ज्योतिष की पाठशाला-2
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डॉ. अरुण बंसल
व्यूस : 1091 | जुलाई 2018

शास्त्रानुसार कुंडली मिलान में अष्टकूट मिलान एवं मांगलिक मिलान किया जाता है। अष्टकूट मिलान में हम 36 गुण मिलाते हैं। यदि 18 गुण या अधिक गुण मिल जाएं तो इसे शुभ मानते हैं। इसी प्रकार लड़का-लड़की मांगलिक या दोनांे गैर मांगलिक हो तो कुंडली मिलान शुभ माना जाता है लेकिन वास्तविकता इससे दूर है। ऐसे में कुंडली मिलान करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? आज हम इस पाठशाला में इन्हीं विषयों पर विचार करेंगे -

प्रश्न: यदि गुण मिलान में 18 से कम अंक प्राप्त होते हैं तो क्या अशुभ मान लेना चाहिए।

उत्तर: एक शोध के अनुसार जिनके वैवाहिक संबंध अच्छे रहते हैं या जिनके संबंध विच्छेद हो जाते हैं दोनों समूहों का औसत गुण मिलान 21.5 रहा है। अतः यह कहना ठीक नहीं है कि अगर 18 या अधिक गुण मिल जाएं तो गुण मिलान ठीक रहता है। फिर भी गुण मिलान का प्रभाव आपसी सामांजस्य को दर्शाता है। अधिक गुण मिलने पर सामंजस्य अच्छा रहता है। लेकिन कम गुण मिलने का अर्थ संबंध विच्छेद नहीं है।

15 या अधिक गुण मिलने पर गुणों का ज्यादा विचार नहीं करना चाहिए और उसे शुभ ही मान लेना चाहिए। बहुत ज्यादा गुण मिलने पर और बाकि अन्य सभी ग्रहों की स्थिति अच्छी होने पर ही मेलापक सही माना जा सकता है। अधिक गुण मिलने पर भी यदि अन्य ग्रहों की स्थिति प्रतिकूल हो तो संबंध विच्छेद हो सकते हैं।


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प्रश्न: क्या दोनों मांगलिक हों या दोनों गैर-मांगलिक हों तो कुंडली मिलान ठीक होता है।

उत्तर: शोध के अनुसार दो जातकों का मांगलिक होना या ना होना दोनों के संबंधों की स्थिति को पूर्णतया नहीं दर्शाता है। एक शोध के अनुसार मांगलिक की गैर मांगलिक से शादी उतनी ही सफल रहती है, जितनी कि मांगलिक की मांगलिक से और गैर मांगलिक की गैर मांगलिक से रहती है।

प्रश्न: क्या 27 साल के बाद मांगलिक दोष दूर हो जाता है।

उत्तर:यह मानना है कि मंगलिक दोष का असर 27 वर्ष बाद समाप्त हो जाता है, ठीक नहीं है। मंगली दोष सर्वदा विद्यमान रहता है, लेकिन पूजा-पाठ द्वारा इसका प्रभाव कम किया जा सकता है। साथ ही आयु बढ़ने के साथ ही व्यक्ति में स्थिरता आती है एवं आकस्मिक क्रोध और आवेश में कमी आती है। अतः मंगल का प्रभाव कुछ कम होता है लेकिन समाप्त नहीं होता।

प्रश्न: आंशिक मांगलिक क्या होता है?

उत्तर:यदि कुंडली मंगलिक हो अर्थात मंगल प्रथम भाव, चतुर्थ भाव, सप्तम भाव, अष्टम भाव एवं बारहवें भाव में हों लेकिन मांगलिक दोष विभिन्न योगों के कारण निष्फल हो रहा हो तो ऐसी कुंडली को आंशिक मांगलिक कुंडली कहते हैं जैसे- कर्क लग्न में उच्च के मंगल का दोष नहीं होता। इसीप्रकार मंगल पर उच्च के गुरु की दृष्टि हो तो भी मंगल दोष नहीं होता इत्यादि। ऐसी कुंडली के जातक का विवाह मांगलिक, गैर मांगलिक या आंशिक मांगलिक तीनों से किया जा सकता है। इसका कोई अशुभ प्रभाव नहीं होता है।


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प्रश्न: क्या मंगलदोष का प्रभाव हर भाव में एक जैसा होता है?

उत्तर: मंगल सप्तम भाव में सर्वाधिक संबंध विच्छेदक पाया गया है। यह लग्न में अधिक अनिष्टकारी प्रभाव देता है। लेकिन अन्य भावों के फल विशेष नकारात्मक नहीं होते हैं। बारहवें भाव में मंगल न्यूनतम अशुभ होता है। मंगल लग्न में अहंकारी बना देता है। चतुर्थ भाव में मंगल घर में अशांति का कारण बनता है। सप्तम में संबंध विच्छेद कराता है। अष्टम का मंगल आपसी संबंधों को तनावपूर्ण बना देता है। बारहवें का मंगल वैवाहिक संबंधों को प्रभावित करता है।

प्रश्न: क्या कन्या की कुंडली सास से भी मिलानी चाहिए।

उत्तर: वर्तमान सामाजिक व्यवस्था के अनुसार कन्या विवाह पश्चात वर के घर जाती है। अतः कन्या की पत्री का मिलान वर से एवं परिवार के अन्य सदस्यों से मिलना आवश्यक होता है। जबकि वर की कुंडली का अपने सास ससुर आदि से मिलने का अधिक प्रभाव नहीं पड़ता। घर में सर्वप्रथम वर से तदुपरांत सास से और फिर ननद व जेठानी से उसका मानसिक समन्वय होना आवश्यक है। अगर सास से भी कन्या की पत्री मिलती है तो अवश्य ही रिश्तों में मिठास रहेगी, लेकिन कन्या की पत्री सभी से मिलाई जाए तो यह एक कठिन प्रक्रिया हो जाती है। अतः सास की कुंडली से मिलान करना तभी सार्थक है जब सास का व्यवहार अति कठोर हो।

प्रश्न: कैसे करें कुंडली मिलान?

उत्तर: केवल गुण मिलान या मंगलिक मिलान से न तो वैवाहिक जीवन के सुख का निश्चय होता है और न ही ये पूर्ण समाधान हैं। शनि का महत्व मंगल से अधिक है एवं लग्न का महत्व चंद्र से अधिक है। अतः कम से कम इन दोनों का विचार मेलापक में उपरोक्त विवरण अनुसार अवश्य कर लें। यदि 15 गुण मिल जाएं और लग्न राशि के गुणों में तालमेल बैठ जाए तो सामंजस्य में परेशानी नहीं आती। मंगलीक मिलान में यदि वर व वधू की कुंडली में मंगल सातवें भाव में न बैठा हो तो इस पर कोई ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है। केवल सातवें मंगल पर शांति कराएं व दूसरी कुंडली भी मंगलीक चुनें, लेकिन उसके सातवें में मंगल न हो। सातवें भाव में शनि हो तो विवाह 30 वर्ष की उम्र के बाद करें। दूसरे साथी की पत्री में शनि सातवें भाव में कदापि नहीं होना चाहिए।

यदि शनि की सातवें भाव पर दृष्टि हो तो शादी के तुरंत बाद शनि के ऊपर शनि का गोचर नहीं होना चाहिए अर्थात शादी 30 वर्ष के पश्चात हो तो दोष नहीं रहता। अधिकांशतः ज्योतिषी के पास या तो कन्या पक्ष या वर पक्ष दोनों में से एक पक्ष की ओर से ही कुंडली मिलान के लिए पत्री आती है और यदि कन्या पक्ष से वर की कुंडली मिलाने के लिए आई है तो कन्या की कुंडली तो हम बदल नहीं सकते केवल वर ही ऐसा ढूंढ सकते हैं जो कि कन्या की कुंडली से मिलान करें। यदि कन्या की कुंडली में दोष है और ऐसा लगता है कि कुछ समय पश्चात वे दोष निष्फल हो जाएंगे तो कन्या पक्ष को यह अवश्य ही बता देना चाहिए कि उसके लिए उपाय करें या विवाह के लिए प्रतीक्षा करें।


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कुछ अन्य पहलू भी हैं जिनको अवश्य देखना चाहिए

1. सर्वप्रथम वर कन्या की राशि व लग्न दोनों का विचार करें। बारह राशियों को दो भागों में बांट सकते हैं एक देव व दूसरी राक्षस। गुरु, मंगल, चंद्र व सूर्य की राशियां मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु व मीन का दैव ग्रुप में मान लें व अन्य 6 राशियां शुक्र, शनि व बुध की राशियों को राक्षस ग्रुप में मान लें। यदि कन्या की लग्न व राशि दोनों दैव ग्रुप की हों और वर की भी ऐसे ही हों तो मान सकते हैं कि दोनों की प्रवृत्ति एक समान होगी एवं दोनों में अंतद्वंद कम होंगे। इसी प्रकार दोनों की राशि व लग्न दैव व राक्षस दोनों ग्रुप से हों तो भी अच्छा तालतेल रहेगा। लेकिन यदि वर एक गु्रप का हो एवं कन्या दूसरे ग्रुप की हो तो विचारों में भिन्नता सदैव रहेगी।

2. गुण मिलान को केवल अंक प्राप्ति तक ही देखें। यदि गुण मिलान में 36 में से 15 गुण भी मिल जाएं तो भी उसे ठीक ही समझें। उसमें आगे विस्तार में जाकर यह न देखें कि गुण नहीं मिले या भकूट नहीं मिला या नाड़ी नहीं मिली क्योंकि कोई न कोई कारण तो होगा ही कि 36 गुण प्राप्त नहीं हुए। गुण मेलापक जातक की मानसिकता का एक द्योतक है- खुशहाल वैवाहिक जीवन का नहीं।

3. नाड़ी दोष को संतान का या स्वास्थ्य का द्योतक न मानकर केवल गुण मेलापक का एक पाॅइंट मानकर और टोटल गुण को ही आधार मानकर निर्णय लें। ब्राह्मण वर्ण के लिए नाड़ी दोष जरूरी है, इसका सांख्यिकीय विश्लेषण में कोई प्रमाण नहीं मिलता है।

4. यदि ग्रह मैत्री हो तो भकूट दोष नगण्य हो जाता है और इस प्रकार 5 पाॅइंट ग्रह मैत्री के एवं 7 पाॅइंट भकूट को मिलाकर 12 पाॅइंट हो जाते हैं। अतः केवल ग्रह मैत्री अच्छी हो तो भी गुण मेलापक को ठीक माना जा सकता है क्योंकि कुछ भी यदि मिलेगा तो 15 गुण से अधिक तो हो ही जाएंगे।

5. मंगल का प्रभाव केवल सप्तम भाव में अनिष्ट होने के प्रमाण मिलते हैं। यदि मंगल स्वगृही हो या मित्र के साथ हो तो उतना अनिष्ट नहीं रहता। उच्चता एवं नीचता दोनों ही अनिष्टता को बढ़ाती है। यदि एक की कुंडली में मंगल सप्तम में हो तो दूसरी कुंडली में मंगल सप्तम में नहीं होना चाहिए, अन्यथा अनिष्ट होकर ही रहेगा। दूसरी कुंडली में मंगल 12, 1, 4 या 8वें भाव में 7वें मंगल के दोष को काटता है।


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6. मंगल यदि 12, 1, 4 या 8 वें स्थान में बैठा हो तो उसे आंशिक मंगलीक मान लेना चाहिए। ऐसे जातक का विवाह मंगलीक, सादा व आंशिक मंगलीक किसी से भी किया जा सकता है।

7. शुभ वैवाहिक जीवन में शनि का महत्वपूर्ण रोल है। यदि शनि 7वें हो तो शादी के योग बनाता है। ऐसे में शादी 30 वर्ष से पूर्व हो जाए तो जब 30 वर्ष की उम्र में शनि के ऊपर गोचर करता है तो संबंध विच्छेद करा देता है। अतः ऐसे में शादी 30 वर्ष की उम्र के बाद करने से विवाह में स्थायित्व रहता है। कभी-कभी 7वें घर में शनि होने से अकारण विवाह में विलंब या टीका होने के बाद संबंध विच्छेदन भी देखने में आता है।

8. 7वें भाव पर शनि की दृष्टि 10वें भाव से, लग्न से व पंचम से भी कष्टकारक रहती है। इससे विवाह तो विलंब से होता ही है कभी-कभी नहीं भी होता है। पंचम शनि की स्थिति 7वें घर में शत्रु राशि होने पर अनिष्टकारी होती है।

9. मंगल या गुरु का 7वें भाव से संबंध हो तो किसी भी भाव में गुरु मंगल की युति विवाह में विलंब करती है।

10. सप्तम भाव में केवल चंद्रमा को छोड़कर सभी ग्रह विवाह में विलंब कराते हैं। इसी भाव में सौम्य ग्रहों को छोड़कर अन्य ग्रह वैवाहिक जीवन में कलह कारक होते हैं। शनि व मंगल अतिकष्टकारी होते हैं।

11. शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या विवाह तो करा सकती है लेकिन यदि ये शादी के तुरंत बाद आ जाए तो वैवाहिक खुशहाली को कम करती हैं कभी-कभी विवाह विच्छेद भी करा देती हैं।


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