किचन
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किचन  

मनोज कुमार
व्यूस : 5940 | अकतूबर 2014

भोजन जीवन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अवयव है तथा जीवन का आधार है। अतः भोजन का निर्माण किचन के अनुकूल एवं ऊर्जा समन्वित वातावरण में होना आवश्यक है। किचन में जब तक सकारात्मक ‘ची’ एवं ऊर्जा का निर्बाध संचरण नहीं होगा तब तक भोजन स्वादिष्ट, पौष्टिक एवं सुपाच्य नहीं बन सकता। गृहिणियों का चूंकि काफी समय किचन में बीतता है, अतः वास्तु सम्मत किचन नहीं होने से उनका स्वास्थ्य भी नकारात्मक रूप से प्रभावित होता है। किचन जितना अधिक वास्तु सम्मत होगा भोजन से लोगों को उतनी ही अधिक ऊर्जा प्राप्त होगी तथा लोग इस ऊर्जा का उपयोग अपने जीवन के हर क्षेत्र में सकारात्मक रूप से कर पाएंगे।

वास्तु सम्मत किचन का तात्पर्य है कि सर्वप्रथम इसकी अवस्थिति उचित दिशा में हो तथा यहां रखे जाने वाले सभी सामान उचित स्थान एवं दिशा में रखे जायें। एक अच्छे किचन के कारण ही घर के लोगों का स्वास्थ्य उत्तम रहता है। किचन के लिए उपयुक्त दिशाएं अग्नि तत्व का शासक दक्षिण-पूर्व दिशा है, अतः इसी दिशा में किचन की अवस्थिति सर्वश्रेष्ठ है। यदि स्थानाभाव के कारण विकल्प चुनना है तो उत्तर-पश्चिम दिशा में भी किचन बनाया जा सकता है। किंतु इन दोनों दिशाओं के अलावा किसी अन्य दिशा व स्थान पर किचन बनाना वास्तु सम्मत नहीं है।

प्रवेश द्वार किचन का प्रवेश द्वार पूर्व अथवा उत्तर दिशा में होना सर्वश्रेष्ठ है। विकल्प के तौर पर पश्चिम दिशा में भी प्रवेश द्वार रखा जा सकता है। प्रवेश द्वार किसी भी कोने पर नहीं होना चाहिए। ैस स्टोव गैस स्टोव रखने की व्यवस्था किचन में दक्षिण-पूर्व दिशा (आग्नेय कोण) में करनी चाहिए। इसे दीवार से कम से कम 3’’ हटाकर रखना चाहिए। गैस स्टोव मुख्य द्वार के सामने नहीं होना चाहिए तथा वहां से दिखाई नहीं पड़ना चाहिए। गैस स्टोव तथा अन्य खाद्य सामग्रियां इस प्रकार व्यवस्थित की जानी चाहिए कि खाना बनाते वक्त गृहिणी का मुंह सदैव पूर्व दिशा की ओर रहे।

खाना बनाते समय गृहिणी का मुंह पश्चिम दिशा की ओर होने से उसे स्वास्थ्य संबंधी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। दक्षिण दिशा की ओर मुंह होने से परिवार में आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ता है। गैस स्टोव के ऊपर कोई भी शेल्फ नहीं रखना चाहिए। किचन में डायनिंग टेबल किचन में भोजन करने की व्यवस्था यदि की जाय तो यह बुरा नहीं है। किचन में भोजन करने से शनि एवं राहु ग्रह के प्रतिकूल प्रभावों का शमन होता है।

किंतु डायनिंग टेबल किचन के मध्य में रखकर खाना नहीं परोसा जाना चाहिए। डायनिंग टेबल किचन के उत्तर-पश्चिम दिशा में व्यवस्थित किया जा सकता है। खाना खाते वक्त मुंह हमेशा पूर्व अथवा उत्तर दिशा में ही रखना चाहिए, इससे भोजन अच्छी तरह से पचता है। गैस सिलिण्डर गैस सिलिंडर गैस स्टोव के नीचे या समीप दक्षिण-पूर्व (आग्नेय) दिशा में रखना चाहिए।

खाली सिलिंडर द िक्ष ण-प िश्चम (नैर्ऋत्य) दिशा में रखें। रेफ्रीजरेटर रेफ्रीजरेटर को दक्षिण-पूर्व, दक्षिण, पश्चिम अथवा उत्तर दिशा में रखा जा सकता है। रेफ्रीजरेटर को उत्तर-पूर्व (ईशान) दिशा में कदापि नहीं रखना चाहिए। यदि रेफ्रीजरेटर को दक्षिण-पूर्व (नैर्ऋत्य) दिशा में रखते हैं तो इसे कोने से एक फीट दूर रखें अन्यथा इसमें बार-बार खराबी आएगी। इलेक्ट्रिक एप्लायंस हीटर, परंपरागत ओवन, मायक्रोवेव ओवन किचन के दक्षिण-पूर्व अथवा दक्षिण दिशा में रखना चाहिए। इन्हें कदापि उत्तर-पूर्व (ईशान) दिशा में नहीं रखें।

सिंक सिंक यथासंभव उत्तर-पूर्व (ईशान) दिशा में लगाया जाना चाहिए। सिंक एवं गैस स्टोव एक सीध में नहीं होना चाहिए तथा एक दूसरे से दूर होना चाहिए क्योंकि अग्नि एवं जल एक दूसरे के शत्रु हैं। यदि किसी कारणवश दोनों एक सीध में तथा नजदीक हों तो उन्हें अलग करने के लिए बीच में कुछ ऊंचा सामान जैसे डब्बा आदि रख दें। इससे बहुत हद तक दोष में कमी आ जाएगी। स्टोरेज स्टोरेज रैक दक्षिणी अथवा पश्चिमी दीवार पर बनाया जाना चाहिए। आवश्यक खाद्य सामग्रियां जैसे अनाज के डब्बे, दाल, मसाले आदि दक्षिण अथवा पश्चिम दिशा में रखा जाना चाहिए।

जल स्रोत जैसे घड़ा, वाटर फिल्टर आदि दक्षिण-पूर्व दिशा में रखें। फ्लोरिंग किचन में फ्लोरिंग के लिए सेरामिक टाइल्स, मोजैक, मार्बल अच्छे विकल्प हैं। भारतीय परिस्थितियों में सेरामिक टाइल्स अनुशंसित हैं क्योंकि इसपर दाग धब्बे एवं धूल नहीं जमते तथा स्क्रैच भी नहीं लगता। खिड़कियां किचन में पूर्व दिशा में दो खिड़कियों या वायुस्रोत का होना आवश्यक है।

पूर्व दिशा में एक्झौस्ट फैन लगाना भी अत्युत्तम है। रंग किचन के फ्लोर एवं दीवार के रंग येलो, आॅरेंज, रोज, चाॅकलेटी अथवा रेड रखना उपयुक्त है। कुछ ध्यान रखने योग्य तथ्य - किचन टाॅयलेट के ऊपर या नीचे नहीं बनाना चाहिए।

- टाॅयलेट एवं किचन की दीवार एक नहीं होनी चाहिए।

- किचन का द्वार एवं मुख्य द्वार आमने-सामने नहीं होना चाहिए अर्थात मुख्य द्वार से किचन के अंदर नहीं दिखना चाहिए। इससे घर के लोगों का पेट खराब रहता है, खाना ठीक से नहीं पचता।

- किचन उत्तर अथवा उत्तर-पूर्व दिशा में नहीं होनी चाहिए। इससे घर के लोगों का करियर बुरी तरह प्रभावित होता है।

- वास्तु सिद्धांतों के अनुसार किचन का निर्माण मध्य-उत्तर, उत्तर-पूर्व, मध्य-पश्चिम, उत्तर-पश्चिम एवं घर के मध्य में कराना पूर्णरूपेण वर्जित है।

- पूजा घर अथवा मंदिर कदापि गैस स्टोव अथवा सिंक के ऊपर किचन में नहीं बनाना चाहिए। यह दुर्भाग्य का प्रतीक है। किचन में पूजा घर अथवा मंदिर कहीं भी, किसी भी दिशा में न रखें तो बेहतर है।

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