कष्ट ही नहीं सुख-समृद्धि भी देता है कालसर्प योग गौतम पटेल, सीतेश कुमार पंचैली, रीमा अरोड़ा राहु और केतु को इस नभ मंडल के दो बिंदुओं की संज्ञा दी गई है। दूसरे शब्दों में राहु और केतु की धुरी पर ही संपूर्ण नभ मंडल भ्रमण कर रहा है। यदि जन्मांक में राहु और केतु को बिंदु मानकर राहु से केतु तक या फिर केतु से राहु तक एक सीधी रेखा खींचने से सारे ग्रह इस रेखा के किसी भी एक ओर आ जाएं तो इस ग्रह स्थिति को काल सर्प योग माना गया है। परिवर्तन अर्थात काल चक्र की गति के अनुसार उत्थान-पतन या फिर उतार-चढ़ाव प्रकृति का नियम है। यद्यपि वर्तमान में प्रचलित मान्यता यह है कि कालसर्प योग एक अत्यंत संकट जनक, कलह कारक, अनिष्टकारी, कष्टकर और दुखदायी योग है, तथापि यह एक अत्यंत कल्याणकारी, यश, कीर्ति, श्री संपन्नता, समृद्धि और प्रसिद्धिदायक योग भी है। वैसे तो कालसर्प योग से ग्रस्त जातक का जीवन चक्र कोल्हू के बैल की भांति घूमता रहता है, लेकिन फिर भी वह इतिहास के पन्नों पर अपना नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित करता रहता है। ऐसा जातक गगनचुंबी, ऊंचाई को भी चूमता है और गहन गर्त में भी डूबता है। भाव के अनुसार 12 और लग्न के अनुसार 12 अर्थात् 12 ग 12 = 144, अर्थात् उदित गोलार्द्ध के भेद के अनुसार 144 और अनुदित गोलार्द्ध के भेद के अनुसार 144 ग 2 = 288 प्रकार के काल सर्प योग होते हैं। जब कालसर्प योग राहु से लेकर केतु तक बनता है तब वह उदित गोलार्द्ध कहलाता है और जब केतु से लेकर राहु तक बनता है तब अनुदित गोलार्द्ध कहलाता है। इसके अतिरिक्त जब कोई एक ग्रह इनकी पकड़ से बाहर निकलने में सफल हो जाता है तब 288 ग 7 = 2016 प्रकार के आंशिक कालसर्प योग बन जाते हैं। चूंकि कुल 2016 प्रकार के कालसर्प योग और आंशिक कालसर्प योग संबंधी व्यक्तिगत उदाहरण प्रस्तुत करना लगभग असंभव है, इसलिए केवल भाव के अनुसार राहु से केतु तक अथवा केतु से राहु तक मात्र 12 प्रकार के कालसर्प योगों का व्यक्तिगत उदाहरण सहित वर्णन अग्रांकित है । अनंत कालसर्प योग यदि प्रथम भाव में राहु, सप्तम भाव में केतु और शेष सभी ग्रह राहु-केतु के एक ओर स्थित हों तो इस ग्रह स्थिति को अनंत काल सर्प योग कहते हंै। स्वतंत्र भारत की जन्म कुंडली में प्रथम से सप्तम भाव तक बना अनंत काल सर्प योग विद्यमान है। तदनुसार राहु प्रथम शरीर तथा मस्तिष्क भाव में स्थित होकर पंचम संतान भाव, सप्तम व्यापार व्यवसाय-उद्योग तथा पति-पत्नी अथवा विपरीत लिंग भाव और नवम धर्म भाव को पूर्ण दृष्टि से देख रहा है। फलतः भारत को राजनीतिक दलीय समस्याओं से जूझना पड़ा रहा है। अधिकाधिक जनसंख्या वृद्धि, व्यापारिक, व्यावसायिक अथवा औद्योगिक घोटाले तथा बलात्कार और धार्मिक उन्माद सुरसा के मुंह के समान फैलते ही जा रहे हैं। इस प्रकार भारत को निरंतर संघर्ष करना पड़ रहा है। कुलिक कालसर्प योग यदि द्वितीय भाव में राहु, अष्टम भाव में केतु और शेष सभी ग्रह राहु-केतु या केतु-राहु के एक ओर स्थित हों तो इस ग्रह स्थिति को कुलिक काल सर्प योग कहा जाता है। स्वर्गीय राजेश पाइलट का जन्म एक गरीब घर में हुआ। जीवन में संघर्ष करते हुए उन्होंने वायुसेना की प्रतियोगिता परीक्षा उत्तीर्ण की और पाइलट जैसा उच्च कोटि का पद ग्रहण किया, जिसके लिए त्वरित और ठोस निर्णय लेने की क्षमता नितांत आवश्यक है। निर्बल मानसिक शक्ति का व्यक्ति कभी भी ऐसे पद हेतु उपयुक्त नहीं होता। उनकी कुंडली में मिथुन राशिस्थ कालसर्प उच्च मानसिक स्तर और परिपक्वता का द्योतक है। जीवन में कुछ नया कर दिखाने की अभिलाषा, उमंग और उत्साह का ही परिणाम है कि उन्होंने राजनीति में उतर कर केंद्रीय मंत्री का पद भी प्राप्त किया और उन्हें लोकप्रियता भी मिली, लेकिन अष्टम का केतु दुर्घटना द्वारा असमय मौत का कारण बना। वासुकि कालसर्प योग यदि तृतीय भाव में राहु, नवम भाव में केतु और शेष सभी ग्रह राहु-केतु के एक ओर स्थित हों तो इस ग्रह स्थिति को वासुकि कालसर्प योग कहा जाता है। धीरूभाई अंबानी की जन्म कुंडली में तृतीय भाव से नवम भाव तक बना वासुकि कालसर्प योग विद्यमान है। तदनुसार राहु तृतीय पराक्रम भाव में स्थित होकर सप्तम साथी भाव, नवम भाग्य भाव और एकादश लाभ भाव को पूर्ण दृष्टि से देख रहा है। राहु के पराक्रम स्थान में होने के कारण वे पूरी जिंदगी संघर्ष करते रहे। शंखपाल कालसर्प योग यदि चतुर्थ भाव में राहु, दशम भाव में केतु और शेष सभी ग्रह राहु-केतु या केतु-राहु के एक ओर स्थित हों तो इस ग्रह स्थिति को शंखपाल काल सर्प योग कहा जाता है। सचिन की कुंडली में भी शंखपाल काल सर्प योग विद्यमान है। इसके कारण उन्हें ख्याति तो प्राप्त हुई, लेकिन अनेक बार चोट लगने के कारण पूर्ण प्रतिभा प्रदर्शन नहीं कर पाए, नित्य नए नए कीर्तिमान स्थापित करने के बावजूद कप्तान की पारी लंबे समय तक नहीं चला पाए। पद्म कालसर्प योग यदि पंचम भाव में राहु, एकादश भाव में केतु और शेष सभी ग्रह राहु-केतु के एक ओर स्थित हों तो इस ग्रह स्थिति को पद्म कालसर्प योग कहा जाता है। श्री नेल्सन मंडेला की कुंडली में पद्म कालसर्प योग विद्यमान है जिसके कारण उन्होंने अपनी बुद्धि का प्रयोग कर दक्षिण अफ्रीका में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया, लेकिन इसी दोष के कारण उन्हें अनेक बार जेल यात्रा करनी पड़ी एवं अनेक प्रकार के कष्ट सहने पड़े। महापद्म कालसर्प योग यदि षष्ठम भाव में राहु, द्वादश भाव में केतु और शेष सभी ग्रह राहु-केतु के एक ओर स्थित हों तो इस ग्रह स्थिति को महापद्म कालसर्प योग कहा जाता है। विश्व प्रसिद्ध विद्वान पं. सूर्यनारायण व्यास की जन्म कुंडली में षष्ठ से द्वादश भाव तक महापद्म कालसर्प योग विद्यमान है। तदनुसार राहु षष्ठम प्रतिस्पर्धा भाव में स्थित होकर दशम कर्म भाव, द्वादश व्यय भाव और द्वितीय उच्च शिक्षा भाव को पूर्ण दृष्टि से देख रहा है। फलतः वे उज्जैन जैसे छोटे से नगर में विक्रम विश्वविद्यालय, विक्रम कीर्ति मंदिर, सिंधिया प्राच्य विद्या शोध प्रतिष्ठान और कालिदास अकादमी जैसी महान संस्थाओं का निर्माण कर सके। पद्म विभूषण, साहित्य वाचस्पति और डी. लिट्. जैसी उपाधियों से सम्मानित, अनेक ग्रन्थों के रचयिता पं. व्यास विक्रम जैसे यशस्वी पत्र के संपादक भी रहे। इसी योग ने उन्हें स्वाधीनता आंदोलन का प्रखर क्रांतिकारी बनाया। सारे संसार में पूज्य पं. व्यास अपने कुटुंब, परिवार, बंधुजनों और नगर में प्रायः उपेक्षित ही रहे। तक्षक कालसर्प योग यदि सप्तम भाव में राहु, प्रथम भाव में केतु और शेष सभी ग्रह राहु-केतु या केतु-राहु के एक ओर स्थित हों तो इस ग्रह स्थिति को ‘तक्षक काल सर्प योग’ कहा गया है। सम्राट अकबर की जन्म कुंडली में प्रथम से सप्तम भाव तक तक्षक कालसर्प योग विद्यमान है। तदनुसार राहु सप्तम उत्तराधिकारी भाव में स्थित होकर एकादश लाभ भाव, प्रथम शरीर भाव और तृतीय पराक्रम भाव को पूर्ण दृष्टि से देख रहा है। फलतः दीन-ए-इलाही धर्म के प्रवर्तक यशस्वी सम्राट अकबर महान का बाल्यकाल वैभवहीन तथा संघर्षमय व्यतीत हुआ। यद्यपि वे अपने परिजनों तथा परिवारजनों की ओर से उद्विग्न रहते थे। पुत्र सलीम (जहांगीर) और राजपूत पत्नी जोधाबाई से उनके मतभेद सर्वविदित हैं फिर भी वे चक्रवर्ती सम्राट अकबर महान की उपाधि से विभूषित हुए। कर्कोटक कालसर्प योग यदि अष्टम भाव में राहु, द्वितीय भाव में केतु और शेष सभी ग्रह राहु-केतु या केतु-राहु के एक ओर स्थित हों तो इस ग्रह स्थिति को कर्कोटक काल सर्प योग कहा जाता है। प्रसिद्ध अभिनेत्री स्मिता पाटिल की जन्म कुंडली में द्वितीय से अष्टम भाव तक कर्कोटक कालसर्प योग विद्यमान है। तदनुसार राहु अष्टम मृत्यु भाव में स्थित होकर द्वादश व्यय भाव, द्वितीय कुटुंब भाव और चतुर्थ भौतिक सुख भाव को पूर्ण दृष्टि से देख रहा है। फलतः स्मिता पाटिल को सैकड़ों उपलब्धियों के साथ ख्याति तो मिली, सितारों के संसार में स्थापित भी हुईं, किंतु उन्हें शारीरिक सुख, कौटंुबिक तथा पारिवारिक सुख, दाम्पत्य सुख, या भौतिक सुख किसी भी स्थिति में नहीं मिल पाया। इतना ही नहीं उनकी मृत्यु भी असमय हुई। वह अल्पायु में अचानक चल बसीं। शंखचूड़ कालसर्प योग यदि नवम भाव में राहु, तृतीय भाव में केतु और शेष सभी ग्रह राहु-केतु के एक ओर स्थित हों तो इस ग्रह स्थिति को शंखनाद या शंखचूड़ काल सर्प योग कहा जाता है। श्री राम कथाकार श्री मुरारी बापू की जन्म कुंडली में नवम से तृतीय भाव तक शंखनाद या शंखचूड़ काल सर्प योग विद्यमान है। तदनुसार राहु नवम धर्म भाव में स्थित होकर लग्न शरीर, तृतीय पराक्रम और पंचम विद्या, बुद्धि और विवेक भाव को पूर्ण दृष्टि से देख रहा है। फलतः वर्तमान में श्री मुरारी बापू लोकप्रिय एवं अपेक्षाकृत सर्वाधिक व्यस्त श्री राम कथाकार हैं। आज वे गांव-गांव, नगर-नगर और देश-विदेश में लोक कल्याणकारी, मानवतावादी श्री राम का संदेश पहुंचा रहे हैं। गृहस्थाश्रमी होते हुए भी उनका संपूर्ण जीवन परमार्थ के लिए ही समर्पित है। यहां यह उल्लेखनीय है कि पापी ग्रह भी त्रिकोण में स्थित होने से पुण्य फल प्रदान करते हैं। घातक/पातक कालसर्प योग यदि दशम भाव में राहु, चतुर्थ भाव में केतु और शेष सभी ग्रह राहु-केतु के एक ओर स्थित हों तो इस ग्रह स्थिति को घातक या पातक कालसर्प योग कहा जाता है। श्रीमती मारग्रेट थैचर ब्रिटेन की प्रथम निर्वाचित महिला प्रधानमंत्री थीं। उनकी जन्म कुंडली में कालसर्प योग होते हुए भी अन्य राज योगों की वजह से वे दो बार लगातार ब्रिटेन की प्रधानमंत्री बनीं। इस जन्म कुंडली में चतुर्थेश और पंचमेश शनि लग्न में है। नवमेश बुध भी लग्न में है। दशम भाव का स्वामी चंद्रमा एकादश भाव में स्थित है तथा उस पर गुरु की दृष्टि है। शश योग भी बन रहा है। दशम भाव में स्थित राहु भी योगकारक शनि की दृष्टि पा रहा है। इस ग्रह स्थिति के कारण वे प्रधानमंत्री बनने में सफल हुईं और कालसर्प योग उनके लिए बाधक नहीं बन सका। विषधर कालसर्प योग यदि एकादश भाव में राहु, पंचम भाव में केतु और शेष सभी ग्रह राहु-केतु के एक ओर स्थित हों तो इस ग्रह स्थिति को विषाक्त या विषधर कालसर्प योग कहा जाता है। श्री नारायण दत्त तिवारी की जन्म कुंडली में एकादश से पंचम भाव तक विषाक्त या विषधर कालसर्प योग विद्यमान है। तदनुसार राहु एकादश लाभ भाव में स्थित होकर तृतीय पराक्रम भाव, पंचम विद्या, बुद्धि और विवेक भाव और सप्तम सहयोगी भाव को पूर्ण दृष्टि से देख रहा है। फलतः श्री तिवारी के जीवन में निरंतर पद परिवर्तन होते रहे हैं। वे उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री रहे, विधान सभा में विपक्ष के नेता रहे, केंद्रीय मंत्री रहे, पार्टी के भी महत्वपूर्ण पदों पर पदस्थ रहे। उन्हें सदैव राजनीतिक संकट का सामना करना पड़ा है। शेषनाग कालसर्प योग यदि द्वादश भाव में राहु, षष्ठम भाव में केतु और शेष सभी ग्रह राहु-केतु या केतु-राहु के एक ओर स्थित हों तो इस ग्रह स्थिति को शेष नाग कालसर्प योग कहा जाता है। पं. जवाहर लाल नेहरू की कुंडली में स्पष्ट शेषनाग काल सर्प योग है क्योंकि प्रत्येक भाव में ग्रह उपस्थित है। सूर्य द्वितीयेश होकर पंचम भाव में क्रूरता दे रहा है। चंद्रमा लग्नेश होकर स्वगृही है पंरतु पापाक्रांत है। स्पष्टतः चंद्र राहु और शनि के मध्य है तथा दशमेश मंगल दशम से षष्ठ है। बुध द्वादश और तृतीय भावों का स्वामी होकर चतुर्थ भाव में लाभेश शुक्र से युति कर रहा है। शुक्र यद्यपि स्वगृही है पर लाभ भाव से षडाष्टक है। सप्तमेश शनि अष्टम होकर सप्तम भाव से षडाष्टक योग बना रहा है तथा सुख भाव पर उसकी दृष्टि है। इस स्थिति के कारण उनका संपूर्ण जीवन संघर्षमय रहा तथा उन्हें पुत्र संतान का अभाव रहा। पत्नी का साथ भी लंबे समय तक नहीं रहा, वहीं दामाद की मृत्यु का दुख झेलना पड़ा। अनेक बार जेल गए। चीन के हमले को सहन नहीं कर सके और मृत्यु असमय हुई। समस्या: यद्यपि कालसर्प योग धारी जातकों को उच्चतम उपलब्धियां प्राप्त हुई हैं तथापि किसी भी व्यक्ति ने इस योग को श्रेष्ठ नहीं माना है। सभी ने इसे उमड़ता-घुमड़ता काला बादल, सुंदर शब्दों में कहें तो सघन कृष्ण मेघमाला और एक शब्द में कहें तो काली घटा ही कहा है। काल, कराल, क्लेश, कष्ट, पीड़ा, व्यथा, वेदना, चोट, घात, संघात, ताप, संताप, परिताप, पश्चाताप, मनस्ताप, ह्रास, हानि, क्षति, विपत्ति, अशांति, यंत्रणा, यातना, दुर्घटना, प्रकोप, विप्लव, विद्रोह, उपद्रव, उथल-पुथल और उमड़-घुमड़ ही कहा है। सामान्यतः यह माना जाता है कि कालसर्प योग धारी जातक को जीवन भर संघर्षों का सामना करना पड़ता है। एक गया तो दूसरा और दूसरा गया तो तीसरा, इनके जीवन में सदा संकटों का तांता लगा रहता है। इन्हें भांति-भांति की प्राकृतिक विपदाएं और दैवी प्रकोप झेलने पड़ते हैं। इनमें शारीरिक और मानसिक दुर्बलता के कारण निराशा की भावना जाग्रत होती है। कुटुंबियों द्वारा इनका व्यर्थ विरोध होता है। जातक सदैव धन के लिए तरसते रहते हैं। इन्हें पराक्रम और युक्तियुक्त प्रयास करने पर भी सफलता नहीं मिलती। विद्यार्जन में बाधाएं उपस्थित होती हैं। इनके कंधों पर ऋण का भारी बोझ बना रहता है। मित्र विश्वासघात करते हैं। स्वास्थ्य संबंधी विकार उत्पन्न होते रहते हैं। केस मुकदमों के मकड़ जाल में जकड़ जाते हैं और कभी-कभी तो इन्हें बंदीगृह भी जाना पड़ता है। इनका विवाह विलंब से होता है। संतान सुख प्राप्त नहीं होता और यदि प्राप्त हो भी जाए तो दाम्पत्य जीवन में कटुता उत्पन्न हो जाती है और कभी-कभी तो संबंध विच्छेद तक हो जाता है। इनकी मृत्यु असामयिक होती है, जीवन भर भोगना पड़ता है। मरण तुल्य कष्ट तथा छोटी-मोटी दुर्घटनाएं होती ही रहती हैं। भाग्य इनसे रूठ जाता है। यथायोग्य काम उपलब्ध नहीं होता। काम मिला तो उसमें अनेकानेक अड़चनें उपस्थित हो जाती हैं। अपेक्षाकृत कम लाभार्जन होता है। भिन्न-भिन्न विषयांतर्गत इनका व्यय अधिकाधिक होता रहता है। इस प्रकार इनका जीवन विभिन्न त्रासदियों से घिरा रहता है। फलतः इनके लिए अपना जीवन निर्वाह करना अत्यंत कठिन हो जाता है। ये अपने जीवित शरीर का बोझ ढोते-ढोते लगभग पूर्णतः थक जाते हैं। ये सभी स्थितियां सब पर लागू नहीं होती, पर राहु-केतु की स्थिति को देखते हुए उपर्युक्त तथ्यों में से एक या दो तथ्य अवश्य सत्य होते हैं। इन कष्टों के निवारण के लिए कालसर्प दोष की शांति कराना आवश्यक हो जाता है। कालसर्प दोष की शांति के पश्चात उपलब्धियां तो प्राप्त होती ही हैं, लेकिन संघर्षमय जीवन के कष्ट शांतिपूर्वक कट जाते हैं।