कामना पूर्ति के सफल साधन: मंत्र-तंत्र-यंत्र
कामना पूर्ति के सफल साधन: मंत्र-तंत्र-यंत्र

कामना पूर्ति के सफल साधन: मंत्र-तंत्र-यंत्र  

लक्ष्मीनारायण शर्मा
व्यूस : 6537 | अकतूबर 2006

तंत्र-मंत्र-तंत्र एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। यदि मंत्र को देवताओं की आत्मा कहा गया है तो यंत्र को उनका शरीर - ‘यंत्रं देवानां गृहम’ तथा यंत्र मंत्र मंय प्रोक्तं मंत्रात्मा देवतेवहि। देहात्मनोर्यथा भेदो यंत्र देवयोस्तथा। यंत्र विभिन्न आकृतियों, रेखाओं, विंदुओं, अंकों और अक्षरों का संयोजन होता है। यंत्रों का निर्माण उनके गुणों के अनुसार विभिन्न धातुओं, भोजपत्र लकड़ी की तख्ती, वृक्षों के पत्तों, कपड़े चर्म, मिट्टी के बर्तन के टुकड़ों आदि पर किया जाता है। मंत्र व्यक्ति को सभी प्रकार की सिद्धियां देता है - ‘‘मननात् त्रायते इति मन्त्र’’। मंत्र विभिन्न शब्दों का ऊर्जात्मक समन्वय है जिसके निरंतर मनन या जप से हम अभीष्ट को प्राप्त करते हैं। यथा- मननं विश्व विज्ञानं त्राणं संसार बंधनात्। यतः करोति संसिद्धं मंत्रं इत्युच्यते ततः। मंत्र में अपार शक्ति होती है। ‘‘मंत्र परम् लघु जासु बस विधि हरि हर सुर सर्व।’’ महामत्त गजराज कहुं बस कर अंकुश खर्वं।। रामचरित मानस। तंत्र का अर्थ भी बहुत व्यापक है। इसका अर्थ उपाय, व्यवस्था, विधि या प्रणाली होती है। तंत्र में यंत्र की अपेक्षा भौतिक वस्तुओं का अधिक प्रयोग किया जाता है। मंत्रों के द्वारा तांत्रिक वस्तुओं में ऊर्जा पैदा की जाती है। तंत्र साधना के लिए प्राचीन ग्रंथों में बीज मंत्र दिए हुए हैं। सामवेद की प्रार्थना के अनेक अंश सिद्ध मंत्र हैं।

तंत्र साधना से सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है। तंत्र वह विधि है जिसके अनुसार कर्म करने पर भय से रक्षा होती है। यथा - सर्वेऽर्था येन तन्यन्ते त्रायन्ते च भयाज्जनान्। इति तंत्रस्य तंत्रत्वं तंत्रज्ञाः परिचक्षते।। यंत्र-मंत्र-तंत्र की साधना में गुरु का स्थान प्रमुख है। गुरु और देवता में कोई अंतर नहीं है- ‘‘यस्य देवे पराभक्तिः यथा देवे तथा गुरौ। तस्येते कथिताह्यर्थाः प्रकाशन्ते महात्मनः।।’’ गुरु से विधिवत दीक्षा लेकर ही इन क्रियाओं में आगे बढ़ना चाहिए। यदि हो सके तो गुरु के निर्देशन में ही यंत्र-तंत्र-मंत्र की साधनाएं करनी चाहिए। क्योंकि यदि इन साधनाओं के उपयोग में त्रुटि होने पर कर्ता पर हानिकारक प्रतिक्रिया हो, तो गुरु उससे उसकी रक्षा कर लेते हैं। भारत में कई ऐसे सिद्ध तांत्रिक आज भी हैं, जो मात्र भभूत एवं आशीर्वाद के द्वारा असाध्य रोगों को ठीक कर देते हैं। तंत्र साधना की दो विधियां हैं- दक्षिणमार्गी और वाममार्गी। दक्षिणमार्गी शुद्ध सात्विक साधना है जबकि वाममार्गी तंत्र साधना अघोरियों के अघोर तंत्र से संबंध रखती है। ये अघोरी श्मशान एवं प्रेत शक्तियों का सहारा लेते हैं। आयुर्वेद ग्रंथों में भूत विद्या का उल्लेख मिलता है। भूत-प्रेत से संबंधित बाधाओं का इलाज औषधियों, जड़ी-बूटियों, खनिजों, पशुओं के नख, चर्म, शृंग आदि के तांत्रिक प्रयोग से किया जाता है।

ग्रहों के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए तंत्र-मंत्र का सहारा लिया जाता है। हवन और भस्म भी इसमें सहायक होते हंै। मंत्र जप से मन में तरंगें उत्पन्न होती हैं तथा ऊष्मा बढ़ने पर मस्तिष्क की गुप्त स्मृति का कोष खुल जाता है और मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं। तंत्र- मंत्र के द्वारा सर्वविष का इलाज किया जाता है। इनके द्वारा मृतात्माओं से संपर्क किया जाता है। और लोग भूत और भविष्य की घटनाओं को देखने में समर्थ होते हैं। मंत्रों को सिद्ध करने के लिए मुहूर्त का ध्यान रखना अति आवश्यक है। मंत्रों को सिद्ध करने में विशेष पर्वों जैसे होली, दीपावली, दशहरा, नवरात्रि, सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण, शिवरात्रि आदि का विशेष महत्व है क्योंकि उस समय भूमंडल पर ग्रहों एवं नक्षत्रों का प्रभाव विशेष तरंगों के द्वारा एक विशिष्ट ऊर्जा देता है जिससे तंत्र-मंत्र की सिद्धि शीघ्र हो जाती है। तंत्र का संबंध पदार्थ विज्ञान, रसायन शास्त्र, ज्योतिष, आयुर्वेद आदि से भी है। योग से भी इसका घनिष्ठ संबंध है। कुंडली जागरण यद्यपि योग की क्रिया है, लेकिन कुंडली जागरण होने पर व्यक्ति को कई सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं। शाबर मंत्रों को भी कलियुग में शीघ्र प्रभावी माना गया है। ये अल्प प्रयास से ही सिद्ध हो जाते हैं। इन मंत्रों को शंकर जी ने जन कल्याण के लिए प्रकट किया है। इन मंत्रों में शास्त्रीय मंत्रों की तरह विनियोग, न्यास, हृदयन्यास आदि की आवश्यकता नहीं पड़ती है। यथा- कलि विलोक जग हित हर गिरिजा। शाबर मंत्र जाल जाहि सिरजा।। आखर अनमिल नाम न जापू। प्रगट प्रभाव महेश प्रतापू।।

- रामचरित मानस मंत्र, तंत्र और यंत्र का प्रयोग जन कल्याण के लिए ही किया जाना चाहिए। इनकी सिद्धि में श्रद्धा, विश्वास, भक्ति, नियम, संयम, सदाचरण आदि की अनिवार्यता रहती है। हमें अपनी सुख समृद्धि हेतु पूर्वजों द्वारा सुझाए गए यंत्र, मंत्र और तंत्र का सहारा अवश्य लेना चाहिए। यहां कुछ सरल एवं उपयोगी मंत्र, तंत्र, यंत्र प्रस्तुत हैं। मंत्र निरोग और दीर्घ जीवन हेतु: मंत्र -

‘‘¬ जूं सः मम् पालय - पालय सः जूं ¬। इस मंत्रा का नियमपूर्वक जप करना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति प्रातः काल पवित्र होकर ऊन के आसन पर बैठकर उत्तर की ओर मुंह करके घी का दीपक जलाकर शिवपूजन कर इस मंत्र का रुद्राक्ष की माला से एक माला जप नियमित करता रहे, तो वह शारीरिक व्याधियों से सुरक्षित रहकर दीर्घायु होगा। राज्य कार्य सिद्धि हेतु: भगवती त्रिपुर सुंदरी का निम्नलिखित मंत्र नियमित रूप से एक-एक माला प्रातः और सायं जपने से राज्य से संबंधित कार्यों में सफलता मिलती है मंत्र -

¬ ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं त्रिपुरसुन्दयै नमः। प्रसन्नता प्राप्ति हेतु - दुर्गा सप्तशती के निम्नलिखित मंत्र को प्रातःकाल स्नान करने के बाद एक माला प्रतिदिन जपते रहने से मन सुखी एवं प्रसन्न रहता है। प्रणतानां प्रसीदत्वं देवि विश्वर्तिहारिणी। त्र्रैलोक्य वासनामीड्ये लोकानां वरदाभव।। रामचरित मानस की हर चैपाई मंत्र का काम करती है। यह चैपाई विद्यार्थियों के लिए अत्यंत लाभदायक एवं विद्या प्राप्त करने में सहायक है। गुरु गृह पढ़न गये रघुराई। अल्प काल विद्या सब आई।। नियमित रूप से प्रातः और सायं 108 बार पढें़।

Û आधाशीशी दर्द निवारण के लिए ः यह मंत्र गुरु गोरखनाथ से संबंधित है। जो व्यक्ति आधाशीशी (माइग्रेन) से पीड़ित हो, उसे निम्नलिखित मंत्र से झाड़ दें। पीड़ित व्यक्ति को अपने सामने बैठाकर लोहे की धार वाली किसी भी वस्तु जैसे चाकू से रेखा खींचते जाएं तथा मंत्र पढ़ते जाएं। यह क्रिया प्रातः और सायं इक्कीस इक्कीस बार करें, आधाशीशी का दर्द दूर हो जाएगा। ¬ नमो वन में बिंआयी बन्दरी। खाय दुपहरिया, कच्चा पफल कन्दरी। आधा खाय के आधी देती गिराय। हूंकत गोरखनाथ के आधी शीशी जाए।

Û रक्षा मंत्र: यह स्वयं सिद्ध हनुमान जी का शाबर मंत्र है। किसी भी मंत्र, तंत्र, यंत्र की सिद्धि करने से पहले या कहीं झाड़ फूंक करने से पहले यदि इसे तीन बार पढ़ लिया जाए तो शरीर की रक्षा होती है।

¬ नमो वज्र का कोठा। जिसमें पिंड हमारा पैठा। ईश्वर कुंजी। ब्रह्मा का ताला। मेरे आठो याम का यती हनुमंत रखवाला। तंत्र नजर दोष निवारण के लिए: जब किसी बालक, युवा या वृद्ध व्यक्ति को नजर लग जाती है तो वह अस्वस्थ रहने लगता है। उसे ज्वर रहने लगता है और उसका। खाना छूट जाता है। ऐसी स्थिति में कोई दूसरा व्यक्ति चुपचाप चैराहे से थोड़ी सी धूल ले आए। इसमें थोड़ा साबुत नमक, राई (सरसों), सात लाल मिर्चें (साबुत) मिलाकर शनिवार व रविवार को सुबह, दोपहर और शाम अर्थात दिन में तीन बार उस पीड़ित व्यक्ति के सिर पर सात बार घुमाकर जलती हुई आग में (चूल्हे में) डाल दें, वह व्यक्ति शीघ्र ठीक हो जाएगा। घर में सुख शांति हेतु: यदि किसी व्यक्ति के घर में रोज झगड़े होते हों, कार्यों में बाधाएं आ रही हों और उस घर के लोगों को शांति नहीं मिल रही हो, तो यह प्रयोग 21 दिन तक सूर्यास्त के समय करे। गाय का आधा किलो कच्चा दूध ले और उसमें शुद्ध शहद की नौ बूंदें मिला दे। फिर स्नान कर पवित्र होकर धुले हुए साफ वस्त्र पहनकर अपने आवास की खुली छत से उस दूध के छींटे देते हुए नीचे की ओर आए तथा प्रत्येक कमरे में दूध की छींटे मारे। आंगन आदि खुली जगह में भी दूध के छींटे मारे तथा मुख्य दरवाजे पर आकर बाहर दूध की धार डालते हुए पूरे दूध को वहीं गिरा दे। इस क्रिया के दौरान अपने इष्टदेव के मंत्र का जप करता रहे। इससे घर में शांति, सुख, समृद्धि वापस आ जाती है।

Û शत्रु शांत करने हेतु - यदि कोई व्यक्ति आपके विरुद्ध बोलता है या बाधाएं डालता है, तो रविवार या मंगलवार को उठकर बासी मुंह अपने मन में उसे तीन बार गाली दें। फिर सफेद कागज पर उस शत्रु का नाम काली स्याही से लिखकर काले धागे में लपेटकर रख लें। सायंकाल उसे पीपल वृक्ष की जड़ में नीचे दबा आएं। वहां फिर जाने की जरूरत नहीं है। इस प्रयोग से शत्रु शांत हो जाएगा। यंत्र भयनाशक यंत्र: निम्नलिखित यंत्र को भोजपत्र पर अष्टगंध की स्याही से किसी शुभ मुहूर्त में लिखें और विधिवत पूजन कर इसे ताबीज में रखकर गले में डालें। इससे भय से मुक्ति मिल जाएगी। धन वृद्धिकर यंत्र - नीचे लिखे यंत्र को चमेली की कलम और अष्टगंध की स्याही से लिखें और पूजनकर दान पुण्य करें तथा यंत्र को ताबीज में रखकर गले में धारण करें। इससे घर में धन-संपत्ति में वृद्धि होगी। भूत प्रेतादि की बाधाओं से मुक्ति हेतु - इस यंत्र को अनार की कलम और केसर के घोल से सफेद कागज पर लिखें और फिर भूतप्रेत बाधा से ग्रस्त व्यक्ति को पानी में घोलकर पिला दें। व्यक्ति स्वस्थ हो जाएगा। कार्य सिद्धि हेतु: जब किसी अधिकारी से कोई कार्य अपने हित में करवाना हो, तो निम्न यंत्र का प्रयोग करें। इस यंत्र को किसी शुभ दिन तुलसी की लेखनी और अष्टगंध की स्याही से पीपल के अखंडित शुद्ध पत्ते पर लिखें और विधिवत पूजन कर स्वर्ण के ताबीज में रख लें। जब भी अपने कार्य हेतु किसी अधिकारी से मिलना हो, तो इस ताबीज को अपनी भुजा पर बांधकर जाएं। कार्यसिद्ध होगा।



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