स्थान पर बनाना चाहिए ?

उ0- पूजा घर हमेषा उत्तर-पूर्व दिषा अर्थात् ईषान कोण में ही बनाना चाहिए क्योंकि उतर-पूर्व में परमपिता परमेष्वर अर्थात ईष्वर का वास होता है। कहा जाता है कि देवी लक्ष्मी, भगवान विष्णु के साथ उतर-पूर्व में निवास करती है। साथ ही ईषान क्षेत्र में देव गुरु वृहस्पति का अधिकार है जो कि आध्यात्मिक चेतना का प्रमुख कारक ग्रह है। ईषान कोण में जगह नही रहने पर पूजा कक्ष या मंदिर उत्तर, पूर्व या पष्चिम दिषा में बनाया सकता है। यह स्थान दैनिक पूजा के लिए उपयुक्त होता है। पर्व आदि पर विषेष पूजा, कथा, हवन आदि घर के मध्य स्थान, आंगन आदि में आयोजित किए जा सकते हैं।

प्र0- पूजा-गृह क्या शयनकक्ष में बनाना चाहिए ?

उ0- पूजा गृह कभी भी शयनकक्ष में नही बनाना चाहिए क्योंकि शयनकक्ष पर शुक्र ग्रह का आधिपत्य होता है जो भौतिकतावादी ग्रह है। पूजा घर, बृहस्पति के आधिपत्य में आता है जो कि सात्विक ग्रह है। यह सात्विक गुणों में वृद्धि करता है। शयनकक्ष में पूजा घर रहने पर शयनकक्ष का स्वामी शुक्र, बृहस्पति के प्रभाव में कमी लाएगा जिसके फलस्वरूप आध्यात्मिकता में कमी आएगी और पूजा का जो लाभ मिलना चाहिए वह नही मिल पाएगा। अतः शयनकक्ष या बैठक-कक्ष के अंदर पूजा घर नही बनाना चाहिए। जगह की कमी हो तो अध्ययन-कक्ष के साथ पूजा-घर बनाया जा सकता है।

प्र0- पूजा गृह क्या रसोईघर में बनाना चाहिए ?

उ0- पूजाघर कभी भी रसोईघर के साथ नही बनाना चाहिए। प्रायः लोग रसोईघर में ही पूजाघर बना लेते हैं जो उचित नही है। रसोईघर में प्रयोग होने वाली वस्तुएं मिर्च-मसाला, गैस, तेल, कांटा-चम्मच, नमक आदि मंगल ग्रह की प्रतीक वस्तुएं हैं।मंगल का वास भी रसोईघर में ही होता है। उग्र ग्रह होने के कारण मंगल उग्र प्रभाव में वृद्धि कर पूजा करने वाले की शांति एवं सात्विकता में कमी लाता है। अतः रसोईघर में पूजा करने से आध्यात्मिक चेतना का विकास नहीं हो पाता।

प्र0- पूजा-घर में मूर्ति या प्रतिमा किस तरह की होनी चाहिए ?

उ0- पूजाघर में हमेशा साफ-सुथरी प्रतिमा, यंत्र या तस्वीर रखनी चाहिए। मूर्तियों को हमेशा धातु, पत्थर या मिट्टी का रखना चाहिए। मिट्टी की मूर्तियां शुभ होती है लेकिन इन्हें अंदर से खोखला नही होना चाहिए। प्लास्टर आॅफ पेरिस की मूर्तियां अक्सर खोखली होती है। इन मूर्तियों को पूजा कक्ष में नही रखना चाहिए। सामान्यतः घरों में मूर्तियों की प्रकृति खडी रहने की अपेक्षा बैठी रहनी शुभ है। पूजा कक्ष में मूर्ति का आकार 9 इंच से अधिक नही रखना चाहिए। अर्थात् घर के पूजा घर में बडी मूर्तियां या प्रतिमा नही रखनी चाहिए। देवताओं को ठोस धरातल पर सामान्य भूमि से थोडा उपर कर स्थापित करना चाहिए। मूर्ति के पीछे ठोस दीवार रखना आवश्यक है।

प्र0- पूजा-घर में ब्रह्मा, विष्णु, कार्तिकेय, सूर्य एवं इंद्र को किस तरह स्थापित करना चाहिए ?

उ0- पूजाघर में ब्रह्मा, विष्णु, शिव, कार्तिकेय, सूर्य एवं इंद्र को इस तरह स्थापित करना चाहिए कि पूजा करते समय व्यक्ति का मुंह पूर्व या पश्चिम की ओर हो। अर्थात् इन सभी देवी-देवताओं की स्थापना की सही दिशा पूर्व या पश्चिम है। देवी-देवताओं की मूर्ति उत्तरी दिशा वाली दीवार पर नही लगानी चाहिए। अन्यथा वे दक्षिणाभिमुख हो जाएंगी। साथ ही उतर में उत्तरी ध्रुव होता है। अतः दोनो का एक दिशा में रहना ठीक नही रहेगा। सरस्वती पश्चिम दिशा में निवास करती हैं जबकि लक्ष्मी उत्तर-पूर्व में रहती हैं।

लक्ष्मी पूजा हमेशा पूर्व दिशा या पश्चिम दिशा की ओर मुख करके करनी चाहिए। पूर्व में भगवान का मंदिर तथा पश्चिम में देवी मंदिर नाम ऐश्वर्य एवं धन-दौलत देने वाला होता है। घर में विष्णु, लक्ष्मी, राम, सीता, कृष्ण एवं बालाजी जैसे सात्विक एवं शांत देवी-देवता के यंत्र, मूर्ति एवं तस्वीर रखना लाभप्रद रहता है। पूजाघर में मूर्तियों को एक दूसरे की ओर मुख करके नही रखनी चाहिए। भवन मंे रखे देवी-देवताओं की प्राण-प्रतिष्ठा नही करनी चाहिए। इस स्थान का उपयोग पूजा-पाठ तथा चित्र आदि रखने के लिए अच्छा होता है। भवन में रखे देवी-देवताओं की प्राण-प्रतिष्ठा करने पर नियमित रूप से शास्त्र निर्देशित पूजा, भोग, संध्या वंदन आवश्यक है।

प्र0- पूजा घर में क्या मृतात्मा या पूर्वजों का तस्वीर लगाना चाहिए ?

उ0- पूजन कक्ष में देवी-देवताओं के साथ मृतात्मा एवं पूर्वजों का चित्र नही लगाना चाहिए। पूर्वज आदर और श्रद्धा के पात्र हैं परंतु वे हमारे इष्ट देवता का स्थान नही ले सकते है। मनुष्य मृत्यु के पश्चात् पंच तत्वों में विलीन हो जाता है जबकि ईश्वर का अस्तित्व अजय और अमर है। अतः कभी भी मनुष्य और भगवान को बराबर नही माना जा सकता है। पूर्वजों की चित्र या प्रतिमा लगाने का सबसे सही स्थान नैर्ऋत्य दिशा है।

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