शिवरात्रि में चार प्रहर की पूजा का महत्व
शिवरात्रि में चार प्रहर की पूजा का महत्व

शिवरात्रि में चार प्रहर की पूजा का महत्व  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 5038 | मार्च 2006

दिन में चार प्रहर होते हैं सुबह, दोपहर, सायं और रात्रि। इसी प्रकार जीवन की चार अवस्थाएं हैं ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास तथा जीवन में चार विकारों से मनुष्य ग्रस्त रहता है काम, क्रोध, मोह और लोभ। जीवन में मोक्ष प्राप्त करने के चार पद धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष कहे गए हैं। विशेष पूजा से हम इन चारों विकारों पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।

इसलिए चार प्रहरों की पूजा का विधान शास्त्रों में वर्णित है। शनि प्रदोष, महाशिवरात्रि, सोमवती अमावस्या का 25, 26, 27 फरवरी को अद्भुत पुण्यदायक संयोग हो रहा है। महाशिवरात्रि पूजाकाल से एक दिन पूर्व शनि प्रदोष का पड़ना तथा उसमें शिव पूजा विधान से सभी ग्रहों की और विशेष कर शनि की पीड़ा को भोलेनाथ प्रसन्न होकर हर लेते हैं।

यह पूजाकाल 26 फरवरी को सायंकाल 6 बजे से 8ः40 तक रहेगा। 27 फरवरी की महापुण्यदायिनी, पापहरणी, ग्रहक्लेशहरणी महाशिवरात्रि, जो सती एवं भोलेनाथ की संगम रात्रि है, का पुण्यकाल सायंकाल 6 बजे से प्रारंभ होकर 28 फरवरी की सुबह 6 बजे तक चलेगा। इसमें भक्तगण चार प्रहर की पूजा कर काम, क्रोध, मद, मोह और लोभ पर विजय प्राप्त कर लेते हंै।

भक्तगण इस रात्रि को भगवान शंकर की नगरी कनखल (हरिद्वार), जहां सती और भोलेनाथ का इस दिन विवाह हुआ था, पहुंचकर चार प्रहर की पूजाकर पुण्य प्राप्त करते हैं। इससे अगले दिन समस्त पितृ दोषों का निवारण एवं अनेक ग्रह कष्टों से मुक्त करने वाली सोमवती अमावस्या का पड़ना कई गुणा फल देने वाला रहेगा। यह पर्व 27 फरवरी की सुबह 9ः48 के बाद पड़ रहा है। इसमें पीपल की 108 परिक्रमा समस्त भय और व्याधि से मुक्ति तथा ग्रह पीड़ा निवारण के लिए अच्छी मानी गई है।



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