कालसर्प योग एवं शांति प्रेम प्रकाश ‘विद्रोही’ ‘‘ यथा शिरवामयूराणां, नागानां मणयो यथा। तद्वद्वेदांग शास्त्राणां ज्योतिषं मूर्धनि स्थितम्।।’’ ज्योतिष में ग्रहों, राशियों व लग्नों की स्थिति के अनुरूप अनेक शुभाशुभ योग होते हैं, जिनमें कालसर्प एक प्रमुख योग है। क्या है कालसर्प योग? जन्मपत्रिका में राहु व केतु के बीच जब समस्त सात ग्रह आ जाएं तो काल सर्प योग कहते हैं। इसके मुख्यतः दो भाग विद्वानों ने बताये हैं। 1. उदित काल सर्प योग: यदि राहु द्वारा सभी ग्रह ग्रसित हो तो इसे उदित काल सर्प योग कहते हैं। 2. अनुदित काल सर्प योग: यदि केतु ग्रह द्वारा समस्त ग्रह ग्रसित हो तो इसे अनुदित कालसर्प योग कहते हैं। यदि कोई एक ग्रह ग्रसित होने से रह जाये तो उसे आंशिक कालसर्प योग कहते हैं। प्रभाव: कालसर्प योग का प्रभाव राहु-केतु की जन्म लग्न की स्थिति के अनुसार जातक पर शुभाशुभ होता है, अनेक जातकों को इसने धन व कीर्ति प्रदान की है, पंडित जवाहर लाल नेहरू, फिल्म गायिका लता मंगेशकर, क्रिकेट खिलाड़ी सौरव गांगुली, फिल्मी अभिनेता राज कपूर आदि प्रमुख है। किंतु यह भी सत्य है कि यह योग कठोर परिश्रम करवाता है, व मानसिक चिंताएं देता है। यह चारों जातक/जातिका अपने-अपने क्षेत्र मंे सुविख्यात है, परंतु इन्होंने कठोर परिश्रम द्वारा धीरे-धीरे प्रसिद्धि प्राप्त की है। व्यक्तिगत रूप से इनका जीवन उथल-पुथल भरा रहा है। यह सब कालसर्प का प्रभाव है। नेहरू जी अनेक बार जेल गये, पुत्र व स्त्री सुख से वंचित रहे। सौरभ गांगुली योग्यता होते हुए भी कप्तान पद से च्युत हुए। ऐसे संघर्ष श्री राज कपूर व लता जी के जीवन में भी उपस्थित हुए। कालसर्प योग की अवधि काल सर्प दोष युक्त कुंडलियों में कुछ शुभ योग साथ होने से जैसे पंच महापुरुष योग, बुधादित्य योग आदि होने से इनका प्रभाव कुछ अवधि या गोचर व दशा के कारण कुछ समय अधिक प्रभावी होता है। गंभीर प्रकार के काल सर्प योग वाले जातकों को यह जीवन भर परेशानी या मानसिक अशांति पहुंचाता है। कालसर्प योग के भेद मुख्यतः कालसर्प योग लग्न व राहु केतु की स्थिति के अनुसार द्वादश भाग में बांट सकते हैं। 1. अनंत 2. कुलिक 3. वासुकी 4. शंख पाल 5. पद्म 6. महापद्म 7. तक्षक 8. कर्कोटक 9. शंख चूड 10. पातक 11. विषधर व 12. शेष नाग। उदाहरण के लिए, जब जातक की कुंडली में राहु लग्न में व केतु सप्तम भाव में हो तो इसे अनन्त कालसर्प योग कहते हैं। इसी तरह आगे भी समझना चाहिए। अधिक अनिष्टकारी समय कालसर्प दोष का अधिक कुप्रभाव प्रायः जातक के जीवन में निम्नांकित अवस्था में पड़ता है। 1. राहु की महादशा में राहु के अंतर प्रत्यंतर या शनि सूर्य व मंगल की अंतर्दशा में 2. ग्रह स्थिति के अनुसार जीवन की मध्यमायु लगभग 40 से 45 के आस-पास। 3. गोचर कुंडली में जब 2 काल सर्प योग बनता हो तब-तब कुप्रभाव बढ़ जाता है। ऐसे जातकों में कुछ न मानसिक चिंताएं या कार्य बाधाएं जीवन भर लगी रहती हैं। शांति के सरल उपाय नागों के गुरु या स्वामी श्री शिवशंकर भगवान हैं, इनका अभिषेक, शिव तांडव स्तोत्र व वेद मंत्रों से पूजा उपासना विधिवत करने से इसकी शांति हो सकती है। शांति जीवन में जब-जब गोचर में कालसर्प योग बने या अशुभ दशा हो करते रहना परमावश्यक है, एक बार शांति से पूर्ण लाभ नहीं समझना चाहिए। सर्प सूक्त के पाठ कर शिवलिंग पर चांदी के स र्प - स िर्प ण् ा ी विधिपूर्वक चढ़ावें, यज्ञ स प् त ध् य ा न , महामृत्युंजय मंत्र के सवा लाख जप, दशांश हवन ब्राह्मण कन्या भोजन आदि सरल उपाय है। प्रदोष, नाग पंचमी, श्रावण के सोमवारों को अन्य शुभ मुहूर्तों में इसकी शांति कराकर सिद्ध काल सर्पनाशक यंत्र की घर में स्थापना कर पूजन करना शुभ रहेगा। अगर यह कार्य त्रयम्बकेश्वर, पशुपतिनाथ नेपाल, उज्जैन महा कालेश्वर मां अन्य सिद्ध पीठों में किये जाये तो अधिक प्रभावशाली रहेगा, परंतु यहां व्यय बहुत होता है, अतः स्वयं भी किसी विद्वान पंडित से घर पर भी करवा सकते हैं।